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अफेयर्स का कन्फेशन

“अफेयर्स का कन्फेशन”

आर 0 के 0 लाल

शादी के बाद प्रथम मिलन की रात में पूर्णिमा चारपाई पर बैठी घूंघट के भीतर से अपने हसबैंड अनुज को देख रही थी जो सफेद कुर्ता पजामा पहने हुए अत्यंत मोहक लग रहे थे और उसके बगल में बैठे थे। अनुज बोले, - " देखो आज वो रात आ गई जब हम दोनों एक होने वाले हैं। हम बात की शुरुआत उस चीज से करेंगे जिससे हम दोनों को एक दूसरे के अतीत के बारे में पता चले और हम आपस में इमानदार रहें। हम चाहते हैं कि आप भी हमें अपनी जिंदगी का हर वह पहलू बताएं जिससे हमें आपका हमराज होना चाहिए। फिर उन्होंने कहा यकीन मानो मुझे तुम्हारी पुरानी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं है। फिर भी अगर सब पता चल जाए तो दिल को तसल्ली होगी।"

पूर्णिमा भी सब समझती थी कि सुहागरात में अपने पुराने अफेयर के बारे में कहने का रिवाज आजकल लड़कों लड़कियों में देखा जाता है। मगर कभी-कभी ऐसे कन्फेशन इतने भूचाल भी लेकर आते हैं कि जिंदगी भर पछताना पड़ता है। शायद लोगों का उद्देश्य अपनी गलतियों को बता कर उसकी इतिश्री कर लेना है जिससे आपस में उनका प्यार प्रगाढ़ता की सीमा तक बन जाए। इसलिए भी अक्सर शादी के बाद पति‌- पत्नी पहली ही रात को एक दूसरे से कुछ इस तरह प्रश्न करते हैं । उनका मतलब सीधा होता है कि पता चल सके कि कहां कहां अफेयर या डेटिंग की गई है और किस स्तर तक उसके संबंध थे। पूर्णिमा कुछ नहीं बोली और सिर्फ मुस्कुरा दी। वैसे तो पूर्णिमा हमेशा बड़ी-बड़ी बात करती थी मगर आज सुहागरात होने की वजह से एकदम शांत थी।

अनुज ने एक लंबी सांस ली और कहा,- “ पहले मैं ही लड़कियों से अपने संबंधों बारे में बताता हूं।

मैं लोगों को बताता था कि मेरी तो बहुत गर्लफ्रेंड हैं। किसी लड़की से दोस्ती के लिए सहमत करवा लेना युवकों के लिए काफी बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी इसलिए दोस्तों में मेरी धाक थी। अन्य लड़के तो अक्सर ये समझ नहीं पाते कि इंप्रेस करने के लिए किस तरह लड़की से बात करें । मै डींगे तो हांकता था पर वास्तव में किसी को इंप्रेस करने में कामयाब नही हुआ था। ऐसे में मैं काफी परेशान रहने लगा था। तभी प्रैक्सिमिटी, फ्रेंड पार्टनर डॉट कॉम एवम् क्विक क्विक आदि डेटिंग साइट का पता चला जो परिचय एवं प्यार पाने के दृष्टि कोण से एक वेवसाइट हैं तथा उनसे चैट करना भी आसान है। डेटिंग का मतलब है प्यार की शुरूआत, किसी एक ही व्यक्ति के साथ घूमना-फिरना या मिलना-जुलना जिसे आप पसंद करते हैं और उसे भी आपमें दिलचस्पी है। मैंने भी अपने को उस पर रजिस्टर कराया और भाग्य से मुझे एक लड़की से अपॉइंटमेंट भी मिल गया धीरे-धीरे उससे दोस्ती हो गई । मुश्किल से दो डेटिंग हमें मिला कि उसे पढ़ाई के लिए यू0 के0 जाना पड़ा और हमारा संबंध विच्छेद हो गया। सारी मेहनत पर पानी फिर गया था।

लगभग एक साल बाद फेसबुक पर एक और गर्लफ्रेंड बनाने में मैं सफल हो गया था, भले ही उसके पीछे मेरी पढ़ाई खराब हो गई। उसका नाम अंजलि था। हम लोग प्यारी-प्यारी चैटिंग करते थे और योजना बनाते थे कि जब मिलेंगे एक दूसरे को बहुत प्यार करेंगे, लेकिन हम लोग सिर्फ एक दूसरे को मिस ही करते रहे। कभी मौका ही नहीं मिला क्योंकि वह बहुत दूर मुंबई में रहती थी । हमारा संबंध वर्चुअल ही था वास्तविक नहीं था। हम लोगों को सिर्फ फोटो से काम चलाना पड़ता था। आज भी हम एक दूसरे के संपर्क में हैं और गुड मॉर्निंग एवं ग्रीटिंग का आदान प्रदान करते हैं।

तीसरी और अंतिम लड़की सुषमा थी जो मेरी सबसे नजदीकी दोस्त थी, जिसके साथ मैंने सबसे ज्यादा समय बिताया था। वह मेरे साथ ही पढ़ती थी। एक बार हम लोग शिमला घूमने गए। वह सारे समय हमारे साथ ही रहती थी। एक ही साथ होटल में भी ठहरे थे। मन में बड़ी इच्छा थी कि हम लोग भी वह सब कुछ करेंगे जिसके बारे में हमारे दोस्त बताते रहते थे। सारी योजना के बाद भी हिम्मत नहीं पड़ी। क्योंकि होटल के कमरे में हम लोग के साथ हमारे टीचर भी ठहरे थे। वापस अपने शहर आए तो दो-तीन दिन बाद हमारी मुलाकात आपसे हुई। मैंने सुषमा से फोन पर पूछा कि आपको कैसे पटाया जाए तो उसने कहा लड़कियों को अक्सर आंखों से बात करने वाले और हंसी मजाक करने वाले लड़के बहुत अच्छे लगते है। लड़की के सामने ऐसी बाते करो जिसमें उसे भी दिलचस्पी हो। लड़की को भी खुलकर बात करने का पूरा मौका दें। मैंने ऐसा ही कुछ किया और आप पट गईं। आप ने तो सीधे ही मुझे प्रपोज कर दिया था। मेरे इश्क की इतनी ही दास्तां है। इसके अलावा हमने लड़कियों से छेड़खानी बहुत की है लेकिन किसी के साथ कभी ऊंच-नीच हमारी ओर से तो नहीं हुई।“

अनुज ने फिर कहा कि देखिए हमने आपको अपनी जिंदगी के बारे में बता दिया है अब आप अपने बारे में बताइए।

घूंघट के पीछे से पूर्णिमा की दबी हुई आवाज आई, -“ क्या हमें बताना जरूरी है, क्या हम यह कह दें कि हमारी जिंदगी के ऊपर केवल आपका अधिकार है तो वह पर्याप्त नहीं होगा।“

अनुज ने कहा मुझे विस्तार से सब कुछ सुनना है तो पूर्णिमा बोली, - "पहली बात तो यह है कि आपने यह प्रश्न किया। इसका मतलब है कि आपको लगता है कि मैं किसी न किसी के साथ अवश्य गलत संबंध रख चुकी हूं। आपका सोचना गलत नहीं है आजकल चंद लोग ऐसे हैं जिनके कारण सभी के मन में संदेह होना स्वाभाविक है। मगर अभी भी बड़ी संख्या में लड़कियां संस्कारी हैं।“

एक आह भरते हुए पूर्णिमा ने कहा, - “हमने कभी कुछ ऐसा नहीं किया जिससे कि हमारे माता-पिता को आंखें झुकानी पड़ी हो फिर भी एक हादसा ऐसा है जिसे हम जिंदगी भर नहीं भूल पाते। वह मैं आपको बताती हूं। तब मैं सिर्फ 10 साल की थी और हमारी एक दोस्त अरुणिमा थी। उसके घर हम अक्सर जाते थे। कसम से हमें कभी भी उसके चाचा के लिए दिल में बुरे ख्याल नहीं आये थे लेकिन वह हर पल हमें अपनी नजर से घूरते रहते थे। कभी-कभी पकड़ लेते और चिकोटी काट लेते, गाल पर चपत लगा देते। मुझे अच्छा लगता कि पूर्णिमा के चाचा मुझे प्यार कर रहे थे । वे पढ़ाई से संबंधित कुछ सवाल पूंछते और सही उत्तर देने पर मेरी तारीफ करते और पकड़ कर पीठ थपथपाते। अक्सर यह सब अच्छा नहीं लगता था परन्तु मेरी सहेली कहती, पगली वह तुम्हें चिढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं, तुम्हें कोई टेंशन नहीं लेनी चाहिए। मैं किसी शिकायत भी नहीं कर सकती थी क्योंकि मैं और अरुणिमा बेस्ट फ्रेंड थे। कुछ दिनों बाद मेरा दिल जानने लगा था कि उसके चाचा इतने गंदे थे कि जानबूझकर हमें टच करते थे ।

एक दिन हमारी जिंदगी का वह खराब दिन आ गया जब मैं अरुणिमा के यहां पापड़ बनाने गई थी उसके चाचा दोपहर को खाने पीने का सामान ले आए थे हम साथ बैठ कर खा रहे थे। खाने के बाद उन्होंने अरुणिमा को किसी बहाने से कहीं भेज दिया और फिर मुझे अपनी और खींच लिया। मैं दस साल की ही थी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। मैंने उनसे कहा अंकल मुझे छोड़ो लेकिन उनके ऊपर कोई असर नहीं पड़ रहा था। जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैं काफी जोर से चिल्लाई और अपने को छुड़ाने का प्रयास किया मगर उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी। उसके चाचा मुझे भरोसा दिला रहे थे कि परेशान मत हो बस तुम्हें प्यार ही तो कर रहा हूं। तभी मैंने जोर से उनके हाथ पर अपने दांत गड़ा दिए कि खून बहने लगा । उनके चेहरे पर दो झापड़ भी मारे जिसकी शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की रही होगी। अचानक सीढ़ियों पर किसी के आने की आहट मिली तब उसके चाचा वहां से अपना हाथ दबाए भाग गए। मैं बहुत डर गई थी। मैंने अपनी मां से सारी बात बताई। उन्होंने उसके चाचा की अच्छी खबर ली। वे कान पकड़ कर उठे बैठे। अगर थोड़ी देर अरुणिमा और नहीं आती तो पता नहीं क्या हो जाता, सोच कर मैं आज भी कांप जाती हूं। मन से उस घटना को निकाल पाना मेरे लिए बहुत कठिन है।"

उसके बाद मैं एक ऐसे लड़के से खुलकर मिली जिससे हमारे घर वालों ने शादी कर दिया था और हमें इजाजत दी थी कि उससे मिलकर उसे अच्छी तरह समझ लूं। मुझे लड़का पसंद आ गया और मैंने उससे शादी के लिए स्वयं प्रपोज कर दीया। वह लड़का आज भी मेरे दिल में बसा हुआ है और मैं उसे कभी अपने से जुदा नहीं कर पाऊंगी। फिर उसने कहा कि इस समय भी वह मेरे बगल में बैठा हुआ है । इतना कहकर पूर्णिमा हंसने लगी।“

अनुज में कहा, ‌ “ पूर्णिमा मुझे आपके ऊपर गर्व है। आशा है हम एक अच्छे जीवन साथी बनेंगे। मगर आज समाज में बहुत से लोग हैं जो आए दिन बच्चों का सेक्सुअल मॉलेस्टेशन, एब्यूज, यौन शोषण और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं और बच्चों की मासूमियत को तार-तार कर रहें हैं, हमें उनके खिलाफ कुछ न कुछ करना चाहिए।“

पूर्णिमा उनके विचार से बहुत खुश हुई और बताया कि मैं जब से स्कूल में टीचर बनी तभी से सभी बच्चियों को सिखाती हूं कि ऐसे चाचाओं से कैसे बचा जाए। उन्हें अच्छे टच एवम् खराब टच में अंतर समझाती हूं और जागरूक करती हूं कि अगर बुरा टच करे तो उन्हें विरोध करना चाहिए, चिल्लाना या किसी को बुलाना चाहिए और उसकी शिकायत करनी चाहिए। उसे कदापि नहीं सहना चाहिए भले ही अच्छा लगे। बच्चों को हम सिखाते हैं कि आंखे बोलती है इसलिए आंखों को पढ़ना सीखो। बोलने से मतलब यह है कि किसी को देखने के भाव में कोई मतलब छुपा होता है। किसी को घूर कर देखने का मतलब होता है कि हम सामने वाले से डर नहीं रहे हैं।

अनुज ने पूर्णिमा को इस कार्य में पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।

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