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प्राप्ति

प्राप्ति

‘‘गुड नाईट‘‘ मिसेज राव । ‘‘शायद घर जाने से पहले अन्तिम बार वह राउंड मे आये थे। पीठ कि तरफ तकिया लगाये वह पूरी तरह किताब मे डूबी थी । वह कमरे मे दखिल हुए है, उसने देख लिया है कि उनके होठों पर वही सौम्य मुस्कुराहट खिली है । जवाब मे उसे भी मुस्करा देना चाहिए। .पर वह अब भी किताब मे है।

‘‘इस तरह से ज्यादा देर तक मत पढा कीजिए... आप को स्पाॅन्डलाइटिस भी है न। ‘‘

‘‘क्या करू नींद नही आती...‘‘कहते हए झुंझलाहट है। उन पर नहीं...अपनी नींद पर । चुपके से भीतर कुछ बजा भी है...उन्हे इस बिमारी की याद भी है।

‘‘मैने नींद की दवा भी मंागी थी‘‘

‘‘उसकी केाई जरूरत नहीं...आप की दबाईयों में हल्की डोज है...आखे बन्द कर सोने की कोशिश कीजिए। उनकी आवाज बैलेंस्ड ह, बिल्कुल पेशेवर कुछ भी अतिरिक्त नही ।

वह हर बात मे अपने लिए कुछ अतिक्ति क्यों ढूढ़ने लगती है?

‘‘डँा साहब आप के रिलेटिव हंै? नर्स सफेद रजनीगन्धा के स्टिक्स पानी भरे ग्लास मे लगाते हुए पूछा था।

उसे कुछ देर पहले ही होश आया था। कमजोरी से भरी निदांसी आंखो को फूल की उपस्थिती भली लगी थी, हैैैैरत के बावजूद। हैरत मंे नर्स भी रही होगी तभी तो उसने पूछा था।

ये फूल उसे कितने पसंन्द थे ....राोमांस जगाने वाले।

बर्षो पहले जब उसने ’यही सच ह’ पढ़ी थी तो उसेे इन फूलांे के बारे मे पता भी नहीं था ...उसकी र्बिगया मे नही थे यह फूल।

वह माली के पीछे पड़ गई थी। पापा से कहलवाया था। साहब के कहने का असर ज्यादा पडता। फिर माली लाया था कंद सरीखा कुछ ..यही है। दिनो इंतजार किया था उसने रोपे हुए के पनपने का । फिर तो कई कई क्यारियँा भर गई थीं उन सफेद फूलो से। यह बहुत बहुत पहले की बाते हैं। सफेद रंग उसका पसंदीदा रंग है। सफेद आउटफिट्स.सफेद चादरे ‘सफेद दीवारंे‘ सफेद फूल और सफेद बादल।

उस दिन अंजुरी भर हरसिंगांर लिए सुबह सुबह कमरे मे दाखिल हुुुआ थे। ‘‘ वो आश्चर्य चकित थी। ‘‘

’’यहंीं लगे हंै। जमीन पर चादर सी बिछ जाती है इनकी...सोचा कुछ आप के लिय... आपको अच्छे लगेंगे। ‘‘ चेहरे पर झेेंपी सकुचाहट थी। उसने अपने हाथोें की अंजुरी बना कर उनके अंजुरी के फूल संभाल लिए। उन्होने बड़ी तत्परता से एक काँच की बाउल मे पानी डाला और उसने अपनी अंजुरी उस बाउल मे पलट दी । पूरा दिन उसका कमरा महमहाता रहा था.....और पूरा दिन वह सोचती रही थी .....आखिर फूलो के प्रति उसकी भावनाए उन तक कैसे पहुंच गई थीं।

‘‘इन्दु आया था?’’ उसके पति को जान पहचान के कुछ बड़ी उम्र के लोग उसी नाम से पुकारते है। डाँ भी पुराने पारिवारिेक पारिचित हैं। ‘‘

शाम में आए थ...बच्चो के साथ। ‘‘

बच्चों की याद ने उसकी माथे पर बल ला दिए थे। उन्होने महसूस कर लिया था‘ ‘‘डोंट वरी‘‘.....वह बहुत अच्छे से मैनेज कर लेगा’। कितना काम काजी और कितना जिम्मेदार। उसे पता है उसके हाॅस्पिटल मे होने का असर घर की व्यवस्था पर नही पडां होगा

डाँ पाठक से पति के परिवार का पुराना परिचय हैःे कुछ एक समारोहो मे मिली थी उनसे‘

मरीज बन कर सबसे पहले घुटनो के दर्द के सांथ गई थी। घुटने उठते बैठते आवाज करने लगे थे........और देर तक बैठ कर उठने पर वह पीडां से कराह उठती थी। डाँ हंसे थे‘‘ये बुढ़ापे का रोग अभी से लगा लिया आपने? पति भी उसकी हंसी मे शमिल हो गये।

दूसरी बार गई थी गर्दन मे दर्द, चक्कर और उल्टी कि शिकायत के साथ। बेहद घबराई हुई। उसे लग रहा था उसके सिर मे कोई गंभीर रोग हो गया है और जल्द ही उसे कुछ हो जायेगा। पर, निकला स्पाॅन्डलाइटिस! डाॅक्टर मुस्कुराये थे आपको कोई गंभीर बीमारी नहीं है... पर, ये बीमारियां सारी उम्र कष्ट देने वाली हैं।

’’ पहले भी कई बार अकेले यात्रा कर चुकी है। मायके जाना तो अकेले या फिर बच्चों के साथ ही होता था। फिर, कोई मुश्किल भी तो नहीं थी। रात में बैठो सुबह पहुंच जाओ। थोड़ी परेशानी थी तो तबियत को लेकर। सुबह से ही बदन में दर्द और हरारत थी। उसका पूरा मूड टेªेन में बैठते ही कंबल ओढ़कर सो जाने का था। तभी पतिदेव हंसते हुये आ गये .। ’’देखो, डाॅक्टर साहब भी जा रहे हैं... ये सीट है इनकी। ’’ सामने की तरफ इशारा करते हुये कहा गया। हाथ से ऊपर की बर्थ पर टेक लगाये खड़े उनपर... उसकी नजर पड़ गयी थी। संभलकर बैठते हुये उनका अभिवादन किया। वो दोनों बातों में मशगूल।

‘‘इन्दु व्हिसिल हो गई ह...’’

‘‘ हाँ...हाँ...’’ कहते हुये पतिदेव उससे मुखातिब हुये। पहुंचते ही फोन कर देना... टिकट ऊपर ही है न...। ’’ उसने सिर हिलाकर हामी भरी थी। वह नीचे उतरने चला गया डाॅक्टर भी साथ गये। पतिदेव उतर कर प्लेटफार्म पर खड़े थे। टेªन रेगने लगी थी। उसने हाथ हिलाया था। कुछ ही देर में डाॅक्टर पाठक वापस आकर सामने की सीट पर बैठ गये थे।

वह मैंगजीन पलट रही थी। उस पर लिखे अक्षरांे पर उसकी आंखें टिक नहीं पा रही थी। आंखों में जलन शुरू हो गयी थी। दोनों तरफ की मिडिल बर्थ अभी उठी नहीं थी। उसकी तरफ का मुसाफिर शायद आया नहीं था। सामने बैठे दोनों को कोई जल्दी नहीं थी। डाॅक्टर पाठक ने तो अपने पैर बकायदा फैलाकर उसकी सीट से टिका लिये थे। उसे उठकर अपनी तरफ की मिडिल बर्थ उठाने में अजब सा संकोच हो रहा था। सामने सीट पर बैठा दूसरा आदमी अपना खाने का सामान फैलाने लगा था। पूड़ी, अचार और सब्जी की मिली जुली गंध उसके नथुनों में घुसने लगी थी। कुछ लोगों को टेªेन में खाना कितना पंसद होता है। उसका मुंह तीता हो रहा है ... इस मिली जुली गंध से उसे उबकाई आने को हो गयी। ए.सी. में रिजवेंशन भारी पड़ रहा था। ताजा हवा की कमी महसूस होने लगी थी।

‘‘आजकल आप टहलने नहीं जातीं?’’ उसी से पूछा जा रहा है यानि, उसे नोटिस किया जाता रहा है। वो तो यही सोचती रही थी कि शायद वो उसे ठीक से पहचानते भी न होंगे।

‘‘बच्चों के स्कूल खुलने से मैनेज नहीं हो पाता ......’’ उसके कहने पर उधर से हंसा गया है हमारे यहां भी श्रीमती जी का यही बहाना है। ’’ अपनी बात के समर्थन के लिये साथ वाले मुसाफिर को देखा गया है। वह हल्के से मुस्कुरा दी है।

गर्मियों में शुरू किया था उसने वाॅॅक पर जाना। आस-पास मुहल्ले के बहुत सारे लोग इंजीनियंिरग कालेज के ग्राउंड में जाते थे। वह भाभी के साथ जाती थी। किसी तरह तैयार किया था उसन। इधर से वह पति के साथ जाती उधर से वह भैया के साथ आतीं। पहले ही मोड़ से मर्दो के कदम तेज-तेज उठने लगते। चाहकर भी वो लोग उनकी बराबरी नहीं कर पाती थी, सो आराम से बातें करते हुये चलतीं। अक्सर हंसी भी उड़ाई जाती - तुम लोग टहलने आती हो या पंचउरा करने ?’’ कभी बच्चे भी साथ होते अपनी साइकिले लेकर। पूरी गर्मी यही चला। स्कूल खुलते ही भाभी ढ़ीली पड़ गयीं और वह जारी नहीं रख पाई।

उनके साथ बैठा आदमी खा-पीकर अब उनके साथ बातें कर रहा था। वो आपस में परीचित थे। यों डाॅॅक्टरों को तो ज्यादातर लोग जानते ही हैं। दोनों को कोई जल्दी नहीं थी सोने की। उससे बैठा नहीं जा रहा। कैसे कहे पैर हटाने को। बदन का दर्द और शरीर का ताप बढ़ने लगा है। उसे घबराहट हो रही है, ठंड भी लग रही है। मन हो रहा है कंबल निकालकर ओढ़ने का। उसने सिर खिड़की के बंद शीशे पर टिका दिया है। शायद उसके मुंह से कराहट निकल रही थी। उसकी तरफ की गिडिल बर्थ वाला यात्री आ गया है। डाॅक्टर ने पैर समेट लिये हैं। उसे भी उठ जाना चाहिये।

‘‘मैडम उठिये। ’’ वह सारी शक्ति के साथ खड़े होने की कोशिश में लड़खड़ा गयी है पर, थाम ली गयी है।

‘‘अरे, क्या हुआ..? एक साथ कई चैंकती अस्पष्ट आवाजों में सबसे स्पष्ट और सबसे पास उन्हीं की आवाज।

‘‘ आपको तो बहुत तेज बुखार है। ’’

आवाज़ में चितां घुुली हुई। उसका गला सूख रहा है... बदन में कंपकंपी सवार है। कुछ बातों की आवाजें आ रही हंै। शायद उसकी तरफ के मिडिल बर्थ के यात्री को अपनी बर्थ लेने की पेशकश की जा रही है।

आवाजें आनी बंद हो गयी हैं। वह आंखे खोल उठने की कोशिश करती हैं, अपनी पानी की बोतल की ओर हाथ बढ़ाती हुई सामने की बर्थ वाले सहयात्री महोदय बड़ी तत्परता से उठकर उसकी बोतल का ढक्कन खोल कर उसे थमाते हंै। बोतल से घूंट भरते हुये वह उन्हें आते देखती है... उन्होंने उसके हाथ से पानी की बोतल ले कर एक पीली सी गोली थमा दी है। कई बार पानी गटकने के बाद वह उस गोली को गले के भीतर सरका पाई। उसके कंपकताते शरीर पर उन्होंने अपने हिस्से के भी कंबल चादर ओढ़ा दिये थे। उनके सारे क्रिया कलापों में पेशेगत तत्परता के साथ एक आत्मीय चिंता भी शामिल थी। क्यों थी ये चिंता ? उसके लिये तो नहीं ही थी ..... उसकी उस पहचान के लिये थी, जिसके तहत वह उनके एक परीचित व्यक्ति की पत्नी थी। शायद वह सहयात्री भी उसके पति जानता हो। . यूं भी इस छोटे से शहर में ज्यादातर लोग एक दूसरे को जानते ही है। फिर, अपने पति से इतर इस शहर में उसकी अपनी कोई पहचान है ही कहां ?

उसे बेचैनी और गर्मी सी लगी है। शायद बुखार उतर चुका है। अपने ऊपर पड़े कंबल बहुत भारी लगने लगे, सिकुड़े शरीर को फैलाना चाहा तो नजर पैताने अपने ही घुटनों पर झुके उंघते उनपर गयी। वह हड़बड़ा कर पूरी उठ बैठी। उनकी उंघ भी टूट गयी थी ‘आप ठीक तो हैं ?’’ वह चिन्तातुर उसकी ओर मुड़े।

‘‘ हाँ...। ’’ अपनी स्थिति, उनकी परेशानी सब याद कर, वह शर्म से गड़ी जा रही थी। उन्होंने सहज ही उसका हाथ, माथा छूकर देखा -‘‘ हूँ.... बुखार तो उतर गया है... रात तो आपने डरा ही दिया था। ’’ उनकी छुअन की सिहरन उसने महसूस की थी .... पता नहीं, उसकी सिहरन उन तक पहुंची थी या नहीं।

‘‘मेरी वजह से आप परेशान हुये ...’’ कहते हुये उसका कृतज्ञ स्वर भर्रा गया था। आंखे पनिया आई थीं। उसकी आंखों की गीली कोर उन्होंने देख ली थी। थोड़ा परेशान हो गये थे। हल्के से उसकी हथेली दबा मानों उसे आश्वस्ति पहुंचाना चाहते हो... वो बिल्कुल नहीं परेशान हुये।

अगले कुछ पलों में ये हुआ कि, वह उठकर खड़ी हुई अपनी कांपती टांगों पर। उन्होंने बर्थ उठाकर अपने सोने की व्यवस्था की। हल्की मुस्कान के... साथ गुडनाइट कहा और अपनी बर्थ पर जाकर लेट गये। नीचे झांककर इतना ही कहा -‘‘ कोई बात होगी तो जगा लीजियेगा’’ कुछ देर में ही उनके हल्के खर्राटे टेªन के बांकी मुसाफिरों के धीमे, तेज खर्राटों के साथ जुगलंबदी करने लगे।

उसे देर तक नींद नहीं आयी... वह देर तक सोचती रही.. उनके बारे में... अपने बारे में... औरों के बारे में।

स्टेशन पर विदा लेते उन्होंने इतना भर कहा था - मलेरिया चेक करा लीजियेगा। उसे मलेरिया ही था। हफ्तों वह बीमार रही।

अपने शहर लौटने के बाद अपने हर दिन के उन्हीं तयशुदा कार्यो के बीच उसने अक्सर कई-कई बार उन्हें याद किया। चाय खौलाते, बच्चों का टिफिन बनाते, गमलों में पानी डालत.... वह अचानक से मुस्कुरा देती है - बेवजह। शायद ऐसे ही बेध्यानी में फिसलकर गिर गई थी। बायें पैर के टखने की हड्डी चटख गई यूं जाना हुआ उनके पास।

‘‘हमेशा बीमार होकर ही आती है आप मेरे पास ......’’

‘‘माने? और कैसे आया जा सकता है उनके पास? यूं बेवजह यहां वहां जाने की न उसकी आदत है न ही उम्र।

डाॅक्टर पाठक की क्लीनिक में आॅपरेशन की सुविधा नहीं है। इसके लिये बड़े अस्पताल या डाॅ. गुप्ता के नर्सिंग होम दो जगह उनके मरीज जाते हैं। उसका आॅपरेशन डाॅ. गुप्ता के नर्सिंग होम में किया गया। पैर में प्लास्टर चढ़ा है, एक दो दिन में वह घर जा सकती है। फिर प्लास्टर कटवाने आना पड़ेगा। बिस्तर पर एक ही पोजिशन में लेटे -लेटे वह उकता गई है। पति और बच्चे शाम को आते हैं, मिलने। उसके पास रात में रिश्ते की ननद रूकती हंै। कुछ ही दिनों में पति और बच्चे मुरझा से गये हैं। स्वयं उसे भारी परेशानी है। बेड पे सबकुछ करना कितना दुखदायी है। दिन में कई - कई बार नहाना उसका शौक और सनक है। यहां सिर्फ स्पंजिंग हो पा रही है। शरीर में हरदम खुजली मची रहती है। इन सब के बीच राहत है तो हरसिंगार और रजनीगंधा।

‘‘आप पर बिंदी अच्छी लगती है .... लगाया करें। ’’ उसने चांैक कर माथा छुआ खाली था...हमेशा की तरह। वह बिंदी नहीं लगाती, उसे इरिटेशन होती है। कभी कभार बाहर जाने पर ही वह बिंदी लगाती है। पति अक्सर टोकते हैं -‘‘माथा सूना है... अम्मां देखेंगी तो बड़बड़ायेंगी। ’’ वह ऐसे ही हर बात में टोकते हैं। अपने या उसके लिये नहीं, कभी नहीं कहा ये तुमपर अच्छा लग रहा हैं या, तुम... ऐसे मुझे अच्छी लगती हो। उसकी बातों में वह और मैं सदा अनुपस्थित रहते हैं, बाकी सारी दुनिया उपस्थित होती है, अपनी ढेर-ढेर आंखों के साथ। लोग क्या कहेंगे?’’ शिफाॅन मत पहनो .... सब दिखता है इतना डार्क कलर! च्च च... सब क्या सोचंेंगे ?’’ वह चिढ़ जाती है और अक्सर अपेक्षित का उल्टा कर गुजरती है।

आज प्लास्टर कटेगा। पति के साथ आयी है वह। मन में बहुत धुकपुकी है - पैर ठीक हो सही । डाॅक्टर ने बड़े एहतियात से कैचीं प्लांस्टर से छुआई है। वह भीतर ही भीतर असहज है। वह रूककर उसका चेहरा देखते हैं, मानों आश्वस्त होना चाहते हों उसे कोई तकलीफ तो नहीं हो रही।

‘‘ओह!’’ अपना पैर देखकर वह शाॅक्ड है.। कैसा सूखा हुआ... बेजान। उन्होंने हल्के से पैर पर हाथ फिराया है।

‘‘ठीक हो जायेगा .. कुछ दिन में...ं’’

‘‘चलिय... अब पैर धीरे से नीचे रखिये’’ उन्होंने उसका हाथ पकड़ कर कहा है। कंपाउडर पास आ गया है... पतिदेव भी पर्दा उठाकर अंदर आ गये हैं। आगे बढ़ते हैं सहारे के लिये .. पर उन्होंने उन्हें अपने एक हाथ के इशारे से रोक दिया है। दूसरे हाथ से वह अब भी उसका हाथ पकड़े हैं। चेहरे पर कौतुहल है अपने काम का नतीजा जानने की। उसे पैर नीचे रखने में डर लगा रहा है।

‘‘ खड़े होइये .... आराम से ...’’

उन्होंने उसका हाथ छोड़ दिया है। वो पास के टेबल को पकड़ धीरे-धीरे खड़ी हो रही है। ‘‘ चलिये। ’’ उनका आदेशात्मक स्वर। चेहरे पर खुशी झलक रही है। पति का चेहरा भी तनावमुक्त नजर आ रहा है।

‘‘अभी पूरा जोर नहीं डालना ... छड़ी या बैसाखी जो सुविधाजनक लगे, उसके सहारे मूव करना ...’’

‘‘हां भई ... ये नहीं कि घर जाते ही कत्थक शुरू हो जाये। ’’ पति ने डाॅक्टर की बात पूरी की। दो बार वह और आई चेकअप के लिये। आज उसे लग रहा है अन्तिम बार है य,े वह पूरी तरह ठीक है, उसे कोई परेशानी नहीं है।

‘‘अब तो आपका पैर बिल्कुल ठीक है... एक्सारसाइज करती हैं न ?

‘‘जी...। ’’ उसने हां में सिर हिला दिया है ’’

‘‘ वेरी गुड!’’ उन्होंने उसकी पर्ची पर कुछ लिखा, उसे दिया। वह अभिवादन कर उठ गई। वह भी उठे ...... शायद उसे बाहर तक छोड़ने।

‘‘ वाॅक करना फिर से शुरू कीजिये .....’’ डाॅक्टर ने अचानक कहा है ‘‘यूं फील बेटर। ’’ उसने सर उठाकर उन्हें देखा और बिना कुछ कहे गाड़ी में बैठ गई है। ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा ली है। पता नहीं क्यों उसे लगा डाॅक्टर तब तक वहीं खड़े थे जब तक वह दिखती रही थी। बहरहाल उसने तय कर लिया है वह जल्द ही वाॅक पे जाना शुरू करेंगी।

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