wo ladki - Shaitan books and stories free download online pdf in Hindi

वो लडक़ी - शैतान

ये "वो लड़की" लघुउपन्यास का 14 वा तथा अंतिम अध्याय है। इससे पहले इस लघुउपन्यास के 13 अध्याय आ चुके हैं जो निम्न है।
1.उस रात
2. पर्दा
3. बेपर्दा
4. ख़ौफ़ का राज
5. आत्मालोक
6.पर्दाफ़ाश
7. घिन्न
8. वापसी
9. सोमू
10. बदला
11. सज़ा
12. कैद
13. रिहाई
इस अध्याय को पढ़ने से पहले आप ये 13 अध्याय को फिर से पढ़ ले, ताकि कहानी का पूरा मजा आ सके।
वो लड़की "उस रात" मेरी जिंदगी में एक रहस्य का "पर्दा" लेकर आई... फिर "बेपर्दा" कर गई "ख़ौफ़ का राज" । वो मुझे ले गई "आत्मालोक" में जहां "पर्दाफ़ाश" हुआ एक ऐसी "घिन्न" का जहां से "वापसी" तब तक सम्भव नहीं थी जब तक "सोमू" अपना "बदला" लेकर गुनाहगारों को "सज़ा "न दिला दे...पर शायद सज़ा मुझे मिली, एक "कैद" के रूप में.. पर सौरव उस कैद में फरिश्ता बन कर आया और उसने मेरी "रिहाई" करवाई उस "शैतान" की कैद से...पर शैतान सामने ही हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। अब आगे...
अध्याय-14. शैतान

थोड़ी दूर चलने के बाद जब मैंने देखा तो मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई क्योंकि वहां पर सैकड़ों लड़कियों की आत्माएं थी । सुकून तो मुझे तब मिला जब उन आत्माओं में उस छोटी बच्ची की आत्मा भी थी जिसे विलियम ने शैतान को बलि चढ़ा दिया था। और हरिया की बीवी भी उन्हीं के बीच में खड़ी थी। उन सभी आत्माओं को सौरव ने आजाद करवाया था।
"तुमने यह सब कब किया ...!!" मैंने आश्चर्य से सौरव से पूछा तो उसने कहा "मैंने नहीं ,,भगवान श्री कृष्ण ने.... उन्होंने किया है ......उन्होंने इन सभी आत्माओं को कुछ घंटों में रिहा किया है। मैं केवल जरिया बना हूं।"
सच में सौरव को स्वयं की पहचान हो चुकी थी ।तभी वह इतना बड़ा काम कर पाया। उसने मुझसे फिर कहा "अंकित..! हमें इन सभी आत्माओं को जालिम के तिलिस्म से बाहर निकालना होगा । उस तरफ तुम्हें आग जलती हुई दिखाई दे रही है .....वहां से तिलिस्म के खुलने का रास्ता शुरू होता है हमें इन सभी आत्माओं को वहां से निकालना होगा.."
इससे पहले वह अपनी बात खत्म करता मैंने उससे कहा "पर सोमू का क्या....... वह भी तो यही है,,,??"
"जब तक यहां एक भी आत्मा है ...मैं उसको रिहा किए बिना नहीं जाने वाला ,,लेकिन इससे पहले कोई बड़ी मुसीबत आए इन सब को हमें तिलिस्म से बाहर पहुंचा देना चाहिए क्योंकि इन सब की आयु पूर्ण हो चुकी है.. तिलिस्म से बाहर निकलते ही यह गर्भलोक में पहुंचकर पुनर्जन्म को प्राप्त हो जाएंगे।"सौरव बड़े जोश में बोल रहा था।

इसके बाद मैं आत्माओं को बाहर निकालने में सौरव की मदद करने लगा।आसपास के सभी परदों से आत्माओं को छुड़वा दिया गया था। मैं उन सभी लगभग सुन्न पड़ चुकी आत्माओं को बाहर निकलने में मदद कर रहा था,, उनको एक सीधी लाइन में उस रोशनी की तरफ ले जा रहा था जिधर से आग दिखाई दे रही थी।
तभी एक बेहद तेज़ ओर भयानक आवाज सुनाई दी

"किसने की यह जुर्रत.... कौन है जो हजारों मौत जीना चाहता है .....तुम दोनो....तुम दोनों की तो मैं वह हालत करूंगा जो शैतान की भी रूह तड़पा देगी।" सामने जालिम खड़ा था और गुस्से से हम दोनों की तरफ इशारा करके बोल रहा था।

" अंकित मैं इससे निपटता हूँ, तुम इन सभी को तिलिस्म से बाहर लेकर जाओ।" सौरव पीछे मुड़ कर चिल्लाया। सौरव
का इशारा पाकर मैं सभी आत्माओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा और पीछे मुड़कर जब सौरव को देखा तो पता चला शैतान उसकी बुरी तरह से पिटाई कर रहा था, लेकिन वह हर बार मार खा कर फिर से उसके सामने उतनी ही शांति से खड़ा हो जाता था। ●Oo°यह खेल ज्यादा देर नहीं चलेगा क्योंकि जालिम की ताकत सौरव के मुकाबले बहुत ज्यादा है । कुछ ही देर में जालिम उस पर काबू पा कर फिर से उसे कैद कर देगा । इससे पहले मुझे इन सभी आत्माओं को तिलिस्म के बाहर छोड़ देना चाहिए।°oO●
ज़ालिम को अपनी शक्तियों पर पूरा विश्वास था । उसके हंसने की आवाज़ आ रही थी,, जबकि सौरव की चीखें अब गूंजने लगी थी।
और फिर मैं उस आग तक पहुंच गया जो तिलिस्म से बाहर निकलने का द्वार थी। यह वही जगह थी जहां पर जालिम को मुखिया जी ने जलाया था। और यहीं से जालिम ने अपना पूरा तिलिस्म और पर्दों की भूलभुलैया रची।
वहां पर पेड़ के पीछे एक पर्दा बांधा गया था । जब मैंने परदे को हटाया तो वहां जोर जोर से आवाज आ रही थी। जब मैंने ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश की तो एक आवाज महंत जी की भी थी।
महंत जी:- "सौरव इसी रस्ते से सभी आत्माएं हमेशा हमेशा के लिए इस तिलिस्म से बाहर निकलेगी।"

मैं:- "महंत जी .....मैं अंकित हूं ...सौरव अभी उस शैतान के साथ संघर्ष कर रहा है।"
महंत जी:- 'वह जरुर जीतेगा ....उसने चुना है उसको इस जालिम की दुनिया को तबाह करने के लिए,,, उन सैकड़ों आत्माओं को आजाद करने के लिए।'

सटाक की आवाज से मेरी कनपटी पर एक जलती हुई लकड़ी आकर लगी जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक दूसरी लकड़ी मेरे पेट के आर पार हो चुकी थी। यह विनीत और महिपाल थे जो दोनों मेरा यही इंतजार कर रहे थे शायद ज़ालिम ने उन्हें भेजा था। उनको देखकर मुझे वह हर एक पल याद आया....... मुझे वह हर एक दरिंदगी याद आई जो उन्होंने सोमू के साथ की थी। अपने दर्द भूल गया था मैं........ अब बस मुझ में प्रतिशोध की आग जल रही थी । अपने पेट से उस जलती हुई लकड़ी को निकालकर सीधा उसे विनीत के सिर पर मारा। पास में ही जालिम की चिता जली हुई थी उससे बड़े-बड़े लकड़ी के जलते लट्ठ निकालकर मैं महिपाल और विनीत पर टूट पड़ा। वे दोनों चिल्लाते हुए दाएं तरफ भागने लगे। जिधर एक छोटा सा मकान था। उनके पीछे जाने से पहले मैं एक बार फिर से उन आत्माओं को देखने गया जो एक-एक करके बाहर निकल रही थी। मैंने हरिया की बीवी से कहा कि वह अंत में जाए ताकि कोई भटकी हुई आत्मा फिर से इस तिलिस्म में नहीं रह पाए। वहां पर 6 औरतें और भी थी जो उस छोटी बच्ची(जालिम की बेटी ) को ढूंढ रही थी वह सभी जालिम की बीवियां थी। सौरव ने लगभग सभी को कैद से आजाद करवा दिया था।
सभी को व्यवस्थित देखकर मैं हाथ में जलती लकड़ी लेकर वापस उन दोनों शैतानों के पीछे चला गया।
पास जाने पर पता चला वह छोटा सा मकान वास्तव में एक चर्च है ......एक सैटेनिक चर्च। उस चर्च में महिपाल और विनीत दोनों छुप गए थे पर मैंने दोनों को खोज निकाला। इसके बाद उन दोनों से हर उस लम्हे का हिसाब किया जिसमें उन्होंने सोमू की जिंदगी में दर्द घोला था। वह दोनों मर के भी एक बार फिर से मर जाने की भीख मांग रहे थे पर मौत नहीं आती ,,,,उनको इस तरह से तड़पता देख कर बेहद सुकून मिल रहा था।
मेरा उनसे ध्यान तब हटा जब सौरव की चीखों से चर्च की दीवारें थर्रा उठी। मैंनेे चर्च की खिड़की के पर्दे को हटाकर देखा तो पता चला जालिम ने सौरव को लकड़ियों के ढेर के बीच में बांध दिया है। मतलब सौरव अब शैतान को नहीं रोक पाएगा अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा वरना यह सारी आत्माएं एक बार फिर से गुलाम बन जाएगी। मुझे उस वक्त कुछ नहीं सूझा .....सूझा तो सिर्फ शैतान,,,, उसकी एक बड़ी सी मूर्ति चर्च में लगी हुई थी तथा उसका तारे जैसा निशान बना हुआ था। उसके बहुत से हथियार सजाए हुए थे। उस वक्त मुझे अंतिम उम्मीद शैतान में ही नजर आई।


"मोक्ष , आत्मज्ञान , किस्मत, पाप पुण्य, यह सारे शब्द मुझे धोखा धड़ी से महसूस होते हैं, मुझे धर्म ,पूजा ,जप ,तप इनके नाम मात्र से ही पाखंड की बू आती है। मैं उस शक्ति का समर्थन करता हूं जो निर्दोष ज्ञान की बात करती है ,किसी पाखंड की नहीं ........ जो भोग और विलास को स्वीकारती है , लेकिन अन्याय को नहीं ........ जो एक आंख के बदले 2 आंख छीनने की बात करती है ......जो दया केवल उसी को देती है जो दया के लायक हो .....जो अपने प्यार को व्यर्थ नहीं करती है, ......जो मेरे प्रतिशोध का समर्थन करती है ,......जो मेरे क्रोध को समझती है, .....जो झूठे आदर्शवाद की बातें ना करके यथार्थवाद प्रदान करती है, जो जलन ईर्ष्या छल-कपट इन सभी इंसानी गुणों को स्वीकार करती है, जो इंसान को एक दिव्य शक्ति बाद में और एक पशु पहले मानती है ....... हे शैतान ...!!! मैं सच में तेरा ही समर्थन करता हूं ,,,,शायद इसीलिए दुनिया भर के धर्मों को पढ़ने के बाद भी मैं आज तक आस्तिक नहीं हो पाया । मैं उन पर एतबार नहीं कर पाया ,,,मुझे शायद तेरी ही तलाश थी,,,,, मैं आज स्वयं को तुझे हमेशा हमेशा के लिए सौंपता हूं , और साथ ही दो इन भद्दी आत्माओं को भी तुझे अर्पित करता हूं,,,,,, इन्हें गुलाम बना के रख तब तक जब तक आसमान में सूरज और चांद है, हे शैतान इस दुनिया की सर्वोच्च सत्ता के रूप में मैं तुझे स्वीकार करता हूं अब तू भी मुझे स्वीकार कर।" यह कहते हुए मैंने सामने रखा हुआ एक शैतानी खंजर उठाया और उससे विनीत और महिपाल की गर्दन काट डाली और खून का एक फव्वारा उनके गले से बह निकला जैसेे वह आत्मा नहीं जीवित हो। इसके बाद वह दोनों चमगादड़ बन कर शैतान की मूर्ति में समा गए। एक दिल दहला देने वाला अट्टहास मुझे सुनाई दिया । इसके बाद शैतान की मूर्ति से एक के बाद एक चमगादड़ निकल कर मुझ में समाने लगे । मुझे अपनी ताकत बेहद बढ़़ी हुई सी महसूस हो रही थी।

तभी चर्च में जालिम भी आ गया ओर बोला
"उसको कैद कर दिया अब तेरी बारी,,, तुझे तो शैतान का गुलाम बनाऊंगा,,, ओर उन आत्माओं को भी गर्भलोक में पहुंचने से पहले वापस यहां कैद करूँगा,,, जिस लड़की के लिए तू इतना उछल रहा है उसकी चीखें तुम्हे हमेशा सुननी होगी अहहहहहहह,, बहुत भुगतेगा तू बामण अहहहहहह"यह कहते हुए जालिम ने दौड़कर मेरे चेहरे पर एक लात जमाई पर उसकी लात मुझे फूल जैसी हल्की लगी और वह खुद ही लड़खड़ाते हुए कुछ कदम दूर जा गिरा। गिरते ही उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे वह मेरी तरफ देखता हुआ बोला
"यह क्या !!!!! मतलब तू भी शैतान को अपना चुका है... बच गया रे ,,तू सच में बच गया .....क्योंकि एक शैतान का पुजारी दूसरे शैतान के पुजारी पर हाथ नहीं उठाता है ....बच गया तू ...अब तो हम भाई भाई हुए।" यह कहता हुआ दोनों हाथ खोल कर वह मेरी ओर बढ़ा जैसे वह मुझसे गले लगना चाहता हो। मैं उससेे गले लगा और बोला "हां ...हम दोनों शैतान के पुजारी हैं .... हम दोनों भाई-भाई हैं ,,,लेकिन शैतान के घर में भाई भाई को काट डालता है.." यह कहते हुए खंजर से मैंने उसके चेहरे पर जोरदार वार किया। वह जमीन पर जा गिरा इसके बाद मैं उस खंजर से उस पर ताबड़तोड़ वार करते गया और बोल रहा था ,"सोमू को लेकर जाएगा ....मुझे उसकी चीखें सुनाएगा,,,,, कैसा बाप है तू ......अपनी ही बेटी की बलि चढ़ा दी ....अपनी ही बीवियों की बलि चढ़ा दी..... तू शैतान का पुजारी नहीं हो सकता... तू तो कहीं गया गुजरा है।.... शैतान भी इतना पापी कभी नहीं था जितना तू है .........आज मेरा प्रतिशोध बड़ा है और तुम्हारे अन्याय बड़े हैं पर याद रखना शैतान प्रतिशोध के साथ लेकिन अन्याय के खिलाफ है इसीलिए आज शैतान मेरे साथ है तेरे साथ नहीं।"
मेरे हर वार के साथ जालिम चीख रहा था और उसके अंदर से से चमगादड़ निकल रहे थे,,, पूरा शैतानी चर्च चमगादड़ों से भर गया और वह एक एक करके शैतान की मूर्ति में समाने लगे अंत में जालिम शक्तिहीन निर्जीव सा जमीन पर पड़ा था । मैंने उसके चेहरे पर जोर से खंजर मारा और वह एक अंतिम चीख के साथ खुद एक चमगादड़ बन के शैतान में समा गया। अब वह हमेशा हमेशा के लिए शैतान का गुलाम बन चुका था।इस तरह उस जालिम का अंत हुआ।

मैं शैतान की मूर्ति के आगे झुका और बोला, "शैतान मैं तेरा एहसानमंद हूं कि तुमने मुझे अपना बदला लेने का मौका दिया.... तुमने मुझे अपनाया और इस काबिल बनाया कि मैं तेरे ही किसी सेवक से लड़ सकूं ....हे शैतान तू सच में दयालु है ,, मुझे अब तुम्हारी शक्तियों की आवश्यकता नहीं है ,, इसलिए मैं चाहता हूं अब तुम इन्हें वापस रख लो यह कहते हुए मैंने शैतान के चरणों में अपना शीश नवाया। मुझे एक बिजली का झटका सा लगा और खुद को मैं हल्का महसूस करने लगा शायद शैतान ने अपनी सारी शक्तियां वापस ले ली थी।
अब मैं बाहर सौरव के पास गया उसे लकड़ियों की कैद से आजाद किया। अब हम दोनों के पास एक ही उद्देश्य था सोमू को ढूंढना। मैं हर एक पर्दे के पीछे झांक कर किसी गुप्त रास्ते को तलाश रहा था । चलते-चलते बार-बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैरों पर कोई धागा लगा हो,, जिसके कारण मैं कई बार लंगड़ा भी जाता था । सौरव को यह बात अजीब लग रही थी उसने पूछ भी लिया था ,"ऐसे क्यों चल रहे हो ??" तो मैंने कहा ,"पता नहीं शायद कोई धागा पांव में अटक गया है। " सौरभ ने हंसते हुए कहा "एक और भ्रम पाल लिया आत्माओं की दुनिया में धागा कहां से आएगा....?? अच्छा वह सब छोड़ तू यह बता जालिम को कैसे हराया??

मैं:- "वह क्या है भाई मैंने भी satanism अपना लिया.... जालिम को शैतान की ताकत से ही खत्म किया है।"

सौरव:- "यह तुमने गलत किया अंकित... अब तुम्हारी आत्मा हमेशा हमेशा के लिए शैतान की हो चुकी है।"

मैं:- "मैं एक क्षणवादी इंसान हूं मैं कल की परवाह नहीं करता।"

सौरव:- "तुमसे बहस का कोई फायदा नहीं है।चलो एक काम करो ध्यान लगाकर बैठो ओर सोमू को आवाज दो फिर वापस उसकी आवाज़ सुनने की कोशिश करो।"

"ठीक है भाई" मैं बैठकर चारो तरफ की आवाज पर ध्यान लगाने लग गया फिर आवाज दी,,, सोमू


बदले में एक बेहद हल्की सी आवाज गूंजी,, "भैया,,"

"सौरव ,,, वो उस तरफ है, ये कहता हुआ मैं दौड़ा,, " मेरे पीछे पीछे सौरव भी आया, सामने एक पर्दा था जिसे हटाकर मैं सीधा उसी गांव के किसी घर में पहुंच गया,, उस घर से बाहर निकला तो देखा सोमू गलियों में रोती हुई इधर से उधर भैया भैया कहकर भाग रही थी।
जैसे उसने मुझे देखा,, मुझे लगा ये दौड़कर मेरे पास आएगी,,, लेकिन वह वहीं पर मुंह फुला कर खड़ी हो गई। मैं उसके पास जाने लगा ,,शायद थोड़ी जल्दी थी या मेरे पैरों में धागा उलझ गया,,, पर मैं गिर गया था ,,, ठीक उसके सामने,,, वह खिलखिला उठी,,, क्या भाई आप खुद को नहीं सम्भाल सकते आप मुझे क्या संभालोगे।इतने देर में सौरव भी आ गया,,, "क्या यार,, आत्मायें भी फिसलती है?? तुम तो चीज ही दूसरी हो,,,"

मैं:- "नहीं यार पैरों में कोई धागा उलझ गया जिसने पीछे खींचा ओर मैं गिर गया।"
सौरव:- "यार कब से धागा धागा लगा रखा है....!!! एक मिनट...तुमने धागा कहा ना,"
मैं:-हां
सौरव:-क्या तुम्हारी लाश का अंतिम संस्कार हो गया था??
मैं :- पता नहीं?? पर क्यों?
सौरव:- बेवकूफ वो धागे नहीं तेरी सांसो की डोर है जो तुझे तेरे शरीर की तरफ खींच रही है। आंखें बंद करो और ध्यान से चारों तरफ देखो क्या तुम्हें कोई रोशनी का बिंदु दिखाई दे रहा है???

मैंने आंखें बंद कर के चारों तरफ घूम कर एक दिशा में हाथ करके कहा हां उस तरफ दिख रहा है।
सौरव :- "तो उस तरफ चलो .....पागल देर क्यों कर रहे हो... क्या मालूम यह मौका फिर ना मिले ....तुम्हें जिंदगी ने एक और मौका दिया है ...बड़ी किस्मत वाले हो तुम।"
सोमू :- "इसका मतलब भैया जिंदा है!!! क्या बात है इससे तो अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता"
मैं दौड़ के उस जगह पर गया जहां पर मुझे रोशनी का बिंदु दिख रहा था तो मैंने देखा वहां पर मेरा शरीर हल्की पीली नीली रोशनी में रखा हुआ था और झटके मार रहा था । मेरे कपड़े भी उतारे हुए थे । लेकिन वह केवल मुझे ही दिखाई दे रहा था । सोमू और सौरव को नहीं दिख रहा था।
अपने शरीर को देखकर सच में मुझे बेहद खुशी महसूस हुई मैं सौरव से गले लग कर बोला "भाई तेरी बहुत याद आएगी"

सोमू:- " सौरव भैया मैं भी आपको बहुत मिस करूंगी।"
सौरभ :- "1 मिनट सोमू,,तुम मेरे साथ ही रहोगी ,, तुम अंकित के साथ भौतिक दुनिया में नहीं जा रही हो...."

"क्यों" मैं और सोनू एक साथ बोल पड़े।

सौरव:- "सोमू का बदला पूरा हो चुका है। अब इसे मुक्त हो जाना चाहिए। मैं इसे घर गर्भलोक पहुंचा दूंगा जहां से यह पुनर्जन्म को प्राप्त हो जाएगी।

मैं:- "मतलब तुम दोनों ही मेरे साथ नहीं आ रहे हो" यह कहते हुए मेरी आंखें छलक आई थी और सोमू की भी।

आंसू पोंछते हुए वह बोली :-"भैया अब आप भी उसको बोल ही दो क्या मालूम आप भी मेरी तरह मुक्त हो जाओ...??"

मैं झेंप सा गया और बोला "क्या और किसको बोल दूं..??!!!?? तुम भी कैसी बातें कर रही हो,,," मैं अच्छे से समझता था कि वह किसके बारे में बात कर रही है।


सौरव:- " भाई अंकित ...तुम लेट मत करो ...वरना तुम्हें भी मेरे साथ गर्भलोक चलना पड़ जाएगा ,,,,,इससे अच्छा है अपने शरीर को तुरंत छू लो।

मैं :- "अच्छा सुन भाई,,,,जालिम की बेटी शायद उसकी मम्मी पार्टी को नहीं मिल रही थी ,,,,उसे ढूंढ कर जरूर गर्भलोक पहुंचा देना बड़ी मासूम सी बच्ची है।"

सोनू बोली ,"अंकित भैया...! आप क्यों चिंता कर रहे हो,,,,मैं और सौरव भैया उसे सही जगह तक पहुंचा देंगे अब आप अपनी दुनिया में वापस जाइए " और मैंने आंसू पोंछते हुए अपने शरीर की तरफ हाथ बढ़ाया जैसे ही मैंने अपने कंधे को छुआ तो एक बिजली के झटके से मैं शायद किसी और दुनिया में पहुंच गया खुद को बेहद भारी महसूस कर रहा था मैंने देखा 3 डॉक्टर ने मुझे घेर रखा है और शायद में आईसीयू में हूं। देखने के बाद फिर बेहोश हो गया। जब वापस होश में आया तो मेरे सामने मकान मालिक सरपंच जी खड़े थे। गुस्से से देख रहे थे ओर बोले,°क्या इसीलिए रूम दिया था तुम्हे,, ये सुसाइड ही करना था तो अपने घर पे करते,, तुम्हारा समान समेट कर घर के बाहर रखवा दिया है,, किसी को बुलाकर उठवा लेना,, ओर हां एडवांस जो दिया था ,,,उससे हॉस्पिटल का खर्च बेलेंस हो गया है। जिगरा है नहीं ,, इनको रूम चाहिए।लानत है.." ये बोलते हुए वह निकल गए। जब नर्स पास आई तो मैंने पूछा,, मेरी जेब में मोबाइल था ??
तो उसने मोबाइल थमा दिया,, मैंने विकास को फोन करके अपना समान उसके कमरे पे रखवाया,, ओर जिंदगी फिर से वैसी ही चल पड़ी,,, पर सोमू की याद के साथ।
अखबार पढ़कर अहसास हुआ की आज देश में सौरव को उसकी रहस्सयमयी मौत के बाद सबसे बड़ा पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर माना जाने लगा है ,

so dear डायरी आज से हम फिर साथ है। कल फिर मिलते है।

समाप्त।


प्रिय पाठकों??
मैंने सपने में भी नही सोचा था की मेरी इस कथा श्रंखला को इतना प्यार मिलेगा। ये कहानी मैंने सालभर पहले लिखी थी। और इसे लिखने में मैंने 6 महीने का वक्त लिया था। चूंकि ये कहानी satanism पर आधारित है अतः जो पाठक इस विक्षिप्तता को करीब से जानना चाहें वो मुझे mail कर के The Satanic Bible मुफ्त मंगवा सकते हैं। यदि पेरानॉर्मल अध्यन से सम्बंधित कोई पुस्तक पढ़ना चाहें जिनका जिक्र में मैंने इस कहानी में किया है उन्हें भी आप मुफ्त पीडीएफ के रूप में मुझसे प्राप्त कर सकतें हैं। मेरा mail अड्र्स हैं

anokhaankit123@gmail.com

मेरी अगली कहानियां विशुद्ध भारतीय दर्शन जैसे तन्त्र , त्राटक , कुंडली जागरण जैसे विषयों पर आधारित होगी। जिसके लिए अभी शोध की आवश्यकता है। अतः थोड़ा लम्बा अंतराल हमारे बीच आ सकता है।
इस कहानी से सम्बंधित कई प्रश्न मेरे पास आये हैं। इस कहानी के उपसंहार भाग में उन्हें प्रकाशित किया जाएगा। इस भाग प्रकाशन के 15 दिन बाद कोई प्रश्न नहीं लिए जाएंगे। आप प्रश्न समीक्षा , मातृभारती मेसेज या अन्य किसी सोश्यल मीडिया से भेज सकते हैं। मैं फेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम , व्हाट्सएप पर उपलब्ध हूँ।
कोशिस रहेगी कि पाठको तक भूत प्रेत या आत्मा की स्पष्ट अवधारणा पहुंचा सकूं।
आपका
अंकित महर्षि।
anokhaankit123@gmail.com

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