बड़ी बाई साब - 7 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आई कैन सी यू - 20

    अब तक कहानी में हम ने पढ़ा की दुलाल ने लूसी को अपने बारे में...

  • रूहानियत - भाग 4

    Chapter -4पहली मुलाकात#Scene_1 #Next_Day.... एक कॉन्सर्ट हॉल...

  • Devils Passionate Love - 10

    आयान के गाड़ी में,आयान गाड़ी चलाते हुए बस गाड़ी के रियर व्यू...

  • हीर रांझा - 4

    दिन में तीसरे पहर जब सूरज पश्चिम दिशा में ढ़लने के लिए चल पड...

  • बैरी पिया.... - 32

    संयम ने उसकी आंखों में झांकते हुए बोला " तुम जानती हो कि गद्...

श्रेणी
शेयर करे

बड़ी बाई साब - 7

तीन दिन से जगमग करती हवेली में आज बारात का आगमन था. खूब चहल-पहल से घर उमगा पड़ रहा था. शहनाई का स्वर वातावरण में गूंज रहा था. गौरी केवल यही मना रही थी कि सब अच्छी तरह निपट जाये. लेकिन उसके मनाने से क्या? शादी के दौरान तमाम रस्मों में नुक़्ताचीनी हुई. ये रस्म इस तरह होनी थी, इस रस्म में इतना इसको, उतना उसको देना चाहिये था. बड़ी बाईसाब चुपचाप उनकी हर मांग को पूरा कर रही थीं. गौरी ने इतना शांत उन्हें कभी नहीं देखा था. सुबह विदाई के समय भी थोड़ी झिकझिक हुई. ऐसी बहस के बाद बेटी को विदा करते हुए गौरी का दिल बैठा जा रहा था. कई बार उसका बोलने का मन हुआ लेकिन बड़ी बाईसाब की तेज़ निगाहों ने उसे बोलने ही नहीं दिया.कई मामलों में खूब खुले विचारों वाली बड़ी बाईसाब, नीलू की शादी के मामले में एकदम पुरातनपंथी दिखाई दे रही थीं. नीलू, जो उनके दिल का टुकड़ा थी, उसे ही ऐसे लालची लोगों के बीच भेजते हुए पता नहीं क्यों, उनका दिल कांप नहीं रहा था. या शायद अपने डर को व्यक्त नहीं कर रही थीं. लेकिन अगर उन्हें डर होता, तो इस घर में नीलू को ब्याहने की कोई मजबूरी भी तो नहीं थी…. कुछ समझ नहीं पा रही गौरी. विदा के समय दोनों हाथ जोड़े खड़ी थीं बड़ी बाईसाब, जैसे लड़के वालों की एहसानमंद हों… एकदम अच्छा नहीं लगा गौरी को. गौरी तो बार-बार भूल ही जा रही थी कि बड़ी बाईसाब तो दादी हैं, असली समधिन तो वही है. बेटी को ब्याहने की जगह उसे भी तो बार-बार ननद को विदा करने की फ़ीलिंग आ रही थी. अभी भी उसे याद ही नहीं रहा कि उसके समधी के आगे बड़ी बाईसाब हाथ जोड़े खड़ी हैं. नीलू को ले के कार जब तक आंख से ओझल न हो गयी, बड़ी बाईसाब के हाथ जुड़े ही रहे.
अन्दर आ के थोड़ी देर बड़ी बाईसाब शांत बैठी रहीं, आंखें मूंदे, फिर दस मिनट बाद ही नौकरों को निर्देश देने लगीं. फलां सामान समेट के वहां पहुंचाओ, दरियां समेट के स्टोर में रखो. टैंट हाउस का सामान मिलान करके एक तरफ़ रखो. नीलू के जाने के बाद निढाल सी बैठी गौरी का कुछ करने का मन नहीं हो रहा था. बेटी के ब्याह की खुशी से ज़्यादा उसे एक ऐसे परिवार को सौंप देने का रंज था, जो उसके लायक़ ही नहीं था, किसी भी तरह से. तमाम लड़कों को उनकी कमज़ोर पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते रिजेक्ट कर देने वाली बड़ी बाईसाब ने आखिर इस परिवार के लिये क्यों हामी भरी? क्या दिखा उन्हें इस परिवार में? लड़का ठीकठाक है, लेकिन इतनी अच्छी नौकरी में भी नहीं जो उसके आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर परिवार से समझौता किया जाता. गौरी किसी भी परिवार का आकलन उसकी आर्थिक स्थिति से बिल्कुल नहीं करना चाहती, लेकिन बच्चों को जिस परिवेश में रहने की आदत होती है, कोशिश उसी परिवेश में भेजने की भी होनी चाहिये. इन दोनों परिवारों में तो कोई मेल ही नहीं था.भी होनी चाहिये. इन दोनों परिवारों में तो कोई मेल ही नहीं था. परिवारों के बीच आर्थिक खाई, कभी नहीं पटती, बल्कि समय-समय पर ताना देने का ज़रिया जरूर बनती है.

(क्रमशः)