आखर चौरासी - 26 Kamal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आखर चौरासी - 26

आखर चौरासी

छब्बीस

हॉस्टल में राजकिशोर ने जब गुरनाम के कमरे पर लगा ताला देखा तो बड़े ज़ोर से चौंका। उसके अनुमान के अनुसार उस समय तो गुरनाम को अपने कमरे में ही होना चाहिए था। कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद वह मेस की ओर चल दिया, यह सोच कर कि गुरनाम शायद वहाँ हो। मगर उसे वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। गुरनाम को वहाँ नहीं होना था और न ही वह वहाँ था। तभी उसे टॉयलेट का ख्याल आया। लेकिन वहाँ भी झांक लेने के बाद उसे निराशा ही हाथ लगी। सब तरफ देख लेने के बाद वह एक बार फिर से गुरनाम के कमरे की ओर बढ़ा गया। मगर वहाँ पूर्ववत् लटक रहा ताला उसे एक बार फिर से स्वयं को मुँह चिढ़ता-सा महसूस हुआ।

इस भाग-दौड़ में उसे पता नहीं चला था कि कोई और भी कुछ दूर अपने कमरे में अंधेरा किये बैठा, उसकी सारी हरकतों पर नज़र रखे है। वह जगदीश ही था जिसने अपने कमरे की बत्ती बुझा कर कमरे का दरवाजा ज़रा-सा खोल रखा था। उसे वहाँ से गुरनाम का दरवाजा और ‘किंग्स ब्लॉक’ का आधा बरामदा साफ-साफ दिखाई पड़ रहा था। यह अनुमान लगाना उसके लिए कठिन न था कि राजकिशोर बुरी नीयत के तहत ही गुरनाम के कमरे के आस-पास मंडरा रहा है।

थोड़ी देर वह गुरनाम के बंद कमरे के बाहर खड़ा न जाने क्या सोचता रहा। फिर प्रकाश के कमरे की ओर बढ़ गया, हो न हो गुरनाम वहीं बैठा हो। उसने जा कर प्रकाश का दरवाजा खटखटाया।

‘‘कौन है ?’’ भीतर से आवाज आयी।

दरवाजा खोलने पर सामने राजकिशोर को देख प्रकाश के चेहरे पर उलझन बिखर गयी। उसने पूछा ‘‘क्या बात है ?’’

राजकिशोर ने भीतर झाँकते हुए पूछा, ‘‘गुरनाम यहाँ है क्या ?’’

‘‘नहीं, वह तो यहाँ नहीं है। मगर तुम उसे क्यों ढूंढ रहे हो ? क्या हुआ ?’’ प्रकाश ने जानना चाहा।

‘‘...वो ...वो कोई उससे मिलने आया है। उसका कमरा लॉक था इसलिए मैं उसे देखने इधर चला आया।’’ राजकिशोर ने झूठ गढ़ा।

‘‘गुरनाम तो दोपहर से ही हॉस्टल में नहीं है। अपने लोकल गार्जियन के पास ‘जुलु पार्क’ गया है।’’ कहते हुए उसने बाहर निकलने का उपक्रम किया, ‘‘उससे मिलने कौन आया है, चलो मैं देखता हूँ।’’

‘‘नहीं, नहीं। तुम्हारे जाने की जरुरत नहीं है। मैं उसे बता दूँगा।’’ राजकिशोर ने जल्दी से कहा। प्रकाश के साथ आने की बात पर वह फँस गया था। वह तेजी से मुड़ कर वापस लौट पड़ा।

गुरनाम के हॉस्टल में नहीं होने की बात जान कर वह बड़ा निराश हुआ था। आज उसके खिलाफ हाथ आये एक अच्छे मौके के यूँ निकल जाने का उसे बेहद अफसोस हो रहा था। हॉस्टल से बाहर निकल कर वह निराश कदमों से पेड़ों के उस झुरमुट के पास पहुँचा, जहाँ उसके साथियों का गैंग खड़ा था।

जितेंद्र ने उसे दूर से ही अकेले आते देखा लिया था। उसने व्यग्रता से पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम अकेले ही लौट रहे हो ?’’

निराशा में डूबे राजकिशोर ने बताया, ‘‘हाँ यार, शिकार हाथ से निकल गया। वह अपने लोकल गार्जियन के पास ‘जुलू पार्क’ चला गया है।’’

‘‘ओफ्फो... सारा मूड चौपट कर दिया।’’ टकले के स्वर में विवशता थी।

‘‘अच्छा कभी फिर सही... चलो अब वापस चलते हैं।’’ कहते हुए जितेंद्र अपनी मोटर सायकिल पर बैठ गया। टकले का साथी भी उसके पीछे जा बैठा।

जितेंद्र मोटर सायकिल स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘यार राजकिशोर, यहाँ ठंढ में खड़े-खड़े तो पहले की पी हुई भी उतर गयी। अब तो फिर से ठंढ लगने लगी है। कुछ माल ढीला करो। इस भयानक ठंढ में गला फिर से तर किये बिना काम नहीं चलेगा।’’

राजकिशोर अब और खर्च करने को तैयार नहीं था। परन्तु वह उन लोगों से अपने संबंध भी खराब करना नहीं चाहता था। उसने बेमन से पॉकेट में हाथ डाला और सौ रुपये का नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाया। जितेंद्र ने जल्दी से नोट लपक लिया। फिर वे तीनों फूहड़ों की तरह हँसते-बोलते अपने मोटर सायकिलों पर वहाँ से चले गये। राजकिशोर भी बुझे मन से हॉस्टल लौट आया।

जब वह सर झुकाए, किसी लुटे जुआरी-सा मेन गेट से भीतर घुसा, जगदीश ने उसे दूर से ही देख लिया था। राजकिशोर धीरे-धीरे डग भरते हुए अपने कमरे की ओर चला जा रहा था। उसकी वह निराशा देख कर जगदीश के अधरों पर मुस्कान फैलती चली गई। फिलहाल गुरनाम सुरक्षित है, यह सोचते हुए उसने सर तकिये पर रख कर अपनी आँखें मूंद लीं। मगर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। क्योंकि अब उसके अभियान का अगला चरण प्रारम्भ होना था।

***

रात को जगदीश के निर्देशानुसार मेस का नौकर खाना ले आया। खाना टेबल पर रख, वह वापस लौट गया। जगदीश ने उठ कर सावधानी से बाहर की आहट ली। चारों तरफ सन्नाटा था, पूरा कॉरीडोर मौन था। यही वह समय होता है जब हॉस्टल की सारी चहल-पहल मेस में सिमट जाती है। किंग्स ब्लॉक पूरी तरह सुनसान हो जाता था। फिर भी जगदीश को पूरी सावधानी बरतनी थी। उसने आधा खाना पहले से ही निकाल रखी पॉलिथिन की थैलियों में डाल लिया और गुरनाम के कमरे की चाबी ले कर निकल आया।

उसके दरवाजे पर पहुँचने तक बीच-बीच में उसकी चौकन्नी आँखें चारों तरफ देखती जाती थीं। वहाँ पहुँच कर उसने गुरनाम का दरवाजा खटखटाया और फुर्ती से ताला खोल दिया। उसने इस बात की पूरी सावधानी बरती थी कि आवाज़ कम से कम हो। अंदर गुरनाम भी जगदीश के आने की ही प्रतीक्षा में था।

‘‘कौन ?’’ उसकी धीमी आवाज उभरी।

‘‘लोकल गार्जियन।’’ जगदीश ने पूर्व निर्धारित ‘कोड वर्ड’ में उत्तर दिया।

जगदीश की आवाज और ‘कोड वर्ड’ सुन कर गुरनाम ने आश्वास्त हो, भीतर से सिटकनी खोल दी। जगदीश तेजी से भीतर घुस आया। कमरे का दरवाजा पुनः बंद हो गया। भीतर आने से पहले जगदीश ने कुंडी में ताला इस प्रकार लगा दिया था कि दूर से देखने से दरवाजे पर ताला लगा जान पड़ता।

जगदीश ने खाना टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘लो, खाना खा लो।’’

‘‘बाहर का हाल-चाल कैसा है ? किसी को कोई संदेह तो नहीं हुआ ?’’ गुरनाम ने उत्सुकता से पूछा। बाहर से ताला लगे कमरे में रहने का जीवन में वह उसका प्रथम अनुभव था। इसलिए वह सब कुछ जान लेने के लिए उत्सुक था।

‘‘नहीं, किसी को कोई सन्देह नहीं हुआ। प्रकाश वगैरह जरुर चिन्तित थे। परन्तु प्रीफेक्ट से मिल लेने के बाद वे भी सन्तुष्ट हो गए थे।’’ जगदीश ने उसे बताया।

राजकिशोर की गतिविधियों के बारे में उसने जान-बूझ कर नहीं बताया। वह सब जान कर गुरनाम परेशान हो सकता था। कुछ देर वे धीमी आवाज़ में बातें करते रहे। जगदीश उसे भरसक सामान्य करने का प्रयास कर रहा था, लेकिन फिर भी उसे वह कुछ परेशान-सा दिख रहा था। तब तक वह खाने को भी उत्सुक नहीं दिखा था। वह ज़रा तिरछा हो कर अपना पेट पकड़े था।

‘‘क्या बात है गुरनाम, तुम कुछ परेशान लग रहे हो ? तबियत तो ठीक है ?’’ उसने जानना चाहा।

‘‘...वो ...हूं, पेट में बड़े ज़ोर का दर्द है। मुझे टॉयलेट जाना है।’’ गुरनाम के चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर रही थीं।

जगदीश के लिए वह जानकारी बड़ी ही चिन्ता का विषय थी। गुरनाम का कमरा ब्लॉक के एक कोने में है और टॉयलेट ब्लॉक के दूसरे कोने में। इसका अर्थ हुआ कि गुरनाम को टॉयलेट जाने के लिए पूरा बरामदा दो बार पार करना होगा। वह भी सब से छुप कर...। नहीं...नहीं, इसमें देख लिए जाने की पूरी सम्भावना है। गुरनाम के टॉयलेट जाने में भारी खतरा है, उसके दिमाग में कौंधा। काश हॉस्टल के कमरों में अटैच्ड बाथरुम होते...!

थोड़ी देर वह मन ही मन कुछ विचार करता रहा। फिर निर्णयात्मक स्वर में बोला, ‘‘गुरनाम तुम्हारे टॉयलेट जाने का रिस्क मैं नहीं ले सकता। क्योंकि थोड़ी देर में डिनर के बाद सब का मेस से लौटना शुरू हो जाएगा। ऐसे में सबकी नजरों से बचना असंभव है। किसी न किसी की नजर पड़ ही जाएगी। अगर वैसा हुआ तो सब कुछ गड़बड़ हो जाएगा।’’

बोलते हुए जगदीश का सारा ध्यान एक हाथ से अपना पेट दबाये, बिस्तर पर चुपचाप पड़े गुरनाम पर ही था। जगदीश ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में अब इसका केवल एक ही निदान है। तुम पॉलिथिन की थैलियों का इस्तेमाल करो। मैं उन थैलियों को बाहर फेंक दूँगा।’’

उसकी बात गुरनाम को बिच्छू के डंक-सी लगी। उसने चौंक कर जगदीश को देखा, उसकी बात का मर्म समझ कर वह अवाक् रह गया था। अब जगदीश क्या उसका मल छूएगा ? उसकी आँखें नम हो गईं।

‘‘...अरे यार... तुम....’’ उसका गला रुंध गया।

‘‘बस अब तुम कुछ मत बोलो।’’ जगदीश उसकी बात काटते हुए उठ खड़ा हुआ, ‘‘अब मेरा यहाँ और रुकना ठीक नहीं। मैं जाता हूँ। पन्द्रह-बीस मिनट बाद, मैं फिर आऊँगा। मगर इस बार दरवाजे से नहीं, पिछली खिड़की की तरफ से।’’ उसने खिड़की की तरफ अपनी उँगली उठा कर इशारा किया।

‘‘मगर उधर से तो काफी अँधेरा रहता है। फिर उधर साँप-बिच्छू का भी डर है।’’ गुरनाम का स्वर चिन्तित था।

‘‘देखो गुरनाम हमारे पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं। मैं उधर से ही आऊँगा। अब तुम दरवाजा अंदर से बंद कर लो।’’ जगदीश के स्वर में दृढ़ता थी। वह उठ खड़ा हुआ।

दरवाजा खोल कर एक पल को उसने चौकन्नी नजरों से चारों तरफ देखा। हर तरफ सन्नाटा था। उसने बाहर निकल कर फुर्ती से दरवाजे पर ताला लगाया और तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया।

***

कमल

Kamal8tata@gmail.com