विद्रोहिणी - 7 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

विद्रोहिणी - 7

विद्रोहिणी

(7)

शरण

उस मकान में अनेक फ्लेट थे। वह तीन मंजिला विशाल मकान था। उसमें अनेक परिवार रहते थे।

श्यामा व उसका परिवार पहली मंजिल पर रहता था। सबसे निचली मेजिल पर ऐक निहायत ही सभ्य व धार्मिक व्यक्ति रहता था। उसका नाम कन्हैया था। कन्हैया के माता पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। उन्होंने तीन बार विवाह किया किन्तु प्रत्येक बार कुछ समय के बाद ही उनकी पत्नि का देहांत हो जाता था। वे बड़े दुखी इंसान थे। वे अपना दुख किसी के सामने नहीं बताते थे। वे एक कपडे की दुकान पर मुनीम थे। दुकान का काम समाप्त होने के बाद वे अपना सारा समय अपने मकान के पास व्यंकटेश्वर मंदिर में सेवा कार्य में व्यतीत करते थे। कन्हैया हर किसी दीन दुखी की सहायता करने में सदैव तत्पर रहते थे । वे दुश्मनों सुख में सुखी होते थे। वास्तव मे वे किसी को अपना शत्रु नहीं मानते थे वरन सभी प्राणी ईश्वर के अंश हैं, ऐसी मान्यता में यकीन रखते थे। वे गांधीजी के सहज रूप से अनुयायी थे।

प्रति शुक्रवार पास के व्यंकटेश मंदिर में एक भव्य उत्सव मनाया जाता I इसके प्रमुख कर्ताधर्ता कन्हैया होते थे I मंदिर के गलियारे में भगवान व्यंकटेश व माता लक्ष्मी को एक सोने व चांदी से मढ़ी हुई सुन्दर पालकी में विराजमान कराके भव्य जुलुस का आयोजन किया जाता I फिर चार भक्त पालकी को अपने कंधो पर उठाते I दो भक्त पालकी के दोनों और चांदी के सुन्दर चंवर डुलाते हुए भगवान को पंखा झलते I दो अन्य भक्त चांदी की अत्यंत सुन्दर मढी हुई लम्बी छडिया कंधे पर उठाए चौकीदार का रोल निभाते हुए आगे आगे चलते I पालकी के पीछे स्त्रियां व आगे पुरुष भक्त संस्कृत के अत्यंत सुन्दर छन्द गाते हुए चलते I इस भव्य मनोहर आयोजन के पश्चात् प्रसाद वितरण किया जाता I कुछ भक्त सिर्फ प्रसाद के समय ही आयोजन में सम्मिलित होते I उन्हें पर्साद्या भक्त कहा जाता I

श्यामा ने कन्हैया से शरण देने का अनुरोध करते हुए कहा,

‘कन्हैयाजी ! मेरा पति कुछ कमाता नहीं है, वह रोज मुझे मारता पीटता है। इधर पीहर में मेरे भाई व भाभी रोज मुझ पर अत्याचार करके मुझे घर से निकालने को आमादा हैं। मेरे दो अबोध छोटे बच्चे हैं। अब आप ही बताइये मैं कहां जाउं ? ’

कन्हैया ने कहा ‘श्यामा ! मैं तुम्हारे कष्ट से भलीभांति परिचित हूं। बताओ मैं तुम्हारे किस तरह काम आ सकता हूं। ’

श्यामा: आप कृपा करके मुझे एक कमरा दे दीजिए । मैं आपके घर का सारा काम कर दिया करूंगी। ’

वे श्यामा को सहर्ष एक कमरा देने को तैयार हो गए।

फिर वे सोच में पड गए व कहने लगे- ‘श्यामा तुम बड़े आराम से मेरे मकान में रह सकती हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु तुम दूसरे व्यक्ति की पत्नि हो । कल से लोग हमें साथ देखकर तरह तरह की बातें बनाएंगे व ताने मारेंगे। ’

श्यामा ने कहा- मेरी तो जान के लाले पड़े हुए है I मेरी हालत डूबते को तिनके का सहारा वाली हे। मै लोगों की परवाह करूं या अपनी व बच्चों की जान बचाउं। ’इस पर कन्हैया ने भी हिम्मत बटोरते हुए कहा- ‘ मैं दीन दुखी की सहायता करने मे विश्वास करता हूं। तुम अपने बच्चों के साथ यहां आराम से रहो । आगे से आगे की देखी जाऐगी। ’

दूसरे दिन श्यामा ने अपना सारा सामान कन्हैया के सबसे पीछे वाले कमरे में शिफ्ट कर लिया।

***

पागल

उस मकान में ऐक विनी नामक महिला रहती थी। वह ऐक पागल की पत्नि थी।

विनी का पिता एक कर्मकांडी पंडित था। पंडित ने अपनी पुत्री का विवाह ऐक अत्यंत धनी व्यक्ति के इकलौते पुत्र विलास से किया था। बाद में मालूम पड़ा कि विलास पागल था।

विवाह के कुछ समय बाद ही विलास के पिता की मृत्यु हो गई। उसके रिश्तेदारों ने विलास की प्रापर्टी पर कब्जा कर लिया। अब प्रापर्टी वापस हांसिल करना लगभग असंभव था। इधर विनी के चार भाई थे।

उनमें चंद्रा तो एक हट्टाकट्टा पहलवान था। एक वर्ष के लगातार संघर्ष के बाद अपने भाइयों की मदद से विनी ने अपने ससुराल की प्रापर्टी व विरासत पुनः हांसिल करली । विनी ने अपने भाइयों को अच्छा खासा धन देकर खुश कर दिया। विनी अपने पीहर लौट आई। किन्तु विनी को अपने पागल पति विलास को भी अपने साथ लाना पड़ा।

विलास बड़ी अजीब हरकतें किया करता था। वह तेजी से चलता हुआ उस मकान के चक्कर लगाया करता। वह हर जीवित अथवा मृत वस्तु से बातें करता। उसकी कुशल क्षेम इशारों से पूछता । मकान के हौद, कुए, दीवार, कोई वाहन या दिखाई देने वाले हर व्यक्ति से इशारे सें वह पूछता, ‘कैसे हो, सब कुशल है न ’। वह बार बार कुऐ मे दिखाई देने वाले व्यक्ति से इशारों में बातें करता रहता । वह बड़ी शीघ्रता से चलता। यदि कोई उसका रास्ता रोकता तो वह चिल्लाता ‘ देखो भैया ये आदमी मानता नहीं है, यह मुझे तंग कर रहा है ’। वह तब तक चिल्लाता रहता जब तक उसका रास्ता छोड़ नहीं दिया जाता ।

शाम को विनी को पढ़ाने एक शिक्षक महोदय आते। कुछ देर पढ़ाई के बाद विनी सब ओर देखकर दरवाजा बंद कर लेती व कमरे में एक अलग गोपनीय पढ़़ाई प्रारंभ हो जाती। विलास अंदर झांककर दरवाजों के छेद से अंदर चलती गतिविधि को भांपने की भरपूर कोशिस करता। कुछ देर प्रयास करने के बाद असफल होने पर वह गुडलक कहने की मुद्रा करता हुआ आगे चल देता।

कुछ माह बाद विलास कहीं दिखाई नहीं दिया। विनी व उसके भाइयों ने उसे ढूंढने का बहुत प्रयास किया किन्तु उन्हे कोई सफलता नहीं मिली। ऐसी अफवाह जोरों पर थी कि चंद्रा उसे कहीं दूर छोड़ आया जहां से वह कभी लौट कर वापस नही आ सके।

***

झगड़ा शुरू

तीन दिन तो बिना किसी विशेष घटना के तेजी से गुजर गए। किन्तु चैाथे दिन से आने वाले बवंडर की आशंका स्पष्ट दिखाई देने लगी। श्यामा ने अपना खर्च उठाने के लिए एक नौकरी कर ली थी। यह काम उसे बड़ी मुश्किल से मिला था। क्योंकि अपने पति के घर से निष्कासित महिला को हर व्यक्ति शंका व संदेह की दृष्टि से देखता था। उसकी सहायता करने के बजाय समाज का हर व्यक्ति उसके शोषण की ताक में रहता था। लोग उसके प्रति सहानुभूति रखने के बजाय उससे कठोरता से पेश आते थे। समाज के सभ्रांत कहे जाने वाले अमीर उसे अकेला पाकर उस पर झपट्टा मारने की ताक में रहते थे।

उस दिन सुबह श्यामा काम के लिए अपने घर से निकली तो तीन चार औरतें उसे देखकर ताने सुनाते हुए कहने लगी-

एक ने कहा- ‘ अपने मोहल्ले में वैश्यालय खुल गया है। ’

दूसरी बोली, ‘ देखो अपने पति को छोड़कर रांड, कैसे मटक मटक कर चल रही है। ’

तीसरी ने कहा- ‘ न जाने कहां अपना मुंह काला करने जा रही है। ’

ये ताने श्यामा के दिल में विशैले तीर के समान चुभ रहे थे। उसकी आंखे घोर दुख से छलक आई। किन्तु उसे अपने परिवार का पेट भरना था । अपने दिल पर पत्थर रखकर वह अपने काम पर बढ़ चली।

***

गधाटेकड़ी

विगत दस दिनों से लगातार चैबीसों घंटे बारिश हो रही थी। शहर के सभी नदी नाले लबालब भर गए थे। शहर की एकमात्र नदी पुल के ऊपर से बह रही थी। लोग कई दिनों से सारे कामकाज छोड़ अपने घरों में दुबके पड़े थे।

नदी का पानी शहर में बड़ी दूर तक अंदर घुस आया था। नदी के बीचोबीच बना मंदिर पूरी तरह डूब चूका था I उस बाढ़ का नजारा देखने सारा शहर सड़क पर उमड़ आया था।

बरसात के वेग के कुछ कम होने पर मोहल्ले के लड़के निगोरिया गेम खेलते। इस गेम को गधाटेकड़ी भी कहा जाता था। लड़के सात सात केी संख्या में दो ग्रुप बनाते। एक ग्रुप कुछ चपटे पत्थर मैदान के बीच में एक के ऊपर एक जमाता। इसे गधा टेकड़ी कहा जाता। फिर एक लड़का कुछ दूरी से उस पर गेंद से प्रहार करता । उछलती हुई गेंद यदि दूसरे ग्रुप द्वारा केच कर ली जाती तो पहला ग्रुप हार जाता व दूसरा ग्रुप टेकड़ी पर गेंद से प्रहार करता । यदि गेंद के प्रहार से पत्थर बिखर जाते तो दूसरा ग्रुप पत्थरों को फिर से पुरानी स्थिति में जमाने का प्रयास करता। इस बीच पहला ग्रुप उन्हें पुरी ताकत से गेंद से मारने का प्रयास करता। गेंद की मार इतनी तेज होती कि पिटने वाला बउ़ी देर तक तिलमिलाते रहता। यदि दूसरा ग्रुप अपने प्रयास में सफल हो जाता तो वह जोर से चिल्लाता ‘ निगोरिया ’। उसे जीता माना जाता।

फिर दूसरे ग्रुप को टेकड़ी पर प्रहार करने का चांस मिलता। कभी कभी गेंद समीप में स्थित बगीचे में चली जाती । उसके चारों ओर कंटीले लोहे के तारों की बाउंड्री बनी थी। बगीचे का माली कालू एक खतरनाक चौकीदार था। दो तीन लड़के तार को ऊंचा करके अंदर घुस जाते व शीघ्रता से गेंद लेकर लौटते। उधर कालू माली उनके पीछे डंडा लेकर मारने दौड़ता किन्तु उसके आने तक लड़के सुरक्षित बाहर आकर उसे चिढ़ाते ‘ ले, ले, कालू, आजा, आजा ; ले, पकड़ ले ’। कालू अंदर से ही उन्हें गालियां देते हुए चेतावनी देता, ‘ जिस दिन पकड़ में आए बच्चू! उस दिन खैर नहीं। ’

शाम होते ही लड़कों का ग्रुप बगीचे के अंदर जाकर धमाचैकउ़ी मचाता। कालू उन्हे देखते रहता, थोड़ी बहुत कृत्रिम डांट लगाता किन्तु उस मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने से वह भी डरता था।

कई बार गेंद किसी गुजरते राहगीर को जोर से लग जाती। वह लड़कों की मां बहन का बड़ी अभद्रता से स्मरण कर उन पर प्रहार करने को लपकता किन्तु लड़़कों की फौज देखते ही देखते पास के मकानों या गलियों मे गायब हो जाती। लड़के बिना नजर आए राहगीर को तरह तरह की अजीब ध्वनियां जैसे “आऊ आऊ “आदि निकालते हुए चिढ़ाते। फिर किसी अन्य राहगीर के समझाने पर वह बच्चो को गलियां देता हुआ आगे चल देता I

***