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अतृप्त रिश्ते

अतृप्त रिश्ते

आर 0 के0 लाल


अरे रुकना जरा, पहचाना तुमने। प्रभात ने उसे रोकते हुए कहा। शोभा ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, - "व्हाट ए प्लेज़ेंट सरप्राइज, तुम्हें देखकर। में कैसे नहीं पहचानूगी? यह तो ईश्वर की कृपा है कि काया में न रहने के बावजूद भी हम किसी की आत्मा को पहचान लेते हैं। तुम तो जीवन भर मेरे खयालों में ही बसे रहते थे। हमें दुख है हम एक दूसरे के नहीं हो पाए। मैं बहुत बीमार थी और अभी परसों मेरा देहावसान हुआ है। फिर वह बोली कि चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं। प्रभात ने सहमति में अपना सिर हिलाते हुए कहा यह तो कमाल ही हो गया। मैं भी एक लंबी बीमारी के बाद परसों ही अपना देह छोड़कर यहां पहुंचा हूं।

शोभा ने पूछा तुमने यहां तक की यात्रा कैसे की? मुझे तो बहुत कष्ट हुआ था शरीर छोड़ने में। तुम्हारी मोहब्बत न पाने का विशेष कष्ट था। तुम्हारे साथ क्या हुआ?

प्रभात ने बताया मैं तो जिंदगी भर हमेशा डरता रहता था कि कहीं किसी बीमारी या ऐक्सिडेंट में मर न जाऊं। इसलिए बहुत एहतियात बरतता था। अंतिम बीमारी के समय मुझे लग रहा था कि मैं अब नहीं बचूंगा। इसलिए कुछ दिनों में ही मेरा आधा शरीर सूख गया था। मगर एक न एक दिन तो सभी को दुनिया छोड़ कर के यहां आना पड़ता है। मेरे साथ भी वही हुआ। जब समय आया तो अचानक सब कुछ घटित हो गया। इस विषय में मैंने कुछ विशेषज्ञों की लेख पढ़े थे। मेरे साथ भी कुछ वैसा ही हुआ। दुनिया छोड़ने की घटना वैसी हुई जैसे कोई ट्यूबलाइट बुझा दे। बटन दबते ही उसमें प्रवाहित बिजली गायब हो जाती है, प्रकाश अंधेरे में परिवर्तित होने लगता है मगर ट्यूब कुछ क्षणों तक तक प्रकाशित ही रहती है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर कुछ देर तक गरम बना रहा। डॉक्टर ने तो वेंटीलेटर पर ही रख दिया था, पैसा बनाने के चक्कर में बेवजह शरीर में स्पंदन कर रहे थे पर मैं तो निकाल लिया था।

शोभा ने बताया कि मुझे तो लगा था जैसे कोई मुझे खींच रहा है और मैं सुरंग में तेजी से जा रही हूं जिसके अंत में एक प्रकाश पुंज दिखाई पड़ रहा था। एक तेज विलक्षण आवाज भी सुनाई दे रही थी।

प्रभात ने पूछा लेकिन तुम तो कह रही थी कि तुम्हें बहुत कष्ट हो रहा था कैसा अनुभव था?

शोभा ने बताया मैंने भी कहीं पढ़ा था कि दुर्घटनाओं की स्थिति को छोड़कर ज्यादातर लोगों को कुछ पहले ही पता चल जाता है कि अब अंत समय आ गया है। मेरे बाबा ने तो दो दिन पहले ही बता दिया था कि बस अब चला- चली की बेला है। उन्होंने सबको दिशा निर्देश भी दिए थे कि उनके बाद किसको क्या करना है। मुझे भी पता चला था मगर मैं बीमारी के कारण बोलने में असमर्थ थी और बोलने केलिए छटपटाती रही।

शोभा ने यह भी बताया कि किसी ने सही लिखा था कि दुनिया से विदाई की अंतिम क्षणों में जन्म से लेकर अंत तक हुई समस्त घटनाओं का एक वीडियो मन मस्तिष्क में चलता है जिसमें उस व्यक्ति द्वारा किये गये अच्छे और बुरे कार्य, पूरे एवम् अधूरे कार्य आदि उभर कर दिखाई पड़ते हैं। तभी तो उसके चेहरे पर कभी शांति तो कभी तनाव दिखाई पड़ता है। अधूरी तमन्नाएं, लेन -देन आदि भी याद आती हैं। मन परेशान और व्यथित हो उठता है। गलत कार्यों के लिए मन पछताता है। इसी व्याकुलता में प्राण छोड़ने में बड़ा कष्ट होता है। मेरे साथ भी ऐसा हुआ।

प्रभात ने कहा,-"यहां झूठ तो बोला नहीं जा सकता। अपना कष्ट भी तुम्हें बताता हूं। मेरा दोस्त नरेंद्र मोहन मेरी बड़ी मदद करता था जब भी जरूरत पड़ती थी मैं उससे पैसे उधार लेता था । एक बार मकान खरीदने के लिए तीन लाख रुपए लिए थे। केवल आधे पैसे चुकाए थे तभी उसकी मृत्यु हो गई। मगर मेरी नियत खराब हो गई थी और मैंने उसके घर वालों को बाकी पैसे नहीं दिए । किसी को पता भी नहीं चला। अंतिम क्षणों में मुझे इस बात को लेकर भारी कष्ट हुआ था।"

शुभा ने बात आगे बढ़ाई प्रभात तुम याद करो हम लोग पहली बार अजीत की शादी में मिले थे और लगा था कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है तुम्हारी आंखों में भी मेरे लिए निश्छल प्यार चमक रहा था। हम लोग शादी का फंक्शन छोड़कर एकांत में छत पर चले गए थे। घंटों हाथों में हाथ लिए बैठे थे। तुम कहते यह तो पहली नजर का प्यार है जो बस एक बार देखते ही हो जाता है।

उसके बाद कई दफे हम मिले। तुम तो हमेशा हद पार करने के लिए मचलते रहते थे। मैं ही तुम्हें रोक देती थी कि पहले शादी हो। मगर हमारे घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं हुए। मेरी शादी दूसरी जगह हो गई। मेरे मन में जो प्यास जगी थी वह जीवन भर नहीं बुझी। हालांकि मैं अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई थी फिर भी अक्सर मुझे एहसास होता था कि हम और तुम एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले मोहब्बत के रस में डूबे हुए हैं। उस उम्र में दुनिया की सच्चाइयाँ नजर नहीं आती मुझे भी नहीं समझ आई।

एक बार जब मैं चंडीगढ़ गई, तुम भी वहां आए थे। तुम्हें देखा तो दुनिया की हर चीज खूबसूरत नजर आने लगी पर इसका इजहार ही न कर पाएँ थे क्योंकि तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारे साथ थी और मेरे पति भी साथ थे। मैं अपने प्यार के बारे में किसी से बता तो नहीं सकती थी। कितनी बेबसी से तुम्हें निहार रही थी। तुम चले गए मगर जाते-जाते मेरे दिल पर एक दर्द दे गए जो अभी तक है। यह जो आरजू हमारे दिलों में रह गई थी शायद उसी का नतीजा है कि दुनिया छोड़ते ही अकस्मात हमारी आत्माएं एक दूसरे से टकरा गई हैं।

प्रभात ने कहा कि शायद हमें ईश्वर ने मोहलत दी है कि हम अपने मन की चाहत को पूरा कर लें वरना थोड़ी देर में हम लोग अपनी पुरानी सभी बातों को भूल जाएंगे और फिर हमें उस दुनिया लोगों से कोई नाता नहीं रह जाएगा। मुझे तो मेरी अधूरी मोहब्बत को पूरा करने की तमन्ना थी और किस्मत से तुम मिल गई हो भले ही हम शरीर रहित हैं।

शोभा ने जवाब दिया, -" शरीर छोड़ने के बाद से तो मैं पूर्णत: विरक्त होती जा रही हूं। वैसे भी मेरे पति भी मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं उनके साथ बेवफाई तो कर नहीं सकती। मुझे याद आ रहा है कि करवा चौथ पर मैं ऐसे तैयार होती थी और उस मौके पर एक बार फिर अपने पति का स्नेह और प्रेम जगाती थी कि वे एक फिर मुझ पर फिदा हो जाते थे और मुझे प्यार करने को मजबूर हो जाते थे।"

शोभा ने पूछा यह दाग तुम्हारे ऊपर कैसा है? प्रभात ने बताया कि एक बार मुंबई के एक स्कूल में पढ़ता था तो मेरी एक सहपाठी से लड़ाई हो गई।

मुझे मेरे इश्क ने कातिल बना दिया । वास्तव में तुम्हारी जुदाई से परेशान मैं मुंबई चला गया वहां एक स्टेज शो में काम करने वाली लड़की से इश्क हो गया और उस लड़की से बेपनाह मोहब्बत करने लगा। उसका एक प्रेमी पहले से ही था जो हमारी राह का रोड़ा बना था। उस लड़की की मदद से एक दिन मैंने उसे एक पहाड़ी से धकेल दिया था जिससे वह मर गया था। डर कर मैं वहां से भाग गया था। किसी को कुछ पता नहीं चला था। मैं तो उस लड़की के साथ जिंदगी बिताना चाहता था, लेकिन मेरी जिंदगी में कुछ और हो गया। मुझे बहुत दुख हुआ। मैं पास के मंदिर में जाकर अपनी गलती पर रोता और भगवान से माफी मांगता। कुछ दिनों मैं मुझे लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है तो मेरे मन से अपराध बोध निकल गया मगर जब अंतिम घड़ी आई तो वह घटना भी आंखों के सामने स्पष्ट प्रदर्शित हुई। मुझे लगा कि चाहे जितना पश्चाताप किया जाए, की गईं गलतियां खाते में दर्ज हो ही जाती हैं जिसका फल अवश्य मिलता है। यह दाग मेरी मोहब्ब्त और उसी कुकृत्य को संबोधित करता है। न जाने कौन सी सजा इसके लिए मिलेगी।

शोभा बोली, -"अब मुझे महसूस हो रहा है कि जो कुछ मेरे साथ हुआ वह अच्छा ही हुआ लेकिन

यहां से बहुत सी आत्माएं तेजी से आगे निकलती जा रही हैं जबकि हम लोग रुके हैं।"

प्रभात ने बताया कि हमारे और तुम्हारे रिश्ते न हो पाने के गम में हम दोनों एक दूसरे को मोहब्बत की नजर से अब भी आकर्षित कर रहे हैं इसलिए हमारी चाल में ठहराव आ गया है। यहां पर सभी आत्माओं का शुद्धीकरण निर्विकार रूप से हो जाता है और दुनिया की सभी यादें गायब हो जाती हैं।

इतना ही नहीं हम जीवन भर अपनी आत्मा को अपने कर्मों से ऊर्जावान बनाते रहते हैं। गलत कार्य ऊर्जा का ह्रास करते हैं। हमें सांसारिक बंधनों से तो छुटकारा मिल गया पर जाने अनजाने अपने शारीरिक सुख के लिए शायद हम लोगों ने अपने मानसिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों को कलुषित किया है इसलिए हममें कम ही ऊर्जा बची है और हमारी गति मंद हो गई है। अगर हम लोग कुछ पल के लिए प्यार मोहब्बत कर सकें तो हो सकता है कि हमें बिना तड़पे मुक्ति मिल जाए।"

शोभा ने बताया, -" जीवन की अनेक पलों की यादें अंतिम क्षणों में हमारे सामने आईं जिससे यह लगने लगा कि मुझे तन मन से उसी से मोहब्बत करनी चाहिए जिसके साथ मैंने साथ रहने की कसमें खाई हैं। मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है तुम्हारी असलियत भी पता चल गई है। हमें अब कोई इच्छा नहीं है कि हम किसी दूसरे के साथ मोहब्बत करें । हम लोग का साथ यही तक था । मुझे लग रहा है जैसे सब कुछ भूलता जा रहा है। फिर भी तुमसे अपनी पुरानी मोहब्बत का वास्ता है कि तुम भी सभी माया मोह से मुक्त हो जाओ।" इतना कहकर शोभा आगे निकल गई मगर प्रभात न जाने किस मोहब्ब्त की आशा में वहीं पड़ा रहा।




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