प्रेम की परिभाषा Ashish Dalal द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम की परिभाषा



बगल वाले कमरे से आती आवाज कानों में पड़ते ही माधुरी की नींद टूट गई. आंखें मसलते हुए उसने अपने तकिये के नीचे रखे मोबाइल का बटन दबाकर समय देखा. अभी सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे.

‘रविवार की सुबह भी शान्ति से नहीं सोने देते. इस उम्र में भी थोड़ी सी धीरज नहीं है.’बड़बड़ाते हुए उसने अपनी बगल में सो रहे बंटी के पैरों के पास पड़ी चद्दर को खींचकर उसे ठीक से ओढ़ाया और अपने बालों को सहलाती हुई बिस्तर से उठ खड़ी हुई.

अपने कमरे से बाहर आकर उसने बगल वाले कमरे के दरवाजे के कोनों छनकर बाहर आते प्रकाश पर नजर डाली. तभी कांपती आवाज के संग घंटी के बजने की सुमधुर आवाज उसके कानों में पड़ी. वहां खड़े खड़े ही उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर सिर झुका लिया और रसोई में पानी पीने चली गई. तभी पूरे घर में अन्धेरा छा गया.

‘ओफ्हो. समझ नहीं आता ये विद्युतमण्डल वालें रविवार की सुबह को ही लाइट क्यों काट लेते है.’ हाथ में पकड़ रखी पानी की बोतल वापस फ्रीज में रखते हुए उसने फ्रीज के ऊपर रखी इमरजंसी लाइट चालू कर दी. तभी अन्दर से दरवाजे के खुलने की आवाज आई और एक परछाई बाहर आते हुए प्रतीत हुई.

‘उठ गई बहू तू?’ दीनानाथ ने उसके नजदीक आते हुए पूछा.

‘बाबूजी, रविवार को तो कम से कम चैन से सोने दिया कीजिए. आपको इतनी जल्दी उठकर काम ही क्या होता है ?’ ससुर की बात का जवाब दिए बिना ही वह उन पर गुस्साते हुए बोली.

‘पूजा तो रोज समय पर ही होनी चाहिए. फिर ऊपर वाले के लिए तो हर दिन एक से होते है.’ कहते हुए अन्धेरें में दीवार के सहारे वहां से वे हॉल में रखे सोफे पर जाकर इत्मीनान से बैठ गए.

अपना मुंह धोकर उसने गैस चालू कर उस पर चाय की पतीली चढ़ा दी.

‘अब आप तो चाय पीकर आराम से सैर करने निकल जाएंगे. मैं यहां अभी से काम में जुट जाऊंगी तो सारा दिन इसी में उलझी रहूंगी. सोचा था आज रविवार है तो थोड़ी देर और आराम कर लूंगी. बाकी तो कोल्हू के बैल की तरह पूरा सप्ताह नौकरी और घर में कहां चला जाता है पता ही नहीं चलता.’ माधुरी को अब भी उनकी वजह से अपनी नींद पूरी न कर पाने का अफसोस हो रहा था.

दीनानाथ कुछ सुना अनसूना करते हुए मन ही मन कोई मन्त्र गुनगुनाने लगे. तभी उन्हें कुछ सूझा और वे खड़े होकर माधुरी के पास जाकर खड़े हो गए.

‘अब क्या है ? आप वहां सोफे पर बैठिए चाय अभी उबल रही है.’ उन्हें अपने पास आकर खड़ा देख माधुरी ने झुंझलाते हुए कहा.

‘बहू, बहुत दिनों से तूने कोई भजन नहीं सुनाया. आजकल गुनगुनाना भी बिलकुल छोड़ दिया है. आज एक कोई प्यारा सा भजन सुना दे न.’ कहते हुए दीनानाथ ने माधुरी को देखा. इमरजंसी लाइट के धुंधले से प्रकाश में वे उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे.

‘ये कोई गाने का समय है ? आपको कुछ काम नहीं है इसका ये मतलब नहीं कि सभी बेकार ही हो.’ चाय के दो कप तैयार करते हुए उसने उन्हें ताना मारते हुए जवाब दिया.

तभी लाइट आ गई और बाहर अन्धेरा भी काफी हद तक छंट चुका था. माधुरी ने चाय का एक कप दीनानाथ को थमाया और इमरजंसी लाइट बंद कर खुद अपना चाय का कप लेकर अपने कमरे में चली गई.

चाय पीकर दीनानाथ ने फ्लैट का दरवाजा खोलकर बाहर निकलकर नीचे जाने के लिए लिफ्ट का बटन दबाया ही था कि लाइट फिर से चली गई. पुरानी हो चुकी नौ मंजिला बिल्डिंग में पावर बेकअप की सुविधा नहीं थी. मन मसोसकर वे चप्पल उतारकर वापस अन्दर आ गए और अखबार उठाकर अपने कमरे में चले गए.

नहाधोकर भगवान के सामने दीया कर माधुरी ने बंटी को उठाया और उसे दूध पिलाकर फटाफट नहला भी दिया. बंटी अपने दादा के कमरे में खिलौने लेकर चला गया. माधुरी रसोई के कामों में उलझ गई.

‘मम्मी, दादाजी पूछ रहे है, लाइट आ गई क्या ?’ कुछ देर बाद कमरे से बंटी का स्वर गूंजा.

‘नहीं, अभी नहीं आई.’ माधुरी ने सिंक में रखे कल रात के बर्तन साफ करते हुए जवाब दिया.

माधुरी का जवाब सुनकर दीनानाथ कमरे की खिड़की के पास आकर खड़े हो गए और नीचे बगीचे में खेल रहे बच्चों को निहारने लगे. तभी कुछ सोचते हुए वे फ्लैट के मुख्य दरवाजे से बाहर निकल गए और अपने पैरों में चप्पल डालकर नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों तक पहुंचे. अगले ही पल नीचे तक घुमावदार सीढ़ियां देखकर उन्होंने अपने घुटनों पर हाथ रखा और कुछ सोचकर वापस अपने कमरे में आकर बैठ गए. वे उठकर बार बार पंखे का स्विच दबाकर लाइट आने की पुष्टि करने लगे.

‘दादाजी, लाइट आएगी तो मम्मी बता देगी.’ बंटी ने उन्हें टोका.

अपने पोते की बात सुनकर वे वापस अपने पलंग पर आकर बैठ गए. एक बार फिर से उन्होंने कुछ देर पहले पढ़ा अखबार वापस हाथ में ले लिया. अखबार के सारे पन्नें फटाफट पलटकर वे वापस अपनी जगह से खड़े हो ही रहे थे कि बंटी ने जोर से अपनी मम्मी को आवाज लगाई.

‘मम्मी लाइट आ गई क्या ? दादाजी को पंखा चालू करना है.’

बंटी की आवाज सुनकर नल बंद कर माधुरी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछते हुए अन्दर उनके कमरे में दाखिल हुई.

‘एक दिन आपसे लाइट के बगैर नहीं रहा जाता ? सुबह से परेशान कर रहे है.’ माधुरी का चेहरा परेशानी और गुस्से से तमतमा रहा था.

‘बहू थोड़ा नीचे जाना था.’ उन्होंने कांपते हुए स्वर में धीमे से जवाब दिया.

‘क्या करेंगे नीचे जाकर ? टाइम पास करना ही है तो बंटी के साथ कुछ देर खेलो.’ कहते हुए माधुरी ने अपनी कमर पर हाथ रख लिया.

जवाब में वे चुप ही रहे.

‘एक दिन नीचे जाकर अपने यार दोस्तों से नहीं मिलोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा. सुबह से परेशान कर रखा है. मेरी रविवार की पूरी सुबह आपने बिगाड़ कर रख दी. ऊपर से लाइट न होने से कपड़े भी हाथ से धोने पड़ रहे है.’ वह उन्हें देखकर बड़बड़ाई.

‘पर बहू ....’ उन्होंने कुछ कहना चाहा.

‘चुपचाप यहां बैठे रहिए. कहीं आने जाने की जरुरत नहीं है. अभी थोड़ी देर में खाना बन जाएगा. खाकर सो जाना.’ उन्हें धमकाते हुए माधुरी कमरे से बाहर जाने को वापस मुड़ी.

‘हैप्पी बर्थ डे बहू.’ उसके पीछे धीमे से बुदबुदाकर दीनानाथ चुप हो गए.

उन्हें खरीखोटी सुनाकर वापस जाने को उठे माधुरी के कदम वहीं थम गए. पीछे मुड़कर उसने उन्हें देखा. उनकी आंखें नम हो चुकी थी.

‘आज तेरा जन्मदिन है न ! तुझे रसगुल्ले बेहद पसन्द है तो वही लेने नीचे जाना था पर आठवीं मंजिल से इस उम्र में सीढ़ियां उतर नीचे जाने की हिम्मत नहीं होती. लाइट आ जाती तो लिफ्ट से उतरकर बाहर जाकर ले आता.’

उनकी बात सुनकर उसकी आंखें भी गीली हो गई. वह उनके नजदीक आ गई.

‘आज मितेष जीवित होता तो हर साल की तरह सुबह जल्दी उठकर तेरा मुंह मीठा करवाता. तू सारा दिन घर और ऑफिस के कामों में पिसती रहती है तो सोचा एक थोड़ी सी खुशी तो दे ही सकता हूं तुझे. बस इसीलिए नीचे जाना था.’ कहकर वह चुप हो गए.

माधुरी आगे बढ़ी और अपने ससुर के क़दमों में झुक गई. दीनानाथ ने उसे उठाया और गले से लगा लिया.