Aakhar Chaurasi - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

आखर चौरासी - 33

आखर चौरासी

तैंतीस

गुरनाम उस दिन जब क्लास करने कॉलेज पहुँचा, उसे कोई भी पहचान नहीं सका। ठीक वैसे ही जैसे उस दिन सुबह जब वह जगदीश के साथ रामप्रसाद के होटल में चाय पी रहा था, तब मनोज भी उसे नहीं पहचान पाया था। जगदीश के दोस्त मनोज से गुरनाम पहले भी कई बार मिल चुका था।

‘‘कहो जगदीश क्या हाल-चाल है ?’’ उन्हें होटल में घुसते देख, पहले से वहां चाय पी रहे मनोज ने टोका था।

‘हलो-हाय’ के आदान-प्रदान के बाद मनोज ने हंसते हुए पूछ लिया था, ‘‘इस मार-काट में वो तुम्हारे हॉस्टल वाले सरदार का क्या हाल-चाल है ? बचा या गया ?’’

जगदीश ने भी हंसते हुए ही कहा था, ‘‘क्यों उसे क्या होगा ? तुम्हारे ही बगल में खड़ा चाय पी रहा है, पहचाना नहीं ?’’

‘‘हाँ मनोज, मैं बच गया !’’ गुरनाम भी उस हल्के-फुल्के वातावरण के अनुकूल बोला।

केश कटे होने के कारण गुरनाम का चेहरा भले ही पहचाना न जाता हो, लेकिन आवाज से उसे आसानी से पहचाना जा सकता था। उसी आवाज से मनोज ने उसे पहचान लिया। फिर वह उसके केश-रहित चेहरे में केश वाले चेहरे की रेखाएँ ढूंढने लगा। मुस्कुराता मनोज उसे उस हाल में देख कर न जाने क्यों अचानक ही खामोश-सा हो गया था। पहले उसके चेहरे पर जो झेंपने के भाव आये थे, वे अब पीड़ा में बदल गये थे।

***

‘टैक्सोनोमी’ की क्लास खत्म होते ही कविता तेजी से उसके पास आयी, ‘‘गुरनाम चलो, मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है।’’

‘‘क्या बात है, इतनी जल्दी में क्यों हो ? कैमिस्ट्री क्लास के बाद ही तो लेजर पीरियड है, तब कैंटीन चलेंगे।’’ गुरनाम बोला।

वह सोच रहा था कि कर्फ़्यू आदि के कारण जो कॉलेज बन्द रहे, इसलिए इतने दिनो बाद मिली कविता उससे बातें करना चाह रही है। परन्तु जब उसने ध्यान से देखा तो कविता उसे बहुत परेशान लगी। कुछ तो और बात है।

‘‘नहीं, अभी चलो ! तुम्हारे केशों के कारण मैं तुम्हें क्लास में घुसते समय पहचान नहीं पायी, वर्ना ‘टैक्सोनोमी’ भी नहीं करती।’’

कविता का परेशान स्वर सुन कर गुरनाम चुपचाप उसके साथ निकल गया। कविता कैंटीन की ओर न बढ़ कर अपनी कार की ओर चल दी।

‘‘...आज तो वाकई मामला काफी गम्भीर लग रहा है। कहीं कत्ल का इरादा तो नहीं ?’’ गुरनाम ने कार में बैठ कर हंसते हुए वातावरण को हल्का करना चाहा।

उसने सोचा था कविता भी हंस कर उसका साथ देगी। मगर उसके अनुमान के विपरीत कविता ज़रा भी न मुस्कराई। उसका चेहरा पूर्ववत् गम्भीर ही बना रहा। वह बात गुरनाम को चौंकाने वाली थी। उसी खामोशी से कविता ने सामने देखते हुए कार स्टार्ट कर गेयर में डाल दी। अब गुरनाम भी चुप हो गया था। उसी चुप्पी में उन दोनों को अपने साथ लिए हुए कार कॉलेज से बाहर निकल कर ‘कैनेरी लेक’ की तरफ दौड़ पड़ी। सारा रास्ता उन दोनों ने चुपचाप ही तय किया।

कार पार्क कर वे दोनों झील के किनारे बनी अपनी परिचित सीमेंट की बेंच पर बैठ गए। कविता अपना सर गुरनाम के कंधे पर रख, पानी पर उठती-गिरती लहरों को देखने लगी। देर तक वे दोनों चुपचाप वैसे ही बैठे रहे। गुरनाम ने कई बार चाहा कि वह कुछ बोले, उस मौन को तोड़े। मगर हर बार ही वह कविता की चुप्पी को देख कर चुप रह गया। गुरनाम के लिए वह खामोशी असह्य होने लगी, परन्तु फिर भी न जाने क्या सोचकर वह चुपचाप बैठा रहा।

जाड़े के सूरज की गुनगुनी धूप, उस धूप में सामने दूर तक चमकता झील का चंचल जल, पेड़ों पर चहचहाते पक्षी और धीमे-धीमे बहती हवा पूरे वातावरण को एक अजीब-सी शान्ति प्रदान कर रही थी।

बड़ी देर तक वे दोनों उसी प्रकार मौन बैठने के बाद अचानक ही कविता ने उठते हुए कहा, ‘‘चलो वापस लौट चलें !’’

गुरनाम भी आहिस्ते से उठ खड़ा हुआ। वे दोनों कार में जा बैठे और जैसे गये थे वैसे ही चुपचाप लौट आए। हॉस्टल गेट पर कविता ने गुरनाम को कार से छोड़ दिया। गुरनाम सोच रहा था, शायद अब कविता कुछ विशेष कहे।

लेकिन कविता ने हाथ हौले से दबाते हुए बस इतना ही कहा, ‘‘अच्छा, तो कल मिलते हैं।’’

‘‘हाँ, कल मिलते हैं। बाय !’’ गुरनाम ने भी उसका हाथ सहलाते हुए उत्तर दिया।

गुरनाम का उत्तर सुन कर कविता ने कार मोड़ी और अपने घर की ओर बढ़ गई।

गुरनाम हैरान-परेशान वहीं खड़ा रह गया। सब कुछ उसे किसी स्वप्न की तरह लग रहा था। आखि़र कविता उससे क्या कहना चाह रही थी ? ...जो कहना था, कहा क्यों नहीं, क्या कल कहेगी ? ऐसे ही ढेर सारे प्रश्नों ने एक साथ ही उस पर धावा बोल दिया था। ...खैर, अब उसके असहज होने से तो कुछ होने वाला नहीं था। वह बात क्या है, अब तो कल ही पता चलेगी, जब कविता से पुनः मुलाकात होगी।

हॉस्टल के भीतर घुसते ही उसे देवेश के चहकते स्वर ने उसे आ घेरा, ‘‘क्यों गुरु, अब तक कहाँ था तू ?’’

उसके पीछे-पीछे प्रकाश और संगीत भी चले आ रहे थे। गुरनाम ने कविता के साथ हुए उस अनोखे अनुभव से उबरते हुए कहा, ‘‘यूँ ही, बस ज़रा घूमने चला गया था।’’

संगीत ने पास आते हुए कहा, ‘‘हम लोग तुम्हारे कमरे से ताला देख कर लौट रहे हैं। सबका मूड सिंघाड़ा (समोसा) खाने का बन गया है। चलो रामप्रसाद के होटल तक हो आते हैं।’’

‘‘हाँ यार, भूख तो मुझे भी लगी है।’’ कह कर गुरनाम भी उनके साथ हो लिया।

मेन रोड तक आते-आते देवेश अपने चिरचरिचित अंदाज में पुनः चालू हो गया था, ‘‘यारों, एक बात तो माननी पड़ेगी। ‘एट्टी फोर मॉडेल’ में अपना गुरनाम ज्यादा स्मार्ट लगता है।’’

उसकी बात किसी की समझ में नहीं आयी। सबने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा।

प्रकाश ने भौंहें सिकोड़ीं, ‘‘मॉडेल एट्टी फोर ? ये क्या बला है ?’’

‘‘अरे, नहीं समझे ?’’ देवेश मुस्कराया।

‘‘नहीं !’’

‘‘सीधी-सी बात है। पता नहीं तुम लोगों को समझने में इतनी कठिनाई क्यों हो रही है ?’’ देवेश हंसे जा रहा था, ‘‘देखो, गुरु ने अपने केश वर्ष 1984 में कटवाए हैं, यानि कि ‘एट्टी फोर में’! तो अब इसका नया रुप ‘मॉडेल एट्टी फोर’ ही हुआ न !’’

उसकी बात समझते ही सब एक साथ ठठा कर हँस पड़े। प्रकाश ने एक ज़ोरदार दोहत्थड़ देवेश की पीठ पर जमाते हुए कहा, ‘‘स्साले, तू नहीं सुधरेगा !’’

वे चारों दोस्त हंसते-बतियाते चले जा रहे थे। लग रहा था, एक नवंबर को भारत में मृत हुई मानव-सभ्यता का जीवन, पुनः जीवित हो उनके साथ चल रहा हो। गुरनाम भी अब प्रकृतस्थ हो चुका था। कुछ समय पूर्व कविता के साथ से उसके भीतर उपजा भारीपन छँटने लगा था।

विक्की जब गुरनाम को लेने हॉस्टल पहुँचा, उसे मालूम नहीं था कि घर से गुरनाम को केश कटवाने के निर्देश दिए जा चुके हैं। गुरनाम अपना सुबह का नाश्ता, जो वह दस बजे से पहले कभी नहीं करता था, कर के अपने कमरे में लौट चुका था। दरवाजे पर विक्की की आवाज़ सुन कर वह चौंका। हर्षमिश्रित उत्तेजना से उसने लपक कर दरवाजा खोला और विक्की से लिपट गया। गुरनाम के अनुसार तो विक्की को अपने इन्जीनियरिंग कॉलेज में होना चाहिए था। उसे यूँ अचानक अपने सामने पा कर वह बहुत खुश था। दोनों दोस्त पिछले दिनों का कठिन समय अलग-अलग काटने के बाद आज मिले थे। एक दूसरे से कहने-सुनने को काफी कुछ था। लेकिन गुरनाम को विक्की में वैसा उत्साह नहीं दिखा।

विक्की ने उसे आहिस्ता से उसे अलग किया। गुरनाम ने लक्ष्य किया, विक्की बड़े ठंढेपन से मिला है। उसका ध्यान सीधे अपने घर वालों की ओर चला गया। कहीं वहाँ कुछ बुरा तो नहीं घट गया ? परन्तु जल्द ही उसे उत्तर मिला कि उसकी आशंका निर्मूल है। असल कारण तो कुछ और है।

‘‘ये सब क्या है ?’’ विक्की ने उसके केशों की तरफ इशारा करते हुए कठोर स्वर में पूछा।

ओ हो, तो यह बात है। उसके केश कटने से विक्की को बुरा लगा है। उसे याद आया, कुछ वैसे ही भाव तब जगदीश के चेहरे पर भी थे, जब गुरनाम ने उसे अपने केश कटवाने की बात बताई थी।

उसने माहौल को हल्का करने के लिए देवेश की बात का सहारा लिया, ‘‘भला क्या है ? ये एट्टी फोर मॉडेल है। क्यों पसंद नहीं आया ?’’

लेकिन माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से कहे उसके वाक्य का उलटा प्रभाव पड़ा। विक्की ने उसे कंधों से पकड़ कर बुरी तरह झिंझोड़ डाला।

‘‘क्यों...? क्यों किया तुमने ऐसा...? इंदिरा गाँधी के मरने का तुमने बहुत अच्छा फायदा उठाया ! इसी बहाने तुम्हें अपने केश कटवाने का मौका मिल गया, ठीक न !’’ विक्की ने दो-तीन मुक्के उसकी पीठ पर जड़ दिये। उसकी आँखों में नमी और चेहरे पर दर्द उतर आया था, ‘‘अब मैं तुम्हारे घर जा कर क्या कहूँगा ? मैं बोल कर आया था कि गुरनाम को अपने साथ लेकर आऊँगा। अब वहाँ जा कर क्या कहूँगा, केश कटे गुरनाम को लेकर आया हूँ ? ...यह तुमने ठीक नहीं किया !’’

‘‘सुनो ...विक्की ! मेरी बात तो सुनो...।’’ कहते हुए गुरनाम ने उसे पुनः अपनी बाँहों में भींच लिया और तब तक भींचे रहा, जब तक कि विक्की शान्त न हो गया।

फिर वह महादेव भैया के आने और अपने केश कटवाने की पूरी कहानी बताने लगा। विक्की ठीक ही कह रहा है कि पूर्व में गुरनाम ने कभी अपने केश कटवाने की बात सोची थी, लेकिन उस विषय पर पापा से बात होने के बाद तो उसने कभी फिर वैसा सोचा ही नहीं था। ...कि महादेव भेया के आने और केश कटवाने की बात पर वह भी बड़ा अपसेट था। ....कि उन परिस्थितियों में तो वह कदापि अपने केश कटवाने नहीं चाहता था।

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कमल

Kamal8tata@gmail.com

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