सैलाब - 13 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सैलाब - 13

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 13

पावनी को शादी के पहले के दिन याद आये। भोपाल में दीदी पवित्रा की निगरानी में बीए. बीएड करने के बाद वह भोपाल से कुछ दूर एक छोटे से गांव में टीचर की पोस्ट पर काम करती थी। दीदी के घर से स्कूल काफ़ी दूर होने से स्कूल के नज़दीक विमेंस होस्टल में एक कमरा लेकर रहने लगी। पावनी के साथ सोनम भी उसी होस्टल में रहती थी। सोनम इलाहाबाद की रहने वाली थी और पावनी मूल रूप से हैदराबाद की। उन्हें स्कूल जाने के लिए होस्टल से कुछ दूर बस स्टेंड से बस पकड़ कर जाना पड़ता था। वे दोनों कभी कभी साथ तो कभी अलग अलग जाती थी। स्कूल के दो शिफ्ट की चलते कभी दोनों का समय अलग रहता था।

29-30 साल का एक आदमी भी रोज़ उसी बस में चढ़ता जिसमें पावनी स्कूल जाती थी और पावनी के स्कूल के बाहर उसके साथ ही उतर जाता। वहीँ पावनी के स्कूल के अंदर जाने तक इंतज़ार करता। एक दो हफ्ते बीत गए लेकिन उसने पीछा नहीं छोड़ा। जब भी पावनी गुस्से से देखती वह मुस्कुरा देता।

वह हर रोज़ उसी बस के लिए इंतजार करता रहता और जैसे ही पावनी बस स्टॉप पर आती मुस्कुरा कर रास्ता छोड़ देता था। पावनी के उतरने के बाद वह भी बस से उतर जाता जब तक वह स्कूल के अंदर चली नहीं जाती तब तक उसी बस स्टॉप पर खड़ा रहता फिर ऑटो ले कर वहां से चला जाता था। पावनी के मन में डर सा बैठ गया।

पावनी ने सोनम को उस लड़के के बारे में बताया। सोनम उस लड़के के उपर नज़र रखने लगी। उसे भी शक होना ही था। एक दिन दोनों ने मिल कर स्कूल के पास पहुँचते ही उसे घेर लिया।

"क्या बात है? आप को कोई प्रोब्लम है क्या? क्यों आप रोज़ रोज़ मेरी सहेली का पीछा करते हो?" सोनम ने उसके सामने खड़े हो कर पूछा ।

"मैं?" उसने आश्चर्य चकित हो कर पूछा, मैं क्यों आप की सहेली का पीछा करने लगा?"

"नहीं तो और क्या? हम देख रहे हैं कुछ दिनों से आप उसका पीछा करते हुए स्कूल आते हो और जब तक वह अंदर चली नहीं जाती वही पर खड़े रहते हो? क्या बात है? पुलिस को बुलाऊँ क्या?" सोनम ने धमकाते हुए पूछा।

"अरे बड़ी अजीब बात करती हो आप। क्या बस में आना जाना भी गुनाह है ?"

"जी नहीं पीछा करना गुनाह है।" पावनी ने गुस्से से कहा ।

"पीछा? कौन किस का कर रहा है? मैं क्यूँ किसी का पीछा करने लगा?"

"हाँ रोज आप मेरे पीछे बस में आते हैं। मेरा पीछा करते हैं?

"क्या बस में जाना भी पाप है? या बस को आप ने खरीद रखा है?"

"अरे चोरी तो चोरी उपर से सीनाजोरी।"

"अच्छा! अगर मैं कहूँ आप मेरे पीछे आती हैं और मेरा पीछा करती हैं तो ??

"मैं क्यूँ आप का पीछा करने लगी भला?"

"तो मैं क्यूँ पीछा करूँगा?

उसी वक्त वहाँ एक ऑटो आ कर रूका।

"लो मेरा ऑटो आ गया मैं जा रहा हूँ। मेरे पास आपसे लड़ने के लिए वक्त नहीं है मेरा ऑफिस का टाइम हो रहा। गुड बाय।" कहकर ऑटो के तरफ चलपड़ा।

"चल राम देर हो रही है।" ऑटो के अंदर से आवाज़ आई।

"हाँ! निखिल चल आ रहा हूँ।" कह कर पावनी को सिर से पाँव तक देख कर ऑटो में बैठ गया राम।

"राम कुछ प्रॉब्लम है क्या ?"

"नहीं कुछ नहीं लड़कियाँ भी न जाने खुद को क्या समझ बैठती हैं ।"

"क्यूँ क्या हुआ ?"

"जाने दे तेरा भी दिमाग खराब हो जाएगा।" वे दोनो आगे बढ़ गए।

सोनम ने पावनी के तरफ मुड़ कर देखा, "तू भी न बेकार में शक करती है तेरे वजह से मैं भी.."

"मुझे क्या पता था वह भी यहां ऑटो के लिए इंतजार करता है मुझे तो यही लगा की वह मेरा पीछा कर रहा है।"

"तू भी लोगों को शक की नज़र से देखना बंद कर। अब चल बेचारे का अच्छा खासा तमाशा बना दिया। कल से वह तेरी बस पर नहीं चढ़ेगा ।"

"सॉरी।" पावनी ने सिर झुका कर कहा ।

"मुझे नहीं उसको सॉरी बोलना चाहिए जिसे हमने बहुत बुरा भला सुना दिया, बेचारा।"

"देख इन मर्दों को बेचारा मत बोल, ये कोई बेचारे नहीं होते। चांस मिला तो हाथ पकड़ेंगे नहीं तो मासूम सा चेहरा बना कर बेचारे दिखेंगे। मैं किसीको सॉरी नहीं बोलने वाली, अब चल स्कूल का टाइम हो रहा।" पावनी खुद को गलत साबित करने से बचाती रही। दोनों स्कूल की ओर बढ गए।

दूसरे दिन बस स्टॉप पर पावनी ने राम की राह देखी। उसे राम से माफी मांगना था। दो दिन तक वह नज़र नहीं आया। पावनी बस स्टॉप पर इंतजार करती रही पर राम का कोई पता नहीं। पावनी का मन पश्चाताप से भर गया। 'कहीं उसी की वजह से राम को अपना रास्ता बदलना तो नहीं पड़ा।'

एक हफ्ते बाद राम बस स्टॉप पर दूर खड़ा दिखा। उसने पावनी को उसकी ओर देखते हुए देखा और मन में सोचने लगा, 'लड़कियों से दूर रहना ही ठीक है। पास जाओ तो इल्जाम लगाने में माहिर है। न जाने क्या क्या सोच लेती हैं।'

पावनी को उन दोनों कि मुलाकात जब भी याद आती है ओठों पर एक मुस्कुराहट खिल जाती है। उस वक्त राम का रूठ कर दूर खड़े रहना उसकी नज़र में ऐसे बस गया की राम कि मुश्किलें देख कर पावनी को हँसी आ गई।

पावनी ने राम के पास जा कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। राम ने अनदेखा कर वहां से दूसरी ओर चला गया। लेकिन इस बार पावनी ने उसके सामने जा कर कान पकड़ कर 'सॉरी' कहा। कुछ समय बाद फिर से उनकी दोस्ती परवान चढ़ने लगी।

उन दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ने लगी और बात शादी तक आ पहुँची। दोनों अपने अपने परिवार को मनाने में कामयाब रहे और आखिरकार उन दोनों की शादी धूमधाम से हो गई। राम के घर वालों को पावनी के नौकरी करने पर ऐतराज था। कुछ साल तक किसी भी तरह घरवालों को मना कर नौकरी जारी रखी। मगर सेजल के जन्म के बाद उसे नौकरी से इस्तीफा देना ही पड़ा। तब से वह एक गृहिणी बन कर घर संभालती आ रही है।

***

पावनी शाम की पूजा ख़त्म करके बाहर निकली, उसे शरीर को फिट रखने के लिए वॉक करने की आदत थी। उस दिन भी वह वॉक के बाद थक कर एक पेड़ के नीचे बैंच के पर बैठ गयी। उसी समय पावनी का मोबाइल बजने लगा। सेजल का फ़ोन था, पावनी ने सेजल का हालचाल पूछा।

" मैं ठीक हूँ और यहाँ सब भी ठीक है।"

"कोई असुविधा तो नहीं है न बेटा? अगर कभी कुछ भी सही न लगे तो तुरंत बताना, मैं या तेरे पापा आ जाएँगे। हिचकिचाना मत।"

"ठीक है माँ।"

"तेरी सहेली पूनम कैसी है?"

"हाँ माँ वो भी ठीक है, कल उसका भाई आया था, इसलिए वह काफी खुश भी है।

"अच्छा तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं है न?"

"नहीं सब ठीक है माँ कितनी बार पूछोगी?"

"माँ हूँ न बेटा, फ़िक्र तो रहती है।"

"कह तो रही हूँ न माँ सब ठीक है फिर भी पूछती हो?

" तू अभी नहीं समझेगी जब तू भी माँ बन जाएगी तब समझ में आएगा। "

"ठीक है माँ रखती हूँ। अपना ख्याल रखना। "

"तुम भी। " फ़ोन कट गया।

बेटी की सुरक्षा, माँ की प्राथमिक चिंता होती है। समाज में लड़कियों का घूमना फिरना जैसे पाप हो गया है। शहर में लड़कियों के साथ कहीं भी कुछ भी होने का डर रहता है। बदलते समय के साथ बेटियों के लिए शिक्षा भी जरुरी है जो उन्हें आत्म विश्वास और धैर्य प्रदान करती है। अच्छी शिक्षा के लिए उन्हें बाहर भेजना ही पड़ता है। समाज में बढ़ती विसंगतियां हर घर में परेशानी का कारण बनी हुई है। मोबाइल पर कुछ देर बात करने से कुछ देर मन निश्चिन्त हो जाता है, सोचते हुए फ़ोन पर्स में रखकर उठने ही वाली थी, पीछे से कुछ आवाज़ सुनाई दी। पावनी पर्स लेकर खड़ी हुई। बेंच के पीछे झाँक कर देखा कुछ दिखाई नहीं दिया।

सूरज ढल रहा था। अँधेरा होने लगा था। पावनी जाने के लिए पीछे मुड़ ही रही थी फिर से आवाज़ आई, इस बार उसने इधर उधर देखा, रास्ते पर कोई नहीं था। कुर्सी के पीछे दो कदम आगे बढ़ कर देखा तो एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला पत्तों के ढेर से निकलने का प्रयत्न कर रहा था, लेकिन सूखे पत्तों को पार कर बाहर आने में असमर्थ था। उसके पैर में चोट लगी हुई थी, पावनी ने उसे धीरे से निकाल कर बाहर निकाला। वह बहुत ही कमजोर दिख रहा था। पावनी उसे साथ घर ले आई और पीने को दूध दिया, अच्छी तरह से पैर में पट्टी बाँधी।

***