आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ३ DILIP UTTAM द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ३

-----अध्याय ३."दोगलापन |" -----

हमेशा पूरा ज्ञान नारी को ही क्यों दिया जाता है? पुरुषों को पूरा ज्ञान क्यों नहीं दिया जाता? ये करो, वो करो यह सब स्त्रियों को ही बोला जाता है, आखिर क्यों? क्या वह प्राणी नहीं है? क्या उसमें जी नहीं है? क्या उसमें मन नहीं है और ये कहीं और बाहर शुरू नहीं होता यह अपने खुद के घर से ही शुरू होता है और तो और अधिकतर यह जन्म के पूर्व से ही शुरू हो जाता है, घर के अधिकतर लोग चाहते हैं कि आने वाला बच्चा लड़का हो आखिर क्यों?

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"यही से कहानी का गढ़ना शुरू हो जाता है|

यही से कहानी का लिखना शुरू हो जाता है|

यही से शोषण की शुरुवात हो जाती है|

यहीं से विचार बदलने लगते हैं|

यही से आकार बदलने लगते हैं|

यहीं से संसार बदलने लगता है|

यहीं से इंसान बदलने लगता है|"

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लड़का -लड़की यानी की लड़का कुछ भी अपनी मर्जी से कर सकता और लड़की कुछ भी अपनी मर्जी से नहीं कर सकती, खुलकर वो हंस भी नहीं सकती, आखिर क्यों? और हम सपने देख रहे हैं कि हम विश्व गुरु बनेंगे, एक तबके को दबाकर कैसे हम विश्व गुरु बन सकेगें | समाज का हर कानून-नियम औरतों पर ही लागू होता और वही नियम, वही कानून, वही स्वतंत्रता पुरुष पर आकर टूट जाती है क्यों?

-----नारी की बातें (नारी की तरफ से जब वो भगवान से बात करेगी तो कहेगी|) -----

"छल कपट के सिवा, कुछ न मिला मुझे |

छल कपट के सिवा, कुछ न मिला मुझे |

क्या केवल छल जाने के लिए बनाया मुझे?

क्या केवल कपट पाने के लिए बनाया मुझे?

हे प्रभु कहां है तू?

हे प्रभु कहां है तू?

जब मैं(नारी) रोती हूँ |

जब मैं(नारी) दहाड़ती हूँ |

कोई पागल मुझे छेड़ता है|

कोई पागल मुझे नोचता है |

फिर भी पागल मैं कहलाती हूँ, क्यों भला?

फिर भी पागल मैं कहलाती हूँ, क्यों भला?

आखिर क्यों समाज के हाशिए पर खड़ी, हर मोड़ पर हो जाती हूँ?

करता पाप कोई, पर पापी बन जाती मैं|

करता पाप कोई, पर पापी बन जाती मैं|

यह सवालों के जवाब सदियों से चले आ रहे हैं|

पर जवाब न मिल रहा है, जवाब न मिल रहा है |

कुछ तो आस छोड़ प्रभु, मुझको |

कुछ तो आस छोड़ प्रभु, मुझको |

कि तुझ पर विश्वास करूं मैं|

कि तुझ पर विश्वास करूं मैं|

कौन छली गई औरत?

कौन नोची गई औरत?

तुझ पर विश्वास करेगी|

तुझ पर विश्वास करेगी|"

-----

(जबकि वास्तव में होता ये है कि, नारी का शोषण पुरुष वर्ग की गंदी सोच, रूढ़िवादिता के चलते ही होती है|)

-----

"बातें अथाह हैं, नियम अथाह हैं|

स्थित वही हैं, स्थित न संभली है |

कैसे सुधरेगी मेरी स्थिति?

कोई तो बताए मुझको?

कोई तो आगे आए?

कोई तो आगे आए?

सब नियम-कानून मेरे लिए ही है |

सब लोक-लाज मेरे लिए ही है |

सब आन-बान-शान-तान मेरे लिए ही है, क्यों भला?

ऐसा प्रभु तूने बनाया एक को छांव (पुरुष को ),

तो दूसरे को कांटा(नारी को)|

ऐसा क्यों धर्म निभाया|

ऐसा क्यों धर्म निभाया|

हर मोड़ पर अग्निपरीक्षा मेरी|

हर छोड़ पर अग्नि परीक्षा मेरी |

हर तोड़ पर अग्नि परीक्षा मेरी|

हर यहां पर अग्नि परीक्षा मेरी|

हर जहां पर अग्नि परीक्षा मेरी|

अग्नि परीक्षा मेरी, अग्नि परीक्षा मेरी |

बस अग्नि परीक्षा मेरी, अग्नि परीक्षा मेरी |"

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नारी के शोषण की बात की जाए तो हम गिन नहीं पाएंगे कि कितने तरीके से उसका शोषण होता है? उनके कुछ तरीकों का वर्णन कर रहा हूं:-

१.मां खुद ही अपनी बेटी से भेदभाव करने लगती है वह बेटों को ज्यादा चाहती है, बेटी को कम, बेटे को आराम से खाना देगी तो बेटियों को डॉट-डॉट कर काम कराती है, बेटे को अच्छा-अच्छा खिलाएगी तो बेटियों को बासी रोटी खाने को बोलेगी, ऐसे ही दादी-नानी ही अपनी बच्चियों का शोषण करती है और अब इसकी वास्तविकता में चलते हैं तो यह सोच कहाँ से आई की मां, दादी, नानी, चाची अपनी ही बेटियों, अपने ही अंश (बेटियों) से कैसे शोषण करती/करवाती है, कैसे भेदभाव कर पाती है जबकि वास्तव में होता यह है कि पुरुषों ने ही नारी जाति का माइंड वास कर दिया है, जिससे वह अपनी बच्चियों को भी पराया धन समझती है, पराया धन मानती हैं और जब पराया धन मान लिया है तो अपनापन कहां? एक पराया धन की इतनी ज्यादा मात्रा में, दिमाग में महिलाओं के भर दिया गया है पुरुषों द्वारा और घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा की पुरुष अपनी चालों में सफल हो जाते हैं और महिलाओं से खुद की बच्ची का कन्या भूण हत्या तक करवा जाते हैं, करवा देते हैं तो यहाँ भी मूल रूप से पुरुष ही दोषी है ये उन्ही की चाल है|

२.बॉयफ्रेंड शोषण करता है, पति करता है, बेटा करता है, ऑफिस की बात करें तो उसे मेंटली और फिजिकली (शारीरिक और मानसिक) शोषण किया जाता है, राहों में शोषण किया जाता है, रिश्तेदार शोषण करते हैं आपको जानकर ताजुब होगा की जितने रेप होते हैं उनमें से अधिकतर जानने वालों के द्वारा ही किये जाते हैं|

३.नारी कितनी भी बोल्ड हो, आत्मविश्वासी हो परंतु उसे भी छेड़छाड़, रेप का डर हमेशा सताता रहता है| दुनिया का/ब्रह्मांड का बेशकीमती तोहफा है नारी, उसे बहुत संभाल कर रखने की जरूरत है ,उसका शोषण नहीं, उसे प्रेम की जरूरत है और सबसे महत्वपूर्ण बात नारी के साथ शोषण होता है घर से लेकर बाहर तक, वह ज्यादातर मामलों में शांत रहती है यह सोच कर कि बोलूंगी तो दोष उसी को दिया जायेगा(सबसे महत्वपूर्ण बात है औरत के घर के लोग ही उसे गलत कहेंगे/ कहते है|) और परिवार को दिक्कत होगी, परिवार में टेंशन होगी, वो चुप्पी मार जाती है और यही से शोषण की शुरुवात और बढ़ने लगती है|

----- ऐसे ही हजारों तरीकों से नारियों का शोषण पुरुषों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है जिसे मैंने कविता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है:-

"प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष शोषण सहती हूं मैं|

सबसे ज्यादा तपती हूं मैं |

सूरज भी न तपता होगा ऐसी तपिशो से|

फिर भी चंदा की तरह शांत रहती हूं मैं|

बस दुख यही है, इतना सब होने के बाद भी, पुरुष न मुझे समझता है|

पुरुष न मुझे मानता है|

फिर भी सबसे ज्यादा पिटती हूं मैं|

102 डिग्री फीवर में भी काम करती हूं मैं |

फिर भी कोई न मुझे समझता है |

फिर भी कोई न मुझे मानता है |

मैं न चाहूं ज्यादा कुछ |

मैं न मांगू ज्यादा कुछ|

मैं न सपने सजाऊँ ज्यादा कुछ|

मैं न अपने बनाऊ ज्यादा कुछ|

फिर भी न चैन मिलता|

फिर भी न मान मिलता|

भला क्यों? भला क्यों? भला क्यों?

कोई तो बताए, कोई तो बताए?"

सत्य अर्थों में बात करें तो-----

१.पूरा ज्ञान हर समय केवल औरतों को ही दिया जाना बंद होना ही चाहिए |

२.ज्ञान जब तक बराबर स्तर का न होगा औरत या पुरुष में भेदभाव होता रहेगा/ औरत या पुरुष में ऐसा ज्ञान भेदभाव करता रहेगा तो कोई सही बात न निकलेगी, कोई सही राह न निकलेगी, कोई सही परिणाम न निकलेगा|

३.हमें नारी की सफलता को स्वीकार करना ही होगा, लोग इसे स्वीकार क्यों नहीं पाते? हर नारी को आगे बढ़ने देना ही होगा, हमें विश्लेषण करना ही होगा, सबको समान मौका देना ही होगा, भगवान ने बुद्धि केवल पुरुषों को ही नहीं दी है, स्त्रियों को भी दी है| यह सिद्ध है, उन्हें मौका दो वो सबसे बराबरी कर सकती है जो आप भी नहीं कर सकते हैं, उनको निकालो रूढ़िवादिता से ,उनको भी जीवन को जीने का हक है, हक है हंसने का, हक है सपने सजाने का, हक है मर्जी से कपड़े पहनने का, हक है मन की करने का, लिंग के आधार पर भेदभाव बंद होना ही चाहिए |शारीरिक और मानसिक अधिकार देने ही होंगे, उनको(नारियों) काम की वस्तु नहीं समझना होगा, पुरुष का एकाधिकार टूटने का समय आ चुका है अब अधिकार बराबरी का होगा तो कौन बड़ा है? कौन छोटा? यह मायने नहीं रखेगा |

बड़ा वही होगा जो मेहनत करेगा, जो अपनी बुद्धि का प्रयोग करेगा, जो अपनी शक्ति का प्रयोग करेगा, जो अपने कर्म को बढ़ाएगा वो एक नारी भी हो सकती है, वो एक पुरुष भी हो सकता है|

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किताब/ बुक-----आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा)
"नारी में बारे में बातें, नारी के नजरिये से |"
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