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वो लड़की 2 - बेपर्दा

अब हर आहट पर डरने लगा हूं। कीचड़ की गंध भी मुझ में सिरहन पैदा कर देती है। तन्हा पन का एहसास तो कोसों दूर है। अब तो लगता है हर कोई मुझे टकटकी लगाकर घूर रहा है। इंसानों से न तो ज्यादा करीबी और न ही ज्यादा दूरी बर्दाश्त होती है। पता नहीं कौन आकर कह दे तुम भी भुगतोगे।
विकास के रूम से आने के बाद जैसे तैसे खुद को समेट कर तैयार होकर कॉलेज गया। अब डायरी पीछे बैग में ही रखता हूं पता नहीं कौन सा लम्हा मेरा आखिरी लम्हा हो। मैं पढ़ाने की हालत में नहीं था इसलिए पढ़ाने की बजाय मैंने सभी क्लासों में सरप्राइज़ टेस्ट लिए। शायद ऊपर वाले की मेहरबानी थी कि कॉलेज में आज का दिन ठीक-ठाक निकल गया।
कॉलेज खत्म होते ही फिर से फोन बज उठा। मैंने देखा मम्मी का फोन आया था।
" हेलो ...बेटा अंकित"

" हां ...मम्मी बोलो"

" बेटा.. तुम आज आ रहे हो ना"

" हां ...आ रहा हूं"

" तो एक काम करना, आते वक्त सब्जी और एक नारियल जरूर लेकर आना।"

' ठीक है मम्मी"

मेरी मम्मी की रुणिचा पीर रामदेव जी में गहरी आस्था है। वह हर दशमी को हमारे कस्बे के ही एक मंदिर में उनको नारियल का प्रसाद चढ़ाती है। हां मैं ब्राह्मण परिवार से हूं और हमारे परिवार में कुछ ऐसे विचित्र वहम पाए जाते हैं कि देवताओं को केवल स्वच्छ सफेद नारियल का ही भोग लगाया जाता है। कई बार नारियल अंदर से लाल या खराब निकलने पर दोबारा से नारियल लाकर चढ़ाना पड़ता है। तो इस समस्या से बचने के लिए मैंने तीन नारियल एक साथ खरीद लिए।
और सब्जी खरीदने के बाद मैं बस में बैठकर घर की तरफ निकल गया । 
बस में सबसे पीछे जाकर जगह मिली जहां पर चार पांच साधु बैठे थे जो शायद किसी तीर्थ स्थान की यात्रा करके आए थे। उनमें जाकर मैं भी बैठ गया। उनसे बातें करने का मन नहीं था मेरा इसलिए मैं ईयर फोन लगाकर चुपचाप बैठ गया था हालांकि मैंने गाने नहीं चला रखे थे।
अचानक से बस में घिनौनी बदबू भरना शुरू हो गई। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि खिड़कियों को खोले या बंद करें बदबू है कि दूर होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
" यह अशुभ है और बेहद भयानक भी,,, जल्दी इसका कुछ करना होगा" एक साधु बड़े ही चिंतित स्वर में बोला। फिर सभी साधु माला निकालकर कुछ जाप सा करने लग गए। फिर एक साधु ने कलश में से जल निकाल कर पूरी बस में छींटे मारे।
" इन पाखंडियों को क्या हो गया" ..."पागल है साले" "सबका दिमाग खराब है"... ऐसी टिप्पणियां साधुओं के लिए बस के यात्रियों के मुंह से आने लगी।
इसके बाद साधुओं ने भजन-कीर्तन करना शुरू कर दिया जो मेरे उतरने तक जारी रहा था।
खैर जो भी हो मैं सही सलामत अपने घर पहुंच गया जिसकी उम्मीद मुझे बिल्कुल भी नहीं थी। घर आते ही मम्मी मेरे बदहवास से चेहरे को पहचान गई और गर्दन पर लगे लाल निशान के बारे में पूछा मैंने वही जवाब दिया जो पहले विकास को दिया था। मम्मी की जिद पर मैं उन निशानों को डॉक्टर को दिखाकर आ गया। वो डॉक्टर हमारे पारिवारिक मित्र भी हैं इसलिए उनको वक्त-बेवक्त परेशान करते ही रहते हैं।
हॉस्पिटल से वापस आते ही मेरी 4 साल की भतीजी ने मुझे घेर लिया। बहुत ही सीधी बच्ची है वह ।कोई जिद नहीं , कोई शैतानी नहीं ,,यहां तक कि वह बैठे-बैठे टेडी बियर और तकिए से भी खेल लेती है। उसकी फरमाइशें शुरू हो गई "चाचू गाना सुनाओ ...गोद में उठा लो... घुमाओ।" और मैं एक-एक करके उसकी सारी फरमाइशें पूरी कर रहा था। थोड़ी देर बाद वह फिर से अपने खिलौनों में व्यस्त हो गई। और मैं अपनी डायरी के पन्ने पलट कर देखने लग गया।तभी मेरा ध्यान मेरी भतीजी बिटकु की आवाज पर गया
" हेलो मैं बिटकु बोल रहीं हूँ,,, आप कौन बोल रही हो ....दीदी बोल रही हो....... दीदी को किस से बात करनी है ........चाचू से करनी है..... अभी करवाती हूं ....चाचू ,,दीदी का फोन है"
मैंने देखा वह शैंपू की खाली बोतल को कान पर लगा कर बात कर रही है, और शायद मुझसे ऐसा ही करतब करवाना चाहती है। उसकी इस मासूम हरकत को देखकर पिछले 2 दिनों में पहली बार मुझे हंसी आई थी। उसका दिल रखते हुए मैंने भी बोतल कान पे लगा कर कहा:-हैलो
लेकिन तब मेरा रोम-रोम खड़ा हो गया जब बोतल में से आवाज आई:-हैलो।
आवाज इतनी भयानक थी कि मैंने बोतल दूर फेंक दी और पसीनों में लथपथ सिकुड़ कर बैठ गया।
"चाचू आपने दीदी से बात नहीं की.. मैं भी आपसे बात नहीं करूंगी.... कट्टी" ऐसा कहकर बिटकु उदास सी शकल बना कर चली गई।
जिंदगी ने बड़े अजीब मोड़ पर ला खड़ा कर दिया था मुझे ।। क्या बताऊं ,, क्या छिपाऊं ,, कौन यकीन करेगा,, जैसे सवाल खा रहे थे मुझे।
थोड़ी देर बाद पूरे परिवार के साथ बैठकर खाना खा रहा था। सभी मुझे फर्जी प्रोफेसर बोलकर मेरे मजे ले रहे थे। मैंने उम्मीद भी नहीं की थी कि इतने सुकून भरे पल भी अब मेरी किस्मत में लिखे हैं। हमारे यहां रात को सभी छतों पर सोते हैं खासतौर पर गर्मियों के मौसम में तो सभी ने अपने बिस्तर छत पर लगा लिए और मुझे नीचे सोने को कहा गया क्योंकि मुझे एलर्जी है और मुझे दवाई लगा कर सोना है। धूल भरी आंधियां से मेरी तबीयत और भी बिगड़ सकती है। मैं भी उनकी बात मानकर चुपचाप नीचे कमरे में आ गया।
नीचे कमरे में आकर मैं बिस्तर पे पड़ा अपनी डायरी में आज की दास्तान लिखने लगा। फिर अचानक मैंने पीछे देखा कि कमरे की अलमारी के पर्दे के नीचे से शायद मेरी छोटी बहन अलमारी में कुछ ढूंढ रही है। उसे अक्सर सर दर्द रहता है वह सर पर बाम लगा कर ही सोया करती है। और उसकी बाम भी उसी अलमारी में रहती है।
"बेटा..! तुम कब आई" मैंने उससे पूछा।
"मैं तो आपके साथ ही आई"... यह आवाज उसी लड़की की थी जो मैंने उस रात सुनी थी और मैं तब गश खाकर गिर पड़ा जब वह दीवार के आर पार हो गई ओर पर्दा नीचे हो गया।

आधी रात को जोर जोर से रोने और चिल्लाने की आवाज सुनकर मेरी आंख खुली। मैंने देखा मेरे बिस्तर पर बाईं तरफ एक लड़की घुटनों में सर दिए जोर जोर से रो रही है। मैं हड़बड़ा कर उठा और ओर बिना सोचे समझे बोला :- " क्या हुआ...??!! क्या हुआ...!!

लड़की घुटनों में सिर दिए हुए ही हाथ से खिड़की की तरफ इशारा करके बोली "वह अभी भी वहीं है"
जब मैंने खिड़की में देखा तो वही जानी पहचानी चमकीली गुलाबी आंखें मुझे झांक रही थी और दिल दहला देने वाले तरीके से हंसकर आंखों से ओझल हो गई। जब मैंने वापस मुड़कर देखा तो वह लड़की भी मेरी आंखों से ओझल हो चुकी थी। पिछले 2 दिन की सारी घटनाएं मेरे आंखों के सामने किसी चलचित्र की तरह दौड़ गई और मैं लगभग पूरा होशो हवास में आ चुका था। मैं ज्यादा रोशनी वाली लाइट जलाकर मन-ही-मन अपनी किस्मत को कोस रहा था। लेकिन मेरी आंखें फटी की फटी रह गई जब मैंने देखा की अलमारी का पर्दा कोई जोर जोर से खींच रहा है लेकिन दिखाई कोई भी नहीं दे रहा था । पर्दे की हुक कट ...कट... कट ..से एक-एक करके टूट रही थी। मैं डर के मारे सांस भर गया था इतना कि चिल्ला भी नहीं पा रहा था। पर्दा खिड़की से उतरकर मेरी तरफ लपका। मैंने बचने की बहुत कोशिश की लेकिन पर्दा मेरे ऊपर किसी मजबूत पत्थर की तरह गिर ही गया। मैंने हिलने डुलने की बहुत कोशिश की लेकिन पर्दे का वजन इतना था कि मैं टस से मस नहीं हो पा रहा था। थोड़ी देर बाद मैंने खुद को एक कमरे में खड़ा पाया।

" जो हो गया सो हो गया लेकिन अगर अब समझदारी से काम लिया तो जिंदगी भर मजे कर सकते हैं और अगर अब गलती की तो पूरी जिंदगी जेल में काटनी पड़ेगी"

एक लड़का मेरी तरफ पीठ किए हुए कुर्सी पर बैठा था वह अपने सामने पलँग पर बैठे किसी दूसरे लड़के से यह कह रहा था।
" मुझे बहुत डर लग रहा है यार ...कहीं हम यह बहुत गलत तो नहीं कर रहे ..जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।"
पलंग पर बैठा लड़का जाना पहचाना सा लग रहा था पर उसे कहां देखा था मुझे याद नहीं आ रहा था। 
"पागलों जैसी बात मत कर यह idea तेरा था और शुरू भी तूने किया था" कुर्सी पर बैठा लड़का बोला। ठक ठक ठक ....ठक ठक ठक ठक दरवाजा बजा।
और दोनों लड़के डर से थरथरा उठे और एक दूसरे से कहने लगे "कौन आया है... तू देख..तू देख.."
कुर्सी वाला लड़का पलंग पर एक किताब खोल कर दरवाजे की तरफ आगे बढ़ा और किनारे से धीरे से खोला। लेकिन दरवाजे को और जोर से खोलकर सामने एक औरत आई।
" क्या हुआ विनीत !! दरवाजा खोलने में इतना टाइम कैसे ले लिया .... और अंदर महिपाल क्या कर रहा है"
मैंने देखा वही औरत जिसके घर पर उस रात मुझे होश आया था, वह कमरे के अंदर झांक कर बोल रही थी। 
"वो मम्मी मेरा और महिपाल का कल पेपर है इसलिए हम दोनों पढ़ रहे हैं" मैंने थोड़ा झांक कर देखा तो पता चला कुर्सी वाला लड़का कोई और नहीं वह आंटी वाला बेटा बिट्टू ही था।
" तू बीएससी नर्सिंग में है और यह बीएससी फार्मेसी में है दोनों एक साथ कैसे पढ़ सकते हो।" आंटी नजरें तीखी करते हुए बोली। 
तभी मैं बीच में बोल पड़ा "आंटी मैं यहां कैसे पहुंचा ...मैं यहां कैसे आया??!!"
लेकिन जैसे मेरी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं दे रही थी । मैं उन सभी के लिए मानो अदृश्य था और किसी ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया।

" मम्मी हमारा एक पेपर कॉमन है" विनीत (आंटी का बेटा बिट्टू ) 
हड़बड़ाते हुए बोला।

" अच्छा यह बता सोमू यहां आई थी क्या"
आंटी ने थोड़ा घूरते हुए पूछा।
"न..न.. नहीं आंटी यहां तो कोई सोमू नहीं आई ,,,!!कौन है , सोमू वैसे.!!." महिपाल बीच में ही बोल उठा। 
"नहीं मम्मी हम यहां पर दोनों अकेले ही हैं और पढ़ाई कर रहे हैं" विनीत ने भी उसकी बात का समर्थन किया।

इस बार मैंने महिपाल को ध्यान से देखा तो याद आया यह तो वही लड़का है जो "उस रात" मुझे मेडिकल स्टोर पर मिला था। जिसने मुझे हैप्पी बेबी जैसी सिरप दी थी।
"वो उसके होस्टल से फोन आया था। मास्टर जी पूछ रहे थे कि वह लड़की आज पहुंची कैसे नहीं होस्टल पर ...इसलिए मैंने पूछा "
यह कहकर आंटी कमरे से बाहर चली गई।
आंटी के बाहर जाते ही विनीत ने कमरे को अंदर से लॉक कर लिया और वह महिपाल से बोला," सुन हिम्मत रख, जो बच गया है वह काम निपटा लेते हैं,

"भाई अगर पकड़े गए तो....." महिपाल कांपता हुआ सा बोला।

"यार पकड़े गए तो मरना ही है लेकिन कुछ करके मरे तो ज्यादा अच्छा है" अपने चेहरे पर क्रूरता का भाव लिए हुए विनीत आगे बढ़ा।
महिपाल भी उसके पीछे पीछे गया । दोनों मेरी तरफ आ रहे थे । मैं उनसे कुछ कह रहा था लेकिन वह सुन नहीं रहे थे और मेरे अंदर से आर-पार होकर निकल गए। मेरे पीछे की तरफ एक बड़ा सा पर्दा लगा हुआ था । दोनों साइड से उस पर्दे के अंदर घुस गए।
मुझे कुछ समझ में नहीं आया वह मेरे आर पार कैसे निकल गए!!! वह मुझे सुन और देख क्यों नहीं पा रहे हैं!! तभी विनीत की फिर से आवाज आई। "अगर पकड़े गए तो यह अपना आखरी बार भी हो सकता है ...अपने पास 2 घंटे हैं ..? जितना कर सकते हैं उतना कर लेना चाहिए।" फिर कुछ अजीब सी आवाजें आने लगी और पर्दा जोर-जोर से हिलने लगा मैं दौड़कर पर्दे के पास गया और पर्दे को उठाने की कोशिश की लेकिन मैं परदे को छू भी नहीं पा रहा था मेरा हाथ पर्दे के आर पार हुए जा रहा था। गुस्से में आकर मैंने पर्दे पर सर मारा तो मेरा सर पर्दे के आरपार हो गया और मैंने मेरी जिंदगी का सबसे दर्दनाक नजारा देखा।

पर्दे के पीछे "वो लड़की" बड़ी बड़ी खूंटियों पर बंधी रस्सी से खिड़की पर लटकी हुई थी ।उसके पांव भी जमीन को नहीं छू रहे थे। उसके कंधे और हाथ पर रस्सी के निशान से खून छलक आया था। उसका मुंह फुला हुआ था क्योंकि उसमें तोलिया धँसाया हुआ था जिसका छोटा सा हिस्सा बाहर भी निकला हुआ था। वह निढाल सी लटकी हुई बस आंसू बहा रही थी।वो दोनों हवसी दरिंदे उसको नोच खसोट रहे थे।

" अबे हट यहां से ....अबे तेरी तो" यह बोलता हुआ मैं उन दोनों पर लपका। लेकिन उनको छू नहीं पा रहा था।
कभी पर्दे के अंदर कभी पर्दे के बाहर कभी उन दोनों के आर पार मैं हो रहा था। मैं कुछ भी छू नहीं पा रहा था केवल खिड़की से सर मार पा रहा था। जिसकी भी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं दे रही थी यहां तक कि मुझको भी नहीं। उनकी हैवानियत की आवाजें और दरिंदगी की हंसी आती रही। मैं गुस्से में पागल होकर पलंग , कुर्सी सब कुछ उठा कर उन पर मारना चाहता था लेकिन कुछ भी नहीं छु पा रहा था।
मैं घुटनों के बल गिर के दहाड़े मार कर रोने लगा, "वो मार डालेंगे इस बच्ची को.... कोई तो बचा लो ..कोई तो आओ रे यहां."....." तू तो है ना यहां ...क्यों चुपचाप देख रहा है .....कुछ तो कर" मैं ऊपर हाथ करके चिल्लाने लगा। लेकिन ऊपर वाले ने भी जैसे अपने कान बंद कर रखे थे।
"
"यार... एक बोतल पूरी पीके भी होश में है ओर आँसू बहा रही है।" महिपाल की घिनौनी आवाज आई।
"तभी तो इतनी गरम है " यह कहकर विनीत खी खी करके हंसने लगा।
ऐसी स्थिति में हैवानियत शर्मसार हो जाए दरिंदगी दर्द से दम तोड़ दे, पर वो दोनों शैतान सारी हदें पार करने को थे। उनकी आवाज कानों में जहर सी चुभ रही थी।
और मैं कमरे में यहां से वहां सर मार रहा था। इतना बेबस में जीते जी कभी नहीं था। मैं बस रोए और चिल्लाए जा रहा था।
तभी खून की एक बूंद पर्दे पर आ गिरी
"ये खून कहाँ से आया बे..!!" विनीत बोला।
"नाक से आया है मुँह में तो तौलिया ठूंसा है" महिपाल ने जवाब दिया।
"नाक से कैसे आ गया" विनीत फिर बोला।
"तू जाने ,,नर्सिंग वाला तू है" महिपाल हल्की सी हंसी के साथ बोला।
"यार पहला प्रैक्टिकल है" ये कह के बेशर्मी से विनीत हंसा।
मैं गुस्से से पागल होकर पर्दे की तरफ बढ़ा।
"मार डालूंगा कमीनों...जान से मार डालूंगा"
पर्दे के पार एक और पर्दा आया जहां बहुत अंधेरा था। अब मैं बोल भी नहीं पा रहा था। उस पर्दे के पार मैंने दो हाथों को कस के पकड़ लिया।
" बेटा क्या हुआ ....तुम ठीक तो हो .....डरो मत तुम सपना देख रहे हो"

मैंने देखा मैंने मम्मी के हाथों को कसकर पकड़ रखा था। उन्हें अपने सामने देखकर मुझे अपने इस जन्म की सबसे बड़ी राहत मिली थी। मैं उनसे लिपट कर बस रोने लग गया।
"बेटा बताओ तो सही क्या बात हुई ?क्या सपना देखा तुमने?" मम्मी मेरे सर पर हाथ फेरते हुए पूछ रही थी। बड़ी चिंता में थी वह।
पर जब तक मैंने पूरी तरह से होश नहीं संभाल लिया, तब तक मैं कुछ नहीं बोला। बस रोता रहा और काफी सोच कर बोला," मम्मी मेरे पीछे सांड भाग रहे हैं वह मुझे मार डालेंगे"
" नहीं मारेंगे बेटा ....तुम बिल्कुल ठीक हो.. तुम घर पर हो.. मेरे पास हो ....कुछ नहीं होगा तुम्हें"
थोड़ी देर बाद जब मैं चुप हुआ तो वह मुस्कुराते हुए बोली "फर्जी प्रोफेसर ...! तुम सांडों से ही डर गए मैं तो तुम्हें बहुत बहादुर समझा करती थी"

"आपके पीछे पड़े तो पता चले" मैंने आंसू पोछते हुए जवाब दिया।

"रात को पर्दा ओढ़ कर सो गए" मम्मी पर्दे को हाथ में लेती हुई बोली।
"हां वो रात को मच्छर काट रहे थे" मैंने हाथ खुजाते हुए कहा।
"तभी सारी हुक तोड़ डाली" मेरे सर पे हल्की सी चपत लगाते हुए वो फिर बोली "5:30 बज गए हैं थोड़ा घूम के आजा फिर चाय बना देती हूं।"
मैंने हां मैं गर्दन हिलाई ओर कमरे से बाहर आ गया।
ओर बाहर सोच रहा था आज एक पर्दा मेरे सामने बेपर्दा हुआ है पता नहीं कितने ओर बाकी है।मुझे एक सूनापन सा महसूस हो रहा था। जैसे शरीर बेहद भारी हो गया हो।



इसके बाद पूरी दिनचर्या मेरी मशीन सी हो रही थी। मुझे कुछ होश नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूं और क्यों कर रहा हूं बस कहने पर मैं कर रहा था। दोपहर में मैं आईने के सामने खड़ा घंटों से बाल बना रहा था।घर पे सभी को यह चीज बेहद अजीब लग रही थी। "क्या बात है आज आईने में घुस ही जाओगे क्या" मम्मी ने पूछा।

और मेरे मुंह से आवाज निकली,"अब शहर रहने जा रही हूं तो थोड़ी फैशन तो सीखनी पड़ेगी"
मम्मी बहुत डरी हुई सी पास आकर बोली "बेटा क्या हुआ तुझे" उनकी आंखों में आँसू थे।
" तुम्हारी आवाज ऐसी क्यों हो गई" मम्मी ने पूछा।
तो मैंने कहा "ठीक ही तो है, क्या हुआ मेरी आवाज को"

"तुम लड़की की आवाज में बोल रहे हो" मम्मी डरते हुए बोली।
"नही मैं तो सही आवाज में ही बोल रहा हूँ ।" मैंने खुद को संभालते हुए कहा।
"देखो खुद को आईने में , ऐसे लग रहा है जैसे तुम्हारी आँखों में से कोई और ही देख रहा है।" मम्मी ये बताते हुए कांप सी गई थी।
जब मैंने खुद को शीशे में देखा तो मुझे भी लगा, ये मैं नहीं हूं। मेरे चेहरा रबर की तरह भावहीन था।
"तू नारियल लाया है न, पधार के ला, मुझे मंदिर जाना है, पीर रामदेव जी सब ठीक कर देंगे।" बड़े विश्वास से आंखे पोंछते हुए वो बोली।

नारियल किस्मत से अच्छा निकला, वो मुझे सभी के साथ रहने की हियादत देकर चली गई।
मैंने उनके वापस आने तक खुद को संभाले रखा और आते ही मम्मी ने मेरे हाथ पर कोई पवित्र धागा बांधा जो वो मंदिर से लाई थी।उसे बांधने के बाद मुझे सच में बड़ा सुकून मिला। पूरे रविवार ओर सोमवार शाम तक सबकुछ ठीक रहा और मैं सोमवार को कॉलेज से सीधा टाउन हॉल चला गया जहां राकेश मिला और उसने प्रोफ़ेसर राममूर्ति से मिलाने का वादा किया।
प्रो. राममूर्ति ने सेमिनार में बताया की उनके पास आने वाले 90% से ज्यादा केसों में लोगो का वहम होता है , 9% केस किसी मनोविकार के कारण आते है जबकि 1% केस को वैज्ञानिक तरीके से नही समझाया जा सकता है , उन्ही को पैरानॉर्मल साइंस में अध्य्यन किआ जाता है।


सेमिनार खत्म होते ही मैंने राकेश से कहा कि मैं प्रोफ़ेसर राममूर्ति जी से मिलना चाहता हूं। और वह मुझे प्रोफेसर राममूर्ति के पास ले गया। 

"सर यह अंकित महर्षि है आपसे मिलना चाहते हैं, शायद इनको आपकी मदद चाहिए।" राकेश ने मेरा परिचय देते हुए कहा।
"हेलो अंकित जी आपसे मिलकर खुशी हुई लेकिन माफ कीजिएगा मैं आज आपकी कोई मदद नहीं कर सकता मुझे आज बहुत काम है क्या आप मुझसे कल मिल सकते हैं।" प्रोफेसर राममूर्ति ने कलाई घड़ी की तरफ देखते हुए जवाब दिया।

तो मैंने बड़ी ही बेचैनी से कहा "अगर जिंदा रह गया तो जरूर मिलूंगा।"

" मतलब !!!" प्रोफ़ेसर ने बड़ी ही गंभीरता से मेरी तरफ देखते हुए पूछा

मैंने अपनी गर्दन के निशान दिखाते हुए कहा। " यह सब उसने दिए हैं वह हर रोज मुझे थोड़ा-थोड़ा करके मार रही है, मुझे नहीं लगता मैं कल तक जिंदा रह पाऊंगा"

प्रोफ़ेसर ने बड़ी आश्चर्य से मेरी आंखों में देखा और राकेश को चाबी देते हुए कहा "इनको गाड़ी में बैठाओ"



गाड़ी से हम होटल तक पहुंचे इसी बीच हमारा साधारण परिचय हो चुका था । प्रोफेसर राममूर्ति ने बताया कि वह भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर है परंतु अपने पिता की मौत के बाद उनकी रुचि पैरानॉर्मल विज्ञान में हो गई।

राकेश होटल के कर्मचारियों के साथ उनके सामान को गाड़ी से उतरवाकर ऊपर कमरे में पहुंचाने की व्यवस्था देखने लगा, और मैं प्रोफेसर राममूर्ति के साथ उनके कमरे में पहुंच गया। मैंने कमरे में देखा कि एक वृद्ध वहां पर पहले से ही बैठे हैं, मैंने जिज्ञासावश प्रोफेसर से पूछ लिया
" सर आप इनको ताला लगाकर बाहर चले गए...!!"

" किन को " प्रोफेसर ने हाथ दोनों तरफ फैलाते हुए कहा

"यह जो अंकल सोफे पर बैठे हैं ना इनको" मैंने इशारा करके बताया।


उसके बाद प्रोफेसर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले," यह मेरे पापा है!! मैं इन्हीं की बात कर रहा था । यह या
तो मुझे दिखते हैं या फिर उनको दिखते हैं जो अपनी मौत खुद देख चुके हो"

उनका जवाब सुनकर मेरा रोम-रोम खड़ा हो गया। प्रोफेसर ने आगे बताना जारी रखा
" हमारे गांव में सभी का मानना था कि मेरे पापा में हनुमान जी की छाया आती है लेकिन मैं इसे एक ढोंग समझता था। मैं यह मानता था कि पापा घर चलाने के लिए यह सब नाटक करते हैं...... लेकिन मैं गलत था .." प्रोफेसर ने आंसू पोछते हुए कहा

" बेटा अब छोड़ो इन बीती बातों को.." अंकल ने प्रोफेसर को डांटने के लहजे से कहा फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले "बेटा ..हम आपकी मदद जरुर करेंगे"


इसके बाद मैंने प्रोफेसर राममूर्ति को जो भी घटना मेरे साथ घटी थी उन सबको एक-एक करके बताया।

प्रोफेसर राममूर्ति ने कहा "अंकित आमतौर पर आत्माएं किसी इंसान,, किसी जगह,, किसी वजह या किसी मकसद से बंधी होती है सबसे पहले हमें वह खोजना होगा इसके लिए मैं तुम्हें एक नारियल दूंगा जिसको तुम्हें अपने साथ 24 घंटे से ज्यादा वक्त रखना होगा। फिर पापा उस नारियल को देखकर हमें उस आत्मा और उसके मकसद के बारे में बताएंगे"

"इसकी कोई जरूरत नहीं है" अंकल ने बीच में बात काटते हुए कहा "क्योंकि इसके पास एक ही नहीं दो-दो नारियल है इस काम के लिए" अंकल मेरे बैग की तरफ इशारा करते हुए बोले।
जब मैंने भी खोल कर देखा तो उसमें सचमुच में दो नारियल थे तभी मुझे याद आया यह तो वही नारियल है जो मैंने शनिवार को लिए थे और तीन नारियल में से केवल एक ही नारियल काम आया था। मुझे अपनी किस्मत पर बहुत ही गर्व महसूस हुआ।।

प्रोफ़ेसर ने मुझसे एक नारियल लिया और एक बड़े से स्क्रू ड्राइवर की मदद से नारियल को किसी माहिर खिलाड़ी की तरह रेशे उतारने के बाद फोड़ कर दो टुकड़े करके टेबल पर रख दिए।

नारियल को देखकर प्रोफेसर के पिता की आंखे फटी की फटी रह गई और वह बड़े ही डरते हुए बोले, " दो दो आत्माएं हैं दो दो, एक बहुत ही मनहूस शैतानी आत्मा है जो इसको मार कर इसकी आत्मा को अपना गुलाम बनाना चाहती है और दूसरी आत्मा इसके शरीर पर कब्जा करना चाहती है ........पता नहीं इतना सब झेलने के बाद यह लड़का अभी तक जिंदा कैसे हैं"



" पापा क्या अंकित ने उन आत्माओं का कुछ बिगाड़ा है वह इसके पीछे क्यों पड़ी हुई है कोई तो कारण होगा....
क्या हुआ इसको पहले से जानती है..??"
प्रोफ़ेसर ने तो जैसे अपने पिता पर सवालों की बौछार कर दी थी।
"इसका पता लगाने के लिए मुझे अंकित को छूना पड़ेगा" प्रोफेसर की पिता की आत्मा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"आप मुझे छू सकते हैं... मुझे कोई दिक्कत नहीं है" मैंने थोड़ा डरते हुए जवाब दिया।

" नहीं छू सकता मैं .....जब तक तुम्हारे हाथ पर यह लाल धागा बंधा है तब तक तुम्हें दुनिया की कोई भी अलौकिक शक्ति छू भी नहीं सकती है" वह मेरे हाथ की तरफ इशारा करते हुए बोले। मैंने मम्मी का बांधा हुआ लाल धागा उतार दिया। इसके बाद उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ा और मुझे बस मामूली सी हलचल बालों में महसूस हुई। फिर वह पलट कर बोले "नहीं इसका दूर-दूर तक उन आत्माओं से कभी कोई संबंध नहीं रहा है"



"देखो अंकित में कोई पुजारी तांत्रिक या पादरी नहीं हूं मैं बस आत्माओं के अस्तित्व होने के सबूत इकट्ठा करता हूं फिर उन सबूतों के आधार पर मैं तुम्हें उस से मिलवा सकता हूं जो तुम्हारी दिक्कतें दूर कर सकते हैं,, तुम्हारा केस बेहद ही खतरनाक है हमें अभी काम करना शुरू कर देना चाहिए...
" मेरे पीछे आओ ..." प्रोफेसर तेजी से कमरे से बाहर जाते हुए बोले और मैं उनके पीछे-पीछे होटल के ही एक दूसरे कमरे में चला गया जहां पर बहुत सारे पैरानॉर्मल उपकरणों के साथ दो लड़के थे,जिनमे से एक राकेश था।
"राकेश ...दो इन्फ्रारेड थर्मामीटर , एक EMF मीटर, 1 अल्ट्रा सेंसिटिव कंपास, दो इंफ्रारेड नाइट विजन कैमरा,एक इंफ़्रा साउंड रिकॉर्डर ओर एक डिजिटल OUIJA बॉक्स निकालो तुरन्त..."
फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले "अंकित तुम्हारा कमरा कितना बड़ा है??"
मैंने दोनों हाथ फेलाते हुए कहा "इस कमरे से आधा भी नहीं है"

फिर कागज लेकर तुरंत उस पर कुछ लिखा और पास ही खड़े लड़के को देते हुए कहा "हरि ...यह सामान मुझे 10 मिनट में चाहिए"....ओर वो लड़का (हरि ) तुरन्त निकल गया।
"अंकित और राकेश इन सभी एप्रेट्स की बैटरी चेक करना अगर बैटरी फुल हो तो इनको राकेश के फोन से वाई फाई कनेक्शन देना और राकेश इन सभी एपरेटस का डाटा तुम्हारी गूगल ड्राइव पर होना चाहिए"

प्रोफेसर राममूर्ति पूरे एक्शन प्लान में आ चुके थे उसके बाद में राकेश की मदद करने लगा, और वह कुछ जरूरी तैयारी के लिए अपने कमरे में फिर से चले गए।
प्रोफेसर राममूर्ति के सभी गैजेट्स उन सभी गैजेट्स की तुलना में बेहद आधुनिक थे जो मैंने लाइब्रेरी की किताबों में देखे थे।

लगभग 90 मिनट बाद में प्रोफेसर राममूर्ति ,राकेश और हरी मेरे साथ, मेरे रूम पर पहुंच चुके थे।
प्रोफेसर राममूर्ति अपने थेले में नींबू की एक बड़ी सी माला लेकर आए थे, सबसे पहले हम सभी ने मिलकर उस माला को पूरे कमरे में चारों तरफ लगाया। फिर सभी उपकरणों को सेट किया गया।

उसके बाद प्रोफेसर राममूर्ति थोड़ा गंभीर होकर बोले अंकित इस डिजिटल ouija बॉक्स का खास ध्यान रखना इसे मैंने पापा की मदद से बनाया है, इसका पेटेंट आने ही वाला है। मैं उम्मीद करता हूं तुम कल हमें सही सलामत मिल जाओगे।"

फिर जब प्रोफेसर राममूर्ति जाने लगे , तो राकेश ने मेरे साथ रुकने की अनुमति मांगी। पहले तो प्रोफेसर नहीं माने। फिर कहां तुम अपने रिस्क पर यहां पे रुक सकते हो।
राकेश के साथ होने के कारण मैं थोड़ा अच्छा महसूस कर रहा था क्योंकि वह इस दुनिया के उन चंद इंसानों में से एक था जिसके सामने मेरे जीवन का सबसे बड़ा डरावना सच बेपर्दा था। प्रोफेसर और हरी मेरे कमरे से रात के 10:00 बजे रवाना हो गए फिर रात को 11:30 बजे तक मैं और राकेश बैठे बातें करते रहे कमरे में किसी प्रकार की कोई डरावनी हरकत नहीं हुई और फिर हम सो गए।

रात के 2:00 बजे मेरी और राकेश दोनों की आंख एक साथ खुली। लाइट चली गई थी पंखा नहीं चल रहा था। जितनी गालियां आती थी वह सारी मैंने बिजली बोर्ड वालों को दे डाली। हम दोनों थोड़े से डरे हुए भी थे। मैंने मोबाइल की रोशनी में पानी की बोतल को ढूंढा एक घूंट ली और गर्मी से बचने के लिए जैसे ही बाहर की तरफ निकलने को ही था, EMF मीटर में लाल रोशनी चमकने लगी जो किसी पैरानॉर्मल एक्टिविटी का संकेत थी। कमरे का तापमान भी कम होने लगा। फिर वापस सब कुछ सामान्य हो गया। राकेश पानी पीते हुए बोला "चल यार कुछ तो रिकॉर्ड हुआ"
" मैं चाहता हूं इस से ज्यादा कुछ रिकॉर्ड ना हो " मैं डरते हुए बोला।
तभी कमरे में हल्के से धक धक धक धक की आवाज हुई। और अल्ट्रा सेंसिटिव कंपास की सुई दीवार की तरफ मुंह करके चमकने लगी। हमने उस तरफ मोबाइल की फ्लैश लाइट की रोशनी की तो देखा एक नींबू बार-बार दीवार से टकरा रहा है बाकी सारे नींबू दीवार पर एकदम से स्थिर है। फिर वह नींबू धागे से बंधा हुआ दीवार से लगभग आधा फीट आगे आया और बड़े ही जोर से कंपन करने लगा, कंपन करते-करते उसका रंग हरे से पीला और फिर लाल हो गया, और फटाक की आवाज से फट गया। उस नींबू से निकले गहरे लाल ओर बहुत ही बदबूदार रस के छींटे हम पर पड़े। कमरा बदबू से भर गया और EMF मीटर लाल बत्ती के साथ बीप बीप चीखने लगा। पैरानॉर्मल सेंसिटिव कैमरों के फ्लैश में हमने एक काले साए को यहां से वहां मंडराते देखा। कैमरे के फ्लैश की आवाज़ भी हमें बेहद डरा रही थी।
राकेश बेहद कपकपाती आवाज में पूछने लगा, " कौन हो तुम और क्या चाहते हो"
और मुझे वही भयानक हंसी सुनाई दी पर शायद राकेश को सुनाई नहीं दे रही थी। ouija बोर्ड में रोशनी जगमगा रही थी। राकेश जब उसे उठाकर सामने लाया तो उसमें "laugh" शब्द बार बार चमक रहा था।

"तुंम्हे यहां नही आना चाहिए था ...तुम भी भुगतोगे..हहहहह" वही भयानक आवाज मुझे फिर से सुनाई दी और यही ouijo बोर्ड में लिखा हुआ चमक रहा था।
" म.. मैं यहां से चला जाऊंगा फिर कभी नहीं आऊंगा " राकेश रोते हुए बोला।

कैमरे में होने वाले लगातार फ्लेसौं से हमारी आंखें चुंधिया चुकी थी। तभी मैंने देखा राकेश पलंग से सरकता हुआ हवा में सीधा दीवार से जा टकराया। जैसे किसी ने उसके पांव को पकड़कर बहुत जोर से फेंका हो।
उसकी नाक से खून बह निकला था, फिर भी वह जैसे तैसे खुद को संभालते हुए फिर से मेरे पास पलंग पर चिल्लाता हुआ आया। " मुझे छोड़ दो..... मुझे छोड़ दो... मैं फिर कभी यहां नहीं आऊंगा..... गलती हो गई.... माफ कर दो ..." ऐसे चिल्ला कर वह रो रहा था।
मेरा डर के मारे दम उखड़ने लगा था ।मैं तो ढंग से बोल भी नहीं पा रहा था। तभी झर-झर की आवाज करते हुए बल्ब जला, और चरमराती आवाज के साथ पंखा भी चल पड़ा था। बिजली आ गई थी, राकेश मेरी बांह पकड़ कर रो रहा था। "मैं मरना नहीं चाहता.... मैं मरना नहीं चाहता.. बचा लो मुझे।" तभी अचानक से पंखा घूमते हुए उसके कंधे पे जा गिरा और राकेश वही बेहोश हो गया।मैं रोने चीखने के अलावा कुछ नहीं कर पाया। मेरे और राकेश दोनों के फोन बैटरी फुल होने के बाद भी बंद हो चुके थे। दरवाजों पर सर पीट पीट के मैं थक गया था पर वो खुल नहीं रहे थे। अचानक बिजली फिर गुल हो ग

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