विद्रोहिणी - 6 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विद्रोहिणी - 6

विद्रोहिणी

(6)

नव बौद्ध

एक दिन प्रातः मोहन अपने मकान के पीछे गली में खड़ा था। वहां पास में ही ऐक नवबौद्ध महिला

नाली में सफाई कर रही थी। मोहन उस समय मात्र छः वर्ष का बालक था।

उस महिला ने मोहन को परे हटने को कहा। मोहन ने उसकी बात अनसुनी कर दी। उसका पड़ौसी पंडित यह देखकर बोला ‘ मोहन उस महिला से दूर क्यों नहीं हट रहा है ? ’

इस पर मोहन पंडित को चिढ़ाने के लिए नवबौद्ध महिला के और नजदीक चला गया और उस महिला को धीरे से छू दिया।

इस पर पंडित ने मोहन के इस कुकृत्य की शिकायत श्यामा से की ।

श्यामा ने मोहन को डांटते हुए पूछा, ‘ तूने उस महिला नवबौद्ध को क्यों छुआ ? ’

मोहन मुंहजोरी करते हुए बोला ‘ उसे छूने से क्या हुआ ? ’

‘ अरे तू अपवित्र हो गया। ’

मेाहन ने अपने आप से कहा ‘मैं तो पहले जैसा ही हूं। कहीं अपवित्र नहीं हुआ। ’

श्यामा ने मोहन को नहला दिया व उसके कपड़े बदले। दिनभर मोहन का दिमाग इस पहेली को सुलझाने में उलझा रहा कि हरिजन को छूने से वह अपवित्र कैसे हो गया क्योंकि उसके शरीर पर तो किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता था। जब उसे कोई हल नहीं मिला तो उसने रात में मां से पूछा

‘ मां नवबौद्ध अपवित्र क्यों होते हैं ? ’

मां ने जबाब दिया ‘क्योकि वे गंदगी साफ करते हैं ’

मेाहन का बालमन यह मानने को तैयार न था। उसने कहा ‘ यदि वे गंदगी साफ नहीं करते तो वह कार्य हमें करना पड़ता, तब। ’

श्यामा ने जबाब दिया ‘नवबौद्ध ब्रम्हा के पैर से पैदा हुए हैं जबकि हम ब्राम्हण उनके मुख से पैदा हुए हैं। ’

मेाहन ने कहा ‘मां मैं तुम्हारी किस जगह से पैदा हुआ ? ’

‘ तू मेरे पेट से पैदा हुआ है ’

मेाहन सोचता रहा, पैर और मुख से बच्चा कैसे पैदा हो सकता है। उसके बालमन में इस पहेली का कोई हल नजर नहीं आता था। उसने माता से पूछने की कोशिस की तो उसने भी उसे कोई संतोषजनक जबाब नहीं दिया।

एक बार महान् स्वामी विवेकानंद एक गांव में आए हुए थे। वे ऐक चबूतरे पर वृक्ष की छांव में विश्राम कर रहे थे। कुछ देर बाद वहां से एक व्यक्ति गुजरा। वह जोर से आवाजें लगा रहा था, ‘ परे हटो, परे हटो। ’

स्वामीजी ने उत्सुकतावश उनके शिष्यों से पूछा, ‘ यह व्यक्ति इस तरह क्यों चिल्ला रहा है ? ’’

लोगों ने बताया, ‘ महाराज वह व्यक्ति नवबौद्ध है व उसकी छाया मात्र को छूने से कोई भी अपवित्र हो सकता है। इसलिए वह दूर हटने की चेतावनी दे रहा है। ’

इस पर स्वामीजी बहुत दुखी हुए । उन्होने कहा, ‘ जिन्हें तुम अछूत कहते हो वे महर्षियों के वंशज हैं। ये ऐक दिन भारत पर राज करेंगे। ’

विवेकानंद की भविष्यवाणी आज हम अक्षरश: सत्य होते देख रहे हैं।

***

बच्चों के खेल

उस मकान के पास कुछ दूरी पर ऐक बडा मैदान था। बच्चे वहां अंटी गेम खलते।

ऐक लड़का अन्य सभी लड़कों से कुछ रंग बिरंगे कंचे इकट्ठे करता व उन्हें जमीन में खुदे ऐक छोटे गड्डे की ओर फेकता। जो कंचे गड्डे के अंदर जाते वे उसने जीत लिए होते । शेष बचे कंचों पर वह ऐक बड़े अंटे से निशाना साधता। निशाना चूकने पर अन्य खिलाडियों को जोर आजमाइश का चांस मिलता।

इस बीच बच्चे मैदान में चल रहे ऐक अन्य रोमांटिक गेम को भी चुपके चुपके देखते।

समीप ही एक ओटले पर बैठा ऐक हट्टा कट्टा व्यक्ति सामने के मकान की खिड़की में निगाहें जमाए बैठा रहता । उस खिड़की में ऐक नवयौवना बार बार दिखलाई देती। वह व्यक्ति उसकी ओर कुछ अश्लील इशारे करता व युवती अपनी हंसी व अठखेलियों से इतराते हुए अपनी हसीन अदाओं से उसके इशारों कां प्रत्युत्तर देती। वह व्यक्ति उस युवती का पूर्वप्रेमी था । हाल ही में उस नवयौवना का विवाह एक वृद्ध व्यक्ति से हुआ था।

कुछ देर बाद उसका पति बाहर जाता व मौका पाते ही प्रेमी सीढ़ियों से उस कमरे में घुस जाता। इधर ऐक लड़का कमरे में चल रहे गेम को कल्पना की आंखों से देखकर रनिंग कामेंटरी करता।

‘आगे का गेम सांस थमकर देखिये’यह कहकर वहशैतान कमेंटेटर चुपचाप सीढ़ियों से ऊपर जाता व जोर से सांकल बजाकर भाग आता। प्रेमी महोदय अपना गेम अधूरा छोड़, प्रेमिका के आलिगन से छूटकर, अस्तव्यस्त कपड़ों में बड़ी फुर्ति से सिर पर पैर रखकर पीछे के दरवाजे से भागते नजर आते।

इधर निर्दयी लड़के यह दृष्य देख हंस हंस कर दोहरे हुए जाते।

***

पानी में खतरा

मोहन का एक मित्र था, हरि । उसने हाल ही मे तैरना सीखा था। उसने मोहन से कहा,

‘ मोहन ! मैंने तैरना सीख लिया है। तैरने में बड़ा मजा आता है। ’

मेाहन ने कहा, ‘ लेकिन तैरने से डूबने का बड़ा खतरा रहता है। ’

हरि ने कहा, ‘ बिलकुल नहीं, हम पाजामें मे हवा भर लेते हैं और आराम से उसके ऊपर लेटकर तैरते रहते हैं। किसी प्रकार का डूबने का खतरा नहीं है। ’

दूसरे दिन मोहन तैरना सीखने के लिए हरि के साथ सिरपुर तालाब की ओर चल दिया। कुछ दिनों की प्रेक्टिस के बाद वह अच्छी तरह तैरने लगा।

एक दिन मोहन ने अपने बड़े भाई कुमार से कहा, ‘ भैया ! मैने तैरना सीख लिया है, तैरने में बड़ा मजा आता है। ’

कुमार ने घबराते हुए कहा, ‘ तैरने में तो बड़ा खतरा है। पानी में कई लड़के डूब चुके हैं। ’

मेाहन ने हंस कर कहा, ‘ हमारे पास एक ऐसी जादू की चीज है जिसके सहारे तुम कितनी भी देर पानी में रहो, डूब ही नहीं सकते। ’

इस पर कुमार उत्सुकतावश तैरना सीखने के लिए तैयार हो गया। अगले दिन वे तीनो मित्र सिरपुर तालाब पहुंचे। वहां अनेक लड़के उंचाई से कूद कर तरह तरह के करतब दिखाते हुए तैर रहे थे। वह ऐक बहुत बड़ा तालाब था। चारों ओर हरियाली थी।

उस समय वहां तरह तरह के जंगली जीव, हिरण, सियार, लौमड़ी आदि दिखाई देते थे।

हरि ने एक पाजामे में हवा भर दी, वह फूलकर हलका हो गया। फिर उसने धागे से उसके दोनों ओर के मुंह बांध दिए ताकि अंदर भरी हवा बाहर नहीं निकल सके। उस पाजामें के उपर लेटकर हाथ पैर फेंकने से वह बड़ी आसानी से पानी मे तैरने लगा।

कुमार भी पाजामे की सहायता से तैरने के लिए तैयार हो गया। मोहन ने उसे हवा से भरा पजामा दिया I वह हवा भरे पाजामें पर लेटकर बड़ी आसानी से तैरने लगा। उसे तैरना सिखाकर मोहन व हरि एक दूसरे का पीछाकर पानी में खेलते हुए दूर चले गए। कुछ देर बाद मोहन ने पीछे मुड़कर देखा तो वह यह देखकर सन्न रह गया कि कुमार पानी में डूब रहा है । वह शीघ्रता से अपने भाई को बचाने के लिए उसके नजदीक आगया। उसने देखा कि कुमार के पाजामे की हवा निकल चुकी थी और वह पानी में डूब रहा था।

मोहन ने उसे सहारा देना चाहा तो घबराते हुए कुमार ने उसे कसकर पकड़ लिया व उसके उपर चढ़ बैठा। वे दोनों भाई ऐक साथ डूबने लगे।

मोहन ने कुमार को ढाढस बंधाते हुए कहा, ‘भैया घबराओ मत बस हाथ पैर जोर से चलाते रहो। ’

कुछ देर बाद मोहन पानी में खड़ा हो गया और कहने लगा, ‘ भैया तुम नाहक ही घबरा रहे हो Iदेखो यहां तो सिर्फ कमर तक ही पानी है। ’

वे दोनो हाथ पैर मारते हुए किनारे के समीप आ पहुंचे थे जहां सिर्फ कमर तक ही पानी था।

दोनों भाई मौत से बाल बाल बचे। जब वे घर पहुंचे तो अंधेरा हो रहा था। मकान के बाहर बैठी उनकी माता श्यामा बड़ी बेसब्री से उनका रास्ता देख रही थी। उन्हे देखते ही वह चिल्लाने लगी,

‘अरे नालायकों ! सुबह से शाम तक कहां आवारागिरी करते रहते हो ? मैं कब से तुम्हारे लौटने की प्रतिक्षा कर रही हूं। मुझे रह रहकर अनेक खराब विचार आ रहे हैं। तुम्हे कभी मेरी चिंता नहीं होती कि तुम्हारी मां घबराई हुई तुम्हारे लौटने की राह देख रही होगी। ’

इस पर कुमार ने दोनों भाई के डूबने से बचने की घटना का किस्सा सुनाया।

श्यामा ने रोते हुए कहा, ‘ बेटा मेरी कसम खाकर कहो कि अब आगे से कभी पानी में नहीं जाओगे। यदि तुम्हे कुछ हो जाता तो मैं पागल हो जाती, हमारे दुश्मन मिठाइयां बांटते और लोग मुझे पत्थर मारते। ’

दोनो बच्चों ने कसम खाई कि वे कभी पानी में नहीं उतरेंगे।

श्यामा ने एक दर्दनाक सत्य घटना सुनाते हुए कहा ‘ एक दिन खान नदी में बारह भाई साथ साथ नहाने गए थे। ऐक भाई नदी में गहरा चला गया व डूबने लगा। उसे बचाने दूसरा गया तो वह भी डूब गया। ऐसा करते हुए सभी बारह भाई नदी में डूब गए। इसलिए नदी के उस स्थान को बारहमत्था कहते हैं। ’

श्यामा ने दूसरी सत्य घटना सुनाते हुए कहा,

यह घटना करीब दस वर्ष पुरानी है। हमारे पड़ौस में रहने वाली कंचन एक बार ओंकारेश्वर तीर्थ के दर्शन करने गई । उसके साथ उसका पति व तीन बच्चे भी थे। मंदिर में दर्शन करने के पूर्व वे नर्मदा नदी के किनारे पर बैठकर हाथ पैर धोने लगे। इस बीच एक छोटा बच्चा नदी में उतरकर डूब गया। दूसरा व तीसरा भी पहले का पीछा करते हुऐ डूब गए। कुछ देर बाद उनका पिता बच्चों को डूबता देख उन्हें बचाने दौड़ा किन्तु वह भी तैरना नहीं जानता था। वह भी उूब गया। बेचारी कंचन का पूरा परिवार उजड़ गया। वह पागल हो गई ।

पानी व आग से सदा बचकर रहना चाहिए। ये किसी का लिहाज नहीं करते हें। ’

***