अधूरी हवस - 11 Baalak lakhani द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी हवस - 11

(11)

मिताली राज को गले लग के रोने लगती है और राज को कुछ भी समज ही नहीं आता क्या हो रहा है, और मिताली क्यू ऎसा कर रही है, राज मिताली को कहता है सब देख रहे हैं यहा, क्या हुवा मुजे बताओ क्यू रो रही हो,? राज की बातों का कुछ असर मिताली पर नहीं पड़ता वोह रोये जा रही थी और और बाहों का घेरा और मजबूत किया जा रही थी, राज ने हार कर मिताली के माथे पे अपना हाथ पसारते हुवे सहला ने लगा, मिताली तो मानो छोटी बच्ची के माफी रो रही थी, उस पल राज का दिल पिघल गया कभी किसीको इतने करीब आने नहीं दिया, और मिताली के ये बर्ताव के वजह से, उसका दिल मोम के माफिक पिगल गया,

राज ने मिताली से पूछा क्या हुवा? मिताली रोते रोते ही बोले जा रही थी, मुजे गाव जाना पड़ेगा आज और मे जाना नहीं चाहती, चले जाने के बाद आपसे मिल ने की सारी उम्मीद टूट जाएगी, तुम्हारे साथ का ये पल को मे एक याद बना के जाना चाहती हूँ, आप मेरी लिए क्या हो ये शायद आप को अंदाजा भी नहीं है,

राज को थोड़ी थोड़ी सी बाते मिताली की समज आ गई, बरसों से दिल मे कई दर्द भरे हुवे थे , वोह सारे दर्द राज के कंधों पर खाली हो रहे थे, पर मंदिर के बाहर आते जाते सब उन दोनों को ही देखे जा रहे थे, जेसे कहे रहे हो कि, बड़े बेशरम लोग हे मंदिर के बाहर ही शुरू हो गए, एसी नज़र से सब घूर रहे थे,
राज ने कहा तुम्हारे आंसू ही गिर रहे हैं या बहती नाक पोंछ रही हो, ये बात सुनकर मिताली एकदम से ठहाका के हसने लगी,
ग़ज़ब का वोह सीन हुवा होगा, आँखों मे आंसू और होठों पर मुस्कान, दोनों हाथो से राज ने मिताली का चेहरा हाथो मे लेते हुवे आंसू पोंछे कहा बहोत बुरी लगती हो रोते हुए, कृपया करके जुल्म मत करो मेरे पे ठहाका के जोर से हसने लगा, राज को हसते मिताली भी हसने लगी, राज मिताली का हाथ पकड़ कर कर की और ले गया, कार मे से पानी की बोतल निकाली और मिताली को दिया, लो पानी पी लो और मुह भी पोंछ लो
बड़ी डरावनी लगे जा रही हो हाँ.. हाँ.. हाँ..
मिताली प्यार से मारने लगती है,

राज : क्या हुवा अब ठीक से बताओ, तुमने कहा पर मे समज ही नहीं पाया इतना तोतला रही थी हाँ.. हाँ.. हाँ..

मिताली : (राज के सामने उसका हाथ पकड़कर) मे आज जा रही हू फिर कब आपसे मुलाकात होगी मुजे नहीं पाता था, मे यहा से जाना नहीं चाहती.

राज : क्यू जाना नहीं चाहती?

मिताली : तुम कुछ समझ ही नहीं रहे हो, तुम बड़े पत्थर दिल ही हो कुछ महसुस ही नहीं होता?
(राज मन ही मन कहता हे समज तो सब रहा हू पर ज्यादा जताना सही नहीं है मेरी भी कुछ सीमा हे उसे पार नहीं करना चाहता )

राज : तो नहीं समज आ रहा तो तुम समजा दो मुजे घुमा घुमा के बाते कम समज आती है मुजे.

मिताली : ठीक हैं तो सुनो सीधी बात, मे तुम्हें चाहने लगी हू, हद से ज्यादा.

राज : ओये तुम नशा तो करके नहीं आयी ना?

मिताली : नहीं बिल्कुल होश मे हू, और हाँ तुम भी मुजे चाहो ये उम्मीद मेने नहीं रखी इसलिए तुम कोई टेन्शन मत लेना कोई जबरन नहीं है आपसे, मेरे दिल मे जो था वोह बात आज कहे नहीं पाती तो आखिरी साँस तक मुजे अफसोस रहेता मोका था मुजे इजहार करने का पर किया नहीं,
(राज कुछ बोलता नहीं, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि केसे रिएक्ट करे)
सामने वाले को जब पता ही ना हो के उसे कोई चाहता है, ऎसे चाहने का कोई मतलब ही नहीं, फिर वोह चाहे ना चाहे परवाह नहीं.
मे आपसे कभी नहीं कहूँगी के बदले मे आप भी मुजे प्यार करो, चलिए आप आज मुजे मेरे मामा के घर तक छोड़ दीजिए उतना तो वक़्त मिलेगा मुजे आपके साथ बिताने का
(दोनों कार मे बेठ जाते हैं, राज कार को मिताली के मामा के घर की और ले लेता है, मिताली बाते करती रहती है, ओर राज सुने जा रहा है, थोड़ी ही देर में घर आ जाता है )

राज : आ गया तुम्हारे मामा का घर.

मिताली : आ गया इतनी जल्दी आ गया?
आप ने कार तेज चलाई लगाता है.

राज : कार तो उसके हिसाब से ही चली हे पर तुम्हें ही वक़्त का पता नहीं चला, वेसे कितने बजे की बस हे तुम्हारी? और कौनसी?

मिताली : 8 :30 pm की हे पर कौनसी वोह नहीं पता, चलो मे अब चलती हू,
(राज को हाथ मिलाती हे, हाथ मिलाते वक़्त राज को ही देखे जा रही हो, राज भी मिताली की आँखों मे देखता है, उसे साफ नज़र आता है, मिताली क्या चाहती है, मिताली की आँखों के कोने मे राज से जुदा का गम और आंसू की बूंद साफ साफ नज़र आती है)

बाद मे राज अपने काम पर चला जाता है और मिताली अपने घर, पर राज अब मिताली का ये बदलाव को देखकर हेरत ही हो गया है, मिताली का यू अचानक का इजहार उसने सपने भी नहीं सोचा था, वेसे तो राज के दिल मे भी दिल के किसी कोने में मिताली की छवि थी ही पर राज ने उस पर पर्दा डाल दिए बरसों हो गए, आज मिताली ने पर्दे हटा दिए और एक मुहोबत का दिया जला दिया, पर उस मुहोबत को कोई नाम या स्वीकार करना राज के लिए बहोत ही मुस्किल था, क्यू की कुछ ही महीनों मे बाप बनने वाला था, और मिताली की भी कुछ महीनों बाद शादी होने वाली थी ये बात अच्छे से पता थी तो उसने चुप रहना ही सही लगा दिल कुछ और चाहता था और दिमाग कुछ और सुनाए जा रहा था, मझधार में फंसे इंसान की तरह, पर घड़ी घड़ी वहीं लम्हा सामने आता था जो मिताली के साथ बिता जेसे बैकग्राउंड मे गाना बजाता हो

( तेरी बाहों का घेरा बड़ा महफूज लगे हैं)

काम तो कर रहा था पर काम मे मन नहीं लगता था उसका उस तरफ मिताली भी कुछ ऎसे ही उलझनों मे थी पर उसे खुशी थी कि उसने के उसके प्यार का इजहार तो किया
फिर भी वोह मन ही मन मे सोचे जा रही थी
राज मुजे बस पर छोड़ने आए, पर पता था वोह नहीं आएगा, जो सपना नहीं देखना चाहिए वहीं सपना देख रही थी, आख़िर उसके बस का वक़्त हो गया और वोह उसके मामा के साथ बस स्टेंड पर निकल जाती है. बस चलने की त्यौरि थी तभी मिताली के फोन पे कोल आई डिस्प्ले पे नाम देखा और खुशी से जूम उठी कॉल रिसीव कर करते हुए

मिताली : हैलो शुक्रिया आपका फोन आया
मे आपके फोन का ही इंतजार कर रही थी.

राज : ओह कोल का ही इंतजार कर रही थी? मुजे लगा...

मिताली : मतलब आप यहा पर आए हैं? कहां पर हो आप? मे नीचे आती हू..

राज : अरे बाबा साँस तो लो तुम्हें बाहर नहीं आना हे, कौनसी बस मे हो?

मिताली बस का नंबर बताती है,

राज : हा कौनसी बाजू में बेठि हो मोहतरमा

(मिताली तो पागल ही हो गई के क्या ये सपना तो नहीं देख रही जिसकी उम्मीद ही नहीं थी)

मिताली : ड्राईवर के ओर चौथी सीट पर
(बोल के खिड़की खोलती बहर झाँकती है, उसकी आँखे राज को ढूंढ रही होती है. )

राज : हाथ उठाते हुए रोड के उस पर देखो.

मिताली : हा देखा आपको मे नीचे आ रही हू.
राज : नहीं कोई जरूरत नहीं वहीं रहो.

(तभी बस मे गाना बजता है" आइए आपका इंतजार था, देर लगी है आने मे तुमको...")

मिताली : एक मिनिट के लिए आने दो ना आपके पास नजदीक से देख जो लू आपको
एक बार और गले लगा लू आपको, ऊपर वाले ने मेरी तम्मना पूरी की तो आप भी मेरी जाते जाते ये तम्मना पूरी कर दीजिए ना.

राज : नहीं इतना काफी हे.

मिताली : आप बड़े पत्थर दिल हो एक बच्ची की ख्वाहिश भी पूरी नहीं करते.

राज : हा पागल बच्ची हो सही कहा तुमने
अच्छे से जाना अपना खयाल रखना रास्ते में.

मिताली : हाए बस इसी बात की तो कमी थी कान को और दिल को खुश कर दिया आपने इतना बोल कर.

राज : हा बाबा हा सम्भाल के रखो अपने दिल को ज्यादा उम्मीदे ज्यादा अच्छी नहीं.

मिताली : उम्मीदों का क्या हे जहा गिले ज़ज्बात मिले पनप जाते हैं.

(बस चल पड़ती है और गाना चेंज होता है
"परदेसियों से ना अंखिया मिलाना" मिताली तब तक देखती रही जब तक बस अगले मोड़ पे राज दिखता बंध नहीं हो जाता है )

बस मे आवाज के वजह से दोनों एसएमएस से ढेरों बाते करते हैं , देर रात तक मिताली के फोन का चार्ज कम हो जाता है और वोह कहती है चलो अब मे फोन बंध करने जा रही हू और सो जाती हू आप भी सो जाइए वर्ना सुबह देर से उठेंगे आप.

राज: ठीक है मुजे भी नींद आ रही है खयाल रखना अपना.

(मिताली मन ही मन मे कहती है अब आप जो हे मेरा खयाल रखने को तो मुजे क्या फिक्र)

मिताली : शुभ रात्री.

राज : शुभ रात्री.

( दोनों एक दूसरे के साथ बिताए वक़्त को याद करके सो जाते हैं )

क्रमशः.......

कभी कभी लगता है कि यह अच्छा मोड़ हे यहा अंत हो जाना चाहिए कहानी का , तभी हमारी कलम कहती है कोई अंत नहीं होता कहानी का आप चाहो उस मोड़ को कहानी की शुरुआत कहे सकते हो और अंत