wo ladki 2 - Parda books and stories free download online pdf in Hindi

वो लड़की 2 - पर्दा

उस रात के बाद मेरी जिंदगी खौफ और दर्द की कहानी बन चुकी थी।
मैं शुरु से बताता हूं।
कमरे पर छोड़े जाने के बाद में रात के 12:30 बज गए थे पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी। तो सबसे पहले मैंने उस रात की दास्तान को अपनी डायरी में लिखा और अपने बिस्तर में दुबक गया था। पर नींद तो मानो आंखों से रूठ चुकी थी। हर आहट पर,, यहां तक कि झींगुर की आवाज से भी बदन में सिरहन दौड़ जाती थी ऊपर से पंखे की हवा से हिल रहा खिड़की का 'पर्दा ' मेरे दिल को दहला रहा था। मैं हिम्मत करके उठा और परदे को अपनी केमिस्ट्री की मोटी किताबों से खिड़की में दबा दिया ताकि वह उड़कर मुझे ना डराए और बल्ब बुझा के चादर ओढ़ कर मन ही मन उल्टी गिनती गिनने लगा। मुझे अच्छे से याद है कि मैं 1000 से 100 तक उल्टा गिन चुका था पर उसके बाद नींद के आगोश में चला ही गया।
मैं थोड़ी कच्ची नींद में ही था कि अचानक मुझे लगा कि किसी ने मेरे ऊपर बर्फ की भारी सिल्ली रख दी हो और कोई मेरे कंधे ....कमर और जांघ को नोच रहा हो पर मैं कुछ ऐसी नींद में था कि हिलना तो दूर की बात ,,मैं तो पलक तक नहीं उठा पा रहा था। बहुत जोर से चिल्लाना चाह रहा था पर आवाज नहीं निकल रही थी ।मैंने पूरी शक्ति आंखों पर केंद्रित करके जैसे ही आंख खोली तो मानो वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती हो गई। मैंने देखा एक बेहद ही भयानक और ठंडी काली परछाई मुझ पर बैठी हुई है जिसकी लाल चमकदार आंखें थी। उस परछाई ने मेरे कंधे जकड़ रखे थे उसके बाद वह मुझ पर कुछ झुकी और धीमे से बोली" तुम भी भुगतोगे.....अ: अ:अ:हहहहहह" ऐसी भयानक आवाज और हंसी सुनकर मेरा तो खून जम गया था। इसके बाद वह परछाई मुझ से उतरी और कूदते  हुए खिड़की से परदे को उठा कर के किताबे उछलती हुई अंदर चली गई।
मैंने तुरंत बल्ब जलाया और देखा कि खिड़की पर लगाई गई किताबे सारी की सारी बिखरी पड़ी है। पर्दा फिर से आगे की तरफ उठा जैसे कोई उसे अंदर से छू रहा हो । मैं डर के मारे पीछे सरकने लगा तभी मुझे दिखाई दिया कि मेरे कंधे कमर और जांघ पर गहरे लाल निशान बन चुके हैं मेरे शरीर पर अजीब सा चिपचिपा पदार्थ लगा हुआ है जिसमें सड़े हुए मांस जैसी गंध आ रही है। मुझे अपनी किस्मत पर रोना और हालत से घिन्न आने लगी थी। इसके बाद कमरे में लगभग घंटे भर तक शांति छाई रही ।मैं कोने में घण्टे भर दुबका पड़ा रहा था। सुबह के 4:00 बज चुके थे मैं नहाने चला गया अपने जिस्म से उन निशानों को और उस गंदी बदबू को हटा देना चाहता था ,,,,धो डालना चाहता था।
सुबह 6:00 बजे मैंने अपने दोस्त यशवीर को फोन किया और मेरे साथ जो भी हुआ था,, वह सब बताया। तो उसने कहा कि रात में जो कुछ हुआ था उसे तो हम फिर भी पैरानॉर्मल मान सकते हैं लेकिन यह जो तुम सुबह वाली घटना बता रहे हो ,,,,,यह सपना हो सकती है,, क्योंकि मैं तुम्हें पहले से जानता हूं कि तुम्हें चोट सपने में लगती है और निशान हकीकत में आते हैं।
मैं जानता था कि वह घटना सपना नहीं थी लेकिन मैं चाहता था कि वो सपना ही हो।
मेरा यह दिन भी सामान्य बीत रहा था ।। कॉलेज में क्लासेज चल रही थी और मैं आराम से पढ़ा रहा था। लेकिन तभी अंतिम कालांश में फिर से दस्तक हुई।
मैं बीएससी फाइनल ईयर को कार्बधात्विक रसायन विज्ञान पढ़ा रहा था। आधी से ज्यादा क्लास बीत चुकी थी। चाक खत्म हो जाने पर मैंने लेक्चर स्टैंड में चौक लेने के लिए हाथ डाला,,,!!! अचानक किसी ने मेरा हाथ अंदर से पकड़ लिया,, मैं पूरी तरह से घबरा गया और हाथ को झटका देते हुए पीछे हटा। कक्षा में बैठी बच्चियों को यह हरकत नागवार गुजरी और वह पूछने लगी,,, " क्या हुआ सर... क्या हो गया.... आप ठीक तो हैं ना..."


मुझे अपने पुराने अनुभवों से यह पता है कि जब लोग आपके सच को सच नहीं माने तब आपका झूठ बोलना ही बेहतर है।
" 1 स्क्वायर सेंटीमीटर की मकड़ी ...... 5 फुट 11 इंच के इंसान को डरा सकती है" मैंने बनावटी मुस्कान देते हुए यह कहा।
पर मेरा चेहरा पसीने से तरबतर हो चुका था शायद इसीलिए मेरे इस घटिया जोक पर बच्चियों ने हंसना जरूरी नहीं समझा।
इतना सब हो जाने के बाद भी मैंने पढ़ाना जारी रखा लेकिन उसके बाद तो मेरे सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी जब मैंने देखा ........... कक्षा के अंतिम कोने में 'उस रात' वाली बच्ची बैठी रो रही है। मेरी हिम्मत और धैर्य दोनों जवाब दे चुके थे मैंने कहा "आज की कक्षा यहीं पर खत्म होती है"
" सर यह टॉपिक तो पूरा करवा देते ... अभी थोड़ा टाइम बचा है सर.... प्लीज" एक लड़की हाथ पर बंधी कलाई घड़ी की तरफ इशारा करते हुए बोली।
" एक्चुअली में वह टोपीक ही भूल चुका हूं ...कहां से करवा दूं" मैंने पीछा छुड़ाते हुए कहा।

"सर...!!!! आज पहली बार एहसास हुआ कि आप भी इंसान हैं,, वरना इतनी केमिस्ट्री किसे याद रहती है "

पीछे से किसी लड़की ने गर्दन नीचे करके बोला। ओर कुछ लड़कियां हंसने लगी।
मेरी हिम्मत नहीं थी किसी को भी जवाब देने की मैं चुपचाप क्लास से बाहर निकल गया।

मेरा रूम पर जाने का मन नहीं था तो मैंने तय किया कि आज मैं लाइब्रेरी जाऊंगा। लाइब्रेरी जाकर मैंने The Encyclopedia of Ghosts and Spirits
by
Rosemary Ellen Guiley, 1992

और इस से मिलती-जुलती कुछ अन्य किताबों को ढूंढा और पढ़ने में लग गया।
The Paranormal Investigator's Handbook,1999 byMaurice Townsend, Valerie Hope 
और  A Beginner's Guide to Paranormal Investigation by Jebby Robinson, Mark Rosney, and Rob Bethell,, जैसी किताबे मैंने टेबल पर रख ली।



मैं पागलों की तरह किताबों को उलट पलट के देख रहा था तभी मुझे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ। मैं पहले से ही डरा हुआ था और भी डर गया जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मेरे सामने एक लड़का खड़ा था। उसने मुझे 1 मिनट बाहर आने के लिए इशारा किया।

" मेरा नाम राकेश है मैं यूनिवर्सिटी में साइकोलोजी का रिसर्च स्कॉलर हूं" लाइब्रेरी से बाहर निकलते ही हाथ बढ़ाकर उसने मुझसे यह कहा।
"अंकित... अंकित महर्षि ,,लेकिन मैं केमिस्ट्री से हूं" मैंने हाथ मिलाते हुए जवाब दिया और हम दोनों चहल-कदमी करने लगे।
" मैं लाइब्रेरी में रोज आता हूं पर आपको पहली बार देखा है" राकेश ने पूछा
"मैं तो बरसों बाद आया हूं " मैंने जवाब दिया।
"मैं पैरा नार्मल एक्टिविटी और रिसर्च में काफी इंट्रेस्टेड हुँ। मैं ये सारी किताबें पढ़ा करता हूं । मैंने ही रिक्वेस्ट करके इन किताबों को मंगवाया है।" वह बड़े उत्साह से बताता जा रहा था और मैं बस सुन रहा था।
फिर चलते चलते थोड़ा घूम कर मेरी आंख में आंख डालकर वह बोला " आप यह सब क्यों पढ़ रहे हैं !!??कहीं आप भी तो ....किसी, ऐसे अनुभव से नहीं गुजर रहे हैं???"

"नहीं.... बस शौकिया तौर पर।" मैंने अपनी जूतों की तरफ देखते हुए जवाब दिया। अब मैंने इशारों में ही लाइब्रेरी की तरफ हाथ करके पूछा "क्या अब मैं जाऊं"
वह गर्दन हिलाता हुआ बोला "हां ....हां.. क्यों नहीं।"

मैं वापिस लाइब्रेरी की तरफ चल पड़ा लेकिन तभी आवाज सुनाई दी।। " अंकित जी..."
राकेश मेरे पास आ रहा था और जेब से एक कार्ड मेरे हाथ में थमा कर बोला "अंकित जी प्रोफेसर राममूर्ति ,, जो एक बहुत बड़े पैरानॉर्मल एक्सपर्ट हैं वह सोमवार को यहां पर आ रहे हैं ...... उनका टाउन हॉल में सेमिनार है ..आप जरूर आइएगा।"



" हां क्यों नहीं जरूर आऊंगा" मैंने उसके हाथ से कार्ड लेते हुए कहा। मैं लाइब्रेरी के अंदर जाने वाला था की तभी मेरा फोन बज उठा।
"हेलो ..अंकित .....भाई रात को फिल्म देखने चलेगा क्या"
"हां ,,विकास,,, नहीं भाई'"
मैंने अनमने ढंग जवाब दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि थिएटर में मेरे साथ कुछ उल्टा सीधा हो और लोग मेरा मजाक बनाए।
"कमीने ... हर शुक्रवार को तो तू जाता है फिल्म देखने के लिए ....आज जब मैं बोल रहा हूं तो तेरा मन नहीं है"



" भाई विकास हर शुक्रवार को मैं तुझे पूछता भी हूं लेकिन तू ही मना कर देता है"


" भाई मैं मना नहीं करता तेरी भाभी आने नहीं देती मुझे"
मैं शर्त लगा सकता हूँ कि उस वक्त उसकी शक़्ल कैसी हो रही होगी।
" तो आज कैसे इजाजत मिल गई" मेने पूछा



" तेरी भाभी आज गांव गई हुई है अकेला था तो पूछ रहा हूं,,, नखरे मत कर यार ,,मूड खराब कर रहा है तू"

"यार एक काम करते हैं,, शाम को कहीं घूम कर मस्ती करते हैं और रात को तेरे लेपटॉप हेट स्टोरी 3 देखते हैं।"


"भाई मेरे पास कोई फिल्म नहीं है"


"मेरे पेन ड्राइव में पड़ी है ,,, तू एक काम कर मैं लाइब्रेरी हूँ तू वहीं आजा।"

"ठीक ह भाई" ये बोलकर उसने फोन काट दिया।

विकास मेरा दोस्त है, जो इस बड़े से शहर के उन गिने चुने बन्दों में से है जो मुझे सालो से जानते हैं।वो यहां पिछले साल से ही किसी कोचिंग में पढ़ा रहा है।

थोड़ी देर में वह आ गया। हमने बाहर खाना खाया ।खूब मस्ती की और रात को रूम पर चल पड़े।
इस शहर में कुछ गिने चुने घर ही है जिनमे गार्डन के नाम पर कुछ पौधे देखने को मिल जाते हैं ।
विकास का रूम भी ऐसे ही घर मे था वहां पीली कनेर लगी हुई थी। कुछ देर तो हमने इधर-उधर की बातें की उसके बाद फिल्म देखना शुरु कर दिया। तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी घर से फोन आया था मम्मी का।
"भाई पोज़ करके रखना ..मैं अभी 2 मिनट में बात करके आया"
मम्मी शनिवार को घर आने के लिए बोल रही थी। सच यह है कि अगर वो फोन नही भी करती तब भी मैं घर चला जाता।

"भाई.... बाते हो गई तो आजा,,, ज्यादा इंतज़ार नही होता।" मुझे उसकी आवाज सुनाई दी।
"ले भाई आ गया" ये बोल के जैसे ही पीछे पलटा तो मैं हक्का बक्का रह गया,,,,, विकास मेरे ठीक पास खड़ा था।
"अ... अंकित!! तुझे वो आवाज सुनाई दी...!!!म मैं यहां हूँ...... तो ये बोल कोन रहा है" विकास बुरी तरह से डर गया था और पसीने से लथपथ हो गया।

"अबे आजा,,,, फिर कहेगा अकेले फ़िल्म देखने लग गया" इस बार थोड़ी भारी आवाज कमरे से आई।

इस बार आवाज सुन के विकास की हालत खराब हो गई,,, वो मुझे पकड़कर रोते हुए पीछे करने लगा,,, "नहीं भाई... मत जाना ...मुझे बहुत डर लग रहा है"

"तू अंदर आ रहा ह या मैं बाहर आऊं" इस आवाज को सुनकर मेरे ओर विकास दोनो के पसीने छूट गए,, तभी चरमराते हुए कमरे का दरवाजा खुला,,,
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"साले तू यहां खड़ा कर क्या रहा है" दरवाजे को खोलकर कोई 'विकास जैसा' बाहर आया।
लेकिन कुछ इससे भी ख़ौफ़नाक मंजर देखना मेरी जिंदगी में बाकी था।
जिस विकास ने मुझे थाम रखा था उसकी आंखें अचानक लाल हो गई और वो बड़ी ख़ौफ़नाक मुस्कान के साथ धीमे से बोला"तुम भी भुगतोगे...हहहहहह"
ओर काली परछाई में बदलकर पीली कनेर में समा गया।मैं होश खोकर जमीन पे गिर गया लेकिन तुरन्त विकास ने मुझे उठाया,,," उठ जा भाई... अंकित...क्या हुआ भाई,,,ले रुक हम अभी हॉस्पिटल चलते हैं" विकास मेरे गाल थपथपाते हुए बोला।

जिस डर को मैंने महसूस किया है,, मैं नही चाहता कि कोई सपने में भी उससे रूबरू हो।मेने तय किया मैं इस बारे मे विकास को कुछ नहीं वताउंगा।

"भाई कुछ नहीं हुआ,,, मामूली चक्कर आया है,, दो तीन दिन से बुखार है तभी तो थिएटर के लिये मना कर रहा था। लगता है बीपी low हो गया है।"

"बस इतनी सी बात ,,, मैं तो फालतू में ही डर गया था,, चल तुझे हॉट सीन दिखाकर बीपी high करता हूं ,, मस्त पिक्चर है भाई।" ओर वो मुझे सहारा देकर कमरे में ले आया।


मूवी खत्म होने तक रात के 12:30 बज चुके थे।

अब हम सोने की तैयारी करने लगे ,, विकास ने जैसे ही खिड़की पर पर्दे लगाए, तो रात वाली घटना की याद ताजा होने से मैं पसीना पसीना हो गया।
"भाई ये पर्दे लगाने जरूरी है" मेने पसीने पौंछते हुए पूछा।
"भाई ये खिड़की सड़क पर खुलती है, यहां खिड़की में से गाड़ियों की रोशनी आने से नींद खराब होती है, इसलिए पर्दे लगाना जरूरी है,,, तुझे गर्मी लग रही है....!!! कूलर थोड़ा तेज़ कर ले।"
इसके बाद हम सो गए,, शायद पिछली रात सो नहीं पाया था। इसलिए मुझे सोते ही नींद आ गई ।सही कहते हैं डर पर हमेशा नींद भारी होती है।

अचानक मेरी नींद टूटी ओर ऐसा लगा कि मुझे गर्दन पर बाईं तरफ से किसी ने कसकर पकड़ रखा है। मैं चीखने की कोशिश कर रहा था पर मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। कमरा पूरी तरह से घिनौनी बदबू से भरा हुआ था।
मैंने आंख खोलकर देखा वही काली परछाई मुझे गर्दन से पकड़कर घसीट रही है और पता नहीं क्या बुदबुदा रही है। मेरे जिस्म को तो जैसे लकवा मारा हुआ था मैं कुछ नहीं कर पा रहा था सिवाय आंसू बहाने के।

"कौन है वहां .....छोड़ो उसे..." मुझे घसीटने के कारण मेरे पास ही सोया विकास जाग चुका था। इससे पहले विकास उस काली परछाई की तरफ लपकता वो काली परछाई मुझ पर झुकी और धीरे से बोली "तुम भी भुगतोगे"और लपक कर पर्दे के पीछे चली गई।

"व.. वो क्या था..." मैं अंधेरे में विकास की शकल नहीं देख पा रहा था लेकिन वह बहुत ही डरी हुई सी आवाज में ऐसे बोल रहा था,,," कहां गया वो".... इतना कहकर उसने मोबाइल की लाइट जला दी।
"भाई ये सब मेरे साथ कल रात से हो रहा है" मैंने रोते हुए कहा।

"भाई बता तो सही बात क्या है और कमरे में इतनी बदबू कैसे फैली हुई है" उसने मोबाइल को मेरे मुंह के पास लाकर पूछा।
इससे पहले मैं कुछ बताता कमरे में रखी bookcase. हिलने लगी। विकास के पांव पर ओढ़ी हुई चद्दर भी अचानक से किसी ने खींच कर दूर फेंक दी। विकास का सब्र टूट गया और वह बड़ा ही डरते हुए बोला " भाई यह सब क्या हो रहा है.."

तभी एक मोटी सी किताब बड़ी तेजी से आकर उसके सिर पर पड़ी और वह अचेत होकर बिस्तर पर गिर गया।ओर मोबाईल के नीचे गिरने से वो भी बंद हो गया था।

"चाहते क्या हो ... क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा.... क्यों पीछे पड़े हो...." मैं अंधेरे में विकास को टटोलते हुए चिल्ला रहा था।
तभी कमरे में हल्की सी रोशनी हुई। पर्दे चमक उठे। शायद रोड पर जाने वाली किसी गाड़ी की रोशनी उन पर गिर रही थी। लेकिन तभी पर्दे पर एक छाया प्रकट हुई। कोई लड़की पर्दे में ठीक इसी प्रकार से लटकी थी जैसे जीसस को सूली पर लटकाया गया था।
मुझे लगभग यकीन हो चला था कि आज मैं मरने वाला हूं लेकिन फिर भी हिम्मत करते हुए मैंने बटन ढूंढा और बल्ब जला लिया। परदे से वह परछाई अब गायब हो चुकी थी।
मैं बस प्रार्थना कर रहा था,,, "मैं आज नहीं मरना चाहता हूं,,, घर पर जाने के बाद मर भी जाऊं तो भी कोई गम नहीं,,बस आज आज..."
मुझे लगा मेरी प्रार्थना रंग लाई ।कमरे में मैं आधे घंटे तक यूं ही बैठा रहा और कोई हरकत नहीं हुई।रात के 2:45 बज चुके थे।
फिर अचानक कमरा उसी दुर्गंध से भर गया। मैंने डरते-डरते पर्दे की तरफ देखा तो पता चला पर्दे पर खिड़की की अंदर की तरफ से कुछ खून के छींटे गिर रहे हैं। मैं बस सांस रोके उन्हें देखता गया ।छीटे तेजी से गिरने लगे और पूरा पर्दा खून से सन गया था।
तभी मुझे अपने पीछे किसी की उपस्थिति का एहसास हुआ और वापस वही आवाज आई, "तुम भी भुगतोगे"
मैं बदहवास आगे की तरफ दौड़ा और दीवार से टकरा गया। और जब खड़ा हुआ तो पर्दे के ठीक सामने था। शायद मैंने यहां आकर बड़ी गलती कर दी थी। पर्दा तेजी से मेरे चारों तरफ लिपट गया और मैं सांस भी नहीं ले पा रहा था मैंने अपने को छुड़ाने की बहुत कोशिश की और मैं गिर पड़ा।

फिर मैं उठा तो मुझे बहुत ही हल्का हल्का सा महसूस हो रहा था।मैं किसी विचित्र जगह पर था ,,, वो अहसास जमीन पर खड़े होने के अहसास से बिल्कुल अलग था।मुझे चारो तरफ अंधेरा दिखाई दे रहा था।फिर अचानक मैंने नीचे देखा,,,

ओर मैने खुद को ही पर्दे में लिपटा पड़ा देखा। मैं बुरी तरह से कांप गया। मैंने खुद को छूने की कोशिश की,, पर मैं पर्दे में लिपटे शरीर को छू भी नहीं पा रहा था।मुझे पता चल गया कि मैं मर चुका हूं। मुझे कोसों दूर से रोने की आवाज सुनाई दी। मैं उन आवाज़ों की तरफ अप्रत्याशित तेज गति से गया।वो जाने का अहसास चलने के अहसास से बेहद अलग था ,शायद उड़ने के एहसास से भी अलग।
मैंने देखा वहां पर हजारों परदे टँगे पड़े हैं और उन पर्दों के पीछे से रोने की आवाजें आ रही है।
तभी सुर्ख लाल आंखों वाली वही काली परछाई वहां पर आई और बड़े ही भयानक ढंग से बोली," कहा था ना तुम भी भुगतोगे हा हा हा हा"
मैंने पहली बार उसकी इतनी जोर से और इतनी भयानक आवाज सुनी थी। मैं बस अपनी जगह पर जम सा गया था। पर तभी मुझे एक जानी पहचानी चीख सुनाई दी। यह वही चीख़ थी जो मैंने उस रात सुनी थी। उस चीख़ में इतना दर्द था कि मैं अपने अंजाम से बेखबर उस पर्दे की तरफ दौड़ने लगा जहां से वह चीख़ आ रही थी।

तभी एक बेहद ठंडे हाथ ने मुझे कस कर खुद में जकड़ लिया।वो वही काली परछाई थी और उसने कहा," तुम थोड़ा जल्दी आ गए,, तुम ओर भुगतोगे और फिर से आओगे" यह कहते हुए उसने मुझे बहुत ही तेजी से फेंका। मेरा पूरा बदन मानो टूट सा गया। मैं फिर से हिम्मत कर उठने की कोशिश में लग गया। लेकिन मुझ पर पर्दा लिपटा हुआ था। जैसे ही पर्दा उठाया तो मैंने पाया कि मैं कमरे में हूं । सामने विकास सोया हुआ था और सुबह के 5:30 बज चुके थे।

कहते हैं इस दुनिया में सबसे बड़ा डर मौत का होता है पर आज मैंने मर कर भी देख लिया था। उठकर मैंने कमरे को फिर से ठीक किया । किताबों को अपनी जगह पर रखा। और विकास की चादर उसे ओढा दी। पर्दे को फिर से लगा दिया।

सुबह 7:00 बजे के आसपास विकास उठा और पागलों की तरह कमरे का चप्पा-चप्पा छान रहा था।
"क्या कर रहे हो भाई...कुछ खो गया क्या..." मैंने विकास से पूछा।

"भाई मुझे रात को एक सपना आया कि भूत तुझे उठा कर ले जा रहा है और जब मैंने उसे रोका तो उसने मुझे किताबों से मारा, और मेरे सर में अभी दर्द हो रहा है"

विकास अपने सर पर हाथ लगाते हुए बड़ा कंफ्यूज हो कर बोला।

" सॉरी भाई !!! तू रात को पानी पीने के लिए उठा था ,,तब मैंने तेरा तकिया लगा लिया था और तू दीवार से टकरा कर चुपचाप सो गया..." मैंने बनावटी हंसी दिखाते हुए कहा।

"लेकिन तेरी गर्दन पर लाल ये निशान कैसा" विकास गर्दन पर हाथ लगाते हुए बोला।

".".....एलर्जी ,,, एलर्जी ,,भाई,, "" मैंने टी शर्ट खोलकर अपने कंधों के निशान दिखाए
"भाई उस तकिए वाली हरकत के लिए सॉरी" मैं मुस्कुराने का अभिनय करता हुआ बोला।

"साले तू दोस्त के नाम पर कलंक है..." विकास सर खुजाता हुआ बोला।

" सॉरी भाई!! अब मैं अपने कमरे पर जा रहा हूं मुझे तैयार होकर कॉलेज जाना है।"
यह कह कर मैं अपने कमरे पर आ गया। मैं कभी नहीं चाहता कि विकास को इस खौफनाक सच्चाई के बारे में पता चले। अब मैं अपने हाथ में राकेश के दिए गए कार्ड को लेकर अपनी डायरी में उन ख़ौफ़नाक पर्दों की दास्तान लिख रहा हूं। आज कॉलेज से सीधा मुझे घर जाना है । सोमवार का इंतजार रहेगा जब मैं प्रोफेसर राममूर्ति से मिलूंगा। क्या मालूम शायद तब तक जिंदा रहूं या नहीं।

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