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जनवरी सी जानदार तू और दिसम्बर सा आकर्षक मैं





वह इक्कीस का लम्बा छरहरा, कोमल सपनों की रंगीनियों से भरा नौजवान । नाम विवेक ।

वह उन्नीस की दुबली पतली, देह के उभारों को सम्हालती ऐश्वर्य से भरी नवयुवती । नाम करिश्मा ।

हुआ कुछ नहीं बस ! पहली नजर के पहले प्यार वाली बात हो गई । कॉलेज केन्टीन से शुरू हुई मुलाकातें कुछ ही महीनों में शहर के विविध रेस्तरां से होते हुए शहर की सीमारेखा पार कर लांग ड्राइव में तब्दील हो गई ।

साक्षात कामदेव के हाथों गढ़े गए शिल्प सी प्रतिकृति सा विवेक और नाजुक सी मोगरे सी कली साक्षात मेनका का रूप करिश्मा हाथों में हाथ लिए साथ निकलते तो कई युवा दिलों में ईर्ष्या का खंजर चुभकर मीठा सा घाव कर जाता ।

दिन रविवार का था । शाम सुहानी थी और मौसम मादक था । विवेक की प्यारी सी आंखों में आमंत्रण था और करिश्मा की झुकी हुई नजरों में प्रेम का स्वीकार था । शहर के जानेमाने आइसक्रीम पार्लर में प्यार वाली स्ट्राबेरी फ्लेवर वाली आइसक्रीम के साथ प्रेम के अहसास को पीते हुए आंखों के इशारों से बात करते हुए कामदेव और मेनका पर आते जाते नवयुगल से लेकर जीवन के अनुभवों की चाशनी कई बार चख चुके जवानी पार कर चुके लोगों की नजरें भी गड़ी हुई थी ।

करिश्मा ने अपने होंठों पर नागिन सी जीभ छुआकर रह गई आइसक्रीम का आखरी स्वाद लिया और पेपर नेपकिन से हाथ पोंछकर विवेक की आंखों में झांकने लगी ।

‘अब इतना भी मत घूरों मुझे की तुम्हारी ही नजर का शिकार हो जाऊं?’ विवेक ने नजरों से अग्निबाण फेंका ।

‘शिकारी कभी शिकार नहीं होता जनाब !’ करिश्मा ने मलकाते हुए विवेक का अग्निबाण वापस कर दिया ।

‘ये तो समय ही बतायेगा किसने किसका शिकार किया और कौन शिकार हुआ ।’ विवेक ने विवेकपूर्वक खड़े होकर करिश्मा की ओर अपना हाथ बढ़ाया और करिश्मा सहर्ष उसका हाथ थामकर खड़ी हो गई ।

आइसक्रीम पार्लर से निकलकर विवेक ने बाइक शहर के भीड़भाड़ वाले रास्तों से निकालकर शहर के बाहर से गुजरती नदी की तरफ ले ली । कामदेव से लिपटकर मेनका एकाकार होकर इस तरह बैठी हुई थी जैसे अर्धनारीश्वर का आधुनिक स्वरूप अवतार लेकर पृथ्वी पर उतर आया हो । सुनसान रास्तों से गुजरते हुए एक मोड़ पर आकर बाइक जैसे ही रुकी तो कानों में पत्थर से टकराकर बहती नदी के मधुर स्वर की ध्वनि गूंजने लगी । करिश्मा विवेक का हाथ थामकर नदी के किनारे आ गई ।

सूरज आसमान में फैली हुई अपनी आभा को समेटने की तैयारी में था और यौवन के रूप से भरपूर प्रेमीयुगल अपने कोमल सपनों की धरातल को मजबूत करते हुए हाथों में हाथ लिए एक दूसरे में खोए हुए प्रेममग्न बैठे हुए थे । दूर से कहीं मंदिर में गूंजती घंटियों का धीमा सा स्वर बार बार कानों में पड़ रहा था और कामदेव मेनका के प्रेम को संगीतमय बना रहा था ।

‘विवेक, दस साल बाद भी तुम मुझे इतना ही प्यार करोगे जितना अभी करते हो ?’ सहसा करिश्मा का मीठा सा मदहोश स्वर विवेक के कानों से टकराया ।

‘हां, शायद इससे ज्यादा ।’ विवेक ने करिश्मा की उड़ती जुल्फों को सहलाया ।

‘तो अभी क्या कमी है तुम्हारें प्यार में ?’ करिश्मा के चेहरे पर भोलापन था ।

‘कमी तो कुछ भी नहीं है पर अनुभव नहीं है । सुन रखा है, प्रेम की अनुभूति शाश्वत होती है और देह के दायरों से परे होती है लेकिन देह को पाकर परिपूर्ण हो जाती है । बस ! यही फर्क है ।’

‘धत्त ! प्यार में ऐसी बातें नहीं करते ।’ कामदेव का प्रेम से भरा हुआ जवाब सुनकर मेनका शरमा गई ।

‘तो कैसी बातें करते है ?’ विवेक ने बड़े ही विवेकपूर्ण तरीके से पूछा ।

‘मैं बताता हूं कैसी बातें करते है ।’ सहसा पीछे से आती हुई एक भारी आवाज सुनकर दोनों प्रेमीयुगल घबराकर अपनी जगह से खड़े हो गए । घबराकर करिश्मा विवेक के पीछे छिप गई ।

‘बातें ही नहीं । यह भी सीखा दूंगा प्यार कैसे करते है ।’ कहते हुए एक भारीभरकम देह का स्वामी काला सा युवक विवेक के सामने आकर खड़ा हो गया । विवेक कुछ समझ पाता उससे पहले ही दो और युवक दौड़कर वहां आ गए और विवेक को दबोच लिया । विवेक की पीठ से चिपकी घबराई हुई सी करिश्मा ने अपने दोनों हाथों से उस पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली । विवेक दोनों युवकों की पकड़ से छूटने का यत्न करने लगा । तभी पहला वाला काला सा युवक आगे बढ़ा और एक झटके के साथ करिश्मा को विवेक से दूर कर अपनी बाहों में भर लिया ।

‘छोड़ो मुझे ।’ करिश्मा उसकी पकड़ से छूटने का यत्न करते हुए छटपटाते हुए जोर से चीखी ।

‘छोड़ देंगे । बस थोड़ी सी देर ।’ एक भद्दी सी हंसी हंसते हुए वह युवक हंसा और करिश्मा को घसीटते हुए दूर ले जाने लगा ।

विवेक उन दोनों युवकों की चंगुल से छूटने का भरसक प्रयत्न कर रहा था । एक युवक की पकड़ से वह छूट भी गया लेकिन फिर एक गहरा सा वार उसके सिर पर हुआ और वह निढ़ाल होकर गिर पड़ा । सूरज अपनी बिखरी हुई आभा समेटकर आसमान से विदायी ले चुका था । दूर मंदिर से आती घंटियों की धीमी सी आवाज धीरे धीरे धीमी होकर सुनाई देना बंद पड़ गई । कामदेव के हाथों से छूटकर मेनका अंधेरे में कहीं गुम हो गई थी ।

विवेक को दबोचकर रखने वाले युवकों का इरादा उसे मारने का न था लेकिन अनायस ही अनजाने में कुछ अनचाहा हो जाने के भय से घबराकर वे दोनों युवक खून से लथपथ विवेक को वहीं छोड़कर भाग खड़े हुए । उगते हुए चांद की दूधिया सी रोशनी कोमल सपनों की रंगीनियों से भरा नौजवान अब छटपटा रहा था । दूर झाड़ियों से एक हल्की सी चीख गूंज रही थी लेकिन चांद को पूरा का पूरा अपने में समा लेने को इठलाती झूमती नदी के शोर में वह चीख विलीन होकर मौन हो गई ।

थोड़ी ही देर में झाड़ियों के पीछे से वह उन्नीस की दुबली पतली अपने देह के उभारों को सम्हालती ऐश्वर्य से भरी नवयुवती करिश्मा लड़खड़ाती सी बाहर निकली । पत्थरों के साये में बेसुध से पड़े विवेक को पाकर वह उसके सीने पर सिर रखकर रोने लगी । तभी अपनी हथेली पर अपने प्रेमी की खून की पतली धारा बहती देख वह घबराकर चीख उठी । बदवहास सी अपने खुले बालों को सम्हालती मदद के लिए वह चिल्लाने लगी । सहसा विवेक की पेंट की जेब में पड़ा मोबाइल खनक उठा ।

“प्यार किया तो डरना क्या । प्यार किया तो डरना क्या । प्यार किया कोई चोरी नहीं । छुप छुप आहें भरना क्या । प्यार किया तो....”

करिश्मा ने विवेक की जेब टटोली और मौन हो चुके मोबाइल पर उंगलियां घुमाई लेकिन फिर मां से बात करने की हिम्मत न हो सकी । चोरी से झूठ बोलकर जो घर से निकली थी । कुछ सोचकर उंगलियां फिर से मोबाइल पर चली और वुमेन हेल्पलाइन नम्बर डॉयल कर उसने सारी आपबीती सुना दी ।

अस्पताल में चंद सांसों को सम्हालते हुए विवेक थक सा गया । सुबह का सूरज उगने से पहले प्यार का एक सूरज अस्त हो गया।

एक मृतदेह का पोस्टमार्टम हुआ । सर्पदंश से एक हैवान अपनी हैवानियत को अंजाम देने से पहले काल का ग्रास बन गया ।

वह उन्नीस की दुबली पतली, पहले प्रेम की अनछुई अधूरी सी अनुभूति को सहेजती ऐश्वर्य से भरी नवयुवती करिश्मा अब जिन्दगी के समीकरणों को समझते हुए घर की खुली खिड़की से सामने पेड़ की टहनी पर प्रेमालाप करते कबूतर के जोड़े को देखकर आंसू बहा रही थी ।

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