आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ५ DILIP UTTAM द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ५

----- अध्याय ५."मैं पराई जो हूं|"-----

शादी पर लड़की की रजामंदी न लेना क्या उचित हैं?

शादी लड़की की पसंद का न करना क्या सही है?

लड़के शादी के नाम पर कई-कई लड़कियों को देखते रहते हैं क्या यह सही है?

लड़की को आज भी अपनी पसंद का लड़का चुनने की आजादी क्यों नहीं हैं?

लड़की प्रेम कर ले तो, घर की इज्जत दांव पर लग जाती है ऐसा क्यों परिवार वाले, घर वाले ,समाज वाले

मानते हैं और लड़का कर ले तो यार अब लड़के ने कर लिया तो क्या करें ऐसे विचार, ऐसी सोच क्यों

है?

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शादी करके उसको(लड़की को/ नारी को) घर से जाना होता हैं, उसको रिश्ता निभाना होता हैं, और बनाना होता है| सबसे अहम बिंदु तो वही है पर आज भी भारत के अधिकतर घरों में लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती है, ऐसा पुरुषों के अहम के कारण होता है कि वह यही चाहते हैं कि उन्हीं की चले, क्योकि वो ही सर्वे-सर्वा हैं(ऐसी सोच के कारण)| मानव के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव शादी है प्राय: लड़कों को उनकी पसंद से शादी की जाती/हो जाती है और इसी स्थित पर लड़कियों से उनके पसंद तो छोड़ो उससे पूछा भी नहीं जाता आखिर क्यों? उसे बता दिया जाता है कि तुम्हारी शादी है, इससे शादी हो रही है ठीक है, ओके और कुछ नहीं, ऐसा भेदभाव क्यों, आखिर क्यों है? क्या लड़की के पास बुद्धि नहीं होती है, क्या लड़की के पास मन नहीं होता हैं ,क्या लड़की के पास भावनाएं नहीं होती हैं?, क्या लड़की पुरुषों के हाथ की कठपुतली हैं?

क्या यह नियत/प्रकृति ने लिखा हुआ है कि वह लड़की है तो उसके साथ ऐसा ही होगा या ऐसा हमारे समाज ने लिखा हुवा हैं या हमारे बुद्धिजीवियों ने लिखा हुआ है या हमारी सोच ने लिखा हुआ है या हमारी सोच ने ऐसा सोचा हुआ है, आखिर ऐसा किसने लिखा हुआ है? ऐसी सोच किसने बनाई हुई है, दुनिया में किसने फैलाई हुई है? इस चीज का हमें विश्लेषण करना ही होगा तभी हम सही बिंदु पर पहुंच पाएंगे और समाज के लिए कुछ सही निष्कर्ष निकाल पाएंगे, हमें दोनों पहलुओं को सही से मूल्यांकन करना ही होगा, एक तरफा होकर हमें कुछ नहीं करना होगा, एक तरफा होंगे तो समाज का बंटाधार होना तय है और कोई नहीं रोक पाएगा, कोई नहीं, कोई भी नहीं रोक पाएगा| आखिर ऐसा क्यों चलता रहता है ,क्यों नहीं ,वो अपनी पसंद को सिलेक्ट कर सकती है? क्यों भला? क्यों होता है ऐसा भेदभाव?

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"क्यों, कहने का क्या मतलब, नारी को दर्द नहीं होता?

क्या उनके पास मन नहीं है?

क्या उनके पास दिल नहीं है?

क्या उनके पास भावनाएं नहीं है?

क्या वह आपको ऐसे ही चुपचाप सहती रहेगी?

आखिर कब तक वो आपको सहेंगी?

वह जो आप निर्णय लेंगे, उसी में उसकी खुशी है|

वही उसके पति है, क्या उसको दर्द नहीं होगा?

ये उसकी चुप्पियों की कीमत, आपको चुकानी ही पड़ेगी|

प्रकृति सबके लिए समान होती है, इसे मनुष्य ही तोड़ता-मरोड़ता रहता है |

मनुष्य का ही मन दूषित है/प्रदूषित है और पथ भ्रमित है |

उसी से सब बेकार के कार्य होते हैं|

उसी का परिणाम है कि पुरुष महिलाओं को बराबर न समझते हैं |

उनकी भावनाओं की इज्जत न करते हैं|"

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लड़कों की बात की जाए तो कोई भी लड़का सुन्दर लड़की से ही शादी करना चाहता है, कोई भी लड़का कम सुन्दर लड़की से शादी नहीं करना चाहता क्यों? वही लड़के की जॉब है /नौकरी कर रहा है को देखकर ही शादी कर दी जाती है क्यों ,क्या पैसा या जॉब ही सब कुछ है? उसके पिता समझते है कि वह खुश रहेगी वहां पर उसके जीवन खुशियों से भर जायेगा | अरे भाई खुशियां खरीदने की जगह, उसको दुखों का खरीद कर दे दिया जाता है, क्यों की मन से शादी का ना होना, दुःख से कम न है और इससे बड़ा दुःख हो ही नहीं सकता ,क्यों की यदि ऐसे हालातों में सामंजस्य न बैठ पाया तो पूरे जीवन इस रिश्ते को ढ़ोना पड़ता है और पूरा जीवन कष्टों से भर जाता है और सब कुछ होते हुए भी खुशियां नहीं मिलती, मन नहीं लगता, दिल नहीं लगता, महफिल नहीं सजती |

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नारी व्यथा:-

" रहना मुझको है(नारी को) |

जीना मुझको है(नारी को) |

फिर भी एक शब्द न पूछा जाता|

फिर भी एक लब्ज न पूछा जाता|

ऐसा अन्याय क्यों है?

ऐसा गोल-माल क्यों है?

ऐसा घोर युग क्यों है?

ऐसा क्यों है, ऐसा घोर पाप क्यों है?

भावनाओं को तोड़ते हैं|

फिर कहते खुश रह बेटी तू |

पैसों पर तोलते रिश्ते|

भावनाओं को तोड़ते रिश्ते|

फिर कहते खुश रह बेटी तू |

फिर कहते खुश रह बेटी तू |"

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आज के समय में अगर किसी की अच्छी जॉब लगी है या बहुत पैसे वाला है तो लड़कियों को ऐसे देखता है जैसे वो गाय-बकरी खरीदने गया हो १,२,३,4 नहीं १०-१० लड़कियां देख डालता है फिर भी उसका मन नहीं भरता, इतनी लड़कियों को देखने के बाद भी वह बोलता है कि मैं कमप्रोमाइज/समझौता करके शादी कर रहा हूं अरे जनाब /नवाब /राजा/ महाराजा जरा अपने गिरेबान में झांक कर देखो कि आप में कितनी अच्छाई है, कितनी बुराइयां हैं, कितनी बुराई समाई हुई है, फिर आपको पता लगेगा कि आप किस को सिलेक्ट करने गए थे (जो आपसे ज्यादा ही गुणवान है|) |

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"खुद का विश्लेषण करिये, सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी |

खुद को स्वीकार करिये, सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी |

खुद की कमियों को देखकर, निर्णय लीजिये, सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी |

अपनी ही तरह, दुसरो की कमियों को भी स्वीकार करना सीख लीजिये,

सब सुधर जायेगा, सब संवर जायेगा|

खुद से बड़ा कोई आइना न होवे |

खुद से बड़ा कोई मित्र न होवे |

खुद से बड़ा कोई शत्रु न होवे |

खुद से बड़ा कोई सच न होवे |

तो समाज से पहले, खुद को समझिये|

आप कुछ और बनकर निकलोगे |

पूरा सच सामने होगा |

पूरा निष्कर्ष सामने होगा |

तो खुद को पहले बनाइये |

खुद को पहले सवांरिये |

खुद को पहले जगाईये |

खुद को पहले तपाईये |

खुद को पहले समझाईये |

सब बदल जायेगा |

सब सवंर जायेगा ||"

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किताब/ बुक-----आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा)
"नारी में बारे में बातें, नारी के नजरिये से |"
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