दस दरवाज़े - 21 Subhash Neerav द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दस दरवाज़े - 21

दस दरवाज़े

बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ

(चैप्टर - इक्कीस)

***

सातवां दरवाज़ा (कड़ी -3)

जैकलीन : यह कैसा मुकाबला

हरजीत अटवाल

अनुवाद : सुभाष नीरव

***

जैकलीन के यहाँ से वापस लौटकर मैं एक नए जोश में हूँ। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो खोया हुआ कुछ मिल गया हो। धीरे-धीरे मैं सोचने लगता हूँ कि बमुश्किल तो स्त्रियों के चक्कर से बाहर निकलकर एक अच्छा गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगा हूँ। मैं अपने घर में बहुत खुश हूँ। जैकलीन तो मेरे शांत जीवन में खलल डाल देगी। मैं सोचता हूँ कि जैकलीन से मुझे दूर ही रहना चाहिए।

एक दिन दोपहर में मेरे घर की डोर बेल बजती है। जैकलीन बाहर खड़ी है। पहले तो मेरा दिल करता है कि दरवाज़ा ही न खोलूँ, पर फिर सोचता हूँ कि वह किसी मुसीबत में ही न हो। मैं दरवाज़े पर जाता हूँ। वह पूछती है -

“मैं अन्दर आ सकती हूँ?”

मैं एक तरफ हो जाता हूँ। वह अन्दर आ जाती है और कहने लगती है -

“मैंने बाहर खड़ी तुम्हारी वैन से अंदाजा लगाया कि तुम घर पर ही होगे। मिसेज सिंह काम पर हैं?”

“हाँ, वह काम पर है।”

“फिर तो मेरा आना सफल है।”

“नहीं जैकी, हमें एक सीमा में रहना चाहिए। उस दिन भी बहुत बड़ी गलती हो गई।”

“कोई गलती नहीं सिंह, मैं तुझे बहुत प्यार करने लगी हूँ। मैं जानती हूँ कि तू बच्चों वाला है। मेरे से उम्र में भी बहुत बड़ा है, पर मैं तुझे तहेदिल से प्यार करती हूँ।”

कहती हुई वह मेरे करीब आने लगती है। कुछ देर तक तो मैं अपने आप को रोकता हूँ, पर अधिक देर खुद को संभाल नहीं पाता।

जैकलीन चली जाती है, पर मैं सोच में पड़ जाता हूँ। सोचते-सोचते मेरे अन्दर एक तार-सी दौड़ने लगती है, यदि मेरी पत्नी को पता चलेगा या रोजमरी तक बात पहुँचेगी तो क्या होगा! मेरी इज्ज़त का क्या रह जाएगा! मैं एकबार फिर खुद से वायदा करता हूँ कि दुबारा जैकलीन की ओर नहीं झुकूँगा।

अगली शाम रोजमरी मिलती है। उसके चेहरे पर हल्की-सी उदासी है। उसकी आँखें भी जैसे बदली-बदली-सी हों। मैं डर जाता हूँ कि शायद उसको पता चल गया है। मैं उसको धीमे-से ‘हैलो’ कहता हूँ, वह मद्धम-सा जवाब देकर चली जाती है। मेरा मन घबराने लगता है।

अब मैं रोजमरी से आँखें चुराने लगता हूँ। वह भी पहले की भाँति बातें नहीं करती। यदि सामने पड़ जाए तो घुटी-घुटी रहती है। मैं उससे बचने की कोशिश करता रहता हूँ।

मैं जैकलीन से भी न मिलने के लिए लुकता-छिपता फिरता हूँ। पॉर्क में भी नहीं जाता कि कहीं जैकलीन ही न मिल जाए। यही यत्न करता हूँ कि काम पर से अपने घर ऐसे समय लौटूँ कि पत्नी भी लौट आई हो। मैं अजीब-सी स्थिति में फंस जाता हूँ। ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ।

छुट्टी का दिन है। मैं गार्डन में बच्चों के संग खेल रहा हूँ। जैकलीन मुझे देखकर बाहर आ जाती है और मुझसे कहती है -

“सिंह, मुझे तुझसे मिलना है, बहुत ज़रूरी काम है।”

“जैकी, हमें अब यह खेल बंद कर देना चाहिए।”

“हम क्या बुरा कर रहे हैं! आखि़र हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं।”

“यह प्यार नहीं हवस है। तू कोई हमउम्र लड़का ढूँढ़कर दोस्त बना ले।”

“सिंह, मैं तुझे चाहती हूँ।”

“देख जैकी, तू बहुत अच्छी लड़की है, पर मैं तेरे साथ और आगे तक नहीं चल सकता। देख ये मेरा घर, मेरे बच्चे!”

“सिंह, मैं सब समझती हूँ। तू एकबार मिल तो सही। मेरे साथ खुलकर बातें तो कर। तुझे पता चल जाएगा कि मैं तुझे कितना चाहती हूँ।”

तभी मेरी पत्नी बाहर आ जाती है। जैकलीन पैर पटकती लौट जाती है।

एक दिन मैं वैस्ट रोड से मेन रोड की ओर मुड़ता हूँ तो सामने जैकलीन आती हुई दिखाई पड़ती है। वह मुझे हाथ देती है। मैं वैन रोक लेता हूँ। वह दरवाज़ा खोलकर वैन में आ बैठती है और कहने लगती है -

“मैंने तेरी वैन को दूर से ही पहचान लिया था। मेरा दिल तेरे संग बातें करने को करता था।”

“जैकलीन, यदि किसी ने तुझे मेरे साथ वैन में बैठा देख लिया तो क्या सोचेगा?”

“मुझे कोई परवाह नहीं, मैं तो तेरे साथ कुछ बातें करने के लिए ही बैठी हूँ।”

“मैं साउथ लंदन जा रहा हूँ, चलेगी मेरे साथ? घंटेभर का काम है।”

“क्यों नहीं, आखि़र ट्रैवलर की बेटी हूँ, मुझे घूमना अच्छा नहीं लगेगा तो और किसे लगेगा!“

वह ठीक होकर बैठते हुए कहती है। मैं एक्सीलेटर को दबाते हुए कहता हूँ -

“बता जैकी, तू क्या कहना चाहती है।”

“मैं तो सिर्फ़ यह पूछना चाहती हूँ कि तू मेरे से दूर क्यों भाग रहा है। मैं कोई खतरनाक लड़की नहीं हूँ। मैं तो बहुत ही सादी-सी लड़की हूँ।”

“मैं तेरे से दूर इसलिए नहीं भाग रहा कि मैं तुझे पसंद नहीं करता। तू तो वाकई बहुत अच्छी लड़की है। मैं दूर इसलिए भाग रहा हूँ कि मैं अपना विवाहित जीवन बचाकर रखना चाहता हूँ। पहले भी मेरा एकबार तलाक हो चुका है। मैं दुबारा इस मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता।”

“सिंह, मैं समझती हूँ कि मैरीड लाइफ़ कितनी इम्पोर्टेंट होती है। मैंने अपनी मॉम का अकेलापन देखा है, पर मैं तो तेरा थोड़ा-सा वक्त ही चाहती हूँ।”

मुझे कुछ सामान डिलीवर करना है। जैकलीन मेरी पूरी मदद करवाती है। वापस लौटते समय वह पूछती है -

“इंडिया बहुत बड़ा देश है?”

“काफ़ी बड़ा है, ऊपर से नीचे तक तीन हजा़र मील होगा।”

“मैं कुछ देश देखना चाहती हूँ - अमेरिका, ब्राजील, चीन और इंडिया।”

“ज़रूर देखना, सारी उम्र पड़ी है। पहले कोई डिग्री कर ले।”

“सिंह, तेरे अन्दर से मेरी मॉम बोल रही है। वह भी यही बात कहती है।”

“मैं क्या, हर बड़ा आदमी तुझे यही सलाह देगा। पढ़ाई सबसे पहले है।”

“मैं भी मानती हूँ यह बात। यह वर्ष तो मेरे ब्रेक का है, अगले वर्ष यूनिवर्सिटी जाऊँगी और डिग्री करने के बाद एक साल घूमूँगी।”

बातें करती जैकलीन बहुत ही प्यारी लग रही है। उसकी बातचीत के अन्दर का अल्हड़पन और चुलबुलापन मुझे भी अपनी उम्र के कमसिन दिनों की ओर ले जा रहा है। मुझे उसकी तरह बातें करना अच्छा लगने लगता है। हम दो-तीन घंटे बाद वापस लौटते हैं। मैं उसको उसके घर से थोड़ा हटकर रोड पर उतार देता हूँ।

अगले दिन ही रोजमरी मुझे उसके साथ माइको को मिलने के लिए भेज देती है।...

ट्रैवलर कैंप से वापस लौटते हुए हम दोनों ही खामोश हैं। मैं पूछता हूँ -

“पिता से बिछुड़कर उदास है।”

“नहीं, मैं सोच रही हूँ कि ईश्वर ने मुझे इस स्थिति में क्यों डाला?”

“जैकी, स्थिति तो अब मेरी गम्भीर होने वाली है। माइको के ज़रिये अपने बारे में रोजमरी को भी पता चल जाएगा।”

“मतलब?”

फिर अपने आप ही कहती है -

“सिंह, इसके बारे में कोई चिन्ता न कर, मॉम को सब पता है।”

“क्या?”

“मैंने उसको सब बता रखा है।”

मैं विस्मित नज़रों से उसकी ओर देखने लगता हूँ। वह फिर कहती है -

“तुझे लेकर हम दोनों में खासी लड़ाई हुई। मुझे लगता है कि वह भी शायद तुझे पसंद करती है।”

“जैकी, चल यह सब हम अभी, इसी वक्त रोक दें। तू अपने लिए कोई नौजवान युवक तलाश ले।”

“सिंह, अब यह रिश्ता मुझे पूरी तरह लपेट में ले चुका है। अब मैं किसी अन्य लड़के के बारे में कैसे सोच सकती हूँ?”

“ऐसा कुछ नहीं होता। नए दोस्तों से मिलें तो नए रिश्ते बनने लगते हैं और पुराने भूल जाया करते हैं।”

“नहीं सिंह, यह नहीं हो सकता। मैं तुझे बहुत पसंद करती हूँ।” वह मेरे से लिपटती हुई कहती है।

मैं इस बारे में बहुत अधिक सोचने लगता हूँ। एक तरफ मैं रोजमरी की नज़रों में गुनाहगार बना बैठा हूँ और दूसरी तरफ अपनी नज़रों में भी। जब पत्नी के करीब जाता हूँ तो कभी-कभी गुनाह भावना कुछ अधिक ही प्रबल होने लगती है। एक दिन मैं जैकलीन से कहता हूँ-

“जैकी, मैं अपने परिवार की उपेक्षा नहीं कर सकता। पूरा एक महीना मैं तुझसे नहीं मिलूँगा।”

“सिंह, इतना निर्दयी न बन।”

“जैकी, प्लीज़, एक महीना दे। तू कोशिश कर यदि कोई अन्य ब्वॉय-फ्रेंड मिल जाए तो।”

मैं याचना-सी करते हुए कहता हूँ। जैकी रोने लगती है। मैं पुनः कहता हूँ -

“और फिर अब तू काम की तलाश कर। तुझे पता है न कि अगले साल तुझे यूनिवर्सिटी जाना है। तब तक कोई जॉब कर ले।”

“सिंह, यह बात नहीं...।”

“जैकी, कोई बात न कर। तू इस रिश्ते से ज़रा बाहर तो निकल, मैं कौन-सा कहीं गया हूँ, यहीं हूँ, तेरे आसपास।”

“मेरे सभी मित्र अब तेरे बारे में जानते हैं, मैंने सबको बता रखा है।”

“तो क्या हुआ... वो कौन-सा पराये हैं, तेरे ही तो दोस्त हैं।”

धीरे-धीरे मेरी बात का उस पर असर होने लगता है। वह मुझे फोन करना कम कर देती है। हमारा सामना भी कम होने लगता है। यदि कहीं गार्डन में या बाहर कहीं दिखाई दे जाए तो मैं शीघ्रता से ओट में हो जाता हूँ। मुझे एक तसल्ली-सी होने लगती है कि शुक्र है, जैकलीन से पीछा छूटा।

एक दिन अचानक रोजमरी से मेरा सामना हो जाता है। वह बातें करने लगती है। कुछ कुछ याद करती हुई बताती है -

“हाँ सच, सिंह, जैकी को हाई रोड की प्रैजले म्युजिक शॉप में काम मिल गया है।”

“यह तो अच्छा हुआ, पर उसका एक साल का ब्रेक लेना मुझे अच्छा नहीं लगा।”

“सिंह, अच्छा तो मुझे भी नहीं लगा, पर वह कहती है कि एक साल काम का अनुभव लूँगी। मैंने कहा - चल, तेरी मरज़ी।”

फिर वह कुछ देर माइको की और फिर इधर-उधर की बातें करने लगती है।

एक दिन मैं पॉर्क में बैठा हूँ। दूर जैकलीन किसी लड़के के साथ घूमती दिखाई देती है। मैं खुश हो जाता हूँ कि चलो, उसने कोई ब्वॉय-फ्रेंड तो खोज लिया। लेकिन साथ ही दिल में हलकी-सी चीस भी उठती है। मेरा दिल करता है कि वह मुझे देखे और मेरी तरफ आए तथा अपने ब्वॉय फ्रेंड को मुझसे मिलवाए। वह सच में मेरी ओर आने लगती है। उसके संग चला आता लड़का अजीब तरीके से चल रहा है। वह ज़रा और निकट आते हैं तो मुझे लड़के के हाथ में सफ़ेद छड़ी दिखाई देती है। मेरी आँखें फटी रह जाती हैं। यह तो कोई अंधा लड़का है। मेरा दिल बैठने लगता है। जैकलीन दूर से ही बड़ी-सी मुस्कराहट देती मुझे हाथ हिलाती है। मैं बेंच पर उनके बैठने के लिए जगह बनाता हूँ। जैकलीन कहने लगती है -

“सिंह, यह डेविड है, मेरा दोस्त... और डेविड, यह मिस्टर सिंह है, हमारे पड़ोसी। बहुत नेक व्यक्ति हैं।”

“हैलो मिस्टर सिंह।” कहते हुए डेविड अपना हाथ निकालता है। मैं उससे हाथ मिलाता हुआ उन्हें बैठने के लिए कहता हूँ। जैकलीन बताती है -

“डेविड मेरे साथ ही काम करता है, प्रैज़ले म्युजिक शॉप में।”

“कंग्रेचूलेशन फॉर जॉब! मुझे रोजमरी ने बताया था।”

“हाँ, वह बहुत चिंता कर रही थी, पर मैंने कहा कि प्रॉमिज़, अगले साल यूनीवर्सिटी ज़रूर जाऊँगी।”

“गुड लक जैकी!”

“थैंक्स! गुड लक तो मेरी यह है कि मुझे डेविड जैसा दोस्त मिल गया। यह बहुत बढ़िया गायक भी है।”

“सच डेविड! तुम क्या गाया करते हो?”

“कुछ खास नहीं। मैं ऐबा और बी ज़ीज़ के गीत गा लेता हूँ।”

“अपनी भी कोई धुन बनाता है कि नहीं?”

“मेरा दिल तो बहुत करता है कि अपना संगीत बनाऊँ, पर अभी बना नहीं पाता।”

बातें करते हुए उसके अंधेपन के लिए मेरा अचरज घटने लगता है। जैकलीन बताने लगती है -

“सिंह, एक बात और बहुत अच्छी है कि डेविड को भी मेरी तरह अन्य देशों में घूमना अच्छा लगता है। यह भी ब्राजील और इंडिया जाना चाहता है।”

“सच डेविड!”

“हाँ मि. सिंह, मैं उन देशों की आबोहवा महसूस करना चाहता हूँ, अच्छी तरह पहचानना चाहता हूँ। मैं तो समुद्र के किनारे जाता रहता हूँ। कहीं भी दो मिनट खड़े होकर बता सकता हूँ कि यह कौन-सा बीच है।”

डेविड बेहद उत्साहित होकर बताता है। जैकलीन उत्सुक नज़रों से उसकी ओर देखे जा रही है। वह कुछ देर बैठकर चले जाते हैं। मैं बैठा हुआ जैकलीन के विषय में सोचने लगता हूँ। अजीब-से सोच-विचार मेरे मन में उठ रहे हैं। मुझे जैकलीन से दोस्ती नहीं तोड़नी चाहिए थी।

(जारी…)