विद्रोहिणी - 10 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विद्रोहिणी - 10

विद्रोहिणी

(10)

ऐेफआईआर

कुछ दिनों से श्यामा पर ताने तो मारे ही जा रहे थे फिर ऐक दिन अचानक उनके बंद दरवाजे पर कभी पत्थर तो कभी गोबर फेंके जाने लगा ।

मोहन व श्यामा बाहर निकलते तो कोई दिखाई नहीं देता । कुछ बदमाश लड़के हंसते हुऐ दिखाई देते ।

हद तो तब हो गई जब एक दिन प्रातः थोडा अँधेरा था तो उनके दरवाजे पर कोई मल मूत्र फेंक गया I

किसी को रंगे हाथों पकड़ना मुश्किल था ।

तब ऐक दिन श्यामा तेजी से भनभनाती हुई नजदीक के थाने जा पहुंची।

उसने थाने पर रिपोर्ट लिखाना चाहा किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई।

उसने विवश होकर इंस्पेक्टर जनरल से शिकायत की । तब कहीं जाकर उसकी रिपोर्ट लिखी गई ।

रिपोर्ट में सभी पड़ौसियों पर दिनरात गालियां देने, परेशान करने, जीने नहीं देने व कन्हैया का मर्डर करने का अभियोग लगाया गया ।

अनेक स्त्री पुस्ष अभियुक्त बनाऐ गऐ।

कुछ दिनों बाद,

कोर्ट में मुकदमा प्रारंभ हो गया।

श्यामा को कुछ माह अथवा दिनों के अन्तराल पर कोर्ट में पेशी पर जाना पड़ता। उसे बार बार काम से छुटटी लेना पड़ती व बहुत दूर पैदल चलना पड़ता। वहां उसे सुबह से शाम तक अपनी बारी आने का इंतजार करना पड़ता। अनेक बार उसे कोर्ट में दिन भर के इंतजार के बावजूद बुलाया ही नहीं जाता । उसकी नौकरी छूट गई।

उधर पड़ौसियों का भी बहुत बुरा हाल था। उन्हें महंगा वकील करना पड़ा व कोर्ट के बार बार चक्कर लगाने पड़े । उन्होंने ऐसी परिस्थिति में फंसने की कल्पना भी नहीं की थी। उनके पैसे व समय की भारी बर्बादी हो रही थी, बिना कारण श्यामा से उलझने का पछतावा हो रहा था। उन्होंने कई बार श्यामा को केस वापस लेने के लिए मध्यस्थों द्वारा समझाने का प्रयास किया I किन्तु श्यामा ने उन्हें सबक सिखाने के लिए पूरी तरह से ठान रखी थी।

उसने निश्चय किया,

चाहे वह बर्बाद हो जाए किन्तु उन दुष्टों को तो मजा चखा कर रहेगी । श्यामा की आर्थिक स्थिति तकरीबन बर्बाद हो गई थी। कोर्ट में हर कर्मचारी रिश्वत मांगता था। वह फटे कपड़े पहनने को मजबूर थी। जिनमें से उसके अनेक अंग दिखाई पड़ते थे। अनेक सरकारी कर्मचारियों को अच्छी तनख्वाह मिलने के बावजूद उनके लालच की सीमा नहीं रहती I जिन गरीबों को खुद खाने के लाले पड़े रहते है, ये पत्थरदिल निर्दयी उनसे भी धन वसूल करने की फ़िराक में रहते हैं I जाँच का बहाना करके कुछ पुलिस वाले श्यामा के घर जाकर उसके सामान की तलाशी लेते व उसका यौन शोषण की मंशा जताते I दुर्भाग्य से यह समस्या बड़े पैमाने पर देश में फैली हुई है I सरकारी कर्मचारियों को गलत काम करने, काम अटकाने या काम ना करने के बावजूद आराम से बिना बाधा सैलेरी प्रमोशन मिलते रहते है I इनके विरुद्ध शिकायत बड़ी मुश्किल से दर्ज होती है व शिकायत करने वालो को बुरी तरह परेशांन किया जाता है i

यह गंभीर समस्या देश में बड़ी तेजी से फ़ैल रही है जिसके सबसे अधिक शिकार आम आदमी व गरीब हो रहे है I हमाम में सब नंगे होने के कारण कोई इस समस्या पर ध्यान नहीं देता I

ऐक वर्ष बाद मुकदमा अपने अंतिम पड़ाव की ओर पहुंच गया।

जज ऐक वृद्ध अनुभवी व्यक्ति थे। सबसे पहले श्यामा के बयान हुए।

श्यामा ने अपनी दास्तान सुनाते हुए कहा,

‘साहब मैं ऐक अकेली अबला औरत हूं। मेरा मरद नशा करके मुझे भूखा प्यासा रखकर पीटता था। विवश होकर मुझे अपने माता पिता के घर लौटना पड़ा। मैं मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पाल रही थी किन्तु मेरी भाभी ने दिन रात झूठी शिकायतें करके मेरे छोटे भाई से मुझे अपमानित करके पिटवाया। मुझे अपने भाई भाभी ने अत्याचर करके पिता के घर से निकाल दिया। मैं अपने दो मासूम बच्चों के साथ सड़क पर पड़ी रही । इस कसाई दुनिया के मेरे पड़ौसी लोग हम पर तरस खाने के बजाय मेरी इज्जत लूटने का प्रयास करते।

कन्हैया की ओर इशरा करके श्यामा ने कहा- ऐसे में उस दयालु कन्हैया ने मुझे अपने घर में सिर छुपाने की जगह दी। मैं किसी तरह मेहनत मजदूरी करके अपने व अपने बच्चों का पेट पाल रही हूं I”

कोर्ट में बैठे हुए पडौसियो की और इशारा करके वह आगे कहने लगी,

“किन्तु ये मेरे पड़ौसी मुझ पर कुदृष्टि रखते हैं । ये और इनकी औरतें दिनरात मुझे रंडी कहकर ताने मारते हैं। इन्होंने मेरा व मेरे बच्चों का एक दिन भी जीना मुहाल कर रखा है। ये सब लोग कन्हैया को मुझे अपने घर से निकालने के लिए कहते हैं। इनकी बात न मानने पर एक दिन इन सब लोगों ने कन्हैया को कुए में धक्का देकर जान से मारने की कोशिस की। चंद्रा की ओर ईशारा करके वह कहने लगी ’साहब, यह चंद्रा जबरन सबके सामने मेरा हाथ पकड़कर मुझसे गलत काम करने की कोशिश करता है ।“

इतना कहकर श्यामा फूट फूटकर कोर्ट में रोने लगी।

कुछ दिन बाद कन्हैया के बयान हुए। कन्हैया ने विस्तारपूर्वक जज साहब को बताया कि

किस तरह एक सुबह आठ दस पड़ौसियों ने उसे कुए में ढकेलकर जान से मारने का प्रयास किया।

पंद्रह दिन बाद पड़ौसियो के बयान हुए।

चंद्रा ने कहा ‘ साहब यह औरत हमारे मकान में वैश्यालय चला रही है। यह बड़ी लड़ाकू है। बिना बात के सबसे झगड़ा करती है। इससे हमारी बहू बेटियों पर इसका गलत असर पड़ता है। ’

सभी अन्य पड़ौसियों ने चंद्रा के कथन की पुष्टि की ।

जज साहब एक नजर मे पूरी स्थिति भांप चुके थै।

उन्होने श्यामा से गवाह प्रस्तुत करने को कहा।

श्यामा ने कहा, ‘ साहब! सारे पड़ौसी मुझसे अकारण शत्रुता रखते हैं। इन्होने मुझे परेशान करने के लिए एक बड़ा ग्रुप बना रखा है I कोई मेरी मदद नहीं करता । मैं गवाह कहां से लाउं। ’

जज ने चंद्रा की नियत को उसके हावभाव से ताड़ लिया था।

उन्होने उसे डांटते हुए पूछा,

‘यह औरत वैश्या है, तो तू इसके पास क्या कुकर्म करने गया था?’

इस पर चंद्रा की बोलती बंद होकर उसकी घिग्घी बंध गई। उसका चेहरे की रंगत उड़ गई।

ऐक माह बाद जज ने फैसला सुनाते हुए कहा ‘

‘ मैं इस अबला की दुर्दशा पर बहुत व्यथित हूं । समाज के अनेक लोग किसी अकेली असहाय औरत की सहायता करने के बजाय उस पर कुदृष्टि रखते हैं। यह अत्येत निंदनीय क्रत्य है। कन्हैया ने दो बच्चों के साथ एक अनाथ औरत की सहायता की, वे प्रशंसा के पात्र हैं।

मैं तुम सब पड़ौसियों द्वारा कन्हैया की हत्या के प्रयास का कारण भलीभांति जानता हूं।

श्यामा को अपनी मर्जी से अपना जीवन स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार है। वह चाहे जिसके साथ रह सकती हे। अपना व अपने बच्चों का पालन पोषण करने के लिए किसी भी व्यक्ति से मदद मांग सकती है।

मैं तुम सबकी श्यामा के प्रति बुरी नियत भलीभांति समझता हूं। सबूतों के अभाव में मैं आप सबको इस बार छोड़ रहा हूं किन्तू याद रहे यही मुकदमा दूसरी बार मेरे समक्ष लाया गया तो आप सब जेल के अंदर होंगे, मैं स्वये यह सुनिश्चित करूंगा। ’

सभी पड़ौसियों का कलेजा जेल जाने की आशंका से धड़क रहा था। फैसला सुनकर उन्होने राहत की सांस ली व भविष्य में श्यामा से टकराने का विचार तक त्याग दिया। अपने बरी होने पर उन्होने पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी।

***

उस्ताद के मजे लो

प्रत्येक रविवार या छुट्टी के दिन मोहन व उसके मित्र शहर से कुछ दूर जंगल में चले जाते।

उन दिनों शहर का का दायरा छोटा था व कुछ दूरी पर ही जंगल प्रारंभ हो जाता था।

जंगल में तरह तरह के फलों से लदे वृक्ष थे। बच्चों की टोलियां तुरंत वृक्षों पर चढकर आम, इमली, जामुन, जामफल व अन्य अनेक प्रकार के फल तोड़ते व डालें हिलाकर फल नीचे गिराते। वे अपने झोले तरह तरह के फलों से भर लेते। वहां समीप से ही एक नदी बहती थी I कुछ दूरी पर सामने ऐक उस्ताद का अखाड़ा था। वहां अनेक पहलवान कसरत करते दिखाई देते।

कुछ देर बाद प्रमुख उस्ताद कुए पर पानी भरने आता । बस इसी क्षण का शैतान लड़के इंतजार कर रहे होते । जैसे ही उस्ताद कुए से पानी भरी बाल्टी खींच रहे होते कि तभी एक लड़का आवाज लगाता, ‘हरिहर उस्ताद’। पहलवानजी भी बिना रूके अपने दोनों हाथों की तर्जनिया ऊपर उठाये जबाब देते ‘ हरिहर भिया ’ । यह क्रिया ठीक वेसे ही यांत्रिक रूप से निष्पादित होती मानों कोई आर्मी का कमांडर अपनी सैनिक टुकडी को कमांड दे रहा हो व उसके सैनिक यांत्रिक रूप से आदेश का पालन कर रहे हों । किन्तु ऐसा करते ही उस्ताद के हाथों से पानी भरी बाल्टी छूटकर कुए में रस्सी सहित डूब जाती । इधर शैतान बच्चे जोरों से हंसते हुए भाग खड़े होते । पहलवान बच्चों को मां बहिन की गालियां देते हुए उन पर दौड़ लगाते किन्तु बच्चों को पकड़ना असंभव था । पहलवानजी को उस डूबी हुई बाल्टी को पानी से बाहर निकलने के लिए अनेक घंटो तक जी तोड़ मशक्कत करना होती I

अगले सप्ताह किसी अन्य पहलवान के साथ फिर वही मजेदार वाकया दोहराया जाता किन्तु कोई पहलवान भविष्य में सबक सीखने कि तोहमद उठाने का कष्ट नहीं करता i

***