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बात बस इतनी सी हुई


रात के डेढ़ बज रहे थे । घर के सभी दरवाजे खिडकियां बंद होने के बावजूद पलंग से नीचे फर्श पर पैर रखते ही उर्मिला जिज्जी के पूरे बदन में कंपकंपी चढ़ गई । हाथ में छड़ी पकड़कर पलंग पर बैठे बैठे ही उन्होंने छड़ी से लाइट का स्वीच ऑन किया और उनका पूरा कमरा दूधिया रोशनी से भर गया । छड़ी से ही पलंग के आसपास टटोलते हुए एक जोड़ी स्लीपर अपने पैरों के नजदीक लाकर उन्होंने उसे अपने पैरों पर चढ़ा लिया । फिर पिछले पांच वर्षों से अपनी संगिनी छड़ी का सहारा लेकर वे धीरे से पलंग आसरा छोड़ अपने पैरों पर खड़ी हुई और कमरे में ही अटैच्ड बाथरूम की ओर लड़खड़ाते कदमों से जाने लगी ।

बाथरूम का दरवाजा धकेलकर वह वापस आने हुई कि बात बस इतनी सी हुई । सिर दीवार से टकराया और भारी काया गीले फर्श पर एक चीख के संग गिर पड़ी । पास ही के कमरे में रजाई में दुबके बेटे के कानों में कुछ गिरने और टूटने की हल्की सी आहट पहुंची पर कातिल ठण्डी रात में कुछ देर पहले ही एक कोमल स्पर्श और अप्रितम आनन्द के नशे से बोझिल मदहोश आंखें मन के साथ दगा कर गई । एक बार फिर से एक गहरी चीख उठी और बेटा जैसे किसी सपने से जागा और अपने कमरे का दरवाजा खोल आधी रात को दूधिया रोशनी से नहा रहे अपनी मां के कमरे की ओर भागा । उसके पीछे अपने कपड़े ठीक कर उसकी अर्धांगिनी भी दौड़ी ।

बात बस इतनी सी हुई कि मां बाथरूम में आधी रात को गिर पड़ी । बेटे और बहू ने सहारा देकर उर्मिला जिज्जी को खड़ा करने की कोशिश की लेकिन शायद कमजोर पैरों में रही बची हुई ताकत अब जाती रही । उर्मिला जिज्जी खड़ी न हो पाई । जैसे तैसे प्रयास कर उर्मिला जिज्जी को उनके पलंग पर पहुंचाकर बेटे ने शहर के नामी किसी बड़े आर्थोपेडिक अस्पताल को फोन जोड़ा और साइरन बजाती हुई एम्बुलेंस के संग उर्मिला जिज्जी अस्पताल पहुंच गई । पैरों का बड़ा सा ऑपेरशन हुआ और कमजोर टूटे पैरों में दर्द कम हो गया । दस दिन अस्पताल में गुजारने के बाद बात बस इतनी सी हुई कि डॉक्टर ने उर्मिला जिज्जी को पूरे एक महीने बिस्तर से उठने से मना कर दिया ।

उर्मिला जिज्जी के दिन के तो काम ही कितने ! खुद नहाना और अपने कपड़े धोना फिर अपने कमरे में पड़े पड़े अखबार या कोई किताब पढ़ना । बेटे ने अपनी अर्धांगिनी से बात की । विचार हुआ फिर उस पर विमर्श हुआ । फैसले की घड़ी आई तो उर्मिला जिज्जी ने चिंता जताई । बात बस इतनी सी हुई, घर में कोई डिस्टर्ब न हो इसी से उर्मिला जिज्जी ओल्ड एज केयर सेंटर में महीने भर के लिए दाखिल हो गई ।

जिन्दगी की रफ्तार धीमी हो गई या उखड़ती सांसों से उम्मीदें खूट गई । उर्मिला जिज्जी दिन गिनकर चार दीवारों के बीच कैद हो गई । महिना पूरा होने पर उर्मिला जिज्जी के चेहरे पर खुशी लौट आई । लिवाने आए बेटे को आशीर्वाद देकर आंखें नम हो गई । बात बस इतनी सी हुई, उर्मिला जिज्जी अब भी अपने पैरों पर खड़ी न हो पाई । बेटे ने डॉक्टर से सलाह ली तो जिन्दगी की रफ्तार और धीमी हो गई । उर्मिला जिज्जी एक महिना और घर से दूर हो गई ।

उम्मीद, आशा और अपने पैरों पर चल पाने की तमन्ना इस बार काम कर गई । उर्मिला जिज्जी अब अपने पैरों पर खड़ी हो गई । कल सुबह बेटे के आने और घर जाने की खुशी में अपनी संगिनी छड़ी के संग अपने अल्पकाल के हमउम्र साथियों से एक एककर मिल आई । बात बस इतनी सी हुई, सोने से पहले बाथरूम में भारी काया गीले फर्श पर एक चीख के संग एक बार फिर गिर पड़ी । एम्बुलेंस के साइरन के संग उर्मिला जिज्जी एक बार फिर अस्पताल पहुंच गई । इस बार डॉक्टर ने चिंता जताकर कमजोर पैरों को सदा के लिए परवश घोषित कर दिया ।

बात बस इतनी सी हुई, कुछ खता अपनों से हुई । उर्मिला जिज्जी एक बार फिर घर वापस जाने की उम्मीद और झूठे वायदों के संग सदा के लिए ओल्ड एज केयर सेंटर पहुंच गई ।

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