अधूरी हवस - 10 Baalak lakhani द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी हवस - 10

(10)

दूसरे दिन सुबह मिताली का एसएमएस की जगह फोन ही आ गया राज की आंख मिताली की आवाज से ही खुली, राज ने बिना देखे ही फोन उठा लिया था,

मिताली : ओह अभी तक बेड मे पड़े हुवे हो कोई जगाने वाला नहीं है तो कुम्भ कर्ण की तरह पड़े हुवे हो उठो काम पर नहीं जाना,
(राज को मिताली की आवाज सुनते ही होठों पे मुस्कान की लहरे दोड़ उठी)

राज : क्या बात है इतनी सुबह सुबह सीधा कोल?

मिताली : सुबह नहीं है उठो देखो दोपहर होने को आई है, रोज का यह ही टाईम है क्या? या उठाने वाली मायके गई है इसलिए.
(मज़ाक करते हुवे ठहाका लागा के हसने लगती है,) ठीक हे फ्री हो तब कॉल करना.

राज : ठीक है रेड्डी होके बाद मे कोल करता हूँ.

राज उठाता है और अपने रोज मरा के काम निपटा के ऑफिस के लिए निकल जाता है, रास्ते मे मिताली को कोल करता है,

राज : हाय, बोलो क्या बोल रही थी

मिताली : ओह हो गई जनाब आपकी सुबह बड़े राज घराने जेसे ठाठ है आपके, हमारे यहा तो सात बजे सुबह होती है, आपके शहर मे भी तो सात बजे सूरज निकल आता है, पर आपके घर पर देर से आता होगा.
( कहेके हसने लगती है)

राज : आज कौनसी बाजू से सूरज निकला है, सुबह सुबह हमारी खिचाई शुरू कर दी एसएमएस की जगह सीधा फोन?

मिताली : क्यू नहीं करना चाहिये?

राज : नहीं मेरे कहने का मतलब आज से पहेले ऎसा कभी नहीं हुवा इसीलिये.

मिताली : वक़्त बदलता रहेता है, और वक़्त का कोई भरोसा नहीं कब कौनसा पड़ाव सामने आ जाए, एक पल मे आसमान मे बदल छाए होते हैं और दूसरे पल खुला आकाश.

राज : लगता है फ्री हो गई हो?

मिताली :हा हो गई हू फ्री बिल्कुल फ्री.
(आपकी दूवा से धीरे से बोलती है, पर राज नहीं सुन पता)

राज :क्या? क्या?

मिताली :कुछ नहीं ऑफिस पहुच गए क्या?

राज : हा बस पहुंच गया

मिताली : ठीक है तो आप अपना काम अच्छे से कीजिए मे फोन रखती हू.

राज : हा ठीक हे.
(कहेके फोन काट देता है, और फैक्ट्री पे काम मे उलझ जाता है, काम मे व्यस्त हो जाता है वक़्त का पता ही रहेता उसे, मिताली का फोन आता है तब उसे मालुम होता है, दो बज चुके हैं)

मिताली : हैलो क्या कर रहे हों? खाना हो गया?

राज : नहीं बाकी है.

मिताली : अभी खाना भी बाकी हे, ऎसा क्या काम करते हो जो खाने का भी वक़्त नहीं मिला, इतना ज्यादा कमाने का क्या फायदा, वक़्त पे खाना खा लेना चाहिए काम तो बाद मे भी होता रहेता हे, जाइए खाना खा लीजिए.

राज : हा ठीक है, आज क्या हुवा हे तुम्हें?

मिताली : कुछ भी तो नहीं, चलो खाना खा लीजिए पहेले, मेरी बातों का जबाव बाद में भी होगा,
(दोनों बात खत्म करते हैं और राज अपने घर की और निकल जाता है, रास्ते मे सोचता रहेता हे ये मिताली को क्या हो गया हे, इतने फोन एसएमएस, पर एक तरीके से राज को अच्छा भी लग रहा था, जेसे वोह खुद भी वहीं चाहता हो,)

थोड़े ही दिनों मे दोनो इतने करीब आ गए थे कि एक दूसरे को बिना बात किए दिन शुरू होता ना रात खत्म होती, कभी फोन पे बात चित, कभी एसएमएस से हर वक़्त बाते होती रहती थी, एक दिन सुबह मे मिताली का फोन आया.

मिताली : हैलो आज आपको कोई भी काम हो निपटा लो, आज दुपहर के बाद आप मुजे मिलने आना कुछ बताना हे आप को.

राज : आज नहीं हो सकता मे आज कहीं टाउन के बाहर जाने वाला हू, कल मिलेंगे.

मिताली : में कुछ सुनना नहीं चाहती आज ही, आपका कोई भी काम हो वोह काल निपटाना, गणेश जी का बड़ा मंदिर हे वहा आप आ जाना, मे ठीक तीन बजे आपका इंतजार करूंगी, अगर आए नहीं तो फिर देख लेना.

राज : अबे अजीब जबरन हे, मेरी बात तो समझो.

मिताली : (गुस्से मे) मे कुछ सुनना नहीं चाहती आप आ रहे हो मतलब आ रहे हो कोई और बहाना नहीं.
(इतना कहेके भड़क के कोल काट देती है)

इधर राज भी सोचता है अजीब हे पहेले कभी ऎसे मिताली ने बात नहीं की मुजसे आखिरकार बात क्या है एसी ठीक है मीटिंग सब कल करूंगा सब को कोल करके कल की मीटिंग का टाइम्स मांगता है आज के लिए सभी से माफी भी मांगता है, राज तीन बजने का अब बेसब्री से इंतजार करता हे कब तीन बजे और कब मिताली को मिलूँ, एक तरफ खुशी भी है और एक तरफ थोड़ा सा दिल मे डर भी, तरह तरह के ख़यालात आते हैं राज को, एक पल जेसे सदियों से कट रहे थे राज के. जेसे वेसे तीन बजने को आए और राज मिताली ने कहे हुवे मंदिर पर मिलने को चला गया, राज पहेले ही पहुच गया था मिताली के पहेले जिस रास्ते से मिताली आती है उसी रास्ते पे नजरे लगाए हुवे, अखिर कर राज का इंतजार खत्म हुवा मिताली आते हुवे नजर आ रही थी, उसे आते देख थोड़ा जान मे जान आई, और धड़कने रेलगाड़ी की भाँति तेज होती जा रही थी जेसे जेसे मिताली नजदीक आ रही थी,
सामने से मिताली भी राज को ही देखे आ रही थी रास्ते मे क्या हो रहा है, वोह भूल चुकी थी, उसको तो एसा ही लगता था कि उन दोनों के अलावा कोई हैं ही नहीं वेसे देखे जा रही थी,

मिताली : मेरे पहेले आ गए? इंतजार तो ज्यादा नहीं करवाया ना?

राज : नहीं थोड़ा सा.

मिताली : माफ करना आपको इंतजार करना पड़ा, वोह सजने संवरने मे थोड़ा वक़्त लग गया, कुछ समज ही नहीं आ रहा था क्या पहनूँ और क्या नहीं, फिर ऎसे ही आ गई

राज : बहोत खूबसूरत लगती हो सादगी मे,
तुम्हें संवरने की जरूरत ही कहा है, उपरवाले ने सजा के ही भेजा हे इस दुनिया मे.

(राज की बाते सुनकर मिताली की चहरे पे लाली छा जाती है, पलके शर्म के मारे जुक जाती है, मंद मंद मुस्काने लगती है)

राज : अच्छा बताओ क्या काम था?

मिताली : वोह बात बाद मे चलो पहेले मेरे साथ मंदिर मे जाके आते हैं,

राज : मंदिर मे?

मिताली : हा चलो ना मेरी इच्छा है आपके साथ जाने की, नहीं आयेंगे क्या.

सोच मे डूब जाता है, मिताली राज का हाथ पकड़ लेती है और कहती है इतना मत सोचों और हाथ खिंच कर राज को मंदिर मे लेके चली जाती है, दोनों अच्छे से पूजा करके बाहर आते हैं, सीडियां उतरते वक़्त दोनों चुप थे, जेसे ही मंदिर के बाहर आते हैं दोनों
मिताली राज को कसकर गले लग जाती है, और जोर से रोने लगती है, राज को कुछ समज नहीं आया क्या हो रहा है, और करू

क्रमशः......

कहानी अभी बाकी है