शॉपिंग की बीमारी r k lal द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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शॉपिंग की बीमारी

शॉपिंग की बीमारी

आर 0 के 0 लाल



"चलो तैयार हो जाओ। तुम्हारा सामान लेकर आते हैं। ध्यान रहे हार बार की तरह फालतू सामान लेने की जरूरत नहीं है। लिस्ट बनाकर मुझे बता दे दो ताकि उतना पैसा ले चलें। कमलेश ने अपनी पत्नी तनु को समझाने की कोशिश की।"

"हां भई! मैंने सारी लिस्ट बना ली है, थोड़े से सामान ही लेना है । तीन चार हजार में काम चल जाएगा।" तनु ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

कमलेश ने बाजार जाने से बचने के लिए कहा कि जब कम सामान लेना है तो चौक जाने की क्या जरूरत है? कितनी भीड़ होती है वहां पर । कार जा नहीं सकती इसलिए दूर पार्किंग करनी पड़ेगी। फिर पैदल ही दुकान - दुकान घूमना पड़ेगा। छोड़ो,

यहीं मोहल्ले की दुकान से सामान ले लूंगा। तुम चाहो तो अभी उसको फोन कर दो, वह सामान पहुंचा देगा। कोई सामान खराब निकला तो भी आसानी से बदल जाएगा।

तनु बोली, - "अब तो मेरा मेक अप भी पूरा हो गया है, और वह साड़ी भी लेनी है जो उस दिन गोकुल प्रसाद की दुकान पर पीको करने के दे लिए आई थी। अभी उसका फोन आया था। इसलिए एक पंथ दो काज हो जाएगा।"

दोनों तैयार होकर चौक के लिए निकल पड़े। सबसे पहले साड़ी कलेक्ट की। उसी दुकान में तनु की नजर एक अच्छे शाल पर पड़ी। उसे पसंद आया तो उसने दुकानदार से देने को कहा। कमलेश को बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि शाल न तो समान की लिस्ट में था, न इसे खरीदने के लिए वह तैयार होकर घर से आया था। मगर मरता क्या न करता। उसे अपने क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करके पांच हजार का शाल लेना ही पड़ा।

अब दोनों आगे बढ़े। कमलेश आगे चल रहा था और मुड़-मुड़ कर देखता जा रहा है कि तनु आ रही कि नहीं। अचानक तनु भीड़ में कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। उसे देखने के लिए कमलेश वापस लौटा तो पाया कि तनु एक दुकान पर रुक गई थी। बोली कुछ पूजन की सामग्री ले रहीं हूं जो घर पर खत्म होने वाली है, दीवाली भी तो आने वाली है। चार नारियल, धूप बत्ती, चंदन पाउडर, घी बत्ती आदि ले लिया है । कमलेश ने पेमेंट कर दिया और फिर आगे बढ़े। तभी तनु को फल का ठेला दिखाई पड़ा। उसने एक - एक किलो अमरूद, सेव, केला, अनार और कई किस्म के फल खरीद लिए। थोड़ी दूर पर सब्जियों की मंडी थी। लाल - लाल टमाटर मोहल्ले के ठेले वालों से दो रुपए प्रति किलो सस्ते मिल रहे थे। मोलभाव करके तनु ने दो रुपए अधिक सस्ते कराकर पूरे दो किलो खरीद लिए। साथ ही गाजर, लौकी, परवल, मिर्च, बैगन और कद्दू भी ले लिए। कहा एक हफ्ते चल जाएगी तुम्हें बाज़ार नहीं जाना पड़ेगा, देखा कितना फायदा हो रहा है। सब सस्ता मिल रहा है।"

उनके दोनों झोले भर गए थे। कमलेश अपने कंधों पर लगभग पंद्रह किलो समान लटकाए पैदल ही चक्कर लगा रहा था। अभी लिस्ट का कोई समान नहीं लिया गया था। तनू ने लिस्ट कमलेश को थमा दिया और बोली इसी के हिसाब से समान खरीदते चलते हैं नहीं तो तुम बेवजह चिल्लाने लगोगे।

सूची से दो चार आइटम खरीदने के बाद जिस दुकान पर जो भी दिखता तनु उसे खरीदने के लिए रुकती। बच्चों के लिए खिलौने, प्लास्टिक के डिब्बे, मिठाई, दालमोट, गजक, और झाड़ू -वाइपर आदि भी खरीद लिया। तभी कमलेश ने बताया कि जितना धन लेकर आया था सारा खत्म हो गया। तनु ने एटीएम से पैसे निकालने कि सलाह दी क्योंकि अभी तो बहुत शॉपिंग बची थी। अभी खरीदा ही क्या है?

अनियोजित ढंग से खरीदारी करने के कारण तनु और कमलेश में कहासुनी होने लगी। दोनों का मूड खराब हो गया इसलिए उन लोगों ने वापस घर जाने का मन बना लिया। पैदल चलने के कारण दोनों पसीने पसीने हो रहे थे। किसी तरह घर पहुंचे।

तनु को दुख था कि पूरा सामान नहीं ले पाई मगर वह बार-बार कह रही थी, " देखा बहुत फायदा हो गया । मेरे पापा भी ऐसे ही करते थे सब सामान इकट्ठा लाकर रख देते थे।" तभी उसकी नजर टमाटर पर पड़ी। क्या जमाना आ गया है, कितनी बेईमानी बढ़ गई है कि टमाटर वाले ने बहुत से टमाटर सड़े रख दिए हैं। सेब को देखकर भी बोली।"

कमलेश ने पूछा, " अब हिसाब लगाओ कि तुम्हें कितना सामान सस्ता पड़ा है। पेट्रोल का खर्च, पार्किंग का खर्च भी जोड़ लेना। जरा सोचो तुमने कितना फालतू सामान खरीद लिया है। तुम्हें तो शॉपिंग करने की बीमारी लग गई है। जहां भी जाती हो कुछ न कुछ खरीदते ही रहती हो। इससे मेहनत और पैसा दोनों बेकार हो रहा है।"

उसी घर में तनु की मदर इन ला बड़े कायदे से सामान खरीदती हैं। वह कहती हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं खरीदें, जिसकी जरूरत आपको तुरंत न हो। कभी तो इसकी जरूरत होगी वाली सोच रखेंगे, तो फालतू की शॉपिंग ज्यादा होगी।

मदनलाल ने शॉपिंग की बीमारी के लक्षण बताएं , " इस बीमारी से पीड़ित लोग तो कुछ न कुछ रोज खरीदते ही रहते हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग केवल शॉपिंग के लिए ही घर से बाहर निकलते हैं।

आजकल ऑनलाइन शॉपिंग पर उत्सुकता बस अथवा आदतन इस बीमारी से पीड़ित लोग अच्छी डील अथवा सेल की तलाश में रहते हैं । उनको शॉपिंग का क्रेज होता है, वे पता लगाते रहते हैं कि कहां सेल लगी है। वे वहां जाने से अपने को रोक नहीं पाते हैं। सेल में सस्ते के चक्कर में फालतू सामान उठा लाते हैं, कभी-कभी तो घटिया ग्रेड का भी सम्मान होता है। वे पछताते भी हैं मगर फिर वही सब करने लग जाते हैं। उन्हें भूख प्यास भी कम लगती है हमेशा शॉपिंग की चिंता रहती है। उन्हें घर में पड़े सामानों की भी याद नहीं रहती और रोज बेवजह अनेकों समान इकट्ठा करते रहते हैं ।


मदर इन लॉ ने बताया कि एक दिन मेरी बेटी सुनीता ने अपनी नौकरानी से सूजी का हलवा बनाने को कहा। नौकरानी ने डिब्बे से सूजी निकाली तो वह पूरी सड़ी हुई थी। सुनीता तो नौकरानी पर ही बिगड़ पड़ी थी परंतु नौकरानी की क्या गलती है? मेरी बेटी ही ढेर सारा सामान लाकर डिब्बे भर देती हैं। सब पड़े- पड़े खराब तो हो ही जाएगा। नौकरानी ने यह भी बताया था कि चावल में भी काफी कीड़े लग गए हैं। इसलिए कहती हूं उतना ही सामान खरीदो जितनी जरूरत हो।"

उन्होंने तनु को शॉपिंग कि बीमारी पर नियंत्रण रखने का तरीका भी समझाया, " थोड़ा प्लान करके चलने से शॉपिंग का मजा और भी बढ़ जाएगा। आपके पास क्रेडिट कार्ड होने का यह मतलब नहीं है कि बिना बजट कुछ भी खरीदते रहा जाए। यह न भूलो कि ब्याज सहित उसका भुगतान तुम्हें ही करना पड़ता है।

उद्देश्यहीन ऑन लाइन शॉपिंग से लक्ष्यहीन खर्च होता है। किसी स्लोगन, कूपन, प्रलोभन अथवा कैशबैक से जितना हो सके दूर ही रहना होगा। बेहतर है कि प्रत्येक आइटम को ऑनलाइन खोजने के लिए एक सूची बनाकर उसका उपयोग करो। शो रूम से केवल वही आइटम लो जो तुम्हारे निकट भविष्य के रिक्वायरमेंट में हो। याद रखें कि खुदरा विक्रेता बहुत बड़े सेड्यूसर होते हैं। उनके यहां निर्मित वातावरण, लाइटिंग आदि की चमक में जो आप नहीं खरीदना चाहते वह भी आपको बहुत अच्छी लगती हैं। इसलिए ऐसी अनावश्यक वस्तु की लागत देखें तो गणना कतो कि उतना धन अर्जित करने में तुमने कितना समय लगाया है । बैंक में एक अलग अकाउंट खोल कर उसका इस्तेमाल शॉपिंग वॉलेट की तरह किया जा सकता है। इससे भी अवांछनीय शॉपिंग पर लगाम लगेगी।

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