दहलीज़ के पार
डॉ. कविता त्यागी
(14)
प्रातः आठ बजे थे। अक्षय अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे और नाश्ते की प्लेट को जल्दी—जल्दी खाली करने का प्रयास कर रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि कमरे के अन्दर से निकलते हुए अपने बेटे अश पर पड़ी, जो मुँह से सीटी बजाते हुए किसी फिल्मी गीत की धुन गा रहा था। उस धुन को सुनते ही अक्षय का पारा चढ़ गया, क्योकि उस गीत से, गीत की धुन से और धुन को गाते समय अश के रग—ढग आदि से ऐसा प्रतीत होता था कि उसमे के व्यक्तित्व मे गम्भीरता नाम मात्र भी विद्यमान नही है। अश के दायित्वविहीन—प्रभावहीन व्यक्तित्व को देखकर अक्षय की आँखो मे खून उतर आया। अपने इकलौते बेटे से उन्होने जितनी आशाएँ—अपेक्षाएँ सँजोकर रखी थी, उन सब पर पानी फिर गया था। उन्होने क्रोध से चिल्लाते हुए कहा —
अश ! तुम्हारी इसी आवारागर्दी के कारण बारहवी मे तुम्हारा रिजल्ट बिगडा़ था और तुम अब भी सुधरने की कोशिश नही कर रहे हो !
ओफ्फो डैडी ! जब देखो तब उपदेश देने लगते हो ! सुबह—सुबह मेरा मूड़ खराब कर दिया।
यही हाल रहा, तो तुम सी. ए. कभी नही बन सकते ! अक्षय ने कुढ़ते हुए कहा, जैसेकि वे अपने बेटे पर नियत्रण करना चाहते थे, किन्तु यह उनके वश की बात नही थी। अक्षय तथा अश के बीच सवाद होते हुए देखकर अश की माँ ने अपने बेटे का पक्ष लेना आरम्भ किया —
जब देखो तब इस बच्चे के पीछे पड़े रहते हो, न सुबह देखते हो न शाम ! हर समय इसे डाँटते रहते हो ! कभी तो प्यार—दुलार से ऐसे बाते कर लिया करो कि अश तुम्हारा बेटा है।
“अश मेरी इकलौती सन्तान है, इसलिए हर समय इसके भविष्य की चिन्ता करता हूँ ! लेकिन तुम? तुम तो इसकी दुश्मन बन गयी हो ! इसके प्रत्येक अनुचित काम मे तुम इसे सपोर्ट करती हो ! तुम्हारी इस गलती का दड उसे भुगतना पडे़गा, याद रखना मेरी आज की बात !
कौन—सी गलती कर दी मेरे बेटे ने, मुझे भी तो पता चले ? वह हर कदम पर गलती ही गलती करता है ! यह कौन—सा गलत काम करता है ? कौन—सा सही काम करता है ? कहाँ जाता है ? कहाँ रहता है ? तुमने इस पर कभी ध्यान दिया है ? ... तुम्हे तो इन बातो पर ध्यान देने का न समय मिलता है और न ही इसकी आवश्यकता का अनुभव होता है ! हो भी कैसे ! तुम्हे तो अपनी किटी पार्टी से ही समय नही मिलता ! बेटा कही भी जाए, कुछ भी करे, तुम अपना ऐशो—आराम का जीवन जीती रहो और किटी पार्टी मे मस्ती करती रहो !
आप अब तक बेटे पर बरस रहे थे, अब मुझ पर ताने कसने लगे ! आपकी प्रॉब्लम क्या है ? मै आपसे पहले भी कह चुकी हूँ, मेरे विषय मे तुम्हारी ये बाते मै सहन नही करुँगी ! अश कहाँ जाता है ? क्या करता है ? आप उसी से क्यो नही पूछ लेते ? मुझ पर ताने कसने लगते हो ! बेटे पर वश नही चला, तोे मुझ पर अकड़ दिखाने चले हो !
इन प्रश्नो को मै उसी से पूछ लेता, पर तुमने कभी पूछने दिया है ? जब भी उससे पूछने का प्रयास किया, तभी मेरे और उसके बीच मे आकर खड़ी हो जाती हो ! तुम्हारी इसी नासमझी ने उसे आज इतना बिगाड़ दिया है कि कभी समय पर घर नही आता है। कभी—कभी तो कई—कई दिन—रात वह घर से गायब रहता है।
नही जी ! ऐसा तो कभी नही होता है कि अश कई—कई दिन घर से बाहर रहे। हाँ, कभी—कभी घर वापिस लौटने मे उसे देर अवश्य हो जाती है !
अजू ! तुम फिर उसकी गलतियो पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही हो ! मेरा मस्तिष्क हर समय उसके विषय मे सोचता है और मेरी दृष्टि उस पर रहती है कि वह किस समय घर मे आ रहा है और किस समय घर से जा रहा है ? यहाँ तक कि मै रात मे भी उठ—उठकर उसके कमरे मे देखता हूँ, तब मुझे ज्ञात होता है कि वह कई—कई रात घर से बाहर रहता है ? यह न मुझे ज्ञात है, न तुम्हे कि वह कहाँ रहता है !
आपको अपने बेटे पर इतना सन्देह रहता है, तो एक बार उसी से पूछ लेते कि वह कहाँ जाता है और क्या करता है ? जासूसी करने की क्या आवश्यकता थी।... मुझे तो अपने बेटे पर पूरा भरोसा है ! वह कभी कोई गलत काम नही करेगा ! बच्चा है, अभी खेलने—कूदने की उमर है, इसलिए अपने यारो—दोस्तो के साथ बाहर चला जाता है। इस उम्र मे अधिक अकुश भी तो ठीक नही है ! आपने भी अपनी इस आयु मे खूब मौज—मस्ती की होगी ! बेटे की मौज—मस्ती आपको सहन नही होती ! अजू ने उलाहना देते हुए अक्षय को ही आरोपो के घेरे मे खडा़ कर दिया।
मै उसी से पूछ रहा था, लेकिन तुमने पूछने दिया था क्या ? मैने अश से कुछ कहना शुरू किया था, तभी तुम बीच मे कूद पड़ी, मानो मै उसका बाप नही हूँ, कोई नरभक्षी जानवर हूँ, जो उसे खा जाऊँगा ! अक्षय ने क्रोध मे तमतमाकर कहा।
अक्षय का अपने क्रोधावेश मे कहे गये शब्दो का उत्तर भी उसी प्रकार के कटु शब्दो मे तथा आवेशपूर्ण शैली मे मिला। अपने इकलौते बेटे अश को लेकर अक्षय तथा अजू मे वाद—विवाद इतना बढ़ गया कि दोनो यह भी भूल गये कि उनके बीच पति—पत्नी का प्रेमपूर्ण मधुर सम्बध है। अजू पति के समक्ष झुकने के लिए तैयार नही थी। उसके साथ अपने बेटे अश की युवा शक्ति थी। अक्षय भी अपने शब्दो को वापिस लेने के लिए तैयार नही थे, क्योकि अपने किशोरवयः बेटे के कार्य—व्यवहारो को देखकर उसके ऊपर यथोचित नियत्रण रखने और उसे समय देने सम्बन्धी उनके तर्क अपनी जगह उचित थे। धीरे—धीरे दम्पति मे वाद—विवाद बढ़ता ही चला गया। इस वाद—विवाद का अजू पर तो कोई विशेष प्रभाव नही पडा़, किन्तु अक्षय अधिक तनावग्रस्त हो गये। उन्हे अपने ऑफिस मे फोन करना पडा़ कि उनका स्वास्थ्य ठीक नही है, इसलिए वे छुट्टी पर रहेगे। अपने ऑफिस मे अपनी छुट्टी की सूचना देकर अक्षय कमरे मे चले गये और चादर ओढ़कर लेट गये।
दूसरी ओर, अपने घर से निकलकर अश अपने एक मित्र के घर पहुँचा। उसके बाद दोनो मित्रो ने एक रेस्टोरेट से दूसरे रेस्टोरेट जा—जाकर खाते—पीते रहे और अपना समय व्यतीत करते रहे। बारह बजे अश और उसका मित्र दिल्ली से गाजियाबाद की ओर चल पडे़। गाजियाबाद पहुँचकर उन्होने अपने एक तीसरे मित्र से भेट की और उससे मोटरसाईकिल लेकर वे दोनो तीन बजे तक गाजियाबाद की पॉश कॉलोनियो मे इधर—उधर घूमते—फिरते रहे। उन्हे देखकर कोई भी व्यक्ति यह कह सकता था कि वे दोनो दायित्वहीन प्रकृति के थे और दोनो ही अपने परिवार के यथोचित नियत्रण के अभाव मे वहाँ पर निरुद्देश्य भटक रहे थे। लेकिन, शाम के ठीक तीन बजे ट्रास हिडन एरिया की इदिरापुरम कॉलोनी मे लोगो को पता चला कि वे दोनो निरुद्देश्य नही, सोद्देश्य घूम—फिर रहे थे।
शाम के तीन बजे थे। एक महिला, जो इन्दिरापुरम मे रहती थी, अपनी पाँच वर्षीय बेटी के साथ घर से निकली। सितम्बर का महीना था और कुछ समय पूर्व ही बारिश बन्द हुई थी, जिससे मौसम सुहावना लग रहा था। किन्तु उस सुहावने मौसम मे भी उस समय लोगो की भीड़—भाड़ नही थी। कामकाजी स्त्री—पुरुष अभी तक अपने काम से नही लौटे थे और घरो मे रहने वाले प्रायः शाम के पाँच—छः बजे ही घूमने के लिए घर से बाहर निकलते थे। महिला ने जब यह देखा कि सड़क पर इक्का—दुक्का लोग ही दिखाई पड़ रहे है, तब वह थोडी़ घबरायी और ठिठक कर रुक गयी। कुछ सैकेड तक वह उसी अवस्था मे खड़ी हुई सोचती रही कि उसे इस समय घर से बाहर जाना चाहिए या नही ? वह कुछ निर्णय ले पाती, उससे पहले ही महिला की बेटी हठ करने लगी और माँ का हाथ पकड़कर खीचने लगी — मम्मा चलो ना, आप खड़ी क्यो हो गयी ? महिला ने बच्ची के प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया। वह अपनी अबोध बच्ची की हठ पर उधर ही चलती गयी, जिधर बच्ची अपनी माँ को बलपूर्वक ले जा रही थी। उस दिशा मे चलते—चलते महिला भी वहाँ जाने की आवश्यकता का अनुभव करने लगी थी, क्योकि उसे उधर से सब्जी भी खरीदनी थी।
बच्ची ने माँ को एक दुकान पर ले जाकर खड़ा कर दिया। माँ को अपनी बेटी की इच्छा—आशा भली—भाँति ज्ञात थी। अतः माँ ने दुकानदार से बेटी के लिए अपने पर्स से एक सौ का नोट निकालकर दिया। तत्पश्चात दुकानदार से शेष राशि वापिस लेकर वह अपने पर्स मे रखते हुए वहाँ से चल पडी़। कुछ दूर तक महिला इसी प्रकार चलती रही, उसे अपने इर्द—गिर्द की होने वाली किसी भी कार्यविधि का आभास ही नही रहा था। उसी समय अचानक पीछे से आकर उनके अत्यत निकट एक मोटरसाईकिल रुकी। अपने निकट एक विचित्र ढग से एक मोटरसाइकिल को रुकती हुई अनुभव करके महिला भय से काँप उठी। उसी क्षण मोटरसाईकिल पर पीछे बैठे हुए लड़के ने महिला के गले मे पड़ी हुई सोने की जजीर झटक ली। वह महिला प्रतिक्रियास्वरूप कुछ कर पाती, इससे पहले ही उसके गले मे पहनी हुई जजीर उस मोटरसाईकिल—सवार युवक के हाथ मे जा चुकी थी। जजीर झटके के एक क्षण बाद युवक ने महिला के हाथ से उसका पर्स झपटने का प्रयास किया। अब तक महिला की चेतना लौट आयी थी वह अपनी स्थिति को भली—भाँति समझ चुकी थी। उसे अनुभव हो चुका था कि वह चेन स्नेचर्स के चगुल मे फँस चुकी है। उस समय उसके आस—पास कोई उसकी सहायता करने वाला नही था। अपनी स्थिति—परिस्थिति को समझने मे महिला ने तनिक भी विलम्ब नही किया था। उसके तन—मन मे तुरन्त ही दृढ़ता आ गयी और उसमे एक अद्भुत शक्ति का सचार हो गया। उसने युवक द्वारा पर्स झपटने की क्रिया को असफल करके अपने एक हाथ से पर्स को तथा दूसरे हाथ से उस युवक के हाथ को दृढ़ता से पकड़ लिया और जोर—जोर से चिल्लाने लगी— बचाओ ! बचाओ ! बचाओ !
महिला द्वारा ‘बचाओ—बचाओ' का शोर मचाने से तथा दृढ़तापूर्वक हाथ पकडे़ जाने से युवक घबरा गये। दोनो युवक एक साथ बोले— भागो ! किन्तु भागना इतना आसान नही था क्योकि पीछे बैठे हुए युवक का हाथ महिला के हाथ मे था। मोटरसाईकिल चला रहे युवक को अनुभव हो रहा था कि पीछे बैठे हुए युवक ने अभी तक महिला का हाथ नही छोड़ा है। अतः उसने क्रोध से चिल्लाकर कहा—
अबे साले, तूने सुना नही, यह ‘बचाओ—बचाओ' चिल्ला रही है। तुझे अभी भी पर्स छीनने की पड़ी है ! पकड़े गये तो अगला—पिछला सारा निकल जाएगा, तेरा भी और मेरा भी ! जल्दी पर्स को छोड़ दे, मै बाइक को उड़ाने वाला हूँ अब !
पीछे बैठा युवक कुछ उत्तर दे पाता, इससे पहले ही मोटरसाइकिल तेज गति से चल पड़ी। अब तक भी महिला ने पीछे बैठे युवक का हाथ नही छोड़ा था और न ही चिल्लाना बन्द किया था। माँ को चीखते—चिल्लाते हुए देखकर बच्ची ने भी चिल्लाना आरम्भ कर दिया था। माँ—बेटी की ‘बचाओ—बचाओ' सुनकर आस—पास से दो—चार लोग सहायता के लिए उनकी ओर बढ़ने लगे थे। परन्तु वे उस महिला की सहायता करने के लिए घटनास्थल तक पहुँच पाते इससे पहले ही झपटमार युवक भाग खड़े हुए। महिला ने तब तक भी हिम्मत नही हारी और दृढ़तापूर्वक उस झपटमार युवक का हाथ पकड़े हुए चिल्लाती रही।
मोटरसाइकिल आगे बढ़ चली किन्तु वह महिला मोटरसाइकिल पर बैठे हुए युवक का हाथ छोड़ने के लिए तैयार नही थी। उस युवक पर अब दो विपरीत दिशाओ से बल लगने लगा। युवक का आधा शरीर मोटरसाइकिल की गति से आगे बढ़ने लगा और शरीर का उपरी भाग महिला की ओर ख्िाचने लगा। फलस्वरूप युवक के शरीर का आधा भाग ऐसी अवस्था मे आ गया, मानो वह मोटरसाइकिल पर लेट रहा था। इसके साथ ही वह महिला भी कुछ दूरी तक युवक का हाथ पकड़े हुए उसके पीछे—पीछे अनचाहे ही दौड़ती—ख्िाचती चली गयी। मोटरसाइकिल की गति तेज थी, इसलिए कुछ दूरी तक मोटरसाइकिल के साथ ख्िाचते जाने के बाद अन्त मे महिला ने युवक का हाथ छोड़ दिया।
जिस समय महिला ने झपटमार युवक का हाथ छोड़ा था, सौभाग्यवश तब तक एक अन्य मोटरसाइकिल—सवार घटना—स्थल पर पहुँच गया था। उसने महिला की स्थिति को देखकर तत्काल अनुमान लगा लिया कि वे दोनो युवक अवश्य ही महलिा का कुछ सामान छीनकर भाग रहे है। मोटरसाइकिल—सवार सज्जन था, सवेदनशील तथा साहसी भी था। अतः उसने अपने वाहन की गति बढ़ाकर उन दोनाे युवको का पीछा करके उन्हे शीघ्र ही पकड़ लिया और दोनो को आस—पास के लोगो की सहायता से पुलिस को सौप दिया।
पुलिस के हाथ मे पड़ते ही दोनो झपटमार युवको को अपना अपराध—बोध हो गया। दोनो युवक पुलिस से तथा उस मोटरसाइकिल—सवार युवक से क्षमा माँगते हुए भविष्य मे कोई भी अनुचित कार्य न करने की प्रतिज्ञा करने लगे। युवको ने बिना माँगे ही अपनी जेब से महिला की सोने की जजीर निकालकर पुलिस को दे दी और साथ ही स्वय को छोड़ने के लिए उन्हाेने पुलिस को कुछ अतिरिक्त रुपये निकालकर भी अपनी जेब से दिये। उन्होने बार—बार पुलिस से प्रार्थना की कि उनका अपराध केवल इस बार क्षमा कर दिया जाए और उन्हे छोड़ दिया जाए, परन्तु पुलिस ने उन्हे उनकी प्रत्येक प्रार्थना, प्रत्येक वायदे पर, अपनी कठोर कार्यप्रणाली का परिचय दिया और जीप मे बिठाकर थाने ले गयी।
दोनो युवको से पूछताछ करने पर पुलिस को ज्ञात हुआ कि वे दोनो ही कुलीन और सम्पन्न परिवारो के ऐसे होनहार बेटे थे, जो नित्य ही अपने घर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए निकलते थे। उनमे से एक युवक इजीनीयरिग का छात्र था तथा दूसरा युवक सी एकी तैयारी कर रहा था। अधिक पूछताछ करने पर उन युवको ने बताया—
अपनी सामान्य आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए तो माता—पिता से पर्याप्त धन उपलब्ध हो जाता है। परन्तु, अपनी गर्लफ्रैड्स को प्रसन्न रखने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ती है। अतिरिक्त धन की व्यवस्था करने के लिए हमे चेन—स्नेचिग और लूटपाट करनी पड़ती है। यदि हम ऐसा नही करेगे तो, हमारी गर्लफ्रैड्स हमे छोड़कर दूसरे लड़को की फ्रैड्स बन जाएँगी ! वे इतनी अत्यधिक सुन्दर और आकर्षक है कि हर लड़का उन पर जान छिड़कता है !
पुलिस ने दोनो युवको के फ्रैड्स के नाम, उनके घर के पते और उनके फोन नम्बर पूछे। कठोरतापूर्वक पूछताछ करने पर उन युवको से पुलिस को यह भी ज्ञात हुआ कि वे एक बडे़ गिरोह के सदस्य है और अब से पहले भी इस प्रकार की अनेक झपटमारी तथा लूटपाट कर चुके है। युवको द्वारा की गई अन्य वारदातो के विषय मे उनसे विस्तृत जानकारी करने के पश्चात् पुलिस ने उनके अभिभावको को इस विषय मे सूचना दी कि उनके कुलदीपक किस प्रकार उनकी आँखो मे धूल झोककर नैतिक पतन के मार्ग पर अग्रसर हो चुके है। पुलिस से सूचना पाने वाले अभिभावको मे से एक अभिभावक थे — अश के पिता, अक्षय। सुबह—सुबह अपने इकलौते बेटे अश को लेकर दम्पति मे वाद—विवाद होने के पश्चात् अक्षय अपने ऑफिस मे यह सूचना देकर कि उनका स्वास्थय ठीक नही है, चादर ओढ़कर लेट गये थे। शाम चार बजे तक न तो वे अपने कमरे से बाहर निकले और न ही उन्होने अपनी पत्नी अजू से कोई बात की। वे अपने कमरे से तब बाहर आये, जब पुलिस से उन्हे सूचना मिली कि उनका बेटा अश चेन—स्नेचिग का अपराध करते हुए रगे हाथो पकड़ा गया है और इस समय थाने मे बन्द है।
सूचना को सुनते ही अक्षय का सिर चकराने लगा। वे दोनो हाथो से अपना सिर पकड़कर बैठ गये और कुछ मिनट तक उसी अवस्था मे बैठे हुए अपने बेटे अश के पतनोन्मुखी जीवन के विषय मे सोचते रहे। कभी उन्हे बेटे के भविष्य की चिन्ता होने लगती थी, कभी पतन के कारणो का विश्लेषण करने लगते थे, तो कभी उसको पुनः उचित मार्ग पर लौटा लाने के उपायो पर विचार करने लगते थे। लगभग दस—बारह मिनट तक इसी प्रकार ऊहापोह की स्थिति मे अक्षय सिर पकड़कर बैठे रहे।
कुछ समय पश्चात् उनके मस्तिष्क मे एक निर्णायक विचार आया कि सर्वप्रथम तो बेटे को घर लाना आवश्यक है। घर लाने के बाद ही उसको अनुचित मार्ग से लौटाने और सदैव उचित राह पर चलाने का प्रयास करने के विषय मे सोचा जा सकता है। अपने इसी विचार से प्रेरित होकर अक्षय एक झटके के साथ उठकर खडे़ हो गये और कपड़े बदलकर तेज गति से घर से निकल गये। घर से बाहर आने के पहले अक्षय ने अपनी पत्नी को यह सूचना देना आवश्यक नही समझा कि उनके बेटे ने कोई अपराध किया है और वह थाने मे बन्द है। न ही अजू ने यह पूछना आवश्यक समझा कि उसका पति घर मे किसी प्रकार की सूचना दिये बिना इतनी तेज गति से कहाँ जा रहा है ?
थाने मे पहुँचकर अक्षय ने देखा कि उनका बेटा अश एक अन्य युवक के साथ पुलिस की हिरासत मे बैठा है। अक्षय को देखते ही अश खड़ा हो गया और गिड़गिड़ाकर कहने लगा —
डैड, प्लीज़ मुझे यहाँ से बचा लीजिए ! बस इस बार बचा लीजिए, मै प्रॉमिस करता हूँ, आज के बाद कोई गलत काम नही करुँगा ! प्लीज डैड !
तुम्हारे लिए यही सही जगह है ! अक्षय ने कठोर दृष्टि से अश को घूरते हुए कहा और अधिकारी कक्ष की और बढने लगे। उन्हे आगे बढते हुए देखकर अश ने पुनः दयनीय मुद्रा मे कहा —
नही, डैडी ! आपने मुझे यहाँ से नही निकाला, तो ये लोग मुझे बहुत मारेगे, मुझे सजा करा देगे ! प्लीज !... प्लीज़ डैडी ! अश की बात सुनने के लिए अक्षय क्षण—भर के लिए रुके और फिर आगे बढ़ गये। कुछ कदम चलते ही अक्षय की भेट सब—इस्पैक्टर से हो गयी। एक अधिकारी के रूप मे अक्षय से वह पहले से ही भली—भाँति परिचित था। अतः उसने अक्षय को ससम्मान बैठाया और उनके लिए चाय मँगवायी। तत्पश्चात् उस दिन की घटना के विषय मे तथा अश द्वारा की गयी लूटपाट की अन्य घटनाओ के विषय मे अक्षय को बताया।
अक्षय एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी थे, इसलिए उनके परिचित उन्हे यथोचित सममान देते थे। वह सब—इस्पैक्टर भी अक्षय को उनकी ईमानदारी और कर्मठता के कारण ही सम्मान देता था। किन्तु, आज तक अपने सिद्धातो और उच्च आदर्शो पर चलने वाले अक्षय को विधाता ने आज ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया था, जहाँ से वे अपने सिद्धान्तो—आदशोर् अथवा अपने बेटे मेे से किसी एक का ही चुनाव कर सकते थे। यदि वे अपने उच्च आदर्शो तथा सिद्धान्तो का पालन करे, तो उनके बेटे को उसके किये का दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। बेटे को दण्ड देने के लिए पुलिस हिरासत मे छोड़ दिया जाए, यह उनके पिता—रूप को स्वीकार नही था। उनका पुत्र—स्नेह चीख—चीखकर कह रहा था —
इकलौता बेटा जेल चला गया, तो इस जीवन मे शेष क्या रह जाएगा ?
अक्षय के मनोमस्तिष्क मे अपने बेटे के भविष्य तथा अपने सिद्धातो के बीच सघर्ष आरम्भ हो गया। पर्याप्त समय तक यह द्वन्द चलता रहा। अन्त मे पुत्र—स्नेह विजयी हुआ और अक्षय ने निश्चय किया कि वे अपने बेटे को बचाने के लिए आज स्वय ही अपने उच्च आदशोर् का त्याग कर देगे।
अक्षय ने अपने निश्चय के अनुरूप सब—इस्पैक्टर से कहा कि वे किसी भी कीमत पर अपने बेटे को बचाना चाहते है। अक्षय की आशा के अनुरुप पुलिस सब—इसपैक्टर ने सर्वप्रथम अश के अपराध की गम्भीरता और इस अपराध मे लम्बे समय से उसकी सलिप्तता का लम्बा विवरण प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् अक्षय को राहत प्रदान करते हुए कहा कि चूँकि अभी तक किसी भी थाने के अतर्गत अपराधियो की सूची मे अश का नाम दर्ज नही है, इसलिए उसको छोड़ा जा सकता है। सब—इस्पैक्टर ने अक्षय को समझाया कि इस सम्भावना को यथार्थ मे परिवर्तित करने के लिए एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ेगी। अक्षय पहले ही इस सबके लिए तैयार थे, परन्तु उन्हे शका थी कि यदि वहाँ के वरिष्ठ अधिकारी स्वय अक्षय की भाँति ईमानदार और कर्तव्यपरायण हुए, तब अश को बचा पाना कठिन ही नही, असम्भव हो जाएगा। सब—इस्पैक्टर ने अक्षय की शका को भाँपकर उसका समाधान करते हुए कहा —
सर, इतनी चिन्ता करने की आवश्यकता नही है ! यहाँ पर आपके समान ईमानदार अधिकारी नही है। वे आपके बेटे का नाम इस घटना से भी और उसके द्वारा की गयी आज जैसी ही पूर्व घटनाआे (अपराधो) से भी पूरी तरह हटा देगे ! बस, शर्त यही है कि आपको मोटा पैसा खर्च करना पडेगा, क्योकि जिस गिरोह से आपका बेटा जुड़ा हुआ है, वह बहुत बड़ी—बड़ी लूटपाट करता रहा है। घरो मे लूटपाट करने से लेकर बैक के एटीएम तक उडाये है, इस गिरोह ने।
पैसे की चिन्ता आप बिल्कुल न करे। जितना पैसा आप कहेगे, मै दूँगा। बस, मेरे बेटे का नाम अपराधी के रुप मे दर्ज नही होना चाहिए !
इसकी चिन्ता आप मुझ पर छोड़ दीजिए। लेकिन एक बात का ध्यान अवश्य रखना पडे़गा कि अश इस रास्ते को सदा—सदा के लिए छोड़कर उचित राह पर चल पड़े ! और यह तभी सम्भव है, जबकि वह उन लड़कियो के चगुल से मुक्त हो जाए, जिनको आकर्षित करने के लिए तथा प्रसन्न रखने के लिए उसे अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ती है तथा विलासितापूर्ण जीवन शैली का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित होता है। यदि वह अपने इस प्रकार के मित्रो का साथ छोड़ दे, तो अश का सद्राह पर लौटना कठिन नही है !
इस्पैक्टर साहब, अश से उन लड़कियो के विषय मे आपको कुछ जानकारी मिली है, जिन्हे आकर्षित करने ...?
हाँ, हमने उन सभी लड़के—लड़कियो के घर का पता और उनके सम्पर्क नम्बर ले लिये है, क्योकि हमे इस गिरोह की जड़ तक जाना है !
अक्षय के निवेदन पर सब—इस्पैक्टर ने उन सभी लड़के—लड़कियो के सम्पर्क नम्बर और उनके घर के पते उसको दे दिये, जो अश के मित्र थे। उसके बाद इस्पैक्टर की मध्यस्थता मे उसके वरिष्ठ अधिकारियो के साथ बातचीत करके अक्षय ने एक बड़ी धनराशि का भुगतान किया और अपने बेटे को घर ले आये। घर लौटते—लौटते उन्हे रात हो गयी थी। घर पहुँचने तक पिता—पुत्र दोनो की भूख अपने चरम पर थी, किन्तु अक्षय ने न स्वय भोजन किया, न ही बेटे अश को भोजन करने दिया। भोजन करने से पहले उन्होने अश को अपने कमरे मे बुलाया और कहा —
बेटा, मैने आज तुम्हे बचाने के लिए अपने स्वाभिमान की बलि दी है। तुम मेरी पीड़ा को नही समझ सकते, यह मै जानता हूँ। चूँकि मै अब अपनी ही दृष्टि मे एक ईमानदार अधिकारी नही रह गया हूँ ; मैने आज जो कुछ भी किया, एक ईमानदार अधिकारी को नही करना चाहिए था, इसलिए मैने अपने पद से मुक्त होने का निश्चय किया है ! तुम्हे यहाँ बैठकर मेरे लिए त्यागपत्र तैयार करना पड़ेगा !
पर डैडी ...!
तुम्हे चिन्ता करने की आवश्यकता नही है ! मैने आज एक पिता को अधिकारी से ऊपर रखा है। अब मै केवल तुम्हारा पिता हूँ!
...मै एक अधिकारी के रूप मे अपने पद की गरिमा की रक्षा नही कर सका और एक पिता से पराजित हो गया, तब मुझे क्या अधिकार है कि मै उस पद पर बना रहूँ ? अब तुम...! ...तुम अपनी पढ़ाई बन्द करके घर चलाने की जिम्मेदारी उठाओगे, मै केवल तुम्हारा सहयोग करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा !
डैडी ! अभी मै यह नही कर पाऊँगा ! मै पढ़ना चाहता हूँ ! अश ने प्रार्थना करते हुए कहा। किन्तु अक्षय अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होने कठोरतापूर्वक आज्ञा देकर अश को निर्देशाे का पालन करने के लिए कहा। अब तक अश की माँ अजू भी आकर कमरे के दरवाजे पर खड़ी हो गयी थी ; किन्तु उसको इतना साहस नही हुआ कि अदर आकर वे बेटे का पक्ष ले सके। अपने बेटे के प्रार्थनापूर्ण व्यवहार से उन्हे अनुमान हो चुका था कि अवश्य ही उसने कोई अक्षम्य अपराध किया है और उसी की सूचना पाकर उसके पिता कुछ भी बताए बिना घर से निकले थे। अजू को यह पूछने का भी साहस नही हुआ कि उनके त्यागपत्र देने के पश्चात् घर का खर्च कैसे चलेगा? कुछ समय तक दरवाजे पर मौन धारण किए खड़ी रहने के बाद वह वहाँ से वापिस चली गयी और रसोईघर मे व्यस्त हो गयी।
अक्षय ने बेटे अश से त्यागपत्र लिखवाकर उसे भोजन करने के लिए कहा। अश को भेजकर अक्षय बिस्तर पर लेट गये। उस समय पर्याप्त भूख होने के बाद भी भोजन करने की उनकी इच्छा नही थी। न ही थके होने के बावजूद उन्हे नीद आ रही थी। वे चिन्ता मे डूबे हुए अपने बेटे के भविष्य को यथोचित दिशा देने के विषय मे विचार करना चाहते थे और निरन्तर उसी विषय पर गहन विचार कर रहे थे।
कुछ समय तक विचारपूर्ण मुद्रा मे लेटे रहने के पश्चात् अक्षय बिस्तर से उठे और कागज—पैन लेकर कुर्सी पर बैठ गये। अब उन्होने अश द्वारा लिखा हुआ त्यागपत्र फाड़कर उसी लिफाफे मे रख दिया, जिसमे अश ने लिखकर रखा था और स्वय दूसरा पत्र लिखना आरम्भ किया। इस बार अक्षय कोई त्यागपत्र नही लिख रहे थे, बल्कि दो वर्ष के लिए वेतनरहित अवकाश की माँग करते हुए प्रार्थना पत्र लिख रहे थे। अवकाश हेतु प्रार्थना पत्र लिखकर उन्होने अपनी अलमारी मे रख लिया। साथ ही अश द्वारा लिखा हुआ पत्र भी उसी मे रखा और उसका ताला लगा दिया। अलमारी मे ताला लगाकर वे शान्त मुद्रा मे वापिस बिस्तर पर आकर लेट गये। उन्हे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, वे कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचकर निश्चय कर चुके है कि अब उन्हे क्या करना है, जिससे उनका बेटा पुनः उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
अक्षय भोजन किये बिना ही अपने बिस्तर पर सोने की स्थिति मे लेट चुके थे, यह देखकर अजू ने एक बार पुनः पति से भोजन करने का निवेदन किया। अक्षय ने भूख नही होने की बात कहकर चादर से मुँह ढक लिया और उधर से करवट लेकर लेट गये, जिधर उनकी पत्नी अजू खड़ी थी। अपनी माँ के पीछे—पीछे तब तक अश भी वहाँ पर आ पहुँचा था। उसने भी पिता से प्रार्थनापूर्ण स्वर मे अनुरोध किया कि वे उसके अपराधो का दण्ड स्वय को न दे। उसने बार—बार प्रार्थना की कि भविष्य मे वह वही करेगा, जो उसके पिता कहेगे। बस इस बार उसे क्षमा कर दे और भोजन ग्रहण कर ले।
किन्तु पिता की ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर अश यह कहते हुए कमरे से बाहर निकल गया —
मम्मा, लगता है, डैडी सो गये है !
पिता के कमरे से बाहर आते हुए उसने यह सोचकर चैन की साँस ली कि चूँकि अब उसके पिता सो चुके है ; इसलिए वह अब अपने मित्रो से निश्चिन्त होकर बाते कर सकता है। वह पिता के कमरे से निकलकर सीधा अपने कमरे मे गया और अपने मित्रो को एक—एक करके सभी को फोन किया। उसने दिन मे घटित घटना के एक—एक क्षण के विषय मे अपने मित्रो को यथातथ्य बताया और सो गया। दुर्भाग्यवश, अश के किसी मित्र ने उसी रात नन्दिनी के मोबाइल पर सम्पर्क किया और अश के पकडे़ जाने की सूचना देने का प्रयास किया। नन्दिनी वही लड़की थी, जिसे आकर्षित करने के लिए अश विलासितापूर्ण जीवन शैली मे ढलने के लिए प्रेरित हुआ था और हर सम्भव प्रयास करता था कि नन्दिनी उसको छोड़कर किसी अन्य लड़के की मित्रता स्वीकार न कर ले।
अश नही चाहता था कि नन्दिनी को उसके आपराधिक जीवन की भनक भी लगे। उसके जो मित्र नन्दिनी को उसके साथ देखकर ईर्ष्या करते थे, उनके लिए नन्दिनी को उससे दूर करने का यह अच्छा अवसर था। उनमे से ही किसी एक ने इस अवसर का तत्काल लाभ उठाने के लिएनन्दिनी के मोबाइल पर सम्पर्क किया था। जिस समय नन्दिनी के मोबाइल पर उसके मित्र की कॉल गयी थी, नन्दिनी उसी समय देर—रात मे घर लौटी थी। नन्दिनी के विलम्ब से घर पहुँचने के कारण उसकी माँ विजयलक्ष्मी जी, जो ‘महिला मच' की अध्यक्षा थी, अत्यत क्रोधित थी। उन्होने क्रोध मे नन्दिनी का मोबाइल छीन लिया और खुद रिसीव करके सुनने लगी, ताकि वे देर—रात मे अपनी बेटी को कॉल करने वाले लड़के को डाँट सके।
फोन सुनते ही उनका क्रोध शान्त हो गया और वे ध्यानपूर्वक फोन पर बोलने वाले की बाते सुनने लगी। विजयलक्ष्मी जी के लिए वे बाते अत्यधिक रोचक होती जा रही थी, क्योकि बेटी के मोबाईल पर मिलने वाली सूचनाएँ प्रभा के भाई के बेटे अश से सम्बन्धित थी। मोबाइल पर सूचना समाप्त होते—होते नन्दिनी की माँ का क्रोध शान्त हो चुका था और उनके मस्तिष्क मे प्रभा को लेकर नयी योजनाओ का प्रादुर्भाव होने लगा था। अतः उन्होने नन्दिनी को भोजन करके सोने का निर्देश दिया और स्वय अपनी नयी योजना की रूपरेखा तैयार करने लगी।
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