पापा, आप नहीं समझोगे Ashish Dalal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पापा, आप नहीं समझोगे


वही बेचैनी, वही उत्सुकता, वही उतावलापन।

जानता हूं, तू नहीं बताएगा और अपने मन में उमड़ते भावों को छिपाने की भरसक चेष्टा करता रहेगा लेकिन मै भी तेरा बाप हूं। सब कुछ समझ कर नासमझ बनना मुझे भी आता है।


पिछले आधे घण्टें में बार बार अपनी जगह से उठकर कुछ कदम चलकर दरवाज़े की दरार में से झाँककर अन्दर देखने का असफल प्रयास कर वापस आकर एक उम्मीद के संग मेरे पास की खाली जगह पर बैठते हुए बीस बार देख चुका हूँ तुझे।


वही घबराहट, वही हड़बड़ाहट, वही जिज्ञासा।

बिलकुल वैसी ही जैसी किसी कठिन परीक्षा के वक्त एक विद्यार्थी के चेहरे पर झलकती है। तेरे चेहरे को देखकर तेरे मन में उतर चढ़ रहे भावों को पिछले कई सालों से पढ़कर आप ही समझता आ रहा हूँ मै पर आज भी तुझसे मेरी नजर एक होते ही तेरे कुछ न बोलने पर मेरी अनुभवी आँखों ने तेरे अनकहे शब्दों को जैसे पकड़ ही लिया।


‘पापा, आप नहीं समझोगे।’ बचपन से लेकर अब तक हजारों बार बोले गए एक-एक शब्द के पीछे छिपी अपनी बात मनवाने या फिर तेरे मन पर चिन्ता के बादल हावी होने पर भी मुझे उस चिन्ता के भार से मुक्त रखने के लिए व्यक्त होते अर्थ या फिर अपनी अत्यधिक खुशी को पुरुष सहज स्वभाव के अधीन अचानक ही खुलकर व्यक्त न कर पाने की सीमा रेखा को कौन सा बाप नहीं जान या समझ सकता मेरे बेटे?


वही पीड़ा, वही उलझन और एक हल्का सा वही डर।


तू मुझसे कुछ भी नहीं कह रहा था पर तेरे मन के हावभाव मुझसे छिपे न थे। सहसा अन्दर से आई और एक जोरदार चीख सुनकर तू घबराया सा उस तरफ दौड़ा। दरवाज़ा खुलते ही तेज क़दमों से चलते हुए एक नर्स बाहर की तरफ दौड़ी।


‘डोन्ट वरी! सब ठीक हो जाएगा।’ जाते हुए उस नर्स के कहे वाक्य से तेरे चेहरे पर छा गये डर को भाँपकर एक क्षण को मेरे हाथ पैर भी ढीले पड़ गए। तेरे पीछे आकर तेरे कन्धे को जैसे ही सहलाया कि सहसा बच्चे के रोने की गूँज से तेरे चेहरे पर से छंटते हुए डर के बादल और हौले से फैलती हुई ख़ुशियों की किरणें देखकर वही अट्ठाइस साल पहले के क्षण मैं आज फिर एक बार जी गया।


‘बधाई हो ! लड़का हुआ है और...’ नर्स के कहने पर तेरी आँखें अब भी कुछ जानने को जैसे तरस रही थी ।


‘अब चिन्ता की कोई बात नहीं है। माँ बेटा दोनों स्वस्थ है।’ तभी नर्स ने अपना अधूरा रखा वाक्य पूरा किया तो तेरे चेहरे पर वही खुशी, वही मुस्कराहट, वही तृप्ति और वही अहसास की छाया उमड़ते हुए मेरी आँखों के आगे से गुजर गई जो अट्ठाइस साल पहले तुझे पाकर मैंने महसूस की थी। मैंने बधाई स्वरूप तेरा कंधा जोर से दबाया। तेरी और मेरी नजर फिर से एक हुई। तू अब भी मुझसे कुछ छिपाने की चेष्टा कर रहा था लेकिन मैं भी तेरा बाप हूं।


मेरी आँखें तेरी आँखों में लिखा कुछ अब भी पढ़ रही थी – ‘पापा, आप नहीं समझोगे। पापा, आप नहीं समझोगे।’