Sailaab - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

सैलाब - 14

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 14

"आज से तेरा नाम बिट्टू है, ठीक है।" कह कर मुस्कुराते हुए उसे एक टॉवल पर रख कर अपने काम में व्यस्त हो गयी। वह पैर पर चोट लगने से उठ नहीं पा रहा था। पावनी खुद नहा धो कर रात के लिए खाने बनाने की तैयारी में लग गयी।

रात को सारे दरवाज़े अच्छे से बंद कर के सो गयी। नींद इतनी गहरी थी की राम का फ़ोन बजते-बजते बंद हो गया मगर पावनी की नींद नहीं खुली। सुबह उठते ही सारे काम खत्म कर बिट्टू को पशु चिकित्सक के पास ले गयी। इन्फेक्शन की गुंजाइश न रहे इसलिए इंजेक्शन दिलवा कर घर ले आई। पावनी को कुत्ते बहुत पसंद है, जब वह छोटी थी तब उसके पिताजी ने उसे जन्म दिन पर उपहार स्वरूप सफ़ेद बालों वाला कुत्ता लाकर दिया था। पावनी ने बहुत ही प्यार से उसका नाम बिट्टू रखा था। स्कूल से आते ही उसे गोद में लिए खेलने लग जाती थी। पावनी को बिट्टू का घर आना अच्छा लगा।

घर के काम से फुरसत निकाल कर कुछ लिखने की कोशिश करने लगी। जब उस दिन उसने अपना प्रोफाइल खोला तो देखा उसके सारे पोष्ट लाइक और कमेंट्स से भरे थे। खोलकर देखा तो वह वही है जिसके पोस्ट को बहुत ही गौर से पढ़कर पावनी ने कमेंट किया था। खुश हो गई और जब देखा वह ऑन लाइन है, तुरंत ही मैसेज किया कि "आप बहुत अच्छा लिखते हैं।"

जवाब आया, "आपको अच्छा लगा?"

"जी बहुत अच्छा लगा, बहुत बढ़िया लिखते हैं आप।"

"आप की रचनाएँ भी अच्छी हैं, आप भी बहुत खूबसुरती से लिखती हैं।."

"धन्यवाद।" पावनी ने शरमा कर जवाब दिया।

दूसरे दिन पावनी उसकी प्यारी सहेली विनीता से मिलने गई। विनीता के जुड़वां बच्चे हैं। एक लड़का और एक लड़की दोनों बारहवीं कक्षा में पढ़ते हैं। विनीता और पावनी अच्छी सहेलियाँ हैं। बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ा करती थीं, लेकिन समय के साथ-साथ दोनों के रास्ते अलग हो गये। विनीता एक अच्छी कंपनी में नौकरी करती है।

जब पावनी विनीता के घर पहुंची वह कुछ बेचैन सी लग रह थी। नॉर्मल रह कर बात करने की कोशिश तो कर रही थी पर उसके चेहरे पर परेशानी साफ साफ नज़र आ रही थी। बहुत पूछने पर भी जब उसने कुछ नहीं बताया। जब पावनी ने उसकी बेटी बिंदु के बारे पुछा तो वह फूट-फूट के रो पड़ी। पावनी बहुत ही घबरा गयी। विनीता ने बताया, " बिन्दु को कोई परेशान कर रहा है। वह डर के मारे बाहर निकलने को भी तैयार नहीं हो रही है। विनीता को भी काम छोड़ कर घर में रहना पड़ रहा है।

पावनी ने पूछा "क्या मैं बिंदु से बात कर सकती हूँ?"

"वह किसी से बात करने के लिए तैयार नहीं है, बस एक कमरे में बंद हो कर बैठी हुई है।"

"मुझे बुला क्यों नहीं लिया? गौरव को बताया है की नहीं?"

"नहीं बिंदु के पापा कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं। उन्हें परेशान करना ठीक नहीं लगा।"

"इतनी बड़ी बात को दिल में रखकर चुप रहने से क्या होगा? ऐसे में उनकी हिम्मत और भी बढ़ जाती है। भविष्य में कुछ भी हानि कर सकते है। पुलिस को खबर करके रिपोर्ट लिखवा कर आते है। डर मत मैं तेरे साथ हूँ।" पावनी ने धैर्य देते हुए कहा।

"बिंदु अकेली घर में नहीं रह सकती। डर के मारे उसकी हालत खराब है।"

"मैं बिंदु से बात करती हूँ।" कहकर पावनी अंदर गयी, बिंदु एक कोने में सिकुड़ कर बैठी हुई थी। पावनी को देखकर संभल कर बैठी। बहुत चुप चुप सी थी। उसकी ऑखों को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे बहुत देर से रो रही थी।

"देखो बिंदु! ऐसे हिम्मत नहीं हारते हम सब है न डरो मत, हम देखते है क्या कर सकते हैं। अच्छा पूरी बात बता सकती हो, क्या क्या हुआ था?"

बिंदु ने अपनी माँ की तरफ देखा, विनीता ने आँखों ही आँखों में हामी भरी जिससे बिन्दु में हिम्मत आयी, फिर बिंदु कहने लगी,

"वो लोग ऐसा क्यों कर रहे है यह मुझे पता नहीं आंटी लेकिन एक हफ्ते से जब भी मैं स्कूल जाती हूँ, वे गली के मोड़ पर खड़े रहते है, पता नहीं कैसे कैसे ताने मारते रहते है। बहुत गलत गलत बातें भी कहते है आंटी मुझे उस रास्ते से गुजरने में भी डर लगता है ."

"क्या वह सिर्फ तुम्हारे साथ ही ऐसा करते है ?"

"उस वक्त तो मैं अकेली ही होती हूँ किसी और के बारे में नहीं जानती। "

"कोई बात नहीं बेटा, कुछ नहीं होगा। तुम हिम्मत मत हारो, हम सब संभाल लेंगे। तुम धैर्य रखो, स्कूल जाना छोड़ना मत, वरना उन लोगों की हिम्मत और भी बढ़ जाएगी। उन्हें बिलकुल ये एहसास न होने देना की तुम उनसे डर रही हो, ठीक है। रोज़ जैसे स्कूल जाती हो वैसे ही कल भी जाना। चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"

"लेकिन आंटी वे लोग ...फिर से..." कहते कहते रुक गयी

डरने की कोई जरूरत नहीं तुम्हारे साथ पीछे हम होंगे। मैं और तुम्हारी मॉम ... सो धैर्य रखो।" पावनी ने बिन्दु को धैर्य बंधाया। बिंदु ने सहमति में सिर हिलाया।

पावनी और विनीता दोनों बाहर आ गये। पावनी ने विनीता के हाथ पर हाथ रख कर कहा, "कल बिंदु के साथ हम भी स्कूल चलेंगे, बिंदु को स्कूल में छोड़ कर सीधा पुलिस स्टेशन जा कर कंपलेंट करते है।"

"हंगामा खड़ा हो गया तो खामख्वाह बदनामी होगी।" विनीता ने डरते हुए कहा।

"कुछ नहीं होगा, जो भी होगा बाद में देखा जाएगा। मैं भी हूँ न तुम्हारे साथ चिंता मत करो।" पावनी विनीता को धैर्य देते हुये बोली। विनीता के पास हामी भरने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।

पावनी घर लौट आई। जैसे ही पावनी घर पहुंची बिट्टू उसके पैरों को चाटने लग गया।

"वो वो, ऱुको बेटा भूख लगी है? ठीक है अभी दूध लाती हूँ।" कह कर हाथ पैर धो कर दूध ले आई। प्यार से बिट्टू को दूध पिलाया। फिर उसकी पट्टी उतार कर देखा।

"अब ठीक होने लगा है मेरा बिट्टू। चल कल तेरी माँ के पास छोड़ कर आती हूँ। तेरी माँ तुझे न पा कर कितना दु:खी होगी। कल से वही तेरी देख भाल करेगी।" कह कर अंदर चली गयी। बिट्टू "कूँ कूँ " करता हुआ दूध पीने लगा।

रात को उसकी बात राम से हुई, पावनी ने बिंदु के बारे में सब कुछ बताया। राम ने उसके आने तक रुकने को कहा। काम पूरा न होने के कारण एक और दिन रुकना पड़ेगा।

"तो आप को और दो दिन लग जाएँगे ?"

"हाँ और दो दिन लग जाएँगे।" कुछ बच्चों के बारे में और कुछ ऑफिस के बारे में बात होने के बाद पूछा

"तुम कैसी हो ?"

"हाँ ठीक हूँ। "

"देखो जल्द बाजी में कोई फैसला मत लेना। यह बहुत ही नाजुक मामला है। मेरे आने तक रुक जाओ फिर सोच समझ कर क्या कर सकते हैं देखते है। तुम भी तुम्हारी सहेली के घर चले जाना साथ रहोगी तो उन्हें धैर्य बना रहेगा। क्यों?"

"ठीक है, आप चिंता मत करो, मैं देख लूँगी। अपना ख़याल रखना "

"तुम भी अपना ख्याल रखना। बाद में फ़ोन करूँगा?" फ़ोन कट गया।

दूसरे ही दिन सुबह-सुबह सारे काम निपटा कर पावनी विनीता के घर चली गयी। वहाँ बिंदु स्कूल के लिए यूनिफॉर्म पहन कर तैयार बैठी हुई थी। विनीता भी अपना सारा काम ख़त्म कर पावनी की राह देख रही थी। बिन्दु हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह अंदर ही अंदर काफी डरी हुई थी।

जैसे ही पावनी पहुंची विनीता ने सामने आकर हाथ पकड़ लिया। "सब ठीक हो जाएगा न पावनी?" उसकी आवाज़, बहुत आशा से भरी हुई थी ।

"कोशिश तो यही है विनीता पर तुम कहो तो किसी और को भी बुला लूँ? धैर्य बना रहेगा।"

"नहीं अभी नहीं अगर हम से बात नहीं बनी तो देखते हैं।" विनीता ने कहा। उसे डर था कहीं बात ज्यादा न खिंचे और जग हँसाई न हो जाए। बिंदु चुप चाप बैठी हुई थी। पावनी जा कर बिंदु के पास बैठ गयी। धीरे से समझाने लगी, " बेटा अगर हम तुम्हारे साथ साथ चले तो उन्हें पता चल जाएगा की तुमने घर में बता दिया है और वह सतर्क हो जाएंगे। इसलिए तुम आगे-आगे जाओ हम तुम्हारे पीछे ही रहेंगे। बिल्कुल डरना नहीं, ठीक है। रोज़ की तरह तुम आराम से जाओ और हम देखते है वे क्या करते हैं ।"

"तुम निकलो बिंदु, हम पीछे से आ रहे हैं। पीछे मुड़ कर बिलकुल देखना नहीं।"

बिंदु ने सिर हिलाकर हाँ कहा और बाहर निकली। उसके पीछे ही कुछ दूरी पर विनीता और पावनी भी साथ चलने लगे। दोनों का ध्यान बिंदु के चारों ओर रास्ते में आते जाते लोगों पर था। दोनों चुप चाप चलने लगी। सुबह १० बजे का समय था। रास्ते में लोगों की भीड़ काफी थी लेकिन कुछ आगे जाने के बाद रास्ता खाली-खाली सा लगने लगा। रास्ते के दोनों तरफ बिल्डिंग बनी हुई थी। कुछ लोग काम पर जाने को तैयार थे तो कुछ लोग अपने घर में ही मस्त थे।

स्कूल की ओर जाने वाले रास्ते में बांई ओर एक गली आती है। जैसे ही गली पास आने लगी बिंदु ने भय से पीछे मुड कर देखा। पावनी और विनिता को देखकर आगे बढ़ने लगी।

"ओए होए देखो लड़की आगई। क्यूँ री कहाँ थी दो दिन? बहुत इंतजार करवाया।" कहकर पास आने ही वाले थे कि किसी के आने की आहट होते ही पीछे हट गए।

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