“ अम्मा की पेंशन”
आर 0 के 0 लाल
अम्मा कई दिनों से कह रही थी जरा मिथुन को कह दो कि आते समय मेरे लिए मेहंदी लेते आएं। बालों की चांदी बहुत खराब लगती है। मैंने तुझसे भी कई दफे कहा मगर कोई सुनता ही नहीं। अम्मा ने दफ्तर जाते समय बड़े बेटे को आवाज लगाई। उसने कहा, - “ हां मां मैं लेता आऊंगा। वैसे भी अभी पंद्रह दिन पड़ा है तुम्हें ट्रेजरी जाने में।“
हर साल अम्मा पहली नवंबर को ट्रेजरी जाती हैं, जहां सभी पेंशनर्स को पेंशन लेना जारी रखने के लिए अपना लाइफ सर्टिफिकेट जमा कर देना होता है। अम्मा की भी पेंशन आती है इसलिए वह इस तारीख को कभी नहीं भूलती और पंद्रह अक्टूबर के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर देती हैं। अम्मा अठत्तर पार कर गई हैं परंतु बहुत ही सलीके से रहती हैं। मेकअप तो नहीं करती मगर उनकी हर चीज आकर्षक ढंग से व्यवस्थित रहती है। आंखों में सुरमा डालने से लेकर बालों में कंघी करना और फिर उसमें रिबन के फूल बनाते हुए चोटी को बांध देना उनकी बचपन की आदत है जो अभी तक नहीं गई है। उन्हें बालों में सफेदी चमकना कतई पसंद नहीं। वह तुरंत उनको काला करने की कोशिश करती हैं। सभी से हाथ पर जोड़ती है कि कोई उनके लिए हेयर डाई ला दे।
फिर बड़बड़ाती हैं कि मेरा ही पैसा है मगर मुझे उसे खर्च करने का क्यों अधिकार नहीं है। लड्के कहते हैं कि उन्हें तो हर वक्त सोचने की आदत है और इससे उन्हें कोई नहीं रोक सकता, यहां तक कि पूजा के वक्त भी उनके दिमाग में कुछ न कुछ चलता ही रहता है।
तब बाबूजी जिंदा थे, दफ्तर मैं उनके बहुत से दोस्त थे। उनका मानना था कि कार्यस्थल पर दोस्ती का रिश्ता कायम हो तो क्या कहने। किसी प्रकार की मानसिक अशांति का सामना नहीं करना पड़ता। शाम को जब दफ्तर से आते तो उनके साथ कोई न कोई दोस्त जरूर हमारे घर आता था और अम्मा उन्हें नाश्ता कराती थीं।
हमारे पड़ोसी यादव जी भी बाबूजी के दफ्तर में ही काम करते थे। वे आते ही कहते,- “ भाभी जी एक बढ़िया सी चाय हो जाए। आपके हाथ में क्या जादू है चाय पीता हूं तो पूरे दिन की थकान दूर हो जाती है।“ अम्मा कहती , - “ अरे भई! इतना मक्खन लगाने की क्या जरूरत है? आज आपको चाय के साथ भाजी पाव भी खिलाऊंगी।“ अम्मा को उनकी बड़ी याद आती है क्योंकि चाय पीने के बाद अम्मा उन्हें समान की एक लिस्ट पकड़ा देती थी जिसमें अम्मा के मेकअप का भी छोटा-मोटा सामान हुआ करता था। बेचारे यादवजी उसे ढूंढ कर ला ही देते थे।
अम्मा कहती थी कि तुम्हारे बाबूजी को दुकान में जाकर इन सामानों को मांगने में शर्म आती थी। आज जब कोई मुझे बालों का रंग नहीं लाकर देना चाहता और मैं दुकान पर जा रही सकती हूं तो ऐसे में यादव जी की कमी बहुत खलती है।
यादव जी कहते कि “ भाभी जी, सिद्धार्थ इस साल के अंत में रिटायर हो जाएंगे। उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट के तौर पर लगभग 10 लाख रुपये मिलेंगे। कुछ का आप अपने गहने बनवा लीजिएगा और कुछ पैसे अपने दोनों के लिए इन्वेस्ट कर दीजिएगा। यह नहीं कि सारा पैसा अपने बच्चों को दे दीजिए। बुढ़ापे के लिए भी कुछ रखिएगा वरना आज की दुनिया बहुत खराब हो गई है, बच्चे भी नहीं पूंछते। अम्मा को भी समझते थे कि इसका सबसे अच्छा तरीका पैसे को बैंक डिपॉजिट में रखना है या थोड़ा जोखिम ले कर म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश करना उचित होता है।“ मगर अम्मा कहती कि मेरे बच्चे ही मेरे फिक्स्ड डिपाजिट हैं, मुझे कोई पैसा इन्वेस्ट नहीं करना है।
बाबूजी भी तो अपने परिवार के लिए बहुत ही लापरवाह थे मगर रिश्तेदारी में कोई पैसा मांगने आ जाता तो निराश नहीं जा सकता था। भले ही अम्मा के बचाए पैसे भी जबरदस्ती लेना पड़े। कहते थे कि पैसा देने से ही पैसा आता है परंतु किसी ने कभी पैसा वापस आते नहीं देखा।
बाबूजी जब रिटायर हुए तो उनका छोटा बेटा पुष्कर निठल्ला घूम रहा था। इंजीनियरिंग करने के बावजूद भी कहीं नौकरी नहीं लग रही थी। अम्मा ने सोचा कि उसे कोई बिजनेस ही करवा दें इसलिए बाबूजी को मिले पैसों में से तीन लाख रुपए उसे दिलवा दिए। बड़ा बेटा तो मुंह ताकता ही रह गया था।
एक दिन पुष्कर की पत्नी बाबू जी से बोली पापा हम लोग पुराने घर में रहते हैं । आपको पैसा मिला है एक छोटा सा मकान बनवा दें। पुष्कर के पास पैसे आने लगेंगे तो आपके सारे पैसे वापस कर देंगे। बाबू जी ने कहा नहीं नहीं। यह सब तुम्हारे लिए ही पैसे हैं। ऐसा करो तुम तुम चेक बुक लाओ मैं अभी चेक काट देता हूं और उन्होंने पांच लाख उन्हें दे दिया और कहा बड़ा बेटा तो अच्छा खासा कमाता है, अपनी व्यवस्था वह खुद ही कर लेगा। अम्मा भी उनकी बात से सहमत थी। मगर बड़े लड़की की पत्नी ने तो पूरा घर सर पर उठा लिया था। अम्मा को बहुत भला बुरा कहा। बड़ा बेटा भी कुछ नहीं बोला। बाबूजी और अम्मा बहुत दुखी हुये । अम्मा बाबूजी से बोली अभी भी आपके पास दो लाख पड़े हैं उसे बड़ी बहू को दे दीजिए। बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा जल्दी से चेक कटवा लो। बाबूजी की फिजूलखर्ची बढ़ती जा रही है पता नहीं किसको पैसे दे दें। उसे तभी चैन पड़ा जब अम्मा ने बाबू जी से चेक कटवा कर उसके हाथों पर रख दिया।
एक दिन पैसा न जमा करने के कारण घर की बिजली कट गई। बाबूजी ने सबको बुलाया और पूछा कि क्यों नहीं पैसा जमा हुआ? सभी ने कहा इस महीने तो कमाई का कुछ बचा ही नहीं है । अम्मा ने तुरंत अपने संदूक से पैसा निकाल कर जमा कराने के लिए दिया। बाबूजी ने कहा अब वह हर महीने अपने पेंशन से बिजली का बिल जमा कर देंगे। आए दिन घर में कोई न कोई कमी बनी ही रहती। बाबूजी और अम्मा जी उसे पूरा करने के लिए अपनी पेंशन खर्च करते थे। उन दोनों ने कई दफे नए कपड़े बनवाने की सोची मगर खर्चों की भरमार के कारण उसका नंबर ही नहीं आया। दोनों बहुएं बाहर ठेले पर सब्जी भी खरीदती तो किसी न किसी बहाने से पैसे की मांग कर लेती। अम्मा सब समझती थी मगर पैसे निकालकर देती रहती।
बाबूजी का सारा पैसा तेजी से खर्च होने लगा तो अम्मा से पूछा कि अधिकतर सेवाओं में 60 साल के बाद लोगों को रिटायरमेंट दे दिया जाता है लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो इस उम्र के बाद भी खुद को ऐक्टिव महसूस करते हैं। मै भी अभी शारीरिक रूप से काम करने के लिए सक्षम हूं। अगर तुम कहो तो मैं छोटी मोटी कोई नौकरी कर लूं। उन्होंने प्रयास करके एक चिट फंड कंपनी में असिस्टेंट की नौकरी कर ली। अब तो बेटा और बहू दोनों खुश थे। अम्मा ने बाबूजी को काम करने से कई दफे मना किया क्योंकि अम्मा को समझ में आ रहा था कि उनका शरीर साथ नहीं दे रहा है, वे शाम को वापस आते तो बहुत थके होते।
यादव जी अम्मा को समझाते जरूर थे मगर जब वे भी रिटायर हुए तो उनके बच्चों ने भी उनके अधिकतर पैसे ले लिए और उनसे कहा कि अब आप गांव में रहिए, वहां अपना घर तो है ही, जो खाली पड़ा रहता है। वहां आपकी सेहत भी अच्छी रहेगी। यादव जी की एक न चली और वह अपनी पत्नी के साथ गांव चले गए। साल में एक दफे वे गांव से ट्रेजरी में लाइफ सर्टिफिकेट देने के लिए आते हैं ।
अम्मा उन्हें अपने देवर से बढ़कर मानती हैं इसलिए उन्हें इंतजार रहता है कि पहली नवंबर को उनसे मुलाकात करके कुछ बातें कर लें और उनसे बात करके अपने दिल को हल्का कर लें। अम्मा भी दस बजते ही ट्रेज़री पहुंच जाती हैं और दफ्तर के बाहर बरगद के नीचे चबूतरे पर बैठकर उनका इंतजार करती हैं। यादव जी आते ही अम्मा का चरण स्पर्श करते और अपने साथ गांव से कुछ न कुछ ला कर अम्मा को देते । उस दिन कह रहे थे कि भाभी जी, हम आपके लिए चावल की ढूंढ़ी लाए हैं जो आपको बहुत अच्छी लगती है।
यादव जी और अम्मा का बात करने का कुछ अलग ही मजा है। पूरा दिन दोनों लोग न पॉलिटिक्स की बात करते न क्रिकेट की, केवल अपने परिवार एवम् अपने सुख की बात करते हैं। अपने दुखों के बारे में भी कुछ नहीं बात करते। ट्रेजरी ऑफिस से साथ ही साथ फॉर्म लेते हैं और भर कर जमा करते हैं। तब तक चाय वाला आ जाता है और दोनों लोग चाय पीते हैं। चाय का पैसा अम्मा ही देती हैं। अम्मा भी कुछ खाने का सामान ले जाती हैं।
बाबूजी को जब दिल का दौरा पड़ा था यादव जी ने मेरी मदद की थी। अम्मा उनका एहसान जिंदगी भर नहीं भूल सकती। उनके देहावसान के बाद सभी तरह के कार्य यादव जी ने ही किए यहां तक कि बैंक का खाता भी अम्मा के नाम करा दिया। पेंशन अब अम्मा के खाते में जमा होती थी।
अम्मा ने बैंक के सारे कागजात बड़े लड़के को पकड़ा दिया और कहा,- “ संभाल बेटा इसे , मेरे को इस पैसे से क्या लेना देना, जो भी तुम्हारे मन में आए करना।“ मगर छोटे बेटे की पत्नी लड़ने लगी कि जेठ जी हमेशा अम्मा के पैसे निकाल लेते हैं। मेरा भी उसमें हिस्सा है। मैं भी सास की सेवा करती हूं। दोनों भाई लड़ाई न करें इसलिए अम्मा ने कहां मैं तुम दोनों को हर महीने बारी-बारी से पैसे दे दिया करूंगी। अब उनकी पेंशन एक महीना बड़े बेटे को मिलती तो दूसरे महीने छोटे को। दोनों पहली तारीख का इंतजार करते रहते।
एक बार अम्मा बीमार पड़ी। अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बड़े ने छोटे से कहा इस महीने का चेक तुमने लिया है इसलिए तुम ही इलाज का खर्चा उठाओगे। छोटे की पत्नी बोली यह ठीक नहीं है इलाज का पैसा आधा तुम दोगे और आधा बड़े भैया देंगे क्योंकि दोनों बराबर से पेंशन लेते हैं। इसी झगड़े में अम्मा को कोई अस्पताल नहीं ले गया। अम्मा भी चुपचाप नीम और लसोढ़ा का काढ़ा पी- पी कर ठीक हो गई थी। कहती है भगवान की जैसी मर्जी। अब चला चली की तैयारी है मैं क्या करूंगी पैसा लेकर लेकिन मेरी पेंसन को लेकर सब लडते रहते हैं यह ठीक नहीं है । अम्मा की पेंशन ही पूरे परिवार के लिए झगड़े और अशांति की जड़ है।
अम्मा मनाती रहती हैं कि भगवान उन्हें जल्दी से उठा ले जिससे उनकी पेंशन आना बंद हो जाए और फिर से घर में सुख शांति स्थापित हो जाए।
‘’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’