स्टॉकर - 6 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

स्टॉकर - 6



स्टॉकर
(6)




सब इंस्पेक्टर गीता अंकित सिन्हा के घर पर मौजूद थी। दो कमरों का साधारण सा मकान था। घर में अंकित के पिता दीनदयाल सिन्हा माँ पार्वती सिन्हा और अंकित की दो बहने थीं। दीपा और मनीषा। दीपा की तीन महीने बाद शादी थी।
सब इंस्पेक्टर गीता ने उन लोगों को शिव टंडन के केस के बारे में बताया। सब सुन कर वह परेशान हो गए।
दीनदयाल सिन्हा ने भरे गले से कहा।
"अब क्या कहें मैडम.....हम तो उसके भले के लिए कहते थे। पर उसे हमारी बात समझ नहीं आती थी। हम चाहते थे कि पढ़ लिख कर कोई ढंग की नौकरी कर ले। पर उस पर तो कसरत कर बाडी बनाने का जुनून सवार था। कहता था कि अच्छी बाडी बना कर मिस्टर इंडिया प्रतियोगिता में जाऊँगा।"
दीनदयाल सिन्हा ने दीवार पर टंगी अंकित की कुछ साल पहले की तस्वीर दिखाते हुए कहा।
"भगवान ने शक्ल सूरत तो अच्छी दी थी। कद काठी भी अच्छी थी। ना जाने कब अखबार में इस प्रतियोगिता के बारे में सुन लिया। बस सनक सवार हो गई। पढ़ाई लिखाई से मन हट गया। हर समय बस शरीर की देखभाल करता रहता था। मैडम पैसा भी बहुत लगता है इन सबमें। जब मैंने देने से मना किया तो लोगों को वर्जिश करना सिखाने लगा। अच्छे पैसे मिल जाते थे। पर सब बेकार की चीज़ों में फूंक देता था। जाने कौन कौन सी क्रीम मंगाता था। शरीर बनाने के लिए मंहगे डब्बे मंगाता था। उन्हें घोल कर पीता था।"
अंकित की माँ पार्वती ने भी अपने मन की बात कही।
"हमको वो सब समझ नहीं आता था। हमें लगता था कि बेकार जिंदगी खराब कर रहा है। इसलिए उसके पापा डांट देते थे। इस पर हमसे झगड़ने लगता था।"
दीपा चाय बना कर लाई। सब इंस्पेक्टर गीता ने एक प्याला उठा लिया। दीनदयाल बोले।
"बीए पहले साल के इम्तिहान में फेल हो गया। हमने गुस्से में पिटाई कर दी। कह दिया घर से निकल जाओ..."
कहते हुए दीनदयाल रोने लगे। फिर खुद पर काबू कर बोले।
"उसने सचमुच घर छोड़ दिया। फिर पलट के नहीं आया। सिर्फ उन्नीस साल का था मैडम।"
दीपा वहीं आकर बैठ गई थी। अपने पिता को तसल्ली देने के बाद बोली।
"पहले भी हमसे खुला था। अपने दिल की बात बताता रहता था। उसे अमीर बनने का शौक था। कहता था कि एक बार मिस्टर इंडिया बन गया तो माडलिंग और फिल्मों से खूब आफर आएंगे। मैं उसे समझाती थी कि इन सब चक्करों को छोड़ कर पढ़ाई करे। वह कहता था कि दीदी तुम भी मुझे नहीं समझती हो।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने चाय खत्म कर प्याला ट्रे में रख दिया। उन्होंने दीपा से पूँछा।
"घर छोड़ने के बाद वह तुम्हारे संपर्क में था। उसने तुम्हें कुछ बताया था कि कैसे ज़िंदगी गुज़ार रहा है।"
"जी मैडम... अंकित को जिम का बहुत शौक था। यहाँ था तो रोज़ जिम जाता था। वहाँ जो सीखता था वह लोगों को सिखा कर पैसे बना लेता था। घर छोड़ने के साल भर बाद जब पहली बार उसका फोन आया तो उसने बताया था कि वह जिम ट्रेनर का कोर्स कर रहा है। जिससे सही तरह से काम कर सके। फिर कुछ महीनों के बाद उसने बताया कि उसने जिम ट्रेनर का सर्टिफिकेट कोर्स कर लिया है और एक नामी जिम में काम करने लगा है।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने आगे पूँछा।
"उसने कभी मिसेज़ टंडन के बारे में नहीं बताया।"
"हाँ उसने बताया था कि जिम में वह उनका पर्सनल ट्रेनर बन गया है। पर मैडम ना जाने वह औरत मेरे भाई पर इतना घिनौना इल्ज़ाम क्यों लगा रही है। मेरा भाई किसी औरत को गंदी नज़र से नहीं देख सकता। किसी का कत्ल करना तो दूर की बात है। देखिए ना कैसे उसने घर से बिना कोई मदद लिए खुद को लायक बना लिया।"
दीनदयाल जी ने सब इंस्पेक्टर गीता से प्रार्थना की।
"मैडम आप बस हमारे बेटे को खोज निकालिए। फिर सब साफ हो जाएगा। फिर उसे समझा कर हमारे पास भेज दीजिएगा। कहिएगा कि अब अपनी नाराज़गी छोड़ दे। घर वापस लौट आए।"
"सिन्हा जी पुलिस अंकित को खोजने की कोशिश कर रही है। मुझे तो लगा था कि शायद वह यहाँ आ गया होगा। पर हम उसे खोज कर सच पता करेंगे। अगर वह बेकसूर है तो उसे घर आने के लिए ज़रूर समझाएंगे। आप लोगों ने मेरी बहुत मदद की। उसका शुक्रिया।"
चलने से पहले सब इंस्पेक्टर गीता ने अंकित के परिवार को सांत्वना दी कि वह धैर्य बनाए रखें।

जब सब इंस्पेक्टर गीता अंकित का पता करने झांसी गई थी उसी बीच एसपी गुरुनूर ने इंस्पेक्टर अब्राहम को बुला कर रॉबिन के बारे में बात की।
"अब्राहम... रॉबिन घोष को मिस्टर टंडन अच्छी तरह से जानते थे। पर इन दोनों की दोस्ती आखिर शुरू कहाँ से हुई ?"
"मैम.... मैंने दोबारा नजीब खान से बात की थी। उन्होंने बताया कि शुरुआत में ही एक बार उन्होंने मिस्टर टंडन से रॉबिन घोष के बारे में पूँछा तो मिस्टर टंडन ने बताया कि उससे उनकी मुलाकात दार्जिलिंग में उसकी टी स्टेट में हुई थी। उसके बाद रॉबिन ने उन्हें फोन कर कहा कि वह यहाँ आना चाहता है। इसलिए मिस्टर टंडन ने यहाँ उसकी मदद की।"
"अब्राहम....मिस्टर टंडन उससे उसकी टी स्टेट में मिले थे। जब रॉबिन ने यहाँ आने की इच्छा जताई तो मिस्टर टंडन ने उसकी मदद की। उसे क्लब की सदस्यता दिलाई। यह सब तो इशारा करता है कि उनके संबंध गहरे थे। पर मिसेज़ टंडन रॉबिन को नहीं जानती हैं। ये कुछ अजीब नहीं लगता है।"
"मैम....थोड़ा अजीब तो है। पर ऐसा हो सकता है। कभी कभी पति पत्नी अपनी सोशल लाइफ की सारी बातें एक दूसरे को नहीं बताते हैं। मिस्टर टंडन ने भी रॉबिन के बारे में नहीं बताया होगा।"
"अब्राहम मैं दार्जिलिंग पुलिस से संपर्क कर रॉबिन घोष के बारे में पता लगाने को कहती हूँ। अगर ज़रूरत पड़ेगी तो दार्जिलिंग चलेंगे।"
"ओके मैम...."

दीपा किसी काम से बाहर गई थी। जब वह घर लौट रही थी तब उसके मोबाइल पर एक फोन आया। नंबर अंजान था। पर दीपा अंकित के फोन की प्रतीक्षा करती रहती थी। इसलिए उसने उठा लिया।
"दीदी......"
यह शब्द कान में पड़ते ही दीपा फौरन सड़क के किनारे जाकर खड़ी हो गई।
"अंकित.... तुम....कहाँ हो भाई....हम तुम्हारे लिए कितने परेशान हैं।"
"दीदी मैं मुसीबत में हूँ।"
"हाँ मैं जानती हूँ। सब इंस्पेक्टर गीता तुम्हारे बारे में तफ्तीश करने आई थी। भाई वो क्या कह रही थी.....उसका कहना था कि तुमने किसी शिव टंडन का खून कर दिया है। उसकी बीवी पर तुम गलत निगाह रखते हो।"
"दीदी मैं बहक गया था। पर कत्ल मैंने नहीं किया। बिलीव मी...."
"हम तुम पर यकीन करते हैं। पर तुम हो कहाँ ? तुम घर क्यों नहीं आते हो ? हम तुम्हारी मदद करेंगे। मम्मी पापा तुम्हारी फिक्र में घुले जा रहे हैं।"
"दीदी मैं बड़ी मुश्किल से...."
अंकित की बात बीच में ही रह गई। दीपा को किसी और का स्वर सुनाई पड़ा। जैसे कोई अंकित के बगल में खड़ा होकर कह रहा हो।
'अरे भाई कितनी बात करोगे। मुझसे कहा था कि दो मिनट ज़रूरी बात करनी है। मेरा मोबाइल वापस करो। मुझे देर हो रही है।'
फोन छीन लिया गया। कॉल कट गई। दीपा ने फौरन उस नंबर पर कॉल लगाई। पर पहली बार में पूरी घंटी बजने के बावजूद कॉल नहीं उठी। दीपा परेशान सी सड़क के किनारे खड़ी थी। कुछ पलों के बाद उसने दोबारा कॉल किया। इस बार फोन उठ गया।
"हैलो....देखिए अभी कुछ देर पहले इस नंबर से मेरे भाई का कॉल आया था। वह मुश्किल में है। प्लीज़ मेरी बात करा दीजिए।"
"नहीं करा सकता मैं बस में हूँ। अपने घर जा रहा हूँ।"
"मेरा भाई कहाँ गया ?"
"नहीं जानता....मैं बस स्टेशन पर अपनी बस चलने का इंतज़ार कर रहा था। वो लड़का मेरे पास आकर बोला कि उसे अपने घर बहुत ज़रूरी बात करनी है। मेरे पास फोन नहीं है। मैंने इंसानियत के नाते दे दिया। पर वह लंबी बात करने लगा और मेरी बस चलने वाली थी। इसलिए मैंने फोन छीन लिया और बस में बैठ गया। मुझे नहीं पता कहाँ गया वो।"
"थैंक्यू भइया...."
दीपा ने फोन काट दिया। कुछ देर परेशान हालत में वहीं खड़ी रही। फिर घर चली गई।
घर लौट कर दीपा चुपचाप सर दर्द का बहाना कर लेट गई। वह बहुत घबराई हुई थी। ना जाने उसका भाई किस हाल में होगा। पर वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। अपने मम्मी पापा को यह बात बताएगी तो वह परेशान हो जाएंगे। जब से सब इंस्पेक्टर गीता आकर गई थी वह दिन रात अंकित को लेकर परेशान रहते थे। कोई और था नहीं कि वह उससे यह बात बताती।
बहुत देर तक सोंचने के बाद उसे लगा कि पुलिस ही अंकित की सही तरह से सहायता कर सकती है। सब इंस्पेक्टर गीता उसे अपना नंबर दे गई थी।
दीपा ने फोन कर सब इंस्पेक्टर गीता को सब बता दिया। उसने वह नंबर भी दे दिया जिससे फोन आया था।
सब इंस्पेक्टर गीता ने तुरंत उस नंबर पर फोन मिला कर बात की। उस आदमी का नाम बनवारी था। पहले तो वह घबराया कि उसने तो सिर्फ किसी की मदद की थी पर वह पुलिस के चक्कर में पड़ गया। पर सब इंस्पेक्टर गीता ने उसे समझाया कि वह बस पूँछताछ कर रही है। उस पर कोई आंच नहीं आएगी।
बनवारी ने बताया कि उस शाम वह सिटी बस स्टेशन पर अपने गांव जाने के लिए गया था। टिकट खरीद कर वह बस के चलने का इंतज़ार कर रहा था जब वह लड़का आया और उससे मोबाइल लेकर किसी से बात करने लगा। उसने बताया कि लड़के की हालत देख कर लग रहा था कि वह बहुत मुसीबत में है। वह घबराया हुआ भी लग रहा था। जब बस चलने का समय हो गया तो बनवारी ने अपना फोन वापस ले लिया।
सब इंस्पेक्टर गीता सारी सूचना देने के लिए एसपी गुरुनूर के केबिन में गई। पर वह कहीं गई हुई थी।