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विद्रोहिणी - 13

विद्रोहिणी

(13)

षड़़यंत्र 1

शेर की दहाड़

कोर्ट में केस हारने के बाद पड़ौसी बुरी तरह डर गए थे। जज ने उन्हें फिर से मुकदमा दायर होने की स्थिति में जेल में डालने की धमकी दी थी । वे अब श्यामा से बचकर निकलते थे। बाजी पलट चुकी थी । उन्हे देखकर श्यामा खरीखोटी सुनाने लगती । वे उससे मुंह छुपाकर बच निकलते। किन्तु वे मन ही मन इर्ष्या की आग में जल रहे थे I वे श्यामा से किसी तरह बदले की ताक में थे।

ऐक दिन चंद्रा ने श्यामा के छोटे भाई सत्या से कहा, ‘ सत्या तुम्हारी बहिन खुलेआम गैर मर्द के साथ रह रही है। तुम्हारे लिए ये बात बड़े शर्म की है। मेरी बहिन एसा करती तो मै उसे जान से मर डालता I ’

सत्या को यह ताना दिल में चुभ गया। वह पहली मंजिल पर रहता था। उसने श्यामा को आवाज लगाई,

‘उपर आना बहिन मुझे तुमसे कुछ काम है। ’श्यामा यह सोचते हुए खुश हो गई कि सत्या को अपनी गलती का अहसास हो गया है व वह माफी मांग रहा है । वह दौड़कर उपर गई ।

सत्या उसे देख तमतमाते हुए बोला, ‘ तू अपने दोनों पिल्लों के साथ कुए तालाब में डूबकर मर क्यों नहीं जाती ? तू गैर मर्द के साथ रहकर समाज में हमारी नाक कटवा रही है। लोग तेरे किए पर हमें दिनरात ताने देते रहते हैं। ’

इस पर श्यामा भी उसे बुरा भला कहने लगी,

‘ सत्या तू किसी का भला तो कर नहीं सकता। तू अपनी औरत का गुलाम है। यदि कोई तुझे मेरे बारे में कुछ अनाप शनाप कहता है तो उसकी जबान क्यो नहीं खींच लेता, तू नामर्द है। ’

यह सुनते ही सत्या श्यामा को लात घूंसो से मारने लगा। श्यामा ने उसके प्रतिकार की बड़ी कोशिस की किन्तु पुरूष बलके आगे वह बेबस थी । वह बड़ी देर तक अपने छोटे भाई के हाथों पिटती रही। वह बुरी तरह घायल होगई व उसके शरीर से जगह जगह से खून बहने लगा। वह किसी तरह छूटकर अपने कमरे में पहुंची व रोने लगी।

कुछ देर बाद वहां कुमार आया। उसने अपनी मां को बुरी तरह घायल होकर सिसकते देखा । कुमार के पूछने पर श्यामा ने रोते हुए सारी घटना बताई।

कुमार के क्रोध की सीमा न रही । उसने घर में पड़ा ऐक चाकू उठाया व चिल्लाता हुआ दौड़ा, ‘ बाहर निकल सत्या ! आज तुझे मैं जान से मार कर ही दम लूंगा। मेरी मां पर हाथ उठाने का मजा चखाता हूं तुझे । ’

कुमार सत्या के कमरे की ओर लपका। सत्या को उसकी मां ने कमरे में छुपा दिया । वह कुमार के डर के मारे थरथर कांप रहा था। उसने अंदर से सांकल लगा ली। कुमार बउ़ी देर तक उसे बाहर आने के लिऐ ललकारता रहा किन्तु सत्या की घिग्घी बंध गई। उसकी सारी हेंकड़ी निकल गई।

बड़ी देर तक जब सत्या बाहर नहीं निकला तो कुमार ने उसे बाहर से ही चेतावनी देते हुए कहा, ‘ सत्या आज तो तू किसी तरह मेरे हाथों बच गया है, अपनी जान की खैर मना किन्तु याद रखना जिस दिन तू मुझे दिख गया वह दिन तेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा। ’

मकान के सारे पड़ौसी सांस रोके यह दृष्य देख रहे थे। उनके कलेजे भी कुमार का वह रौद्र रूप देखकर भय से कांप उठे। कुमार किसी जवान शेर की तरह दहाड़ रहा था ।

एक सप्ताह तक सत्या किसी को दिखाई नहीं दिया। वह रात के अंधेरे मे ही घर से बाहर निकलता था।

***

शेर की दहाड़ 2

उस दिन मकान के एकमात्र नल पर बड़ी भीड़ थी। श्यामा पानी भरने के निए एक लंबी लाइन में लगी हुई थी। वह बहुत देर से अपनी बारी की प्रतिक्षा कर रही थी। उसका नंबर आने वाला था। उसके आगे सिर्फ ऐक आदमी बिट्ठल था जो बड़ी देर से अनेक बर्तन भर रहा था। वह श्यामा को पानी भरने का चांस ही नहीं दे रहा था । इतना ही नहीं उसने अपने बर्तन भरने के बाद लाइन के बाद वाले दूसरे लोगों के बर्तन भरना शुरू कर दिये। इस पर श्यामा ने उसे ऐक ओर हटने को कहा किन्तु उसने श्यामा की बात अनसुनी कर दी। तब निराश होकर श्यामा अपने कमरे में लौट आई। उसका मुंह रूंआंसा होगया। उस समय कुमार अपनी टेबल पर स्टडी कर रहा था।

उसने मां से कहा, ‘ क्या बात है मां आप उदास दिखाई दे रही हो ? ’’

इस पर मां ने कहा, ‘ देख बेटा ! बिट्ठल बड़ी देर से बर्तन पर बर्तन भरे जा रहा है और मुझे पानी नहीं भरने दे रहा है। ’

इतना सुनते ही कुमार क्रोधित होकर बाहर आया I वह बिट्ठल के बर्तन एक ओर जोर से फेंककर स्वयं पानी भरने लगा।

बिट्ठल यह देखकर गाली देकर बोला, ‘ कुमार ! तुझे मरना है क्या ? नालायक ! मेरे बर्तन क्यों हटाए ? ’

इस पर कुमार ने बिट्ठल को कमर से पकड़कर उपर उठाकर जोर से नीचे पटक दिया। बिट्ठल उठा और कुमार को मारने के लिए लपका। इस बार कुमार ने अखाड़े का ऐक दांव मारकर उसे फिर पटक मारा। इस बार वह पास बहती नाली में जा गिरा। वह पृरी तरह गंदे कीचड़ से भीग गया। उसे इतने जोर की चोंट लगी कि वह दर्द के मारे चीख उठा । वह डर के मारे वहां से भाग खड़ा हुआ। कुमार उसे लड़ने की चुनौती देता रहा। मकान के सभी पड़ौसी अपने घरों से बाहर आकर यह नजारा टकटकी लगाकर देख रहे थे किन्तु किसी ने बिट्ठल की मदद नहीं की। वे सभी इस नऐ खतरे को भांप कर अपनी खैर मना रहे थे।

शेरनी के बच्चे अब आक्रमण करने के लिए तैयार हो चुके थे।

***

शेर की दहाड़ 3

उन पड़ौयियों में सबसे कुटिल चंद्रा था। कोर्ट में जज ने उसे सबसे अधिक डांटा था। वह श्यामा को देखते ही उससे बचकर निकलता था। किन्तु वह मन ही मन श्यामा से ईर्ष्या रखता था। वह श्यामा पर वह अप्रत्यक्ष रूप से ताने मारा करता था। श्यामा भी उससे ज्यादा नहीं उलझती थी।

ऐक दिन चंद्रा कुछ स्त्रियों से बात कर रहा था, तभी श्यामा वहां से गुजरी। चंद्रा ने एक पूर्व से समझाई हुई स्त्री की ओर देखकर किन्तु श्यामा को लक्ष्य करके फिकरा कसा ‘ ओ काली कलूटी ’

इस पर श्यामा क्रोध से भरकर उसकी ओर मुड़ी। चंद्रा किसी अन्य औरत से बात कर रहा था।

श्यामा ने कहा, ‘ चंद्रा कुत्ते ! तेरी कोर्ट में इतनी बेइज्जती हुई किन्तु तेरा भौंकना बंद नहीं होता है। ’

इस पर चंद्रा ने कहा, ‘मैने तुम्हारा नाम लेकर कुछ कहा क्या ? मैं तो रामी की लड़की से बातं कर रहा हूं।

मैं तुम्हारे मुंह नहीं लगता। ’

इस परश्यामा भुनभुनाती हुई वहां से चली गई। कमरे में बैठे कुमार ने जब उसे क्रोधित व उदास देखा तो उससे पूछा, ‘ क्या बात है मां ? ’

श्यामा कुमार को पड़ौसियों से झगड़े की कोई बात नहीं बताना चाहती थी क्योंकि कुमार उसके लिए किसी से भी झगड़ने को तैयार रहता था। श्यामा को डर था कि कहीं कुमार किसी को घायल न कर दे और कोर्ट कचहरी के चक्कर में न फंस जाए।

किन्तु उस दिन अचानक उसके मुंह से निकल पड़ा ‘ देख बेटा इतने मुकदमे बाजी होने के बाद भी बाकि सबको तो अकल आगई किन्तु यह चंद्रा आते जाते मुझे ताने सुनाता रहता है। ’

श्यामा का वाक्य खतम होने की प्रतिक्षा किए बिना कुमार उस ओर तेजी से लपका जहां चंद्रा खड़ा था।

श्यामा ने कुमार को जोर से पकड़कर रोकने की कोशिस की किन्तु कुमार अत्यंत आवेश में आगया और उसने मां को भी ऐक ओर धकेल दिया। चंद्रा ऐक पहलवाननुमा बड़ा बलिष्ठ व्यक्ति था । कुमार उसके सामने मेमना प्रतीत होता था। कुमार को खतरे की ओर जाते देख मोहन भी उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़ा। कुमार ने चंद्रा को ललकारते हुए कहा, ” क्यों रे दुष्ट! तूने मेरी मां को गाली क्यों दी ? ’’ ऐसा कहकर कुमार ने उसका गला जोर से पकड़ लिया व उसे पीछे धकेलने लगा।

चंद्रा ने कहा, ‘ऐ बकरी के मेमने ! आज तो तेरी जान मेरे हाथों ही जाएगी। ’

चंद्रा ने उसे जोर का झटका दिया जिससे कुमार दूर फिंका गया।

कुमार फुर्ति से उठा व चंद्रा को उसने लंगी दाव लगाकर गिरा दिया। यह दाव उसने अखाड़े मे सीखा था। अखाड़े में ऐसे दांव सिखाए जाते थे कि ऐक दुबला व्यक्ति किसी मोटे व्यक्ति को आसानी से गिरा सकता है।

कुमार उस पहाड़नुमा पहलवान की छाती पर चढ़कर उस पर घूंसे बरसाने लगा। इस मेमने व सांड की लड़ाई देखने के लिए वहां बड़ी भीड़ एकत्रित हो गई । चंद्रा ने कुमार को टांग खींचकर अपने नीचे ले लिया व उस पर चढ़ बैठा। उसके भारी वजन के मारे कुमार का दम घुटने लगा। उसे स्वांस लेने में कठिनाई होने लगी।

च्ंद्रा ने कहा, ‘ बच्चे अब बोल तुझे जान से मार दूं ? मेमना होकर सांड से टकराने की जुर्रत करता है। ’

अपने भाई को पिटता देख मोहन ने चंद्रा के बाल पूरी ताकत से खींच दिए । चंद्रा दर्द से कराह उठा व कुमार को छोड़ मोहन पर लपका। इस पर कुमार ने चंद्रा को चेतावनी देते हुए कहा, ‘ कमीने ! आज तो देखता हूं कौन किसे हराता है। मैं अभी तुझे चाकू मारकर तेरी पहलवानी का हमेंशा के लिए दी एंड कर देता हूं। ’

चाकू का नाम सुनकर चंद्रा की बोलती बंद होगई। वह अत्यंत भयभीत होगया । उसने मोहन को छोड़ दिया व उसे वहा से चले जाने को कहने लगा I कुछ दिनों पूर्व ही शहर में अनेक बड़े पहलवानों के दुबले पतले व्यक्तियोँ द्वारा चाकू से मारे जाने के अनेक किस्से हो चुके थे I कुमार इस बीच घर से ऐक लम्बा नुकीला चाकू ले आया । वह तेजी से क्रोधित होकर चन्द्रा की और लपका I मां ने कुमार को जोर से जकड़ लिया व कहा ‘ तुझे मेरी सौगंध जो अब झगड़ा किया तो ।’ किन्तु कुमार ने माँ को दूर झटक दिया व चन्द्रा की ओर दौड़ा I तब कुछ पड़ोसियों ने कुमार को कसकर पकड़ लिया व उसे झगड़ा न करने की नसीहत देने लगे I

उधर कुछ लोगों ने चंद्रा को घेर लिया ताकि कुमार उस पर आक्रमण नहीं कर सके। वहां खड़े सभी लोग बीचबचाव करके स्थिति को शांत करने में जुट गए। इस घटना के बाद चंद्रा ने फिर कभी श्यामा को देखकर ताना मारने की जुर्रत नहीं की।

***

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