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विद्रोहिणी - 9

विद्रोहिणी

(9)

बुरी नियत

’दो तीन दिन से घायल कन्हैया बिस्तर पर दर्द से कराह रहा था। चौथे दिन कुछ स्वस्थ अनुभव करने पर वह सवेरे अपने काम पर निकल गया। उसके बाद श्यामा अपने काम पर निकल रही थी।

उसने देखा कि रास्ते के बीच चंद्रा खडा था। चंद्रा ने अपने दोनों हाथ फैलाकर उसे रोकना चाहा ।

चंद्रा एक अत्यंत दुष्ट व्यक्ति था। वह लंबा चौड़ा विशालकाय पहलवाननुमा व्यक्ति था।

वह श्यामा पर कुदृष्टि रखता था। अचानक उसने झपटते हुए श्यामा का हाथ पकड़ लिया। कुछ समय के लिए तो श्यामा हक्की बक्की रह गई I वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस करते हुए बोली ‘ मेरे हाथ छोड़ दे वरना बहुत बुरा होगा। ’

वह चंद्रा को धक्का देकर जाने लगी। किन्तु वह चंद्रा से अपनी कलाई नहीं छुड़ा पाई।

वहां लोगो की भीड़ जुट गई I

श्यामा ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘ देख लो लोगों ! इस चंद्रा ने जबरन मेरा हाथ पकड़ रखा है इसकी नियत खराब है। इतने लोगों को देखकर भी यह दुष्ट मेरा हाथ नहीं छोड़ रहा है। ’

इस पर चंद्रा ने हंसते हुए कहा, ‘ देख लो भैया, इस औरत ने बुरी नियत से मेरा हाथ पकड़ रखा है। इतने लोगों को देखकर भी यह मेरा हाथ नहीं छोड़ रही है। “

सब लोग यह माजरा देखकर श्यामा की मदद करने के बजाय उस पर हंस रहे थे।

अंत में कोई उपाय न देख श्यामा ने बड़ी जोर से चंद्रा के हाथ मे काट लिया।

वह दर्द से चीख उठा। उसकी पकड़ ढीली पड़ गई। श्यामा ने अपना हाथ छुड़ा लिया।

श्यामा उसे चेतावनी देते हुए तेजी से चली गई, ‘मैं अभी पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने जा रही हूं। भरोसे में मत रहना।

वह तेजी से भनभनाती हुई नजदीक के थाने जा पहुंची।

उसने थाने पर रिपोर्ट लिखाना चाहा किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई।

***

निष्कासन

‘ उस दिन जब कन्हैया अपने घर लौटा तो उसने अपने दरवाजे के आगे ऐक बउ़ी भीड़ देखी।

श्यामा का अपने पड़ौसियों से झगड़ा हो रहा था।

कन्हैया ने उससे कहा, ‘श्यामा! मैने कई बार तुम्हे लागों से न झगड़ने की सलाह दी किन्तु तुम सुनती नहीं हो। यह कहकर कन्हैया उसे अंदर जाने को कहने लगा किन्तु श्यामा ने कहा,

‘ देखोजी ! यदि हम इन लोगों से बचते रहेंगे व इनका सामना नहीं करेंगे तो ये ऐसे ही हमें परेशान करते रहेंगे। ’

इस पर कन्हैया उस पर बुरी तरह क्रोधित हो गया। उसने अंदर जाकर श्यामा का सामान अपने घर से बाहर फेंकना शुरू कर दिया। यह देख सभी लोग वहां से कुछ दूर हटकर इस नए नजारे का लुफ्त लेने लगे। कन्हैया ने तैश मे आकर श्यामा का सारा सामान बाहर सड़क पर फेंक दिया।

‘ तुम अपना अन्य इंतजाम कर लो। मैं रोज रोज के झगड़ों से तंग आगया हूं। ’

ऐसा कहकर वह मकान पर ताला लगाकर चल दिया। श्यामा ने उसे रोकने की बहुत कोशिस की किन्तु उसने ऐक न सुनी।

श्यामा का ऐकमात्र सहारा छिन चुका था। वह और उसके बच्चे बाहर सड़क पर बहुत देर तक भूखे प्यासे बैठे रहे। उनके पास अन्य कोई चारा नहीं था। अबोध बच्चे फेके गए सामान के चारो ओर एक दुसरे को पकडने का खेल खेलने लगे I आसपास के लोग श्यामा को बेसहारा देखकर मन ही मन बड़े खुश हो रहे थे। उन्हें अनाथ बच्चों को देखकर भी जरा दया नहीं आई।

बहुत देर तक कन्हैया के लौटने का इंतजार करने पर जब वह नहीं आया तो परेशान होकर श्यामा किसी अन्य सहारे की तलाश में निकली। उसने बच्चों से कहा, ‘ बच्चों तुम सामान पर नजर रखना, मैं अभी किसी दूसरी जगह रहने की तलाश करके आती हूं। ’

श्यामा को पहली बार एक खतरनाक दुनिया का आभास हुआ। वह किसी नए आशियाने की खोज मे उस अजनबी दुनिया में चली जा रही थी जहां कोई व्यक्ति किसी की मदद तो दूर ऐसा करने की सोचता तक नहीं। चारों और से खतरनाक इरादों से भरी अनेक निगाहें उसे घूरती हुई उसका पीछा कर रही थी।

कुछ दूर जाने पर उसे ऐक मस्जिद दिखाई दी। उसने सोचा, ‘ चलो मैं मुसलमान बन जाती हूं । शायद कोई मेरी कुछ मदद कर दे। ’ ऐक संदिग्ध व्यक्ति उसे अपने घर के अन्दर आने का इशारा कर रहा था I वहां बड़ा खतरा था I

बहुत देर तक वह वहां खड़ी रही । किन्तु उसे किसी से आश्वासन नहीं मिला ।

भारी मन से वह आगे बढ़ चली। कुछ दूरी पर चलने के बाद उसे ऐक मंदिर दिखाई दिया जहां पूजा व कथा चल रही थी। उसे बउ़ी भूख लग आई थी। उसने कुछ खाना मिलने की आशा से वहां इंतजार किया किन्तु ऐक पंडित ने उसे भिखारिन समझका दुत्कारते हुए भगा दिया। कुछ देर बाद ऐक अन्य पंडित बहार आया व उसे ऐक अन्य कमरे में आने के लिए अश्लील इशारे करने लगा I

धार्मिक लोग भगवान से जायदाद व स्वयं के कुशल मंगल की कामना मांगते हुए गरीबो के लिए पत्थर दिल हो जाते हैं। प्रायः उनमें इंसानियत नहीं होती। वे अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए एक काल्पनिक सर्वशक्तिमान इश्वर को खुश करने में लगे रहते हैं। उन्हें दीन दुखी से कोई वास्ता नहीं होता । भगवान नामक उनके कल्पना की सत्ता वह माध्यम हेाती है जो थोड़ी प्रशंसा व भेंट से उनकी संकटों से रक्षा करती है व उनके धन धान्य मान मर्यादा की वृद्धि करती है । वे उस सत्ता को खुश करने के लिए उसके अनेक चमत्कारों के काल्पनिक किस्से सुनते व सुनाते रहते हैं। किन्तु अनगिनत गरीब जिल्लत, भुखमरी व बीमारी की मौत मरते रहते है किन्तु धार्मिक लोगो द्वारा दिनरात भगवान के चमत्कारों के वर्णन की कहानियाँ यथार्थ के धरातल पर कभी दिखाई सुनाई नहीं देती I वह आगे बढ़ने को मजबूर थी।

कुछ दूरी पर उसे ऐक गिरजाघर दिखा।

उसने सोचा ‘ क्यों न मैं ईसाई धर्म अपना लूं। ईसाई लोग बडे रहमदिल होते हैं। कम से कम मुझे व मेरे बच्चों के लिए खाना कपड़ा तो मिल ही जाएगा। ’

फिर उसे एकाऐक गीता का वह श्लोक याद आया कि दूसरा धर्म अपनाने की अपेक्षा अपने धर्म मे मरना श्रेयस्कर है। अपने संस्कारो के कारण वह आगे चल दी।

शाम हो चली थी। उसने एक बड़ा खतरनाक दृष्य देखा। एक सुनसान रोड के बीच ऐक अबला बेबस बैठी हुई थी। वह करीब पूर्ण नग्न अवस्था में थी । वह जाने कहा से दुर्भाग्य कि मारी कही से ठुकराई हुई नरपिशाचो कि दुनिया में धकेल दी गई थी I वह इस पाखंडी बनावटी झूटी प्रतिष्ठा के पीछे भागते समाज बीच थी जहा के पत्थर दिल लोग भूलकर भी किसी बेबस गरीब की मदद नहीं करते I उसके तन पर मात्र एक महीन फटा हुआ वस्त्र बचा था। कुछ युवक उसके उस वस्त्र को खींच खींच कर भाग रहे थे। वह अबला अपने तन को किसी तरह छुपाये रखने का प्रयास कर रही थी। उसके चारों ओर इस अजीब दृष्य को देखने भीड़ एकत्रित होगई थी । कोई भी व्यक्ति उन दुष्ट युवकों को रोक नहीं रहा था। वह दुखियारी न जाने कहां से ठुकराई हुई जमाने की जिल्लत झेलती हुई वहां आ गई थी या कोई दुष्ट उसे धोखे से लाकर उसका उपयोग कर वहां छोड़कर भाग गया था। वास्तविकता क्या थी, कौन जाने। इस देश में अनगिनत दुखियारियों के साथ सफेदपोश समाज बड़ा घिनौना खेल खेलता है। वह देवी की पूजा करने वाले पाखंडी समाज का असली वीभत्स रूप था। श्यामा का दिल कांप उठा।

वह लौट चली। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

रास्ते में उसे ऐक कुआ दिखाई दिया। ऐकाऐक उसके दिमाग में ऐक खतरनाक विचार कौंधा- क्यों न इस जीवन का ही अंत कर लिया जाए ताकि सभी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाए। यही एकमात्र रास्ता है, उसने सोचा । अंधेरा हो चुका था। उस समय वहां कोई नहीं था।

मौका अच्छा था। उसने कुए में झांका Iवह बड़ा गहरा था। ऐक बार कूदने के बाद बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। उसने अपना ऐक पैर कुए में कूदने के लिए उठाया व पानी मे झांका । अचानक वह उस दृष्य को देख सिहर उठी। पानी मे उसके दोनों बच्चे फूट फूटकर रोते दिखाई दिए।

उसने अपने पैर वापस खींचे । अब वह अपने बच्चों की ओर तेजी से भाग रही थी। सड़़क पर उसके मासूम बच्चे अपने भयानक भविष्य से अनजान भरपूर नींद में दुनिया से बेखबर सो रहे थे । उसने फुर्ति से दोनों बच्चो को अपने सीने से लगा लिया व फूट फूटकर रोने लगी । अपने मासूमों के खातिर वह पूरी दुनिया से लड़ेगी । कुछ समय बाद कन्हैया लौट चुका था। श्यामा व बच्चों की दुर्दशा देख वह करूणा से भर गया । उसने अपने घर में श्यामा को फिर से बुला लिया। उन दोनों ने निश्चय किया कि शरीर में जान रहते वे इस निर्दयी समाज का पूरी ताकत से सामना करेंगे।

***

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