विद्रोहिणी
(5)
पलायन
नाटक शुरू हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका था । श्यामा के लिए निकल भागने का समय आगया था।
आधी रात का समय था। चारों ओर श्याह अंधेरा था। कौशल्या व श्यामा की आंखों में नींद नहीं थी। उन्होने उस स्थान से पलायन की पूरी तैयारी कर रखी थी। पहले कौशल्या उठी। उसने चुपके से बिना आवाज किए बाहर आँगन में झांका। किशन गहरी नींद में सो रहा था। उसने धीरे से सामान की गठरी उठाई व एक बच्चे को पीठ पर लादकर नंगे पैर मंदिर के बाहर निकल आई। उसके पीछे पीछे दूसरे बच्चे को पीठ पर लादे श्यामा भी बाहर आ गई। बाहर घुप्प अंधेरा था।
दोनों मां बेटी तेजी से चलती हुई स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क पर निकल आई।
कुछ कुत्ते भौंकते हुए उनके पीछे दौड़ रहे थे। वे बुरी तरह डर रही थी व बार बार पीछे देख रही थी कि कहीं वे पकड़ी न जाएं। अब वे तेजी से चल रही थी, लगभग दौड़ते हुए। एक घंटे में आधा रास्ता पार होगया। बच्चे जाग गए। वे मां व नानी की पीठ की सवारी का आनंद ले रहे थे।
श्यामा यह सोच कर सिहर उठी कि यदि मंदिर से बाहर निकलते समय बच्चे जाग जाते व रोने लगते तो गजब हो जाता।
रास्ते में उसे ऐक कुआ दिखाई दिया ।
श्यामा ने कहा ‘ मां बहुत प्यास लगी है। ’
मां ने डांटते हुए कहा ‘ थोड़ा धीरज रख बेटी ! बस स्टेशन आने वाला है। हम वहीं पेट भर पानी पिऐंगे । कहीं वह राक्षस आगया तो तुझे वापस उस नर्क में जाना होगा। ’
वे दोनो बुरी तरह से हांप रही थी और थक चुकी थी। किन्तु वे पूरा जोर लगाकर तेजी से चलने लगी। अचानक श्यामा के पैर में ऐक कांटा चुभ गया। वह दर्द से चीख उठी। कौशल्या ने बड़ी मुश्किल से उसका कांटा निकाला। श्यामा को चलने में बड़ी कठिनाई हो रही थी।
कौशल्या ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘ देख बेटी वो स्टेशन का प्रकाश दिखाई दे रहा है। ’
यद्यपि कोई प्रकाश नहीं दिखाई नहीं दे रहा था किन्तु श्यामा के हृदय में उत्साह का संचार हो गया व वह अपना दर्द भूलकर और तेजी से चलने लगी। इंसान पर सकारात्मक सोच का बड़ा आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है।
कुछ देर बाद स्टेशन की चिमनी का प्रकाश दिखाई देने लगा। वे स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। उन्होने बच्चों को ऐक ओर सुलाया व धड़ाम से हांफते हुए फर्श पर गिर पड़ी।
उनके मुंह सूख रहे थे। प्यास के मारे उनके प्राण निकल रहे थे।
स्टेशन का चोकीदार उन्हे संदेह व आश्चर्य से घूर रहा था। कौशल्या ने उससे पूछा ‘ भैया ! प्यास से प्राण निकल रहे है, कहीं पानी मिलेगा ? ’
उसने दूर रखे ऐक घड़े की ओर इशारा किया। दोनों महिलाओं ने दौड़कर बहुत सा ठंडा पानी जल्दी जल्दी अपने हलक में उड़ेला । उनके प्राण वापस लौट आए।
वह कर्मचारी उन्हें अभी भी घूर रहा था। कौशल्या ने उससे पूछा, ‘ भैया इंदौर की गाड़ी कब आऐगी ? उसने कहा ‘अभी डेढ़ घंटा बाकी हे। ’कुछ देर बादं पौ फूट चुकी थी। प्लेटफार्म पर लोगों की भीड़ जुटने लगी। वे दोनों महिलाएं पास की ऐक झाड़ी में छिपकर बच्चों के साथ गाड़ी का इंतजार करने लगी। वे बार बार भय से कांप उठती थी कि कहीं वे पकड़ न ली जाएं।
आखिर बड़ी दीर्घ प्रतिक्षा के बाद उन्हें क्षितिज पर धुआं दिखाई दिया। उनकी मुक्तिदाता सपनों की गाड़ी सीटी बजाती हुई प्लेटफार्म पर आ रही थी। मुसाफिरों की भारी भीड़ थी। बच्चों को साथ लेकर गाड़ी पर चढ़ना बहुत मुश्किल था। कुछ लोगों की मदद से वे गाड़ी पर चढ़ गई । अभी भी वे पकड़े जाने के डर से कांप रही थी । वे भय के मारे सीट के नीचे जाकर छुप गईं। फिर वे सीट नहीं मिलने की स्थिति मे फर्श पर ही बैठ गई। कुछ देर बाद गाड़ी सीटी देकर चल दी। कौशल्या ने भगवान को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘ हे भगवान ! तेरा लाख लाख धन्यवाद, तूने ही श्यामा को आज उस नर्क से निकाल दिया। तेरी कृपा के बिना यह संभव नहीं था। ’
***
श्यामा पीहर में
श्यामा ने परिवार पर बोझ न बनते हुऐ कुछ पैसे कमाने का विचार किया । उसने कुछ सोना बेचकर एक सिलाई मशीन खरीदी व रेडिमेड व्यापारियों की दुकान से कटे हुए कपड़े लाकर सीने लगी। इस कार्य में उसे बड़े सवेरे से जुटना होता व देर रात तक काम में जुटे रहना पड़ता। श्यामा का ऐक बड़ा व ऐक छोटा भाई था। बड़े भाई का नाम शंकर व छोटे का नाम सत्या था। शंकर बड़ा नेक व रहमदिल इंसान था। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता था। वह सभी जरूरतमंदों की निस्वार्थ सेवा करता था। गरीब होने के बावजूद उसका सभी सम्मान करते थे। इसके विपरीत सत्या एक क्रोधी व स्वार्थी व्यक्ति था।
इस छोटे परिवार के जीवन की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी। किन्तु भावी का किसे पता था।
शीघ्र ही इस परिवार पर ऐक तूफान दस्तक देने वाला था। कुछ दिनों के बाद सत्या का विवाह एक अपूर्व सुंदर युवती से हुआ। उसका नाम रूपा था। उसका भाई किसी पूर्व राजा के यहां कर्मचारी था। इस विवाह से परिवार की खुशियां बढ़ गई व परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने को सम्मानित समझने लगा किन्तु शीघ्र ही इस परिवार की इज्जत पर प्रश्न उठने लगे।,
एक दिन इस तथ्य का भंडाफोड़ हो गया कि रूपा एक निम्न जाति की बेटी थी व पूरे समाज में इस बात की कानाफूंसी होने लगी। सत्या के परिवार को जाति से च्युत कर दिया गया। भारत में जाति से बहिष्कार सबसे बड़ा दंड माना जाता है। ऐसी परिस्थिति जातिच्युत व्यक्ति के परिवार को सब लोग नीची निगाह से देखते हैं, उनकी आलोचना करते हैं, हंसी उड़ाते हैं, जाति का कोई व्यक्ति उनसे कोई संबंध नहीं रखता ; विवाह मृत्यु व अन्य महत्चपूर्ण अवसर पर न कोई उन्हे बुलाता है न उनके घर जाता है। जातिच्युत के यहां किसी व्यक्ति की मृत्यु पर जाति के लोग नहीं में मुर्दे को शमसान तक ले जाना बड़ा दुष्कर कार्य हो जाता है। ओंकार का पूरा परिवार ऐक घोर संकट में फंस चुका था। उन्हेंाने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि रूपा निम्न जाति की महिला की बेटी थी किन्तु अब कुछ भी नहीं किया जा सकता था। ओंकार ने अपने परिवार को पुनः जाति में सम्मिलित करने के लिए जाति के प्रतिष्ठित लोगों से बार बार मनुहार की। कुछ दिनों के बाद जाति के अध्यक्ष द्वारा ओंकार के सामने जाति में सम्मिलित होने के लिए समाज के सभी लोगों को भोजन व दंडस्वरूप एक बड़ी राशि देने की शर्त रखी गई। ओंकार एक गरीब व्यक्ति था। उसके लिए वह सबको भोजन व दंड की राशि जुटाना एक दुष्कर कार्य था किन्तु वह विवश था। उसने एक साहूकार से भारी ब्याज पर धन उधार लिया व पूरी जाति को भोजन कराया। उसे जाति में फिर से सम्मिलित कर लिया गया। इस गरीब परिवार में पहले ही आर्थिक संकट था अब उपर से वह कर्ज के दलदल में फंस गया। ओंकार का कपड़े का धंधा भी मंदा हो चला था।
श्यामा भी दिनरात सिलाई मशीन पर काम करके कुछ रूपये कमाकर परिवार केा इस संकट से उबरने में अपना छोटा योगदान दे रही थी। किन्तु रूपा के कारण एक भयानक समस्या आने वाली थी। सत्या रूपा के रूप पर इस कदर फिदा था कि वह कमाना धमाना छोड़ दिनरात पागलों के समान उसके हुस्न को निहारा करता था। उधर रूपा की नजर श्यामा की मशीन व उससे होने वाली कमाई पर थी।
एक दिन रूपा ने श्यामा से कहा, ‘मैं भी इस मशीन पर कपड़े सीउंगी। ’
श्यामा ने कहा, ‘ मेरा काम खत्म हो जाए, तब तुम मशीन पर कपड़े सीना। ’
रूपा.- तुम्हारा काम तो देर रात को ही खत्म होता है।
श्यामा- मेरा काम है ही ऐसा, क्या कर सकती हूं ?
रूपा रोज मशीन पर काम करने की जिद करने लगी किन्तु श्यामा उसे काम करने का मौका देने के लिए तैयार नहीं थी। रूपा द्वारा कपड़े बिगाड़े जाने का डर था ।
रूपा अब झगड़ा करने पर उतारू हो गई।
आए दिन श्यामा व रूपा के बीच झगड़े होने लगे।
ऐक दिन जब श्यामा मशीन पर से उठकर कुछ देर के लिए बाहर गई तो रूपा उसके लाए हुए कपड़े सीने लगी। जब कुछ देर बाद श्यामा लौटी तो उसने रूपा को मशीन पर सिलाई करते देख वह क्रोध व दुःख से चिल्लाने लगी -
‘ अरे दुष्ट यह क्या कर डाला ? मेरा सारा काम बिगाड़ दिया। अब मुझे भारी हर्जाना भरना पड़ेगा। ’
इस पर रूपा भी उसे ताने सुनाने लगी,
‘ कपड़े सीने का इतना ही शौक है तो अपने पति के घर जाकर कपड़े सी। यह घर मेरा है, मशीन भी मेरी है। मैं ही इस पर कपड़े सीउंगी। ’
शाम केा रूपा अपना सारा गुस्सा क्रोध में फुंकारकर शिकायत करते हुऐ अपने दीवाने पति से रूठ जाती ।
सत्या श्यामा को बुरी तरह डांटता और उसे अपने पति के घर लौट जाने का ताना देता।
ऐक दिन तो रूपा ने श्यमा को खूब गालियां दीं और मशीन पर जबरन बैठकर सिलाई करने लगी। इस पर श्यामा ने उसे धकका देकर दूर गिरा दिया ।
शाम को रूपा ने मिर्च मसाला लगाकर सारी बात अपने पति को बताई। सत्या ने क्रोधित होकर श्यामा को धक्का देकर मशीन से गिरा दिया व लात घूंसे मारकर उसकी पिटाई करने लगा।
सत्या से सब डरते थे। कोई उसका विरोध नहीं करता था। फिर रोज रोज धर में झगड़े होने लगे। आए दिन सत्या अपनी बड़ी बहिन की बेरहमी से पिटाई करने लगा।
श्यामा के लिए छोटे भाई के हाथों पिटना अत्यंत शर्मनाक था। अंत में उसने अपने पिता का घर खाली करके किसी अन्य सहारे की तलाश करना प्रारंभ कर दिया।
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