विद्रोहिणी - 14 - अंतिम भाग Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विद्रोहिणी - 14 - अंतिम भाग

विद्रोहिणी

(14)

जातिवाद का जहर

श्यामा का परिवार बड़े लंबे समय से जाति से निष्कासित था। मोहन ने अपने परिवार का नाम फिर से जाति में जुड़वाने के लिए अनेक प्रयत्न किए लेकिन उन्हे सफलता नहीं मिली। बाद में उसे मालूम पड़ा कि इस कार्य में सबसे अधिक रूकावट बंसीलाल डाल रहा था जो जाति का अध्यक्ष था व श्यामा का दूर का रिश्तेदार था । वह ऐक मंदिर में पुजारी था।

एक दिन श्यामा बंसीलाल के मंदिर में पहुंची। बंशीलाल लम्बे कद, गौर वर्ण व घनी दाढी मूंछ का व्यक्ति था । उस समय वह लोगों को धर्म का उपदेश दे रहा था । श्यामा ने कहा, ‘ बंसीलालजी हमारे परिवार का नाम जाति में जोड़ने की कृपा करें। ’

इस पर बंसीलाल ने जबाब दिया, ‘ हमारी जाति उच्च वर्ण के ब्राम्हण कुल की है, हम पतित व चरित्रभृष्ट लोगों को अपनी जाति में सम्मिलित नहीं करते। ’

यह सुनकर पल भर के लिए श्यामा सन्न रह गई। फिर उसने कहना शुरू किया, ‘

‘ बंसीलाल ! मैं तुम्हे अच्छी तरह जानती हूं। तुम्हारा असली रूप तुम्हे बताती हूं। तुम वही हो न जिसने मेरी अबला भाभी का बलात्कार करने का प्रयास किया जब वह विधवा होने के कारण तुमसे अपनी रोटी रोजी की सहायता मांगने आई। तुम वही हो जो वर्षो से जाति से निष्कासित रहे क्योकि तुमने ऐक अत्यंत निम्न कुल की स्त्री से विवाह किया। तुम्हे स्पर्श करने मे भी लोग हिचकते थे। फिर भी तुम बिना बुलाए दूर दूर तक हर स्थान पर जाति के सहभोज में खाना खाने पहुंच जाते। मेजबान गिड़गिड़ाते हुए तुमसे वहां से चले जाने का निवेदन करता । वह तुम्हें अपने कार्यक्रम बिगड़ने का हवाला देता क्योकि जातिच्युत व्यक्ति के साथ देखे जाने वाले व्यक्ति को भी जाति से बाहर कर दिया जाता है । फिर भी न मानने पर लोग तुम्हे आयोजन स्थल के बाहर जूतों के पास बिठाकर खाना खिलाकर तुमसे पीछा छुड़ाते। ’

यह सुनकर बंसीलाल सन्न रह गया। उसे लगा मानों काटो तो खून नहीं। बंसीलाल की लू उतारकर श्यामा वहां से दनदनाती हुई चल दी। बंसीलाल ने जोर से कहा ‘ अब तो मेरे जीते जी तेरा परिवार कभी भी जाति में सम्मिलित नहीं हो सकेगा। ’

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जातिवाद का जहर 2

बंशीलाल की कहानी बड़ी रोचक थी। वह ऐक मंदिर में पुजारी था। उसका विवाह बड़ी धूमधाम से एक राजघराने के कर्मचारी के यहां हुआ जो उस समय बड़े गर्व की बात थी। बाद मे मालूम पड़ा कि उसकी पत्नि की मां एक अत्यंत निम्न कुल की औरत थी। अर्थात उसके साथ भी सत्या के परिवार वाला हादसा हुआ। बंसीलाल की पत्नि सत्या की पत्नि की बड़ी बहन थी।

यह बात जाति मे फैल गई। बंसीलाल का जाति से बहिष्कार कर दिया गया।

जाति का कोई व्यक्ति बंसीलाल या उसके परिवार को किसी भी कार्यक्रम में नहीं बुलाता, न उसके यहां जाता था।

किन्तु बंसीलाल भी किसी और मिटटी का बना था। वह बिना बुलाए ही जाति के किसी भी व्यक्ति के यहां आयोजन पर पहुंच जाता । मेजबान उसके हाथ पैर जोड़कर उससे वहां से जाने का निवेदन करता क्योकि किसी ऐसे व्यक्ति के आने से जाति के सब लोग भोजन व आयोजन छोड़कर वहां से उठ कर चल देते व पूरा कार्यक्रम बिगड़ जाता। यदि खाने का कार्यक्रम हो तो लोग बिना भोजन किए वहां से चल देते और पूरा खाना खराब हो जाता। जाति निष्कासित व्यक्ति के साथ भोजन या बात करने वाले व्यक्ति को भी जाति से निकाल दिया जाता था। अंत में बड़ी मिन्नतों व दंड देने के बाद बंसीलाल को जाति मे सम्मिलित कर लिया गया।

अब वही बंसीलाल श्यामा के परिवार को जाति में लिए जाने का विरोध कर रहा था।

वैसे जाति निष्कासन कानूनन अपराध घोषित किया जा चुका था किन्तु समूह बल पर पर्दे के पीछे यह प्रथा बदस्तूर आज भी जारी है।

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समापन

कुछ वर्षो बाद कुमार व मोहन ने साइंस में ग्रेजुऐशन डिग्री प्रथम श्रेणि मे पास की । उन्हें उत्क्रष्ट दर्जे की शासकीय सर्विस मिल गई । उनके गरीबी के दिन फिरने लगे । उन्होंने जातिवाद के जहर से ग्रस्त पाख्रडी समाज के असली स्वरूप को देखा था ।

श्यामा ने गरीब बेबस बेसहारा महिलाओ की मदद के लिए एक संस्था का गठन किया जो उन्हें स्ववावलम्बी बनाने में मदद करती थी I

मोहन व कुमार ने गरीब बेसहारा बच्चों की मदद करने के लिए निशुल्क विद्यालय की स्थापना की I गरीब परिवारों के विद्यार्थियों के लिए पढाई के साथ अपने अतिरिक्त समय में कुछ छोटा मोटा काम करके अपने परिवार को आर्थिक मदद देने की व्यवस्था भी की गई I

मोहन ने जातिवाद की जंजीरों को तोड़ते हुऐ अंतर्जातीय विवाह किया ।

देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लोग जातिवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, घार्मिक पाखंडवाद से ग्रस्त हैं ।

इस समस्या का हल ऐक व्यक्ति के वश की बात नहीं हैं । इसके लिऐ व्यापक स्तर पर जमीनी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है ।

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