दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 2 Pranava Bharti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 2

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

2-बस, बहुत हो गया

दिल किसी का भी हो, कभी खुश होता है, कभी दुखी ! कभी छलनी हो जाता है, कभी उछलने लगता है | पता नहीं उसके दिल की ज़मीन पर उसका नाम लिखा गया था या नहीं ? पर जल्दबाज़ी इतनी कि अभी न मिली तो न जाने कहर ही बरप जाएगी |

घूम रहे हैं बिंदास ! भाई ! तुम तो लड़के हो, वो तो किसीकी लड़की है | हो गई कुछ ऊँच -नीच तो बस ---

नवीन जी ने जल्दी नयना के माता-पिता को घर बुलाया | पता चला, उनका सुपुत्र तो न जाने कबसे नयना के घर के चक्कर काट रहा था, उसने नयना की माँ को भी अपनी चिकनी बातों में उतार लिया था, वो तैयार थीं |

नवीन जी सोचते, पहले कुछ कमाने -खाने लायक तो हो जाएं किन्तु ---घूमते रहे दोनों मस्ती से ! ठीक है, जब सुनना ही नहीं तो कर भी क्या सकते थे| लड़की की बदनामी हो, यह उन्हें मंज़ूर न था | उनके भी तो बेटी है, बेशक उसका विवाह हो गया है पर लड़की किसी की भी हो, उसके नाम पर उन्हें कोई धब्बा मंज़ूर न था | | शादी करवा दी गई और गाड़ी चलने लगी खचर-खचर ! कुछ ही दिनों में हो गई शुरू --कचर -कचर ! पहले तो नवीन जी और उनकी पत्नी ने बीच -बचाव करने का प्रयास किया लेकिन जब एक दिन दोनों को एक-दूसरे पर हाथ ताने देखा, वे सहम गए |

" तुम दोनों अपना इंतज़ाम कहीं कर लो ----बस, बहुत हो गया " उन्होंने अल्टीमेटम दे दिया |

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