घर का माहौल r k lal द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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घर का माहौल

“घर का माहौल”

आर 0 के 0 लाल

हेलो सविता! कैसी हो? हम लोग सोच रहे हैं कि शुक्रवार को तुम्हारे यहां आ जाएं। बहुत दिन से मुलाकात नहीं हुई है। राधिका ने फोन पर पूछा। सविता ने बीच में ही उसे रोकते हुए कहा -“शुक्रवार को हम लोग खाली नहीं हैं, ऐसा करो कि तुम लोग शनिवार की शाम को आ जाओ।” राधिका ने पूछा- “क्यों, तुम लोग कहीं बाहर जा रहे हो क्या?” नहीं! तुम आओगी तो बताऊंगी सविता ने उत्तर दिया।

शुक्रवार को राधिका अपने पति रमन के साथ शाम को सविता के यहां गई। सविता ने उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया। उसने अपने पति को भी बुला लिया। सभी बातें करने लगे। सविता ने अपनी बेटी को पानी लाने के लिए कहा और पूछा भाई साहब जल्दी में तो नहीं है? रमन ने कहा- नहीं, परन्तु कल आप लोग कहां बिजी हो गए थे? बेटे अंशु के बारे में सविता ने बताया कि वह खेलने गया है, छ: बजे तक आ जाएगा। रमन को आश्चर्य तब हुआ जब ठीक छ: बजे वह घर पहुंच गया। सविता ने अंशु को मेहमानों से मिलाया फिर कहा- “ बेटा सबके लिए चाय बना कर ले आओ साथ ही थोड़ी सी पकौड़ी भी बना लेना।” अंशु रसोई में चला गया।

मेहमानों को बहुत अजीब लगा कि सविता न तो स्वयं किचन में गई और न ही अपनी बड़ी बेटी से चाय बनाने को कहा। उसने अपने बेटे को यह कार्य दिया। ऐसा तो कहीं देखा ही नहीं। क्या वह छोटा बच्चा खाने लायक चाय-पकोड़ी बना पाएगा? उनसे नहीं रहा गया तो पूछ ही लिया- “क्यों भाभी जी! इतना छोटा बच्चा कैसे चाय और पकौड़ी बना पाएगा?” तभी अंशु की आवाज आई मां थोड़ा हलवा बना दूं क्या? अंकल बहुत दिन बाद आए हैं। उसने कहा- बना दो मगर सूजी के बनाना जो जल्द बन जाता है। थोड़ी देर बाद अंशु ट्रे में नाश्ता ले आया।

रमन और उसकी पत्नी बहुत हैरान थे। उन्होंने पूछा- “बेटा तुमने तो कमाल ही कर दिया। क्या सही में तुमने यह बनाया है? क्या तुम इसकी रेसिपी बता सकते हो? हां ! अंकल मैंने ही बनाया है। मैं आपको बताता हूं कैसे बनाया जाता है। इसके लिए आवश्यक सामग्री है - सूजी - आधा कप, देशी घी - 1/3 कप, चीनी-आधा कप, कटा हुआ मेवा। हलवा बनाने के लिए कढ़ाई गैस पर रखिये, उसमें थोड़ा घी डाल दीजिये। सूजी को ब्राउन होने तक भूनिये । फिर इसमें दो कप पानी और चीनी डालकर धीमी फ्लेम पर पकाइए। उसमे मेवा और इलायची पाउडर भी डाल दीजिए। बस तैयार हो गया हलवा।

इससे पहले कि हम पूछते सबिता ने स्वयं ही बताया - “भाई साहब इन बच्चों को इंटर तक ही हमारे साथ रहना है, इसके बाद ये कहीं पढ़ने बाहर जाएंगे पढ़ाई के बाद इन्हें कहीं ना कहीं किराए के मकान में रहकर नौकरी करनी है । अगर इनको खाना बनाना नहीं आएगा तो या तो भूखे रहेंगे अथवा होटल का खाना या फास्ट फूड खा कर अपना स्वास्थ खराब करेंगे। इसलिए अभी से हम इन्हें खाना बनाना भी सिखा रहे हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि हमारे दोनों बच्चे इस काम में पूरी तरह पारंगत हो गए हैं। इतना ही नहीं हमारे दोनों बच्चे अपना और पूरे परिवार का काम कर लेते हैं। उन्हें सिलाई करना, पेंटिंग बनाना, ऑन लाइन सामान खरीदना, मेट्रो में अकेले जाना, नेट पर काम करना, बैंक का काम करना, एटीएम से पैसा निकालना सब कुछ आता है। पढ़ाई के साथ खेलते भी हैं। आलमारी में रखे मेडल्स और कप इन्हीं बच्चों ने जीते हैं।

सविता की बातों को सुनकर रमन तो बहुत इंप्रेस हो गए मगर राधिका को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। उसके बच्चे तो उसके कार्य में कोई सहयोग नहीं करते। नाश्ता बनाना तो दूर जब कोई आता है तो दोनों बेटा बेटी इतना शरारत करते हैं कि मेहमान जल्दी ही भागने की सोचने लगता है। स्कूल से हमेशा शिकायत ही मिलती रहती है। सविता तो नौकरी पर भी जाती है फिर भी आराम से सज संवर कर रहती है।

रमन ने राधिका से कहा-” पता नहीं तुम दिन भर क्या करती रहती हो। न तुम से बच्चे संभाल रहें हैं न घर संभाला जा रहा है।”

राधिका से नहीं रहा गया। चिल्लाते हुए बोली- मैं तो घर के काम में मरी जा रही हूं। तुम तो ठाट से दफ्तर चले जाते हो। आते ही तुम्हे खाना चाहिए। अच्छा कपड़ा चाहिए, घर में सब कुछ सजा सजाया चाहिए। मेरे बाप ने मुझे पढ़ाया लिखाया। उसका क्या फायदा। मेरे हाथ देखो, कपड़ा धोते धोते कितने कट गए हैं, पता नहीं तुम मुझसे क्या चाहते हो? हमेशा मेरी बुराई करते रहते हो। राधिका तो रुआंसी हो गई। सविता के पति ने बीच बचाव किया और कहा- ”भाई सब छोड़िए, कहां आप भी चक्कर में पड़ गए। चलिए हम लोग कुछ गपशप करते हैं। आजकल इलेक्शन चल रहा है उसकी बात करते हैं।”

रमन के मन में आया कि चलो बच्चों से बात करके देखते हैं कि असलियत क्या है। रमन ने कहा - “आज हम लोग कोई और बात नहीं करेंगे बल्कि आपके बच्चों से बात करेंगे अगर आपकी इजाजत हो तो।” उन्होंने बेटी अंकिता और बेटे अंशु से कई प्रश्न किए। सबसे पहले अंकिता ने बताया कि वह चौदह वर्ष की है इसी साल हाई स्कूल 95% अंक से उत्तीर्ण किया है। जिला स्तर पर वह लॉन टेनिस की चैंपियन है। कुकरी एवं ब्यूटीशियन प्रतियोगिताएं जीती हैं और डांस उसका प्रिय हॉबी है। उसे आई ए एस अफसर बनना है। अंशु से पूछा तो उसने बताया कि वह ग्यारह साल का है, कक्षा नौ में पढ़ता है। घर में दीदी पढ़ाती है। वह अपने क्लास का मॉनिटर है। नेशनल टैलेंट सर्च परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। फोटोग्राफी उसकी हॉबी है। बड़ा होकर वह जरूर डॉक्टर बनेगा।

रमन ने पूछा -तुम लोग कितने घंटे पढ़ते हो और घर का काम करते हो कि नहीं? दोनों ने बताया- हम लोग नियमित चार घंटे पढ़ाई करते हैं। सुबह पांच से सात बजे तक और शाम को सात से नौ बजे तक। घर के काम के विषय में मम्मी पापा आपको बताएंगे। दोनों वहां से चले गए क्योंकि अब सात बज गए थे और उन्हें पढ़ाई करनी थी।

सविता ने बात आगे बढ़ाई- “मां बाप कितने अरमानों से बच्चों को पढ़ाते लिखाते हैं और उनका घर बसाने के लिए शादी करते हैं। मगर आजकल अक्सर देखने को मिलता है कि घरेलू कार्यों में बराबर भूमिका न निभाने से रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं। इसलिए अपने बेटी और बेटे दोनों को ऐसी शिक्षा देने की कोशिश कर रही हूं जिससे कि वे न सिर्फ अच्छे इंसान बने बल्कि जीवन पर्यंत सुखी रहें। लोग अपने लड़कों को सिखाना भूल जाते हैं कि घर के कामों में हाथ बटाना उसकी भी जिम्मेदारी है। जब मैं इस घर में बहू की तरह आई थी तो मुझसे भी कितनी चीजों की एकतरफा उम्मीद की गई थी। नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिनों में हमारी अनबन हो गई और रिश्ता टूटने के कगार पर आ गया। वह तो भगवान की दया है कि हम लोगों को समझ आ गई और हम लोगों ने अपने घर को नए तरीके से चलाने का संकल्प लिया और आज सब कुछ ठीक है। इसलिए मैं अपने बेटे से भी रसोई के काम कराती हूं, सफाई करवाती हूं। बच्चे टेक्निकल बातें अपने पिता से सीखते हैं। मैं अपने बच्चों को शॉपिंग पर लेकर जाती हूं ताकि दोनों को पता रहे कि शॉपिंग में कितनी जिम्मेदारी और कितनी मेहनत होती है। हम दोनों कठोरता से अनुभव कराते हैं कि प्यार का मतलब हमेशा अपनी बात मनवाना नहीं है। मैं अपनी बेटी को बताती हूं कि वास्तविक जिंदगी टीवी सीरियल की तरह नहीं होती इसलिए व्यवहारिक बातें सीखे।

मैं जोर देती हूं कि बेटा बेटी दोनों बराबर है और माता पिता के प्यार उनकी संपत्ति हर चीज में उनका बराबर का हिस्सा है। मैं जो कुछ कर रही हूं इसमें अपने बच्चों के ऊपर कोई एहसान नहीं कर रही हूं। मैं आज कर रही हूं तो वे कल अपने बच्चे के लिए करेंगे। यही जीवन का चक्र है इसलिए मैं उनसे कोई उम्मीद भी नहीं करूंगी। दूसरी सच्चाई यह है कि महिलाओं को अपने पतियों से ज्यादा घरेलू काम करना पड़ता है। इसका खामियाजा हमारे बच्चों को भुगतना पड़ता है। हम उनको पूरा समय नहीं दे पाते।”

रमन ने पूछा- आप कैसे बच्चों को सिखाती हैं? सविता ने कहा-”हम अपने बच्चों को सप्ताह में एक दिन काम की बातें भी सिखाते हैं जो किसी स्कूल में नहीं सिखाया जाता। उसके लिए शुक्रवार की शाम निर्धारित है। उस दिन हम न तो किसी से मिलने जाते हैं और न ही किसी को अपने यहां आमंत्रित करते हैं। हम पूरी शाम बच्चों के साथ ही बिताते हैं। पिक्चर भी जाते हैं। काम की बात के रूप में हम उन्हें सिखाते हैं कि खरीदारी करते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए, एक्सपायरी डेट का क्या मतलब है, लोग कैसे आप को बेवकूफ बना सकते हैं उससे कैसे बचा जाए, पैकिंग और पैकेजिंग कैसे की जाए आदि। लर्निंग सेशन में पॉलिटिक्स, संस्कार की बातें, टिकट बुकिंग, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के विषय भी होते हैं। कल हम लोगों ने इसी व्यस्तता के कारण आपसे ना आने के लिए कहा था जिसकी हम माफी मांगते हैं।”

सविता ने बताया कि घर और बर्तन की सफाई के लिए नोकरानी है। बाकी सभी कार्य हम सब लोग मिलकर करते हैं। हम लोग सुबह साढ़े चार बजे उठ जाते हैं और रात में साढ़े दस तक निश्चित ही सो जाते हैं। जूते की पॉलिश, कपड़ा धोने, प्रेस करने का काम सभी स्वयं करते हैं। मेहमानों का ख्याल बच्चे रखते हैं। सभी कोशिश करते हैं कि निर्धारित समय में ही काम पूरा हो जाए। अगर समय बचा हो तो टीवी और मोबाइल चलाने की पूरी छूट है। दोनो के पास स्मार्ट फोन है। हां! हम उनके मोबाइल रोज चेक करते हैं। अभी तक इन बच्चों को कोचिंग जाने की आवश्यकता न होने से भी समय बचता है। आज अंशु खाना बनाने में मदद करेगा इसलिए आप लोग खाना खा कर के ही जाएंगे।

रमन ने कहा बस एक आखरी सवाल आपसे यह है कि जब कोई बीमार हो जाता है अथवा कोई मेहमान आ जाता है या कहीं शादी ब्याह पड़ जाती है तो आप लोग कैसे अपने कार्यों को पूरा करते हैं?

इसका उत्तर सविता के पति ने दिया - ऐसे मौकों पर सभी को पूरी छूट होती है । अगर बच्चों के दोस्त आ जाते हैं तो उन्हें भागते नहीं, बीमारी में काम करने की जरूरत नहीं होती। शादी ब्याह में भी खूब मौज मस्ती करने की छूट होती है। हां आवश्यक काम को पेंडिंग नहीं रखा जा सकता इसलिए कहीं न कहीं समय निकाल कर पूरा करने की कोशिश की जाती है।

रमन ने तारीफ की - “आज हम लोगों ने एक आदर्श परिवार से मुलाकात की। सब कुछ बहुत अच्छा लगा। हम लोगों ने भी इरादा किया है कि अपने घर के माहौल को इसी प्रकार बदलने की कोशिश करेंगे।”

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