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सिंगल पेरेंटिंग

सिंगल पेरेंटिंग

आर 0 के0 लाल



"अभी तो तुम मायके गई थी, फिर जाने की तैयारी कर ली हो। आखिर तुम्हारी हमारे प्रति कोई जिम्मेदारी है या नहीं। तुम्हारी इस घर में शादी हुई है। जब देखो तब मायके के चक्कर लगाती रहती हो। तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट हो गया था, अब तो उनका प्लास्टर भी कटने वाला है। इतना परेशान होने की क्या जरूरत है?" सुबह-सुबह अंकित और सुरभि में कहा - सुनी हो रही थी।

यह सुनते ही सुरभि गुस्से से चिल्लाई कि मैंने तुमसे शादी कर ली है तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैंने अपने पापा से रिश्ता ही खत्म कर लिया है। उनका कौन है वहां पर? मैं इकलौती संतान हूं। यहां तो तुम्हारे पास पूरा परिवार है। तुम्हारे मां बाप और दो भाई साथ रहते हैं।"

फिर सुरभि ने अंकित को समझाने के लिहाज से बोली, "जरा सोचो, उनका काम कैसे चलता होगा जब उनका पैर टूट गया है। पापा ने मेरे लिए अपना पूरा जीवन ही बलिदान कर दिया। यह मैं कैसे भूल सकती हूं। मेरे पैदा होने के बाद मेरी मम्मी की तबीयत खराब हो गई थी। वह बहुत एनेमिक हो गई थी। कई दफे उन्हें खून चढ़ाया गया था परंतु कोई फायदा नहीं निकला और वह हमको छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। उस समय मैं केवल एक साल की थी। लोगों ने पापा से कहा था कि दूसरी शादी कर लो। नन्हीं बच्ची है, कौन उसे पालेगा? मगर पापा मम्मी से बहुत प्यार करते थे और कहा करते थे उनकी जगह कोई नहीं ले सकता है। घंटों मम्मी की तस्वीर के सामने उदास बैठे रहते थे। पता नहीं उनसे क्या-क्या बातें करते थे मगर आंखों में आंसू नहीं आने देते थे। बड़ी दृढ़ शक्ति व्यक्ति हैं वो। मेरी परवरिश अकेले ही कर डाली। मुझे मां और बाप दोनों का प्यार दिया। मुझे याद है कभी कभी तो मम्मी की ड्रेस भी पहन लेते थे ताकि लोरी सुनाते समय मुझे मम्मी की कमी महसूस न होने पाए। अपनी सारी इच्छाएं और सुख की बातों को भूल कर मुझे पढ़ाया, लिखाया और मेरी शादी की। वह भी तो एक इंसान हैं। उनको भी किसी साथी की जरूरत महसूस हुई होगी। तुम तो एक दिन भी मेरे बिना नहीं रह सकते हो। सोचो उस इंसान ने बीस साल तक अकेले कैसे गुजारा होगा?"

सुरभि आगे बोली, - "जब मम्मी मुझे छोड़ गई थी उस समय तो घर में मेरी दादी थी, जो मुझे देखती थी मगर कुछ दिनों बाद ही वह भी हमसे बिछड़ गयी। अब घर में मुझे संभालने वाला कोई नहीं रह गया था। पापा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। वहां कुछ महिलाएं भी थी जिनके छोटे बच्चे थे। कभी-कभी वह अपने बच्चों को लेकर वहां आती थी जब उनके घर पर कोई देखने वाला नहीं रहता। पापा के मन में आया कि वे भी मुझे रोज अपने ऑफिस ले जाया करें।

मेरे पापा हिम्मत करके अपने बॉस के पास गए और उनसे बोले, " सर! मेरी परिस्थिति बहुत खराब है। मेरी बच्ची केवल दो साल की है। उसको कोई देखने वाला नहीं है, घर पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता। इसलिए आप मुझे अनुमति दे दें ताकि मैं अपनी बच्ची को कुछ दिनों तक यहीं ले आऊं और उसकी देखभाल करूं। सर! मैं कार्यालय में किसी काम में गड़बड़ी नहीं आने दूंगा यह मैं आपसे वादा करता हूं। उनके बॉस कुछ देर तक सोचते रहे। वे पापा के काम से काफी खुश थे इसलिए उन्होंने इजाजत दे ही दी। उसके बाद मेरे पापा मुझे रोजाना अपनी साइकिल की टोकरी में बैठाकर अपने कार्यालय ले जाते थे। मुझे एक अलग टूटी मेज पर सुला देते थे और अपना काम करते थे। लोग उनके के ऊपर बहुत हंसते थे पर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। उनका बॉस कुछ न कहे इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा काम करते। लोग उन्हें समझाते थे कि इस तरह जीवन कैसे चलेगा कोई जीवन साथी तलाश लो और अगर इतना भी न करो तो फिर किसी कामवाली को अपने घर पर रख लो जो बच्ची की देखभाल करे। पापा का सदैव जवाब होता कि नौकरानी और मम्मी में अंतर होता है। वही खाना जब मम्मी देती है तो ज्यादा असर करता है, ज्यादा ताकत देता है। सौतेली मां कभी अच्छा व्यव्हार कर नहीं पाएगी। एक नौकरानी तो सिर्फ उतना ही करेगी जितना उसे पैसा देंगे इसलिए मैं मां और बाप दोनों का प्यार उसे देना चाहता हूं। जब तक चलेगा ठीक है, नहीं तो नौकरी ही छोड़ दूंगा और कोई छोटा-मोटा धंधा करके अपना घर चला लूंगा। मैं अपनी बेटी की शक्ल में अपनी पत्नी को देखता हूं जिसे मैं बहुत प्यार करता था। वह भी बहुत सूशील गृहणी थी। अपनी बेटी में वही सब संस्कार देखना चाहता हूं। दूसरा कैसे कर पाएगा?"

तुम सोचो, मेरे पापा ने कितनी तकलीफ उठाई है मेरे लिए। कभी-कभी मैं दफ्तर में पॉटी कर देती थी तो वह पापा ही थे जो मुझे साफ करते थे। मैं रोती थी तो पापा को लगता था कि पूरे कार्यालय के लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूं। ऐसे में वो कितना डिस्टर्ब होते रहेंगे यह समझने की बात है। उसका बॉस तो समझदार था कुछ नहीं बोलता था मगर बाकी लोग कितना बतंगड़ बनाते थे इसका अंदाजा शायद तुम्हें नहीं होगा। सब कुछ सहते थे वो। जब मैं पांच साल की हो गई और स्कूल जाने लगी तो पापा को इससे मुक्ति मिली लेकिन स्कूल का काम बढ़ गया था। स्कूल ले जाना, ले आना, कपड़े साफ करना, खाना खिलाना, लंच पैक करना आदि काम मेरे लिए करते थे।

बड़ी होने पर लड़कियों के कुछ जरूरी काम एक मां ही संभाल सकती है। उसे भी पापा ने समझा कर अपना फ़र्ज़ निभाया था।

पापा कहा करते थे कि यह जरूरी नहीं कि आपके साथ एक बार बुरा हुआ तो हमेशा वैसा ही होगा। आपको अपने बच्चों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने की जरूरत है। बच्चों को भी शुरू से अपनी स्थिति से परिचित करवा दें और उन्हें वह शिक्षा दें कि उनको आप के साथ रहने में खुशी हो। सिंगल पेरेंटिंग के दौरान पैरंट को घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है जो बहुत बड़ी चुनौती है। इसमें बहुत धैर्य की जरूरत होती है। कभी-कभी बच्चों से ध्यान हट जाता है तो बच्चा खुद को अकेला महसूस कर रहा होता है। बच्चा छोटा है तो बच्चे को अकेले छोड़ना और उस पर विशेष ध्यान देना चिंता का विषय होता है।

उस जमाने में न तो इंटरनेट था और न ही गूगल कि पापा मेरी समस्यायों का समाधान ढूंढ लेते। फिर भी किसी न किसी से चर्चा कर के सब कुछ निपटाते रहे। आज तो बड़े शहरों में पेरेंटिंग थेरेपी की सुविधा भी उपलब्ध है। उसके जरिए पेरेंट्स और बच्चा एक दूसरे के व्यवहार को अच्छे से समझने की कोशिश करते हैं।

समाज में अपराधिक घटनाएं भी बहुत होती हैं। इसलिए बहुत ध्यान देना पड़ता है कि बच्चे के साथ कोई दुर्घटना न घट जाए। लड़की होने पर तो लफंगों से भी संभालना पड़ता है।

पापा हमेशा इन सभी बातों को खुल कर समझते थे और उनसे निपटने के लिए मुझे शारीरिक एवम् मानसिक रूप से तैयार करते थे। मेरे पर्स में सदैव मिर्च स्प्रे वही रखते थे। मुझे याद है कि उन्होंने बचपन में बताया था कि जब कोई मुझे जबरदस्ती ले जाने लगे तो में कैसे उसके पैर में लिपट कर बैठ जाऊं। दूसरी तरफ वे घर में ऐसा माहौल बनाते थे कि में अपनी जिम्मेदारियां समझ सकूं।

सुरभि ने ताना दिया कि जब आप बीमार हो जाते हैं तो सबसे ज्यादा आपका ध्यान रखा जाता है। जब आप उदास भी होते हैं तो घर वाले परेशान हो जाते हैं। वैसे भी आपको शारीरिक तौर पर बीमार होना अच्छा लगता है क्योंकि बीमार होने पर आपको आपकी मां ज्यादा तवज्जो देती है और सभी लोग आपका हाल-चाल पूछते रहते हैं । आपको सभी काम से भी छुट्टी मिल जाती है। आप चाहते हैं कि आपकी पत्नी आपके नखरे उठाए। मगर पापा का नखरा उठाने वाला कौन है? तुम उनके बेटे की तरह हो। तुम्हें भी अपना फ़र्ज़ निभाया चाहिए चाहे कुछ समय के लिए अपना सुख त्यागना पड़े।"

अंकित को लग रहा था कि उसने सुबह सुबह ही गलती कर दी है। उसने कहा तुम जब चाहे जा सकती हो। मैं भी चलूंगा।

सुरभि ने कहा मुझे समझ नहीं आता मैं कैसे पृत्त ऋण चुकाऊंगी। फिर बताया कि आज भी पापा अपने अनुभवों से ऐसे लोगों की मदद करते हैं जो किन्हीं कारणों से एकल पैरेंट के रूप में अपने बच्चों की केयर करने को मजबूर हैं। उनके त्याग को वे हमेशा सराहते हैं और तन - मन से सहयोग देते हैं। कहते हैं एकल पेरेंटिंग संतोषजनक हो सकती है बशर्ते माता या पिता में बच्चे की दैनिक जरूरतों के प्रति रुझान हो ताकि वे अपने बच्चे में विभिन्न जीवन कौशल, सामाजिक कौशल और उचित व्यवहार सीखा सकें। यही एक अच्छे पालन-पोषण का उद्देश्य है। वे आमतौर पर मानते हैं कि पेरेंटिंग की कोई एक विधि "सर्वश्रेष्ठ" नहीं है। मुख्य रूप से बच्चों को सुरक्षित रखना, उनकी बातें सुनना, उनके साथ समय बिताना, स्नेह प्रदान करना, बच्चों की दोस्ती की निगरानी करना, उन्हें स्वस्थ रखना आदि बातें पेरेंटिंग को श्रेष्ठ बनाती हैं।

आज देश में एकल माता-पिता के घर आम हो रहे हैं। जब माता अथवा पिता अचानक एकल हो जाते हैं, तो बच्चों को पालने में उन्हें काफी परेशानी होती है। पापा बताते हैं कि आज ऐसे तरीके हैं जिनसे वे चुनौतियों का सामना कर सकते हैं परन्तु एकल परेंटिंग करने वाले को सेल्फ-केयर के लिए भी समय निकालना अति आवश्यक होता है। उनका खराब व्यक्तित्व और खराब स्वास्थ्य बच्चे के विकास में बाधक होंगे। कुछ रोमांटिक दोस्तों से भी मिलना हो सके तो बुरा नहीं है। सब मिलकर उन्हें ऐसा करना चाहिए कि वे अपने को अलग-थलग और अकेला महसूस न करें।

दोनों अंकित और सुरभि पापा की उसी तरह केयर करने का संकल्प लेते हैं जैसे पापा आज भी छोटे बच्चों की करते हैं।

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