wo ladki - 2 - Khauf ka raaz books and stories free download online pdf in Hindi

वो लड़की 2 - ख़ौफ़ का राज

मेरा डर के मारे दम उखड़ने लगा था ।मैं तो ढंग से बोल भी नहीं पा रहा था। तभी झर-झर की आवाज करते हुए बल्ब जला, और चरमराती आवाज के साथ पंखा भी चल पड़ा था। बिजली आ गई थी, राकेश मेरी बांह पकड़ कर रो रहा था। "मैं मरना नहीं चाहता.... मैं मरना नहीं चाहता.. बचा लो मुझे।" तभी अचानक से पंखा घूमते हुए उसके कंधे पे जा गिरा और राकेश वही बेहोश हो गया।मैं रोने चीखने के अलावा कुछ नहीं कर पाया। मेरे और राकेश दोनों के फोन बैटरी फुल होने के बाद भी बंद हो चुके थे। दरवाजों पर सर पीट पीट के मैं थक गया था पर वो खुल नहीं रहे थे। अचानक बिजली फिर गुल हो गई, मैं स्वयं के बिस्तर के एक कोने में चिपक गया था। और फिर कमरे में घोड़े दौड़ने की आवाज आई फिर से कैमरो के फ्लैश चमचमाने लगे। मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कमरे में चारों तरफ लगी हुई माला में गुंथे हुए नींबू दीवार पर जोर जोर से एक लयबद्ध तरीके से टकराकर ऐसी आवाज उत्पन्न कर रहे हैं।
बल्ब फिर से जल गया । शायद बिजली आ गई थी। कमरे में टांगी गई निम्बू की माला का एक हिस्सा इस तरह से टूट कर गिरा कि उसका एक सिरा खिड़की पर वह दूसरा सिरा बिस्तर पर ठीक मेरे पैरों के पास था। मुझे इतनी भयानक थकान महसूस हो रही थी कि मैं हिलने के काबिल भी नहीं था। फिर जो मैंने मंजर देखा वह किसी के भी दिल को दहलाने के लिए काफी था। खिड़की के छोर से नींबू एक-एक करके फट़ते जा रहे थे और उन से लाल रंग का गंदा रस निकल रहा था। नींबू एक एक करके फट फट फट की आवाज करते हुए फटते जा रहे थे। अब मेरे बिस्तर पर सिर्फ 4 निंबू बचे थे। और जैसे कुछ पलों के लिए नींबू का फटना थम सा गया। फिर अचानक से चारों नींबू एक साथ फ़टे और मैं उसी काली परछाई के द्वारा जकड़ लिया गया। "क्या सोचता था तू क्या तू बच जाएगा .....नहीं तू भी भुगतेगा ...बहुत भुगतेगा मुझसे भी कहीं ज्यादा भुगतेगा"
यह बोलते हुए वो काली परछाई मुझे दीवार पर पीठ के बल रगड़ रगड़ कर यहां से वहां भिड़ाने लगी। मेरी टी शर्ट फट चुकी थी और पीठ से खून निकलने लग गया था। इसी दौरान मैंने पहली बार काली परछाई को रोशनी में देखा था उसका पूरा शरीर जला हुआ था आंखें तो मानो जलते हुए अंगारे हो, पर बड़ी बड़ी मूछें सही सलामत थी। फिर अचानक कमरे की छत से उसने मेरा सर दे मारा। मुझे बहुत तेज दर्द हुआ जैसे ही मैंने हिम्मत करके आंखें खोली तो मैंने देखा....



सफेद कपड़ो में मेरे सामने एक लड़की खड़ी है "उन को अंदर भेजो इसको होश आ गया है" वह लड़की सामने की तरफ देखकर थोड़ा जोर से बोली। मैं इससे पहले कुछ समझता प्रोफेसर राममूर्ति मेरे सामने खड़े थे। "फिक्र ना करो अंकित तुम बिल्कुल ठीक हो । राकेश को थोड़ी चोट आई है। वह 2-3 दिन में ठीक हो जाएगा। तुम्हें शाम तक डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। जो सबूत हमें चाहिए थे वह रिकॉर्ड हो चुके हैं यह केस पैरानॉर्मल रिसर्च में मील का पत्थर साबित होगा।"
प्रोफेसर बड़े उत्साह से बोल रहे थे ।
मैंने देखा कि मैं हॉस्पिटल में हूं कपड़ों की बजाय पट्टियों में लिपटा हुआ हूं और हाथ पर वो लाल धागा का भी बंधा हुआ है जो मैं प्रोफेसर राममूर्ति के कमरे पर भूल़ आया था।

" क्या आप मेरे रूम से मेरी डायरी मंगवा सकते हैं" मैंने सर उठाने की कोशिश करते हुए कहा।
हां क्यों नहीं अभी हरि को बोल कर मंगवा देता हूं।
और डायरी आने पर में लिखने में व्यस्त हो गया।
                              
                             अध्याय -4 
                                 राज 

"मैं पिछले 1 घंटे से बर्दाश्त कर रही हूं ......अब बहुत हो चुका.... तुम्हें समझ में कम आता है  क्या ???.......!!...
डायरी में घर पर जा कर लिख लेना ...अभी हॉस्पिटल में हो तो बस आराम करो "    नर्स की घुड़की सुनकर मैं सचमुच सहम गया था। इसके बाद वह मेरे पास आई और मुझे छाती के बल लिटा कर बंधी हुई सारी पट्टियां उतारने लगी। इतने में डॉक्टर भी आ गए वह मेरे चार्ट को देखते हुए बोले "मिस्टर अंकित महर्षि....?!!  मैंने अपने 20 साल के कैरियर में ऐसा केस पहली बार देखा है !!! आप बहुत तेजी से रिकवर कर रहे हो .....जब सुबह 6:00 बजे आप को एडमिट किया गया था तब लगा था कि आपको  कुछ दिन तक भर्ती करना पड़ेगा,, पर अब आपकी पीठ के घाव बहुत जल्दी से ठीक हो रहे हैं ..!!  मुझे लगता है आपको शाम तक हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा"



इसके बाद वह मेरे चार्ट पर रखी पर्ची में कुछ लिखने लगे। अचानक उनकी नजर मेरे हाथ पर गई उन्होंने कहा "अगर यह बहुत जरूरी नहीं हो... तो क्या हम इस धागे को खोल सकते हैं ???आपके हाथ पर सूजन आ रही है ....ग्लूकोज उतरने के बाद आप इसे फिर से बांध लेना "  

मैंने भी विरोध ना दिखाते हुए कहा "हां क्यों नहीं ......मुझे कोई दिक्कत नहीं है"
इसके बाद वह धागा काट कर हटा दिया गया शायद दवाइयों का असर मुझ पर शुरू हो गया और मुझे वापस नींद आने लगी।

दो आमने-सामने खड़े पेड़ों के बीचो-बीच जमीन के समानांतर लगभग 8 फुट ऊंचाई पर  एक मोटी लकड़ी बांधी गई थी...जिस  पर एक लगभग 6 फुट लंबा हटा कटा आदमी , जिसके बाल और दाढ़ी मूंछों पर मेहंदी जैसा कुछ लेप लगा हुआ था वो जमीन की तरफ मुंह करके लोहे की जंजीरों से बांधा गया था उसके ठीक नीचे लकड़ियां जलाई गई थी जैसे कोई चिता हो ....."नहीं ....नहीं....." ऐसी चीखों से पूरा रेगिस्तान दहल रहा था पास ही खड़े ठेठ राजस्थानी जैसे दिखने वाले 3 आदमी कुछ जोर-जोर से बोल रहे थे जो मुझे समझ में नहीं आ रहा था 

"तुम्हें क्या लगता है ,,तुम मुझे मार कर बच जाओगे .......तुम यहां से बचकर निकल जाओगे ..........तुम भी भुगतोगे और उससे भी कहीं ज्यादा भुगतोगे .......जितना मैंने भुगता है .......तुम सब के सब भुगतोगे .......  हां हां तुम भी भुगतोगे...."



वह तीनों आदमी उसे चीखता छोड़कर ऊँटो पर बैठकर रवाना हो गए। आग बढ़ती गई और उसकी चीखें भी ।  थोड़ी देर बाद आग उस लकड़ी तक पहुंच गई जिस पर वह आदमी बांधा हुआ था। उस आदमी के साथ साथ वह लकड़ी भी जल रही थी ।फिर अपने ही बोझ से वह लकड़ी टूट कर  पर नीचे चिता पर गिर पड़ी ।
अब तपती दोपहर से रात हो चुकी थी ।लेकिन उस चिता पर अंगारे अभी चल रहे थे । तभी अचानक से अंगारों के बीच में से एक हाथ निकला.... कुछ ही पल में एक बेहद ही शैतानी आकृति अंगारों से बाहर निकली और तुरंत आकर मेरे मुंह के पास जोर से बोली "तुम भी भुगतोगे" और मैं जोर से चिल्ला पड़ा।
" भाई क्या हो गया तुझे ...!!!????...साले आते ही क्यों डरा रहा है ????   रुक मैं बुलाता हूं नर्स को"
मैंने देखा ....सामने विकास बैठा है ।। वह बड़ी चिंता में है । मैंने उससे पूछा "भाई तू यहां कैसे आ गया !!!तुझे कैसे मालूम मैं हॉस्पिटल में हूं " 

वो मेरे बेड की तरफ झुककर बोला  "यार मैंने तुझे दो तीन बार फोन किया और फोन किसी हरी ने उठाया .! ...उसी ने बताया कि तू इस हॉस्पिटल में एडमिट है और मैं बस मिलने चला आया ..   लेकिन साले तू कितना बड़ा कमीना है ...??तेरा भाई तुझसे मिलने आया है,, और तू उसे ही डरा रहा है "

"सॉरी भाई बस मैं तो यूँ ही मज़े ले रहा था ..." मैने बात टालते हुए कहा

"अच्छा यह बता तुझे लगी किस बात की ,,,किस चीज की चोट आ गई यार?" लेकिन विकास सवाल पे सवाल दाग रहा था।


"बस बाथरुम से गिर गया था साले" मैंने बहाना बनाया।

"उसने तो कहा था तू तो गाड़ी से गिरा था"वो मुझे घूरते हुए बोला।

"भाई बाथरूम में  गिरा था उसके बाद वह मुझे एक गाड़ी में  हॉस्पिटल लेकर गए और बीच रास्ते में मैं गाड़ी से भी गिर गया "                               बाते बनाने में मेरा कोई मुकाबला नही है।

"यार तेरा दिमाग खराब है ...!!!!  पता नहीं इतनी उल्टी-सीधी हरकतें क्यों करता है ??तू बता कब तक है यहां.....कुछ लाऊं खाने पीने के लिए..?"         शायद विकास कुछ ज्यादा ही चिंतित था।

मैंने हल्के में लेते हुए कहा

"रहने दे यार .......शाम तक डिस्चार्ज हो जाऊंगा,, पर इससे पहले एक काम कर मेरी दो-तीन मस्त वाली pic ले और उसे मेरे कॉलेज के प्रिंसिपल को WhatsApp कर दे और बता दे उसको मैं कॉलेज 3-4 दिन नहीं आने वाला ?"



मेरी बात से उसे सदमा लगा शायद... .  तो वो बोला "साले कितना बड़ा कमीना है तू ...!!!!    शाम को डिस्चार्ज हो रहा है और तू तीन-चार दिन फ्री में छुट्टी ले रहा है...!!"



मैंने लापरवाही में जम्हाई लेते कहा, "अरे भाई रेस्ट करके ही  तो पूरा ठीक होउँगा ..... तू पूरी बात तो समझता ही नहीं है"

इसके बाद थोड़ी देर तक हमने बातें की फिर वह चला गया शाम को मुझे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया और मैं अपने रूम की बजाए प्रोफेसर राममूर्ति के यहां चला गया।
प्रोफेसर राममूर्ति ने मुझे बताया कि उनकी डिजिटल ओइजा बॉक्स में वह सब बातें रिकॉर्ड हो गई हैं जो उस शैतानी काली परछाई ने कही थी परंतु सुबह 3:00 बजे के बाद 11 बार हेल्प शब्द रिकॉर्ड किया गया है और इसकी फ्रीक्वेंसी काली परछाई से अलग है यानी कि काली परछाई उस लड़की की आत्मा को परेशान कर रही है। और जब वह सुबह के 5:30 बजे मेरे कमरे पर पहुंचे तब उन्होंने कमरे की ..... और अभिमंत्रित नींबू की जो हालत देखी उससे यह साफ हो गया कि यह आत्मा बहुत ही ताकतवर है । इसलिए इसको दूर करने के लिए किसी विशेष व्यक्ति की जरूरत है और मेरी खुशकिस्मती थी कि उन्हीं दिनों शहर के पड़ोस में ही एक गांव में गौमाता यज्ञ का आयोजन किया गया था । जिसमें कामाख्या के पास रहने वाले कोई सिद्ध महंत अपनी उपस्थिति दे रहे थे। प्रोफेसर राममूर्ति महंत जी को जानते थे। प्रोफेसर राममूर्ति के कमरे से बिना देर किए हम लोग रात को ही  वहां रवाना हो गए।
मैं , हरि और प्रोफेसर राममूर्ति रात के लगभग 10:00 बजे हवन पर पहुंचे वहां पर हमें लेने के लिए एक जाना पहचाना सा कोई लड़का आया।
"एक्सक्यूज़ मी.....!!! मैंने शायद आपको कहीं देखा है ..??"
मैंने अपनी याददाश्त पर जोर डालते हुए उस लड़के से पूछा 

"यहां पर तो मैं पहली बार आया हूं .....  लेकिन इससे पहले जैसलमेर, चित्तौड़गढ़ ,अलवर ,सवाई माधोपुर, दोसा....... कई जिले राजस्थान के मैंने भी देखें हैं....शायद हम वहां पर मिले हो ..."
वह आगे बढ़ते हुए बोला। मैं हरी और प्रोफेसर राममूर्ति तीनों उसके पीछे पीछे चल रहे थे और मैंने चलते चलते ही कहा ,"माफ करना...! हूँ तो मैं राजस्थान का ही ,,,,,  पर इन जिलों में अभी तक मैं भी नहीं गया हूं"               
तो उसने पीछे मुड़कर हंसते हुए जवाब दिया,   " तब तो शायद हम पिछले जन्म में मिले होंगे...."
मैंने  फिर से कहा ,"नहीं यार... ऐसी कोई बात नहीं है.... तुम्हारे हाव भाव ......चलने का तरीका,,, और तुम्हारी स्माइल........ ऐसा लगता है कि जानता हूं मैं तुम्हें "
मेरी बात सुनकर उसने अपने जेब से मोबाइल निकाला और एक वीडियो चालू करके मेरे सामने लाया और बोला "मेरा नाम सौरव है .....  मैं इंडियन पैरानॉर्मल सोसाइटी का फाउंडर मेंबर हूं ....पिछले कुछ दिनों से भानगढ़ पर फिल्माये गए कुछ प्रोग्राम TV न्यूज़ चैनलों पर लगातार आ रहे हैं.... शायद आपने भी देखें हो?"
मुझे समझ में आ गया कि वह मुझे क्यों जाना पहचाना लग रहा था ।2-3 न्यूज़ चैनलों ने उसकी भानगढ़ कवरेज को दिखाया था।
"तो क्या हुआ भानगढ़ में भूत मिले या... नहीं मिले??"
मैंने उसके बराबर चलते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा तो उसने कहा "नहीं यार... भानगढ़ में कहां भूत हैं... लेकिन राजस्थान में ही कुलधरा नाम की एक जगह है जैसलमेर में ........वहां में 15  से 16 बार जा चुका हूं.... हालांकि कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है मेरे पास .....पर वहां पर सैकड़ों आत्माएं हैं ......मुझे इसका पूरा विश्वास है। "

हम ऐसे ही बातें करते हुए मंदिर के संकरे रास्तों से होकर गुजर रहे थे । फिर सामने जो नजारा आया उसे देखकर आश्चर्य से मुंह खुला रह गया। मंदिर अंदर से बहुत विशाल था। जिसमें बहुत ही भव्य यज्ञ वेदियां बनाई गई थी। 108 यज्ञ-वेदियों में प्रत्येक  पर एक गाय 2 पंडित और यज्ञ में सहयोग करने वाले अन्य लोग बैठे थे । मंत्र उच्चारण से पहाड़ी पर बना हुआ वह किलेनुमा मंदिर गूंज रहा था। कुछ धुंए भरे रास्तों से गुजर कर हम लोग काली मां के मंदिर में पहुंचे। वहीं पर हमारे ठहरने की व्यवस्था की गई थी । सौरव ने बताया कि हमें बिना देरी करते हुए अभी सो जाना चाहिए क्योंकि हमें सुबह 4:00 बजे महंत जी से पूर्ण तैयारी के साथ मिलना है।
दूसरे दिन सुबह मैं थोड़ा लेट उठा था। सुबह 6:30 बजे जब मैं उठा तो प्रोफेसर राममूर्ति अपने कंप्यूटर में कुछ काम कर रहे थे । मेरे उठते ही उन्होंने कहा ,"हमने महंत जी से बात कर ली है ,,   तुम सोए हुए थे तो तुम्हें जगाना सही नहीं समझा..... एक काम करो महंत जी से मिलो और उन्हें अपनी समस्या बताओ ......वही इसका कुछ हल निकाल सकते हैं"
घंटे भर बाद में नहा धोकर महंत जी के कक्ष में पहुंचा। मैं महंत जी का कक्ष देखकर ही चौक गया क्योंकि वह कक्ष हिंदी अंग्रेजी अरबी ग्रीक व अन्य भाषाओं वाली किताबों से भरा पड़ा था बहुत सारे पैरानॉर्मल एक्टिविटी की पहचान करने वाले उपकरण भी वहां पर रखे हुए थे। महंत जी उस वक्त किताब पढ़ रहे थे मुझे देख कर किताब को बंद करके मुस्कुराते हुए बोले 
,"आओ अंकित ..! बैठो ...अब कैसी है तुम्हारी तबीयत ...??राममूर्ति ने बताया था मुझे तुम्हारे बारे में..."
मुझे किताबे ताकते देख वो फिर से बोले "मैं जहां भी जाता हूँ वहां तक अपनी लाइब्रेरी साथ लेकर जाता हूं"

मैं उन्हें प्रणाम करते हुए उन्हीं के सामने गद्दी पर बैठ गया मुझे सच में कोई आईडिया नहीं था कि उनसे कैसे बात की जाए और मैंने उनसे अपने टूटे फूटे शब्दों में कहा ,"पहले तो मैं भी भूत प्रेत को नहीं मानता था पर अब .."
मेरी बात को बीच में ही काट कर महंत जी बोलें ,"इतना सब होने के बाद भी तुम केवल मानते हो ....जानते नहीं हो..?"

"मतलब.... मैं कुछ समझा नहीं" मैंने असमंजस में कहा।
" क्या तुम मानते हो जापान होता है "  महंत जी ने बड़ा अजीब प्रश्न किआ।
"मतलब .....जापान मानने या ना मानने से क्या होता है?? जापान तो है .."             मैंने झुंझलाते हुए कहा।पर महंत जी पूरा दिमाग खाने पर थे उन्होंने फिर से पूछा
"क्या तुम कभी जापान गए हो??"

मैं-   " नहीं ......मैं कभी जापान नहीं गया "

महंत जी-"तो तुम इतना विश्वास से कैसे कह सकते हो की जापान होता है?? ..."
मैं-  "करोड़ों लोग जा चुके हैं जापान.... Google पर है..... किताबों पर है ....दुनिया के नक्शे में है....... तो मानने न मानने का सवाल ही नहीं है"

महंत जी-" सही कहा तुमने जापान मानने योग्य नहीं ....जानने के योग्य है और ठीक ऐसा ही भूत प्रेतों के संबंध में भी है पर पता नहीं क्यों लोग जानने की बजाए उन्हे मानने से इनकार करते हैं उनके पक्ष में दिए गए हर सबूत को मनगढ़ंत बताते हैं"

मैं-,"लेकिन जापान तो कोई भी जा सकता है"

महंत जी-"ठीक कहा ....लेकिन वहां जाने के लिए कुछ विशेष प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ठीक वैसे ही भूत प्रेतों को जानने के लिए निश्चित प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जैसे बिना पासपोर्ट वीसा प्लेन के तुम जापान नही जा सकते वेसे ही कुछ खास प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना भूत प्रेतों को नही जान सकते.... पर पासपोर्ट वीसा ओर प्लेन में बैठे बिना ही कोई कह दे कि जापान जैसी कोई चीज नही है... और ये मन का वहम है ......अंधविश्वास है ,, तो गलत कोन है,, जिन लोगो ने आत्माओं का केवल नाम मात्र सुना है .....कभी उनको खोजा नही ........कभी शोध नही किआ..... कभी उनके अनुभवों से गुजरे नही ....
तुम उनकी बातों को सही मानकर,  उन लाखों लोगों के अनुभव को मानसिक रोग का नाम दे देते हो ......क्या ये गलत नहीं है..??  मेरी बातों को गलत मत समझना मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि आत्माओ के अस्तित्व पर तुम्हारे मानने या न मानने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर याद रखो आत्माएं मानने योग्य नहीं जानने योग्य है।"

मैं-"मेरे कहने का मतलब यह नहीं था ऐसा देखा गया है कि एक ही परिस्थिति में रहने वाले अलग-अलग लोगों के आत्माओं के संदर्भ में अनुभव भी अलग-अलग होते हैं अगर मेरे केस की बात की जाए तो मैं आत्माओं को देख और सुन पा रहा था जबकि मेरे साथ के अन्य लोग उन्हें ना तो देख और ना ही सुन पा रहे थे ऐसा क्यों..??"

महंत जी-" आत्मा कोई पदार्थ नहीं है और ना ही आत्मा कोई स्थूल वस्तु है .....आत्मा कोई यंत्र भी नहीं है ...
आत्मा तो चेतना मात्र है ...एक भावना मात्र है ....मान लो किसी थिएटर में भावनाप्रधान फिल्म को देखने के लिए 500 लोग बैठे हैं , क्या यह जरूरी है कि उस फिल्म को देखने के बाद सभी 500 लोग रोने लगे... नहीं .....ऐसा नहीं होता ....... उस  फिल्म को देखकर केवल वही व्यक्ति रो पाएंगे जो खुद की भावनाओं को किसी न किसी वजह से उस फिल्म से जोड़ पाएंगे ....,, आत्माओं के साथ भी ठीक ऐसा ही है ......जो आत्माओं की भावना से जुड़ जाता है.... वह उन्हें देख और सुन सकता है ....लेकिन जो भावना ही ना समझे ........उसके लिए भावनाप्रधान फिल्म और आत्माएं दोनों में ही कोई अर्थ मालूम ना होगा।"
मैं-"प्रोफ़ेसर ने कहा कि एक शैतानी आत्मा ने उस लड़की की आत्मा को परेशान कर रखा है ....आत्माएं एक दूसरे को परेशान क्यों करती है.... कुछ आत्माएं ताकतवर और कुछ कमजोर क्यों होती है?"

महंत जी," क्या इंसान इंसान को परेशान नहीं करता है ....यह उसकी फितरत पर निर्भर करता है। ठीक उसी प्रकार से आत्माओं की भी फितरत अलग-अलग होती है। जहां तक आत्माओं की ताकत का सवाल है तो आत्माओं की ताकत के पीछे मुख्य वजह विश्वास है।"
मैं-"विश्वास..!!!वो कैसे"
महंत जी-" एक पुरानी कहानी है ,,एक कक्षा में एक लंगड़ा बच्चा पढ़ता था कक्षा के सभी बच्चे , यहां तक कि शिक्षक भी उसका मजाक बनाते थे । कोई उस पर विश्वास नहीं करता था । नतीजा यह निकला कि वह बच्चा फेल हो गया। पर अगले साल एक ऐसा शिक्षक आया जिसने उस बच्चे में विश्वास जगाया । वह उससे अक्सर कहा करता था कि तुम बहुत ही भाग्यशाली हो कि लंगड़े होने के कारण तुम यहां वहां घूमने फिरने और खेलने में समय बर्बाद नहीं कर सकते हो। इसलिए तुम पूरी तन्मयता पूर्वक पढ़ाई कर सकते हो। नए शिक्षक के विश्वास जगाए जाने के बाद उस बच्चे ने बहुत ही अच्छे अंको से वह कक्षा पास की , तो यह उस शिक्षक के विश्वास की ताकत ही थी जो उसे उसके वास्तविक अस्तित्व से ......उसकी वास्तविक संभावना से मिला सकी। अगर वह शिक्षक उस में विश्वास नहीं दिखाता तो वह बच्चा हमेशा अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करता रहता। ठीक ऐसा ही आत्माओं के साथ भी होता है आत्माएं अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए छोटे छोटे प्रयत्न करती है पर उसमें जब तक कोई विश्वास न दिखाए तब तक उनकी वास्तविक ताकत को अनुभव करना संभव नहीं है। हम में से हर कोई आत्माओं के संपर्क में कभी न कभी आ चुका है लेकिन वह कुछ झूठे तर्कों के सहारे अपने अनुभव को झुठलाने में ही रह जाता है । तुमने देखा होगा बिना हवा के पत्ते उड़ते हुए ......खूंटी पर टंगे कपड़े अचानक से गिरते हुए..... अलमारी में रखी किताबें नीचे गिरते हुए..... कमरे में रखी हुई पॉलिथीन या अखबार बिना पंखा चला ही कभी-कभी कमरे में इधर से उधर उड़ने लगते हैं .....या बिना आंधी के ही कभी कमरे की खिड़की जोर से खुल जाती है या बंद हो जाती है ......कभी रसोई में बर्तनों के गिरने की आवाज आती है .......कुछ लोगों को अपने मृत परिजनों की आवाज सुनाई देती है, यह सब आत्माओं द्वारा अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए की गई कोशिशें होती है जिन्हें हम लोग सिरे से नकार देते हैं इससे आत्माओं का मनोबल टूट जाता है और वह फिर से ऐसी कोशिश ही नहीं करती है, लेकिन छोटे बच्चे इन सब चीजों को झूठे तर्कों से झूठलाने की बजाय उनके अस्तित्व को सम्मान देते हैं यही कारण है कि अबोध बच्चे अक्सर आत्माओं से वार्तालाप कर सकते हैं।"

मैं--" यदि मैं आत्माओं के अस्तित्व को पूर्ण तरह नकार दूं तो क्या यह संभव है कि मैं उस  दुष्ट आत्मा से छुटकारा पा लूंगा ?"

महंत जी-" तुम जिस आत्मा से पीड़ित हो उस आत्मा में किसी को भी विश्वास दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। वह एक उच्च मनोबल वाली आत्मा है, उसकी शक्तियां तुम्हारे विश्वास की मोहताज नहीं है ...........हां ,,अगर कोई कमजोर आत्मा हो तो तुम्हारे द्वारा विश्वास नहीं दिखाने पर उससे छुटकारा पाया जा सकता है।
मैं- शायद यही कारण है कि नास्तिकों को आत्माओं के अनुभव नहीं होते हैं।
महंत जी--"हां बिलकुल।"
मैं-" यह आत्माएं होती क्यों है ...क्यों भटकती है.... क्यों कोई आत्मा अच्छी होती है बुरी होती .....है इन सब का पता कैसे चलता है??"
महंत जी-" इस नश्वर शरीर में चेतना का मुख्य कारण ही आत्मा है। आत्मा एक निश्चित अवधि के लिए किसी शरीर को धारण करती है और वह अवधि समाप्त हो जाने पर आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है। आत्माओं का अच्छा होना ....बुरा होना... या फिर उनका भटकना ,,उन्हीं कर्मो पर निर्भर करता है जो वह इस शरीर के साथ करती है।"


मैं-" आत्मा ,भूत -प्रेत ,पुनर्जन्म ...शैतान... यह  खुद में बीत रहा है तब लगता है कि इनका अस्तित्व है। जानता तो मैं इनको अब भी नहीं हूं और शायद किसी ने बताया भी नहीं इनके बारे में। वैसे यह सब क्यों और कैसे होता है?"



महंत जी-" अंकित ध्यान से देखो अपने चारों तरफ देखोगे तो पाओगे यह संपूर्ण जगत ही अनवरत रूप से संभोग में लीन है । संभोग से गर्भ की उत्पत्ति होती है और गर्भ को आत्मा की जरूरत होती है। मृत्यु के बाद आत्मा स्वयं को शरीर से अलग होने के बाद अत्यंत ही हल्का अनुभव करती है। जिस प्रकार से पतंगा अग्नि की तरफ यात्रा करता है ठीक उसी प्रकार से आत्मा भी एक अलग ही जुनून के साथ अनंत की यात्रा की तरफ निकल जाती है और गर्भलोक  पहुंचती है जहां पर अनेकों गर्भ होते हैं । जहां से उनकी पुनर्जन्म की यात्रा शुरू होती है। पर कई बार इंसान की भावनाएं आत्मा की प्यास पर भारी पड़ जाती है और वह अनंत की तरफ यात्रा करने के बजाए संसार में ही भटकने लगता है और पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता है । आत्माओं के भटकने के पीछे कई कारण होते हैं । कुछ आत्माएं परिवार के मोह को त्याग नहीं पाती है और पुनः उसी परिवार में रहना चाहती हैं । ऐसी आत्माएं पितर बनकर उसी घर में पहले की तरह रहने लगती है।  कुछ आत्माएं संगिनी बनकर अपने प्रिय के साथ हमेशा रहती हैं। जो आत्माएं प्रेम  , मोह या फिर इंसाफ के इंतजार में संसार में भटकती है उन्हें पवित्र आत्मा अर्थात प्योर सोल समझा जाता है । जबकि वे आत्माएं जो प्रतिशोध, भोग , विलास या किसी विशेष प्रकार की सनक के चलते संसार में भटकती है वह आत्माएं शैतानी आत्माएं कहलाती है। पवित्र  आत्मायें आमतौर पर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती है।....... कुछ आत्माएं अपनी मृत्यु को स्वीकार नहीं पाती है ऐसी आत्माओं को हर रोज अपनी मृत्यु को पुनः जीना पड़ता है जब तक वह अपनी मृत्यु को स्वीकार न ले।"

मैं--" अनंत की यात्रा ...गर्भलोक....  आत्माओं का व्यवहार ......यह बातें कम समझ में आती है शायद इसीलिए लोगों का रुझान इनकी तरफ कम है।

महंत जी-" अगर किसी इंसान को तकनीकी ज्ञान बिल्कुल भी नहीं हो तो क्या तुम उसे यह समझा सकते हो कि टेलीविजन पर चैनल मात्र बदलने से ही विभिन्न देशों के प्रसारण कैसे आते हैं ??? क्या कारण है कि फोन में इस तरफ से बोली गई बात दूसरे फोन से हजारों मीलों दूर भी सुनी जा सकती है ????   हो सकता है तुम उसे समझा भी दो पर वह समझ नहीं पाएगा और तुम्हारी बताई गई बातों से उसका रुझान भी उस तकनीक में नहीं हो पाएगा। प्रेतों के संबंध में भी हम बुनियादी ज्ञान नहीं रखते हैं। इस कारण मेरी सभी बातें तुम्हें बेहद ही काल्पनिक प्रतीत होंगी। धरती की आधी से ज्यादा आबादी बुनियादी विज्ञान से भी अपरिचित है तो तुम कैसे उम्मीद कर सकते हो की अध्यात्म ,,,जो बुनियादी विज्ञान से बेहद ऊपरी स्तर का विज्ञान है ,,,,,उसकी समझ हर किसी को होगी।"

 महंत जी के उत्तर से मैं निरुत्तर हो गया कुछ लोगों की उपस्थिति इतनी देवीय होती है कि समस्त प्रश्न  विलीन हो जाते हैं । मेरे पास कुछ पूछने को शेष नहीं था ।  कक्ष में कुछ समय तक चुप्पी छाई रही। तभी सौरव और हरी अंदर आए और बोले,  "महंत जी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है"

महंत जी --" लेकिन फिर भी इस बारे में अंकित से एक बार पूछ लेना चाहिए..... अंकित ..! अब तुम हमें यह बताओ कि वास्तव में क्या चाहते हो तुम उन दोनों आत्माओं से मुक्ति चाहते हो या फिर केवल काली परछाई से?"

पता नहीं क्यों यह सब सुनते ही मुझे उस लड़की की चीखें याद आने लगी और मेरा चेहरा गुस्से से तन गया और मैंने उनसे पूछा "जो उस रात मैंने सपने में देखा था .........क्या सच में उस लड़की के साथ वैसा ही हुआ था?"

 महंत जी ने नजरें झुकाते हुए गहरी सांस छोड़कर जवाब दिया "हां तुमने बिलकुल सच देखा था "

मेरे चेहरे पर कठोरता बढ़ती गई गुस्से से  मेरा चेहरा कम्पकम्पा रहा था। मैंने जवाब दिया "तो सबसे पहले मैं उन दोनों को नर्क पहुंचाना चाहता हूं "

मुझे ऐसे देखकर महेंद्र जी ने मेरे गाल थपथपाते हुए कहा "यह .......यह तुम्हारा काम नहीं है अंकित .......अगर तुम उन्हें सजा दिलवा भी दो तब भी वह बच्ची जो अब सजा भुगत रही है उसका क्या.......... जीते जी ही नहीं मरने के बाद भी उसके साथ वही बदसलूकी हो रही है........ एक शैतानी आत्मा ने उसे गुलाम बनाया हुआ है ....
.वह आत्मा उस लड़की की चीखों से सुकून महसूस करती है..... जब तक हम उसकी आत्मा को आजाद नहीं करवाते तब तक उसके गुनहगारों को छोड़ देना चाहिए इसके बाद वह खुद तय करेगी कि उनके साथ क्या सलूक किया जाए"

मैं-   " उसे आजाद करने के लिए क्या करना होगा??"

महंत जी -" उसने तुम से मदद मांगी है तो उसे आजाद भी केवल तुम ही करा सकते हो, तुम्हे इस शरीर को त्याग कर शैतानी आत्माओं की दुनिया में जाना होगा और वहां से उस लड़की को रिहा करके लाना होगा ......पर याद रखना..... तुम्हारी थोड़ी सी भी असावधानी तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए शैतानी आत्माओं की दुनिया में कैद कर सकती है। अगर तुम्हारा कोई काम तुम्हारा अधूरा रहा हो.... या कोई इच्छा तुम्हारी बच गई हो.... तो वह पूरी कर लो उसके बाद उस लड़की की आत्मा को रिहा करवाने की सोचना।"

मैं - " मेरा कोई काम अधूरा नहीं ......मुझ में कोई भी इच्छा नहीं बची है ......और ना ही मेरे जीवन का कोई लक्ष्य है .....मैं एक क्षणवादी इंसान हूं ।मैं अपने हर दिन को जिंदगी का आखरी दिन मान कर जीता हूं । ना तो मुझ में मौत का डर बचा है और ना ही जीने की तमन्ना है । आप मुझे उन शैतानी आत्माओं की दुनिया में भेजिए ताकि मैं उस बच्ची को रिहा कर सकूं।"

महंत जी--" अगर यह सच है तो तुम जीते जी मुक्त हो गए तुम्हारी आत्मा को दुनिया की कोई भी शक्ति गुलाम नहीं बना सकती है । मुझे तुम पर पूरा विश्वास है तुम आत्माओं की दुनिया से सफल होकर ही लौटोगे।"

प्रिय पाठकों,

माफी चाहता हूं ये भाग इतनी देर से आया। आगे के भाग तुरन्त उपलब्ध होंगे। मातृभारती टीम का धन्यवाद जिन्होंने मुझे शब्द सीमा बताई और ये भाग प्रकाशित कर पाया।


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