तुम्हें क्या हो गया है
आर0 के0 लाल
सुबोध एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। एक दिन कैंटीन में चाय पीते हुए उसके एक सहकर्मी ने कहा –“यार सुबोध! तुम्हें क्या हो गया है? कुछ कमजोर से लग रहे हो। आजकल तुम्हारे चेहरे पर वह चमक नहीं दिखाई पड़ती जो पहले हुआ करती थी। कहीं कोई बीमारी तो नहीं हो गई है। आजकल तरह-तरह की बीमारी चल पड़ी है कुछ पता नहीं चलता है।“ सुबोध ने कहा- “नहीं यार, सब कुछ ठीक-ठाक तो है।“ बात आई गई हो गई, मगर सुबोध के दिमाग में वहम का कीड़ा घुस ही गया। उसने सोचा कि वास्तव में उसे कुछ हो गया है। दिन भर यही सोचता रहा। शाम को घर पहुंचा तो शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि को देर तक कई कोणों से निहारता रहा फिर अपने गालों पर हाथ फेरते हुए बोला कि सब कुछ तो ठीक लग रहा है।
यह सब उसकी पत्नी भी देख रही थी। उसने चुटकी ली – “क्या बात है, बड़ा मेकअप कर रहे हो?” तब सुबोध ने उसे बताया - नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। आज ऑफिस के लोग कह रहे थे कि मैं कुछ बीमार और कमजोर लग रहा हूं। वही देख रहा था। फिर उसके मुंह से अनायास ही निकल गया कि पिछले कुछ दिन से मेरी महिलाएं दोस्त भी मुझे कम महत्त्व देती हैं जबकि मैं रोजाना अच्छे कपड़े पहनता हूं, क्रीम पाउडर और सेंट लगाता हूं।
पत्नी ने खीझते हुए कहा- “अब तुम्हारी उम्र हो गई है, पचास के ऊपर हो गए हो। चेहरे में बदलाव तो आएगा ही। पाउडर और क्रीम कुछ काम नहीं आने वाला। वैसे भी तुम अपने सेहत के प्रति कहां जागरूक हो। ऑफिस में दिन भर कुर्सियां तोड़ते हो और घर पर चारपाई । कोई एक्सरसाइज, मॉर्निंग वाक तक नहीं करते। अपने पड़ोस वाले रामा शंकर जी को देखो रिटायरमेंट के बाद भी कितने स्वस्थ हैं। प्रतिदिन योगा करने पार्क में जाते हैं। मेरा खाना भी तुम्हें अच्छा नहीं लगता, होटल से फास्ट फूड मंगा-मंगा कर खाते रहते हो। अक्सर दोस्तों के साथ ड्रिंक करने और सिगरेट पीने में भी तुम्हें कोई परहेज नहीं है। हो सकता है तुम्हें ब्लड प्रेशर की बीमारी हो गई हो अथवा डायबिटीज हो गई हो। डायबिटीज में भी आदमी थका थका सा लगता है और धीरे धीरे उसका स्वास्थ्य गिरता जाता है। वह डर गया। सुबोध ने फिर से शीशे में अपने को घूरा। उसे लगा कि उसकी आंखों के नीचे एक काला धब्बा उभर आया है। उससे कमरे की लाइट जला कर देखा। इस बार उसे काला धब्बा तो नहीं दिखा, पर आंख के नीचे गड्ढा दिखाई पड़ा।
सोचते-सोचते सुबोध को रात भर नींद नहीं आई। सुबह उठा तो उसे अखबार भी कुछ धुंधला दिखाई पड़ रहा था। अभी तक तो वह बिना चश्मे के पढ़ लेता था जबकि उसके सारे दोस्त चश्मा लगाते थे। उसने आंख के डॉक्टर से जांच करवाई डॉक्टर ने बताया कि उसे कोई दिक्कत नहीं है, आंख एकदम ठीक है, चश्मे की कोई जरूरत नहीं है। डॉक्टर ने ढेर सारी दवाइयां भी दी। क्योंकि चश्मा नहीं दिया गया था इसलिए सुबोध सोच रहा था कि डॉक्टर सही नहीं है।
चिंता इतनी बढ़ गई कि सुबोध ने कार्यालय से चार दिन की छुट्टी ले ली। उसके दोस्त ने फोन करके पूछा – “क्या भाई सुबोध! तुम कार्यालय क्यों नहीं आ रहे हो? क्या तुमने वर्क फ्रॉम होम ले लिया है या रंगरेलियां मनाने भाभी के साथ कहीं हिल स्टेशन चले गए हो।‘ सुबोध ने कहा क्यों मजाक कर रहे हो यार। तुमने ही तो उस दिन मेरी हालत बताई थी कि में बीमार हूं। तब से मैं बहुत परेशान हूं। उसके दोस्त ने कहा- ‘उस दिन तो मैं मजाक कर रहा था। क्यों मेरी बातों को गंभीरता से ले रहे हो। में कोई डॉक्टर हूं क्या।‘ सुबोध को उसके ऊपर बहुत गुस्सा अया मगर सोचा कि यह हंसी मजाक की बातें हैं तो मुझे इस तरह के लक्षण क्यों हो रहे हैं?
उसके बाद एक दिन सुबोध सपरिवार किसी पार्टी से लौटा तो उसके पेट और सीने में जलन हो रही थी, डकार आ रही थी और सर में दर्द भी था। साथ ही पसीना निकल रहा था। उसके दिमाग में आया कि ये लक्षण किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत दे रहे है। कहीं हार्ट अटैक ना हो। सुबोध को याद आया कि उसके पड़ोसी पंडित जी को भी इसी तरह का लक्षण हो रहा था फिर उसकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी। कहीं मेरे साथ हो गया तो क्या होगा। अभी तो मेरी गृहस्थी बहुत कच्ची है। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। गला सूख गया, उसकी नब्ज तेज हो गई और वह पसीने से भी भीग गया। रात बहुत हो गई थी, पत्नी ने उसे कुछ एंटासिड दवाइयां दी तब जाकर उसे नींद आई। उसकी पत्नी ने सुबह डॉक्टर को दिखाने की हिदायत देते हुए कहा कि मैं तुम्हें मना कर रही थी किंतु इतना नानवेज मत खाओ मगर तुम कहां मानने वाले।
सुबह सब कुछ ठीक था इसलिए सुबोध ऑफिस चला गया। वहां अपने दोस्तों से अपनी हालत बताई। कुछ ने कहा तुम्हें कुछ नहीं हुआ है कुछ बोले हल्के में मत लो, डॉक्टर को दिखा कर सारे टेस्ट करा डालो। वैसे भी पचास साल के ऊपर हर साल एक बार पूरी बॉडी का चेकअप करना ही चाहिए। सुबोध काफी परेशान था। उसे कुछ न कुछ परेशानी महसूस होती रह्ती थी। कभी चक्कर, कभी थकान, कभी अनिंद्र तो कभी पेट दर्द। किस प्रकार की बीमारी है सोच कर सुबोध घबरा जाता। उसने कहीं पढ़ा कि वहम होने से भी कई तरह के बीमारी हो जाती है। उसके पड़ोस में रहने वाले किसी व्यक्ति को मिर्गी के दौरे पड़ते थे मगर जांच में कुछ नहीं निकलता था। डॉक्टर ने बताया कि उसे साइको है। परंतु जानबूझकर कोई क्यों ऐसा करेगा?
सुबोध जांच कराने से भी डरने लगा । अस्पतालों में बेवजह के टेस्ट करवाने के कई मामले सामने आते हैं कि लोग जबरदस्ती हर तरह की जांच करा देते हैं। उसे याद आ गया कि उसके मां को बुखार में व्रत रखने के कारण चक्कर की शिकायत हुई तो अस्पताल पहुंचे। अस्पताल वालों ने कहा कि उनको भर्ती करा दो और पर्चे पर दस, बारह टेस्ट लिख दिए। मगर सेकंड ऑपिनियन लेने के लिए जब अपने फैमिली डॉक्टर से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि माता जी ने खाना नहीं खाया था और डायबिटीज की गोलियां भी नहीं खाई थी इसलिए उन्हें चक्कर आ रहा है। उसने केवल ग्लूकोस का घोल पिलाया और उसे घर जाने को कह दिया। दोस्त ने सलाह दी कि इलाज के लिए हर एक परिवार का कोई ना कोई परिवारिक डॉक्टर होना चाहिए जो घर के लोगों का स्वास्थ्य हिस्ट्री जानता हो।
कौन सी जांच की जाती है इसके लिए उसके दोस्त ने बताया कि एच बी ए 1 सी टेस्ट खून में शुगर की मात्रा को नाप लेता है,ब्लड ग्रुप टेस्ट से पता चलता है कि उसे कोई अनुवांशिक बीमारी तो नहीं है, कोलोनोस्कोपी से बड़ी आंत की जांच की जाती है इकोकार्डियोग्राफी, ईसीजी स्ट्रेस टीएमटी, कोरोनरी सीटी एंजियोग्राफी हार्ट की बीमारी के लिए किया जाता है। लिवर की बीमारी जानने के लिए एल एफ टी टेस्ट, खून की कमी के लिए हेमोग्लोबिन जांच, पेट के लिए अल्ट्रासाउंड आदि। अनेकों आधुनिक टेस्ट के नाम भी गिनाए। सुबोध बोला कि बस करो भाई! तुम डॉक्टर मत बानो। हे भगवान न जाने कितने टेस्ट कराने पड़ेंगे। हालांकि उसकी कंपनी में सभी का हेल्थ इंश्योरेंस रहता है इसलिए पैसे की कोई दिक्कत नहीं होती। उसके बचपन में तो मुखर्जी केवल आला लगा कर के ही सारे मर्ज जान लेते थे।यह सब डॉक्टर कमाई के लिए ऐसा करते हैं उसे सोचा।
किसी ने उसे मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी क्योंकि नकारात्मक सोच हमारे आत्मविश्वास को कम करता है और जैसे ही बीमार व्यक्ति कहीं किताब या इंटरनेट में किसी बीमारी के बारे में पढ़ते हैं उस गंभीर बीमारी के लक्षण उसके अंदर भी महसूस होने लगता है, और वह अपने अंदर भ्रम पैदा कर लेता है, चिकित्सक के पास जाने से डरने लग जाता है। एक छोटे से सर दर्द में लग सकता है कि उसके सिर में ट्यूमर हो गया है।
आजकल सोशल मीडिया, व्हाट्सएप, फेसबुक पर आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार का बोलबाला है, रोजाना कोई न कोई तरकीब बताई जाती है। इससे असाध्य रोगों तक का इलाज किया जा सकता है। इस बात से प्रेरित होकर सुबोध ने भी नेट पर सर्च किया और अनेक बातें नोट की जैसे कि कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए दालचीनी खाना चाहिए, प्याज से दमा का इलाज किया जा सकता है, लहसुन खाने से गैस कम होती है, डायबिटीज नियंत्रित करने के लिए करेला खाना चाहिए आदि। सुबोध ने एक एक करके सभी चीज को आजमाने की ठानी। मगर ज्यादा करेला खाता तो उसका पेट चलने लगता, ज्यादा लहसुन खाता तो पेट जलने लगता। उसका एक लक्षण खत्म होता तो दूसरा लक्षण शुरू हो जाता। धीरे-धीरे वह चिंता में कम खाने लगा और दिन भर घर में ही रहता था, थोड़ा चिड़चिड़ा भी हो गया था दोस्तों के बीच में भी कम उठता बैठता था उसके चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई दिखाई पड़ती थी।
एक दिन उसके दोस्त उसे जबरदस्ती डॉक्टर के पास ले गए। उसका बी0 पी0 कुछ बढ़ा हुआ था। डॉक्टर ने लिपिड प्रोफाइल, थायराइड, यूरिन की जांच, अल्ट्रासाउंड एवं फास्टिंग ब्लड शुगर आदि जैसे प्रारंभिक जांच करवाए। सभी नार्मल लिमिट में थे। डॉक्टर ने एंजाइटी खत्म करने की कुछ दवाइयां दी और बताया कि वजन ज्यादा है जिसे कम करना है नियमित सादा भोजन करना है। डॉक्टर ने यह भी बताया कि बिना किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह के कोई भी मसाला या जड़ी बूटी का उपयोग दवा के रूप में नहीं करना चाहिए। उन्हें ज्यादा खाने से भी नुकसान हो सकता है। सुबोध के साथ भी कुछ ऐसा ही लग रहा था। अपने आप इलाज नहीं करना चाहिए अक्सर देखा गया है कि लोग कमजोरी महसूस करते हैं और बिना डॉक्टर की सलाह के विटामिंस की गोली खाते रहते हैं। यह उचित नहीं है डॉक्टर ने बताया। अगर कोई घरेल इलाज की सलाह दें तो सबसे पहले उससे पूछे कि क्या आपने अपने ऊपर आजमाया है। आप को क्या हानि या लाभ हुआ है उसका पुष्टि करें और किसी डॉक्टर की देखरेख में ही खाएं। उसने सुबोध को बेकार का वहम छोड़कर सकारात्मक कार्य में समय व्यतीत करने की भी सलाह दी।
इन सब बातों का असर हुआ। धीरे धीरे सुबोध बीमारियों से मुक्त हो गया और अब नॉरमल जीवन व्यतीत कर रहा है।
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