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आदमी और कुत्ता

8 - आदमी और कुत्ता

वह बस से उतर कर उस आदमी से कुछ कदम की दूरी पर पीछे-पीछे चल पड़ी जिस आदमी का चेहरा वह घूंघट के कारण अभी तक ठीक से देख भी नहीं पाई थी । उसने थोड़-सा घूंघट उठाकर नज़रें चारों ओर दौड़ाई । रास्ता उसके गांव को ही जाता था । उसका गांव हाई-वे से तीन किलोमीटर अन्दर बसा है । गांव के अधिकतर लोग या तो मज़दूरी करने शहर जाते हैं या फिर परचूनी, हलवाई की दुकानों पर काम करते हैं । खेती के नाम पर बंजर भूमि में कभी-कभार मक्का, बाजरे की फसल हो जाती है । तभी तो उसका आदमी अपना देश और उसे छोड़ विदेश चला गया हे रोज़ी-रोटी कमाने । रह गये हैं उसकी झौंपड़ी में सिर्फ दो जीव- एक वह और एक उसकी बूढ़ी सास....जिसे आंखों से भी कम दिखार्इ्र देता है ।

अनायास ही उसके आगे-आगे चलने वाले आदमी ने उसकी ओर देखे बिना ही ऊंची आवाज़ में उससे पूछा, “थारो नाम कांईं है ?”

वह अचानक प्रश्न पूछे जाने से घबरा उठी । विचार श्रृंखला टूट गई उसकी । फिर सहमते हुये बोली, “कल्याणी ।”

“थारो मरद कांईं करे है ?” उसने पुनः दूसरा सवाल भी पूछ लिया ।

वह ना जाने क्यूं अन्दर तक घबरा उठी इस प्रश्न से । फिर अनायास ही उसके मुंह से निकल गया “बिदेस में रैवे है, कमाबा गीयो है ।” कह कर वह मन ही मन सोच बैठी- कहीं विदेश का नाम सुनकर इसके मन में चोर नहीं आ जाये । कहीं ये ख्याल नहीं आ जाये कि फिर तो अकेली रहती होगी घर में । मरद से मिले भी एक अरसा हो गया होगा । जवान है, कैसे कटती होंगी रातें....। अगर इस घोर अंधेरे और एकान्त में वह उसे ज़बरदस्ती करे तो हो सकता है शायद वह विरोध ना करे...। आखिर शरीर की भी अपनी आवश्यकताएं होतीं हैं...।

यह विचार आते ही उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा । उसने आपना गाढ़े का मोटा घूंघट उठाकर उस आदमी को देखना चाहा जो उससे चारः-छः कदम ही आगे चल रहा था । लम्बा....पतला-सा...। सिर पर लाल रंग का साफा, सफेद धोती और कुर्ता पहने । उसका गांव अभी भी शायद दो किलोमीटर दूर होगा । उसने अपनी आंखें फाड़कर रास्ते को घूरा...। पगडण्डी के दोनों ओर बबूल की झाड़ियां थीं । कहीं-कहीं आदमी के कंकाल-से सूखे खेजड़ी के पेड़ पिशाच-से खड़े थे । पथरीली ज़मीन के कंकण उसके नंगे पांवों में चुभते मगर वह इन सबकी अभ्यस्त हो गई है । उसका तो जन्म ही रेगिस्तान की बंजर भूमि में हुआ है । हवा की सांय-सांय के बीच आगे-आगे चलने वाले आदमी की मोचड़ी की चर्रररर..-चूं.. उसके कानों में पड़ती और उसका कलेजा मुंह को आ जाता । हर पल उसे लगने लगा जैसे वह उसके बारे में ही सोच रहा है । जैसे सोच रहा हो -क्या जवान छोरी है....। भरी-भरी..और आदमी कोसों दूर....। कैसे काटती होगी रातें......। अगर अंधेरे में इसे....। बस यह सोच उसका कलेजा ंिभंच जाता ।

वह अपने आप पर मन ही मन झल्लाने लगी । आखिर वह क्यूं ज़िद करके शीतला माता का मेला देखने चली आई अपनी पड़ौसन के साथ ...? उसे यह तो सोचना चाहिए था कि सास बूढ़ी और आंखों से आधी अंधी है । अरे सास ने तो उसकी इच्छा को देखते हुये हां कर दी थी मगर उसे खुद तो सोचना चाहिए था कि मेले-झमेले में देर हो सकती है । और फिर उसके पड़ौसियों को भी शहर आज ही रूकना था । उसे अकेला धकेल दिया अपने रिश्तेदार के साथ जिसे उसने कभी देखा भी नहीं ...। काश...! वह इसके साथ ना आती...। कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो वह अपने पति और गांव वालों को क्या मुंह दिखायेगी ।

उसके ज़हन में तरह-तरह के बुरे ख्याल आने लगे । उसे गांव का ही वह हादसा याद हो आया जिसमें एक सोलह साल के छोकरे ने आठ साल की छोरी को बकरी चराते हुये पकड़ कर बलात्कार कर डाला था और जब छोरी ने घरवालों से शिकायत करने को कहा था तो उस छोरे ने राज़ छिपाने की खातिर उसकी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी थी । वह ऐसे ख्याल से ही कांप उठी । मगर आज उसकी विचार श्रृंखला रोके से भी नहीं रूक रही थी । अनहोने विचार उसके दिमाग को धुने डाल रहे थे । उसे उसकी सहेली किशनी का किस्सा भी याद हो आया जिसे एक ट्रक वाले ने गांव छोड़ने का वादा कर जंगल में ट्रक खड़ा कर उसकी आबरू लूट ली थी .......। फिर अपने मन को समझाने के लिए वह सोचने लगी -नहीं यह आदमी ऐसा नहीं कर सकता आखिर यह तो उसके बाप की उम्र का होगा करीब पचास-पचपन का ..। वह तो उसकी बेटी समान ही है, सिर्फ सत्रह बरस की..। मगर तभी उसे उस समाचार का ख्याल आ गया जो उसने पानी भरते समय अपनी सहेली से सुना था । आपस में चर्चा करते हुये स्कूल में पढ़ने वाली एक सहेली ने सबको बताया था, “ज़मानो कित्तो खराब है ।”

“क्यूं कांईं हुयो ?”

“अरी अखबार माइने इत्ती खराब खबर छपी है कि कांईं बताऊ ।”

“अरी बता तो कांई खबर छपी है ?” सभी ने उससे पूछा था ।

उसने बताया था, “शहर माइने एक बाप अपनी बेटी से तीन बरस तक बलात्कार कीयो, जब वा पेट से हो गी तो राज़ खुल गीयो । बाद में बेटी ने पुलिस को बतायो कि बी का बाप बीने भी मारे थो और बी की मां ने भी । और तो और पुलिस में रिपोर्ट करवा पे जान से मारने की धमकी दिये थो ।“

यह बात सुनकर सब सन्न रह गई थीं । सहेली की बात दिमाग में आते ही उसके पांवों की जैसे जान-सी निकल गई । तो क्या उसका यह विश्वास भी झूठा है कि यह बाप उम्र का आदमी उसके साथ कुछ नहीं करेगा.....। तो क्या अब नारी अपने घर में भी सुरक्षित नहीं...? उससे आगे कदम बढ़ाना भारी हो गया । कलेजा मुंह को आने लगा, हाथ-पांव ठण्डे पड़ने लगे । वह मन ही मन आदमी की गिरती मानवीयता और चरित्र के बारे में सोचने लगी । सोचने लगी पहले आदमी कितना अच्छा था । गांव की बेटी सबकी बेटी होती थी, मगर आज....आज तो खदु की बेटी को ही....छीः....छीः...। उसे हर आदमी से नफ़रत-सी होने लगी ।

उसने हिम्मत करके अपना मनों वज़नी घूंघट उठाकर चारों ओर देखा । तारे आसमान पर उसकी ओढ़नी पर चिपके सितारों से बिखरे थे । उसे लगा उसका गांव नज़दीक ही ह,ै क्योंकि अचानक एक कुत्ता भौंेंकता हुआ उसकी ओर दौड़ता हुआ आया था । वह उसे देख जैसे आश्वस्त हो गई । अरे ! यह तो वही कुत्ता है जिसे वह रोज़ रोटी देती है । उसका कालू.....। कालू पूंछ हिलाता उसके साथ-साथ चलने लगा । एक-आध बार उसने उस आदमी को भौंका, मगर उसके डांटने पर वह चुप हो गया । उसे महसूस हुआ कि कालू को देखकर उसकी हिम्मत लौट आई है । उसे महसूस हुआ कि कोई उसका अपना उसके साथ है जो उसके साथ गद्दारी नहीं कर सकता । अब उसे उस आदमी से जरा भी डर नहीं लग रहा था । वह मन ही मन सोच रही थी आज आदमी अपनी गिरती इन्सानियत और चरित्र के कारण कुत्ते से भी कितना बौना हो गया है ----

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