दहलीज़ के पार
डॉ. कविता त्यागी
(3)
गरिमा ने माँ से ऐसे किसी भी विषय पर प्रश्न पूछना लगभग—लगभग बन्द सा कर दिया था, जिस पर माँ चाहती थी कि गरिमा उन बातो से दूर रहे। अब वह धैर्य धारण करके बड़ी होने की प्रतीक्षा करने लगी थी। किन्तु मन है, वह मानता नही है। न चाहते हुए भी अपने परिवेश मे घटने वाली सवेदनशील घटनाओ से हृदय प्रभावित होता है और जब हृदय मे सवेदना जाग्रत होती है, तो अपनी प्रकृति के अनुरूप मस्तिष्क कुछ न—कुछ सोचता भी अवश्य है। गरिमा भी अपने परिवेश मे घटने वाली प्रायः सभी घटनाओ से प्रभावित होती थी और उसका मनोमस्तिष्क उन घटनाओ के प्रति क्रियाशील होता था। ऐसी अनेक घटनाओ मे से एक घटना उसकी बड़ी बहन प्रिया से सम्बन्धित थी।
एक दिन गरिमा ने अपनी माँ, चाची, भाभी, तथा पड़ोस की दो स्त्रियो को आपस मे बाते करते हुए सुना। वे पड़ोस मे ही रहने वाली एक किशोरवयः लड़की के विषय मे बाते कर रही थी कि उसका चरित्र अच्छा नही है। क्योकि वह पड़ोस के एक लड़के के साथ अक्सर चोरी—छिपे मिलती थी, इसलिए गरिमा की माँ कह रही थी कि उस लड़की को अपने परिवार की मान—मर्यादा की बिल्कुल भी चिन्ता नही है, ऐसी बेटी तो पैदा होते ही मर जाए, यही अच्छा है। माँ की उस दिन की बाते सुनने के बाद क्रमशः वृद्धि को प्राप्त होती हुई गरिमा ने समाज मे अक्सर देखा कि किसी न किसी लड़की के विषय मे इस प्रकार की चर्चा चलती ही रहती थी कि ‘अमुक लड़की का अमुक लड़के के साथ चक्कर चल रहा है।' या यही बात कभी—कभी दूसरे शब्दो मे भी कही जाती थी, यथा— ‘अमुक लड़की ने तो खानदान की नाक कटवा दी है, माँ—बाप को समाज मे सिर उठाकर चलने लायक भी नही छोड़ा है !'
समाजिक मर्यादा का उल्लघन करने वाली घटनाओ की चर्चाओ ने गरिमा के मनोमस्तिष्क पर अपना गम्भीर प्रभाव डाला था। उन चर्चाओ मे उसने अनुभव किया था कि मर्यादा का उल्लघन करने वालो पर समाज सदैव नकारात्मक टिप्पणी करता है और उनके चरित्र की भर्त्सना करता है। इस विषय मे गरिमा निरन्तर सोचती रहती थी और ऐसे चरित्र की कल्पना करती रहती थी, जिससे माता—पिता पूर्ण सतुष्ट रहे और समाज मे उनकी मान—प्रतिष्ठा पर प्रश्न—चिह्न भी न लगे। ऐसा तभी सम्भव है, जबकि सतान अपने माता—पिता के निर्देशानुसार सामाजिक मर्यादा का पालन करते रहे। उस समय अपने विकासशील—दर्शन के अनुरूप गरिमा उन बच्चो को उचित मार्ग से भटकने वाले समझती थी, जो समाज के द्वारा बनाये गये नियमो की बनी—बनाई राह को छोड़कर अपनी इच्छानुसार नयी राह पर चलते है। माता—पिता के प्रति निश्ठावान गरिमा लीक त्यागकर चलने वालो को सन्देह की दृष्टि से देखने लगी और स्वय को समाज मे श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए लीक पर चलना ही बेहतर समझने लगी। परन्तु उसकी यह धारणा अधिक समय तक नही टिक सकी। कुछ समय पश्चात् वह स्वय अपनी धारणा पर प्रश्न लगाने लगी, जब उसको यह अनुभव हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारो के अनुसार जीवन—यापन करने का अधिकार मिलना चाहिए। गरिमा की विचारधारा मे परिवर्तन तब हुआ, जब उसके अपने घर मे उसकी बड़ी बहन प्रिया के आचरण पर सवाल उठने लगे और उसके अनेक कार्य—व्यवहारो पर प्रतिबन्ध लगने लगे।
प्रिया बारहवी कक्षा मे पढ़ती थी और गरिमा नौवी कक्षा मे पढ़ती थी। एक दिन गरिमा ने देखा कि उसका भाई बहुत क्रोधित हो रहा है और माँ से प्रिया की शिकायत कर रहा है। बेटे की बातो ने माँ को भी तनावग्रस्त और क्रोधित कर दिया था, यह उनके चेहरे से स्पश्ट दिखायी दे रहा था। उसके कुछ समय बाद प्रिया जब घर लौटी, तब तक शाम ढल चुकी थी। प्रिया के घर लौटते ही माँ ने अपनी नाराजगी प्रकट करते कठोर मुद्रा मे उससे पूछा था कि विद्यालय से लौटते समय उसे विलम्ब क्यो होता है। प्रिया ने विलम्ब से आने का कारण विद्यालय की छुटटी के बाद अतिरिक्त कक्षाएँ चलना बताया था, किन्तु माँ उसके उत्तर से सतुष्ट नही हुई थी। माँ उसी समय प्रिया को लेकर दूसरे कमरे मे चली गयी और अन्दर से कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया। गरिमा ने कमरे के बाहर खड़े होकर सुना था कि माँ क्रोध से तिलमिलाती हुई कभी प्रिया को डाँट रही थी, कभी समझाने का प्रयास कर रही थी कि जिस रास्ते पर वह चल रही है वह रास्ता ठीक नही है, इसलिए समय रहते वह उस रास्ते को छोड़ दे। प्रिया के प्रति माँ का क्रोध देखकर गरिमा यह तो अनुभव कर रही थी कि अवश्य ही प्रिया ने कुछ अनुचित कार्य किया है, किन्तु वह उस अनुचित कार्य के विषय मे नही जान सकी थी, जिसके कारण माँ क्रोधित थी। इस विषय मे उसने प्रिया से जानकारी करना चाहा था, लेकिन प्रिया ने उसे ऐसा फटकारा कि भविष्य मे वह कुछ भी पूछने का साहस न कर सके। उस दिन गरिमा को आभास हुआ कि उसकी बहन अब पहले जैसी नही रही है, बल्कि उसमे कुछ परिवर्तन आ गया है।
प्रिया पर माँ के डाँटने—समझाने का कोई प्रभाव नही पड़ा। वह माँ के डाँटने—समझाने के बाद भी प्रतिदिन विद्यालय विलम्ब से ही लौटती थी और विलम्ब से लौटने पर माँ उसको प्रतिदिन डाँटती थी, इसलिए वह उत्तरोत्तर कठोर होती जा रही थी। वह अब माँ का प्रतिवाद भी करने लगी थी। उसकी सहनशीलता और सस्कार पीछे छूटते जा रहे थे। माँ ने उसे कहा था कि समय पर घर लौटने के लिए अतिरिक्त कक्षाएँ छोड़कर आ जाया करे, किन्तु प्रिया ने माँ का प्रतिवाद करते हुए तुरन्त उत्तर दिया कि पढ़ने के लिए तथा अच्छे अक प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त कक्षाएँ पढ़ना अधिक आवश्यक है, इसलिए वह अतिरिक्त कक्षाएँ पढ़ना नही छोड़ सकती है।
प्रिया के विद्रोही और स्वछन्द आचरण से घर मे दिन—प्रतिदिन तनाव बढ़ता ही जा रहा था। जो बात पहले बन्द कमरे मे होती थी, वह अब कमरे से बाहर निकल चुकी थी। प्रिया के माता—पिता को भय था कि शीघ्र ही वह बात सारे समाज मे न फैल जाए, जिसे वे कमरे मे बन्द करके समाप्त कर देना चाहते थे। गरिमा अब तक उस समस्या से पूर्णतः परिचित नही हो पायी थी, जिसके लिए माँ प्रिया के प्रति क्रोधित थी और जिसे जानने के प्रयास मे स्वय उसे प्रिया की फटकार पड़ी थी। प्रिया को अब नित्यप्रति माँ की डाँट पड़ती थी और नित्यप्रति पिताजी उसको समझाने का प्रयास करते थे। किन्तु, उसको उसकी राह पर चलने से रोकने के जितने प्रयास होते थे, वह उस राह पर चलने के लिए उतनी ही दृढ़ होती जा रही थी। उसकी दृढ़ता को देखकर एक दिन माँ ने प्रिया को विद्यालय न भेजने की घोषणा करके ऐसी कठोरता का परिचय दिया, जिसकी किसी को आशा नही थी। माँ की घोषणा सुनकर प्रिया व्याकुल हो गयी। वह घर से बाहर जाने के अनेक प्रकार के नये—नये बहाने ढूँढने लगी।
प्रिया का विद्यालय छुड़वाने की माँ की घोषणा ने गरिमा को भी व्याकुल कर दिया। प्रिया की व्याकुलता देखकर वह और अधिक व्याकुल हो जाती थी, किन्तु वह कुछ कर नही सकती थी। प्रिया की सहायता करने के लिए गरिमा अपनी सामर्थ्यानुसार कुछ भी करने को तैयार थी। प्रिया भी जानती थी कि गरिमा के अतिरिक्त अन्य कोई उस स्थिति मे उसकी सहायता नही कर सकता था। अतः अपने विद्यालय मे पढ़ने वाली कुछ लड़कियो को सदेश देने तथा वहाँ से उनका सदेश लाने के लिए प्रिया ने गरिमा को चुना। गरिमा उसकी सहायता के लिए पहले ही तैयार थी। अतः घर पर रहते हुए प्रिया प्रतिदिन विद्यालय मे होने वाले कार्य व्यापारो से अवगत हो जाती थी और अपना सदेश गरिमा के माध्यम से वहाँ पहुँचा देती थी।
गरिमा को लगता था कि माँ प्रिया को विद्यालय जाने से रोककर ; शिक्षा प्राप्त करने पर प्रतिबन्ध लगाकर उचित नही किया है, इसलिए वह प्रायः अपना अध्ययन छोड़कर प्रिया की सहपाठी लड़कियो के पास जाकर उसके लिए अध्ययन सामग्री और विद्यालय से मिलने वाली सूचनाएँ लाती रहती थी। उन्ही लड़कियो से अनायास ही एक दिन गरिमा को उस विषय मे ज्ञात हुआ, जो उनके घर मे तनाव का कारण तथा प्रिया पर प्रतिबन्ध का आधार था। उन लड़कियो ने गरिमा को बताया कि कक्षा छूटने के पश्चात् अभय नाम का एक लड़का प्रतिदिन विद्यालय के बाहर प्रिया से मिलने आता था। वह दावा करता है कि प्रिया उससे प्रेम करती है और वह प्रिया से प्रेम करता है, इसलिए दोनो विवाह करना चाहते है। अभी तक गरिमा के सज्ञान मे मात्र इतना था कि वह अपनी बहन के अध्ययन कार्य को सुचारू रूप से चलाने मे उसकी सहायता कर रही थी, परन्तु उन लड़कियो के माध्यम से उसे ज्ञात हुआ कि उस अध्ययन सामग्री के जरिये अभय के सदेश प्रिया तक पहुँचाये जाते है। प्रिया के विषय मे ऐसी अप्रत्याशित जानकारी मिलने से गरिमा असमजस मे पड़ गयी— आखिर दीदी ने ऐसा क्यो किया, जिससे उसके परिवार की मान—प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लग जाए ?
वैसे तो गरिमा से प्रिया तीन वर्ष बड़ी थी, परन्तु पुष्पा जब से परिवार सहित गाँव छोड़कर चली गयी थी, तब से गरिमा अपनी प्रत्येक बात को प्रिया के साथ मित्रवत् साझा करती थी। यह बात दूसरी है कि प्रिया ने अपनी किसी भी बात को गरिमा के साथ कभी साझा नही किया था। वह गरिमा के साथ ऐसा व्यवहार करती थी जैसे कि गरिमा अभी छोटी बच्ची है तथा वह बहुत बड़ी और समझदार हो गयी है। गरिमा को प्रिया के इस प्रकार के व्यवहार से कोई आपत्ति नही थी, किन्तु, उस दिन प्रिया का विद्यालय के बाहर अभय से मिलने की सूचना ने गरिमा को विचलित कर दिया था, इसलिए उसने निश्चय किया कि वह इस विषय मे प्रिया से बातचीत अवश्य करेगी। वह जानना चाहती थी कि उन लड़कियो द्वारा दी गयी सूचना सत्य है अथवा असत्य ? यदि सत्य है तो प्रिया अभय से क्यो मिलती है, जबकि माँ उसे बचपन से ही किसी ऐसे लड़के के साथ मिलने—बात करने के लिए मना ही करती रही है, जो अपने परिवार का न हो ! अपने निश्चय के अनुरूप गरिमा ने एक दिन अनुकूल अवसर पाकर प्रिया से अभय के विषय मे चर्चा की, तो प्रिया ने अपने आज तक के गरिमा के प्रति व्यवहारो के विपरीत ऐसा व्यवहार किया जैसे कि गरिमा उसकी छोटी बहन नही, बल्कि उसकी समवयस्क सखी थी।
प्रिया ने गरिमा को बताया— अभय बारहवी कक्षा तक पढ़कर एक प्राइवेट कम्पनी मे नौकरी करता है। वह यहाँ से कुछ ही दूरी पर किराये पर एक कमरा लेकर अकेला रहता है। अभय काम करते हुए पढ़ता भी है और वह बहुत स्मार्ट लड़का है, परन्तु आर्थिक और सामाजिक रूप से सम्पन्न न होने के कारण हमारे परिवार वाले अभय के साथ मेरा मिलना—जुलना उचित नही मानते है ! इसीलिए भैया ने अपने दोस्तो के साथ मिलकर दो दिन पूर्व अभय की बहुत पिटाई की थी। भैया ने यह ठीक नही किया है ! अभय और मै एक दूसरे को बहुत प्रेम करते है, तो भैया को या माँ—पिताजी को इसमे आपत्ति क्या है ? आखिर अभय ने क्या अपराध किया था ? बस, इतना ही ना, कि वह मुझसे मिलता था और थोड़े—समय मेरे साथ प्रेमपूर्ण मधुर वार्तालाप कर लेता था !
लेकिन ,दीदी, माँ ने कभी किभी अपरिचित लड़के से बाते करने की अनुमति नही दी, वह सम्पन्न हो या विपन्न ! और आपको कैसे पता चला कि भैया ने अभय की पिटाई की है ?
तूने मेरी सहपाठी लड़कियो से मेरी अध्ययन—सामगी्र लाकर दी थी, उसी मे अभय का पत्र था, जिससे मुझे सारी बातो की जानकारी मिली थी !
दीदी, माँ, अगर पिताजी और भैया चाहते है कि आप अभय से मिलना और बाते करना बन्द कर दो, तो आपको उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध नही रखना चाहिए !
मुझे अभय से किसी प्रकार का सम्बन्ध नही रखना चाहिए ? क्यो ? क्या मुझे अपना जीवन—साथी अपने विचारो के अनुरूप चुनने का अधिकार नही मिलना चाहिए ? मै अब बच्ची नही हूँ ! मै अब वयस्क हूँ और अपनी भलाई—बुराई, हित—अहित समझ सकती हूँ !
क्या घर वाले आपका हित नही चाहते है ?
नही गरिमा, उन्हे मेरे हित की अपेक्षा अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की अधिक चिन्ता है ! यदि ऐसा नही होता, तो वे कम—से—कम एक बार अभय को देखने—परखने का प्रयास अवश्य करते और तब उन्हे पता चलता कि वह मुझसे कितना प्रेम करता है। एक लड़की कम पैसे वाले के साथ सुखी रह सकती है, पर, प्रेम न करने वाले लड़के के साथ सुखी नही रह सकती ! मै एक ऐसी ही लड़की हूँ, पर घरवाले...!
आज तक गरिमा समाज तथा परिवार की मर्यादा को लाँघने वालो को हेय—दृष्टि से देखती थी, लेकिन उसकी बहन प्रिया ने अपना पक्ष जिस तरह तर्क सम्मत और सबलता से प्रस्तुत किया था, उससे गरिमा सोचने के लिए विवश हो गयी— दीदी ठीक ही तो कह रही है ! यदि कोई भी सामाजिक मर्यादा किसी व्यक्ति के अधिकारो का हनन करती है, तो वह प्रासगिक नही हो सकती ! तब उन रूढ़ियो को तोड़ना ही उचित है, जो जजीर बनकर हमे आगे बढ़ने से और सुखी—जीवन व्यतीत करने से रोकती है !
पन्द्रह वर्ष से गरिमा का जो जीवन—दर्शन निर्मित हुआ था, वह उसकी बहन प्रिया के तर्को से दुर्बल हो गया। समाज के कल्याणकारी रूप को स्वीकार करने के साथ—साथ वह व्यक्ति के अस्तित्व को भी महत्व देने की प्रबल पक्षधर हो गयी। उसे अनुभव होने लगा कि प्रिया ने कुछ भी अनुचित नही किया है, बल्कि उसके माता—पिता और भाई—भाभी ने उसके ऊपर शक्ति का प्रयोग करके अनुचित कार्य किया है और उसके अधिकारो का अपहरण किया है— यह कहकर कि वे उसके हितैषी है। यदि वास्तव मे वे प्रिया के हितैषी है, तो उन्हे प्रिया के विचारो का सम्मान करना चाहिए और उसको इतनी स्वतन्त्रता देनी चाहिए कि वह अपने हित—अहित के विषय मे सोच सके। इस प्रकार तर्क—वितर्क मे उलझते हुए गरिमा इस निष्कर्ष पर पहुँची कि उसको अपने पिता से इस विषय पर बातचीत करनी चाहिए। तभी समस्या का कोई समाधान हो सकता है।
प्रिया की स्वतन्त्रता के विषय मे गरिमा अपनी माँ तथा भाई से चर्चा करना उचित नही समझती थी, क्योकि वह जानती थी कि उनमे से कोई भी उसकी बात नही सुनेगा। परन्तु उसको अपने पिता पर पूर्ण विश्वास था कि वे उसकी प्रत्येक समस्या को न केवल सुनेगे, अपितु उसका समाधान निकालने का प्रयास भी करेगे। अतः उचित अवसर पाकर उसने अपने पिता के समक्ष प्रिया का पक्ष रखते हुए कहा—
पिताजी ! दीदी अभय से प्रेम करती है, वे दोनो विवाह करना चाहते है, यह कोई अपराध तो नही है ! फिर आपने दीदी का स्कूल छुड़वाने के माँ के निर्णय का विरोध क्यो नही किया ?
बेटी, अभी प्रिया की उम्र विवाह करने की नही है, पढ़ाई करने की है !
हाँ, तो, दीदी अभी विवाह नही कर रही है ! अभय और दीदी दोनो एक—दूसरे के मित्र है, थोड़ी—देर एक—दूसरे से बाते कर लेते है, इसमे दीदी की पढ़ाई छुड़वाने की क्या जरुरत थी ? एक ओर आप कहते है कि उनकी पढ़ने की उम्र है, दूसरी ओर उनका स्कूल जाना बन्द कर दिया !
गरिमा की बाते सुनकर उसके पिता असमजस मे पड़ गये कि अचानक उनकी दूसरी बेटी भी विद्रोही—स्वर मे क्यो बोलने लगी। कुछ समय तक वे चुपचाप बैठे हुए कुछ सोचते रहे। तत्पश्चात् धीरे लेकिन गम्भीर स्वर मे बोले—
उस लड़के के साथ प्रिया का इस प्रकार मिलना—जुलना न तो प्रेम कहा जा सकता, न ही मित्रता कहा जा सकता है ! यह इस उम्र का एक तूफान और क्षणिक—आकर्षण—भर है। और रही विवाह की बात, तो यह विषय ऐसा है, जिसका निर्णय सोच—समझकर लिया जाता है ! विवाह—सम्बन्ध तभी सफल हो पाता है, जबकि लड़के मे प्यार के साथ—साथ सस्कार भी हो तथा आर्थिक दशा भी ठीक हो !लेकिन उस लड़के मे ऐसा कुछ भी नही है, क्योकि यदि ऐसा कुछ होता तो...।
तो वह क्या है ?
तो वह हमारी बेटी के साथ छिप—छिपकर नही मिलता और उसे इस प्रकार प्रेम के जाल मे फँसाकर वह उसे गुमराह नही करता ! यदि वह सस्कारवान और अच्छे घर का बालक होता, तो ऐसी हरकत नही करता !
दीदी तो सस्कारवान और अच्छे घर की बेटी है ? वे भी छिपकर मिलने मे बराबर की भागीदार है, फिर सब उस लड़के के ही खानदान पर क्यो उँगली उठाते है ! पिताजी ! अब समय बदल चुका है। हर लड़की को अपना जीवन—साथी चुनने का अधिकार मिलना चाहिए ! जब लड़का और लड़की दोनो पढ़े—लिखे होते है तो वे जरुरत—भर के लिए धन कमा सकते है। इसलिए आपको अभय के प्रेम को मात्र आकर्षण नही समझना चाहिए ! एक बार, बस एक बार, आप अभय से मिलकर तो देख लीजिए ! तब आप निर्णय करना कि वह दीदी का जीवन—साथी बनने लायक है या नही ?
वैसे तो गरिमा इतनी छोटी थी कि विवाह जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विषयाे पर उसकी राय कोई महत्व नही रखती थी, किन्तु उस दिन गरिमा के पिता ने उसकी एक—एक बात को गम्भीरता से लेते हुए उन पर अमल करने का भी निश्चय किया। वे जानते थे कि यदि शीघ्र ही कोई समाधान नही किया गया, तो समस्या और अधिक विकराल रूप धारण कर सकती है। उन्होने अनुभव किया था कि जब से प्रिया का विद्यालय जाना बन्द किया गया है, तब से उसकी उग्रता और परिवार के प्रति विद्रोह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। अतः उन्होने निश्चय किया कि वे अभय से और उसके परिवार से भेट करेगे और यदि वहाँ प्रिया के भावी—जीवन के लिए सकारात्मक लक्षण दिखायी पड़े, तो अभय के साथ उसका विवाह करना निश्चित कर देगे।
बेटी के सुख के अभिलाषी प्रिया के पिता उसकी हठ को पूरा करने के लिए अभय से भेट करने के लिए निकल पड़े। अभय से मिलकर उन्हे ज्ञात हुआ कि वह मात्र पन्द्रह सौ रुपये प्रति माह के वेतन पर एक प्राइवेट फैक्ट्री मे बतौर वर्कर काम करता है। उस फैक्ट्री मे उसकी सीधी—भर्ती नही हुई थी, बल्कि ठेकेदार के माध्यम से उसे काम मिला था। प्रिया के पिता अभय की शिक्षा, उसके कार्य और व्यवहार से सतुष्ट नही हुए, परन्तु फिर भी उन्होने अपनी बेटी की हठ पर अभय के समक्ष उसके परिवार से भेट करने का प्रस्ताव रखा। उनका यह प्रस्ताव अभय को अच्छा नही लगा। उसने अविनीत और अभद्र शब्दो मे प्रिया के पिता से कहा कि प्रिया का विवाह उसके परिवार के साथ नही होगा, बल्कि उसके साथ होगा। इसलिए वह अपने परिवार के साथ उनकी भेट करवाने मे किसी प्रकार रुचि नही रखता है। उसने प्रिया के पिता को यह भी चुनौती दी कि यदि वे प्रिया की शादी उसके साथ नही करेगे, तो भी वे इस विवाह को नही रोक सकेगे, इसलिए उचित यही होगा कि वे उसके रास्ते का रोड़ा न बने।
अभय के अभद्र और कटु व्यवहार से प्रिया के पिता अत्यन्त खिन्न हुए। उन्होने वहाँ से आने के पश्चात् अपनी बेटी को समझाने का पुनः प्रबल प्रयास किया कि अभय उसके योग्य नही है, क्योकि न तो उसके पास जीवन की सामान्य आवश्यकताओ के पूरा करने के लिए धन है और न धनार्जन करने की क्षमता है तथा न ही उसमे दूसरो के प्रति मान—सम्मान या स्नेह—भाव की प्रवृति है ! परन्तु प्रिया को समझाने से पहले ही प्रिया के पास अभय का ऐसा सदेश आ चुका था, जो प्रिया के हृदय मे पिता के प्रति अविश्वास उत्पन्न करके विद्रोह की ज्वाला को प्रज्ज्वलित करने के लिए पर्याप्त था। अभय ने अपने सदेश मे प्रिया को बताया था कि उसके पिता ने उसके घर पर आकर पड़ोसियो के समक्ष उसका अपमान किया और धमकी दी कि उनकी बेटी से मिलने की कोशिश की, तो उसे अपने प्राण गँवाने पडेगे।
अभय का सदेश पाकर प्रिया के क्रोध की ज्वाला भड़कने लगी थी, पिता की समझायी हुई प्रत्येक बात उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही थी। उस दिन पहली बार उसने अपने पिता से वाद—प्रतिवाद करते हुए अपनी सीमा का उल्लघन किया और कठोर शब्दो मे चुनौतीपूर्ण मुद्रा मे कहा कि वे अपनी बेटी के साथ दोहरी नीति का व्यवहार न करे, क्योकि उनकी बेटी होने के कारण वह उनकी सभी चालाकियो को भली—भाँति समझती है। प्रिया ने अपने पिता को चेतावनी देते हुए कहा कि वह अभय से प्रेम करती है ; उसी के साथ विवाह करेगी तथा उसी के साथ रहेगी, और यदि कोई उसे अभय से अलग करने का प्रयास करेगा, तो वह मुँह की खायेगा।
बेटी के शब्दो ने पिता का हृदय चीर दिया था। आहत पिता के मुँह से केवल ये शब्द निकले— हमने अपनी बेटी को ऐसे सस्कार तो नही दिये थे! अपने समाज की रूढ़ियो को तोड़कर हमने समय के साथ—साथ चलना स्वीकार किया ! बेटे मे और बेटी मे अन्तर नही किया, उसे अपनी सामर्थ्यानुसार शिक्षा की सुविधा दी, ताकि वह उचित—अनुचित का निर्णय कर सके, लेकिन...! इतना कहकर वे किकर्तव्यविमूढ—से सिर पकड़कर बैठ गये और सोचने लगे— यदि बेटी के साथ और अधिक कठोर—व्यवहार किया जायेगा, तो बात नियत्रण से बाहर हो सकती है। वैसे भी, इतनी सख्ती कि उसकी स्वतन्त्रता को पूर्णतया छीन लिया जाए ! उसका स्कूल जाना, या कही अन्य स्थान पर अकेले बाहर आना—जाना तो बन्द कर ही दिया है, इससे अधिक क्या किया जा सकता है ? और इस प्रकार प्रतिबन्ध लगाकर अपनी बेटी को घर मे कैद करके कब तक रखा जा सकता है ?
प्रिया के पिता सोच ही रहे थे कि तभी उसकी माँ ने आकर कहा— इस तरह घर मे कैद करके इसे अधिक दिनो तक नही रखा सकता ! अब इसकी आँखो मे बड़े—छोटे की लाज—शरम नही रह गयी है। जो मुँह मे आता है, बोलती है। ऐसे ही चलता रहा, तो यह लड़की किसी दिन खानदान की नाक कटवाकर ही मानेगी !
यह सब मै भी समझता हूँ, पर इतनी सख्ती तो कर रहे है कि उसका स्कूल जाना बन्द करवा दिया है, अब इससे ज्यादा क्या किया जा सकता है ?
क्यो नही किया जा सकता ? और करना ही पड़ेगा ! इस तरह हाथ पर हाथ तो रखकर बैठे रह नही सकते!
बैठे नही रह सकते तो और कर भी सकते है ? मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है ! कभी—कभी तो सोचता हूँ कि इसका स्कूल छुड़वाकर हमने ठीक नही किया है ! इस तूफानी उम्र मे इसको किसी काम को करने से जितना रोकेगे, यह उस काम को उतने ही वेग करेगी !
जो किया है, सब कुछ बिलकुल ठीक किया है, स्कूल नही छुड़वाते, तो अब तक पता नही क्या कर बैठती ! अब आप हाथ पर हाथ रखकर मत बैठो ! कोई ठीक—सा लड़का देखके जल्दी इसके हाथ पीले कर दो, खानदान की इज्जत भी बची रह जायेगी और इसकी भी बुद्धि ठिकाने पर आ जायेगी, जब सिर पे गृहस्थी का बोझ पड़ेगा !
लेकिन, अभी तो बहुत छोटी है प्रिया ! अभी इतनी छोटी उम्र मे उसके ऊपर गृहस्थी का बोझ क्या डालना उचित रहेगा ?
दस दिन बाद अट्ठारह बरस की हो जायेगी प्रिया ! बेटी परिवार वालो से छिप—छिपकर प्रेम की पेग बढ़ा रही है और आप कहते है कि वह अभी छोटी है ! आपकी नजर मे वह उस दिन बड़ी होगी, जिस दिन पुरखो की इज्जत धूल मे मिलाकर उस लड़के के साथ भाग जायेगी।
बेटी के व्यवहारो से असतुष्ट प्रिया की माँ पति पर क्रोध उतारकर बड़बड़ाती हुई चली गयी। पिता पुनः किकर्तव्यविमूढ़ होकर सोचने लगे कि बेटी का विवाह अभी कर दिया जाए अथवा नही ? अन्त मे उन्हे यही उचित लगा कि परिवार की मान—प्रतिष्ठा बचाने के लिए तथा बेटी के सुखमय भविष्य के लिए सुयोग्य वर ढूँढकर उसका विवाह कर ही देना चाहिए !
इधर प्रिया के प्रति कठोर नियत्रण और प्रतिबन्धो से गरिमा भी आहत थी। उसका चित् द्विधा विभाजित हो रहा था। जब वह पिता के पास बैठकर बाते करती थी, तब उसे लगता था कि बहन अनुचित मार्ग पर चल पड़ी है, किन्तु जब वह प्रिया के तर्क सुनती थी, तब उसको लगता था कि प्रेम करना और अपने जीवन—साथी का चुनाव करना उसकी बहन का अधिकार है, जिसका हनन उसके परिवार वाले कर रहे है। न केवल उसके जीवन—साथी के चुनाव का अधिकार छीना जा रहा है, बल्कि उस पर अनेक प्रतिबन्ध लगाकर उसके ऊपर अत्याचार किया जा रहा है और उसकी स्वतन्त्रता का अपहरण किया जा रहा है। अपनी बहन के पक्ष मे अपनी सोच से प्रेरित होकर वह उन सभी बातो की सूचना प्रिया को देती थी, जो उसके माता—पिता प्रिया के सम्बन्ध मे करते थे। उन्ही सूचनाओ मे से एक सूचना यह भी थी कि शीघ्र ही एक सुयोग्य वर तलाशकर उसके साथ प्रिया का विवाह सम्पन्न करा दिया जाएगा।
अपने विवाह की तैयारियो की सूचना से प्रिया बौखला उठी। अब तक उसका प्रेम धीरे—धीरे बढ़ रहा था, किन्तु अब उसके प्रेम ने गति पकड़ ली और परिवार के प्रति विद्रोह ने ज्वालामुखी का रूप ग्रहण कर लिया। परिणामस्वरूप उसने अभय के साथ गुप्त रूप से एक योजना बनायी, जिसकी घर मे किसी को भनक भी न लग सकी। अपनी योजना के अनुसार एक दिन घर से अपनी माँ के सोने—चाँदी के सभी आभूषण और पिता की अलमारी से नकद धनराशि लेकर घर छोड़कर अभय के साथ भाग गयी।
प्रिया के घर छोड़कर जाने के पश्चात् उसके परिवार मे सभी दुखी थे और उसके प्रति अत्यन्त क्रोधित भी थे। माँ दुखी थी कि बेटी उनके सारे गहने लेकर चली गयी, जो उनकी माँ ने और सास ने उन्हे दिये थे ; जिनमे माँ के पूर्वजो की स्मृतियाँ बसी हुई थी और बेटी उन्हे कागज के चन्द टुकड़ो मे बेच देगी ! वे क्षुब्ध होकर बार—बार कह रही थी— चली गयी इस खानदान की नाक कटवाकर ! मै तो पहले ही जानती थी कि वह एक दिन ऐसा ही करेगी ! जिसे अपने जीते—जागते परिवार की इज्जत—बेइज्जती का ध्यान नही ; अपने भविष्य की चिन्ता नही ; सही—गलत का ज्ञान नही, वह भला सोने—चाँदी मे रची—बसी पूर्वजो की यादो को क्या समझेगी। वे तो समझते है कि गहने ऐसी चीज—भर है ,जिन्हे बेचकर चार पैसे मिल जाएँगे, जिन्हे बेचकर दोनो कुछ दिन मौज—मस्ती से जियेगे, पर उसके बाद क्या करेगे, जब ये पैसे खत्म हो जाएँगे !
प्रिया के भाई—भाभी दुखी थे कि घर मे रखी हुई सारी नकद राशि लेकर चली गयी, जिसको पिता ने एक सम्पत्ति मे इनवेस्ट करने के लिए बैक से लाकर रखा था। भाई क्रोध से भरकर कह रहा था— उसे शुरु से ही कन्ट्रोल मे रखा जाता, तो आज यह दिन देखना नही पड़ता ! एक—एक पैसे की किफायत करके सालो तक छोटी—छोटी इच्छाओ का दमन करके, जो धन इकट्ठा किया था हम सब ने, वह उसको एक दिन मे ही उड़ाकर ले गयी और मौज—मस्ती मे खर्च करेगी ! पर ऐसा पैसा आदमी को सुख नही दे सकता, उसे भी नही मिलेगा !
इन सबके विपरीत पिता को न पैसे जाने का दुख था और न गहने जाने का तथा न ही खानदान की नाक कटने का दुख था। उन्हे दुख था प्रिया के घर छोड़कर जाने का और उसके भावी कष्टमय जीवन का, जिसका आभास घर छोड़ने से पहले या फिर घर छोड़ते समय प्रिया को नही था। परन्तु उसके पिता को यह आभास पहले भी था और अब भी है कि अभय कभी भी प्रिया के लिए सुयोग्य—वर सिद्ध नही हो सकेगा ! अतः उन्होने क्रोध मे चिल्लाकर कहा— गहने, पैसे, इज्जत, सब कुछ चला गया, यह सब जानते है, पर इसके अलावा भी घर से कुछ गया है, इसकी चिन्ता भी है किसी को ? अरे, केवल पैसा, आभूषण और इज्जत ही नही गयी है, हमारी बेटी भी घर से चली गयी है ! वह कहाँ गयी है ? कैसी हालत मे है ? इस बात की चिन्ता किसी को क्यो नही है ?
वह घर—भर को लूटकर कर ले गयी और हमे समाज मे किसी के सामने बोलने लायक, सिर उठाकर चलने लायक नही छोड़ा, अब भी हमे उसकी चिन्ता करनी चाहिए ? आपकी इन्ही बातो से उसे इतनी छूट मिली थी कि आज गलत कदम उठाने की उसकी हिम्मत हुई ! प्रिया के भाई ने पिता के मत से असहमति प्रकट करते हुए कहा।
हम उसके बड़े है, उसके परिवार वाले है, यदि हम ही उसकी चिन्ता नही करेगे, तो कौन करेगा? हमे अपनी बेटी को ढूँढने के लिए पुलिस की सहायता लेनी चाहिए ! तुम प्रिया का एक फोटो लेकर जाओ और पुलिस को उसके गुम होने की सूचना दो ! प्रिया के पिता ने बेटे से कहा। प्रिया का भाई पहले से तो सहमत नही था, लेकिन थोड़ा समझाने पर मान गया और पुलिस को प्रिया के घर छोड़कर जाने की सूचना देने के लिए चला गया। पुलिस को सूचना देने के पश्चात् सारा परिवार और सगे—सम्बन्धी प्रिया की खोज मे जुट गये। उस समय परिवार के सभी सदस्य चाहते थे कि प्रिया यथाशीघ्र घर वापिस लौट आये, किन्तु सभी के हृदय मे उसके प्रति स्नेह का स्थान एक प्रकार से क्रोध मिश्रित घृणा ने ले लिया था।
गरिमा परिवार मे घटने वाली घटनाओ को तथा परिवार वालो के प्रत्येक क्रियाकलाप को ध्यानपूर्वक मूकदर्शक बनकर देख रही थी। जब वह अपने पिता की एक—एक बात का विश्लेशण करती थी, तब उसे प्रिया द्वारा उठाया गया कदम नितान्त अनुचित और मूर्खतापूर्ण लगता था और जब अपने भाई और माँ के कठोर व्यवहार सहित प्रिया पर लगे प्रतिबन्धो के विषय मे सोचती थी, तब उसका हृदय पुकार उठता था कि प्रिया ने जो कदम उठाया है, वह आवश्यक था। यदि वह हमराह पर नही चलती, तो इस समाज की रूढ़ियो से कभी मुक्त नही हो सकती थी, सदैव रूढ़ियो की जजीरो मे जकडी़ रहती !
परिवार के प्रत्येक सदस्य के मनोमस्तिष्क मे विविध प्रकार के विचार चल रहे थे, परन्तु सभी प्रिया के शीघ्रातिशीघ्र घर लौटने की ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे। पुलिस भी उसकी तलाश कर रही थी। अपनी खोजबीन के परिणामस्वरूप शीघ्र ही पुलिस को अभय के विषय मे यह सूचना मिल गयी थी कि वह बगाल का रहने वाला है और अपराधी प्रवृति का युवक है। पुलिस रिकार्ड मे वह कई अपराधो मे सलिप्त है। इस आधार पर पुलिस ने दावा किया था कि शीघ्र ही वह प्रिया और अभय को ढूँढ निकालेगी।
प्रिया का परिवार उसे ढूँढकर हार चुका था। अब उसके परिवार को एकमात्र पुलिस का ही सहारा था। प्रिया के पिता दिन मे दो—तीन बार प्रतिदिन थाने मे जाकर पूछताछ करते थे कि उनकी बेटी के विषय मे कोई सकारात्मक सूचना मिली, परन्तु प्रतिदिन उन्हे निराश और खाली हाथ लौटना पड़ता था। लगभग चालीस दिन बाद पुलिसने उन्हे सूचना दी कि उनकी बेटी प्रिया से मिलती—जुलती शक्ल—सूरत की एक लड़की का मृत शरीर पुलिस को प्राप्त हुआ है, इसलिए प्रिया के परिवार वाले मृतका की पहचान कर ले, कि वह प्रिया है अथवा कोई अन्य।
पुलिस की सूचना पर प्रिया का परिवार मृतका की पहचान करने के लिए पहुँचा, तो सबकी साँसे रुक—सी गयी। उनके सामने पड़ा मृत शरीर उनकी बेटी प्रिया का था। उनमे से किसी ने सोचा भी नही था कि प्रिया के जीवन का अन्त इस प्रकार हो सकता है। प्रिया का परिवार अभय के साथ उसके कष्टदायी जीवन के विषय मे सोचता था, प्राणान्त के विषय मे नही। प्रथम दृष्ट्या प्रिया के मृत शरीर को देखकर लगता था कि उसने अपनी नस काटकर आत्महत्या की है। उसके परिवार ने भी इस बात का विरोध नही किया था। प्रिया के पिता ने पुलिस को बताया था कि उनकी बेटी बहुत शीघ्र क्रोधित हो जाती थी और शीघ्र ही प्रसन्न भी हो जाती थी, इसलिए कुछ भी सम्भव है। यह भी सम्भव है कि उसकी हत्या की गयी हो तथा यह भी हो सकता है कि उनकी बेटी द्वारा घर से लूटा गया धन समाप्त हो जाने पर अभय ने उसके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया हो, जिसे सहन न कर सकने के कारण उसने आत्महत्या कर ली हो।
परन्तु, पुलिस उसे शत—प्रतिशत हत्या का केस मानकर चल रही थी। और अपनी पूरी शक्ति के साथ अभय को तलाश करने मे लगी थी। कुछ ही दिनो मे पुलिस ने अभय को ढूँढ निकाला और उसको गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने प्रिया की हत्या के विषय मे उससे कठोरतापूर्वक पूछताछ की, तो उसने स्वीकार किया कि वह प्रिया का हत्यारा है। उसने पुलिस को बताया—
मै प्रिया को प्यार नही करता था। जब उसका स्कूल का समय होता था, उस समय मै प्रतिदिन उसके स्कूल के आगे से गुजरता था, एक दिन चार—पाँच लड़के जो इसी स्कूल के ही थे, प्रिया और उसके साथ की लड़कियो पर छीटाकशी कर रहे थे। उस दिन अपनी ही किसी बात से मै बहुत तनाव मे था, इसलिए उन लड़को को देखकर मुझे गुस्सा आ गया और मैने उनकी पिटाई कर दी। वे लड़के मुझसे छोटे थे, इसलिए एक—दो थप्पड़ खाकर भाग खड़े हुए। उनके जाने के बाद उन लड़कियो ने मुझे धन्यवाद कहा, तो अचानक मेरा गुस्सा उड़नछू हो गया था। उस दिन के बाद से प्रिया मेरी तरफ आकर्षित होती गयी। मै उससे मिलना नही चाहता था, लेकिन वह अपने स्कूल के बाहर खड़ी होकर मेरा इन्तजार करती रहती थी। उसके निष्कपट प्यार से मै भी उसकी ओर खिचा चला आता था। मै प्रिया से पीछा छुड़ाना चाहता था, परन्तु छुड़ा नही पा रहा था। उन्ही दिनो उसके भाई ने मेरी जमकर पिटाई की। मै कई दिन तक काम पर भी नही जा सका था। बस तभी मेरे मन मे बदले की भावना घर कर गयी और मैने सोच लिया कि उसके भाई को सबक सिखाने के लिए प्रिया को भगाकर ले जाउँगा। प्रिया मेरे इशारे पर कुछ भी करने के लिए तैयार रहती थी। एक दिन मैने उसे भगाने की योजना बनायी और अपनी योजना को एक कागज पर लिखकर प्रिया की एक सहेली को दे दिया। उसने वह कागज प्रिया को दे दिया और मुझे प्रिया की चिट्ठी सौप दी, जिसमे लिखा था कि वह उसके साथ चलने के लिए तैयार है। और अपने साथ माँ के आभूषण और कुछ नकद लेकर आयेगी।
योजना के अनुसार प्रिया सही समय पर निश्चित स्थान पर पहुँच गयी। उसके पास बहुत—सा सोना—चाँदी तथा नकद पैसा था, जिससे हम एक महीना तक देहरादून मे मेेरे एक दोस्त के घर पर रहे। मैने उसके पैसे से अपना कर्ज चुकाया और आभूषणो का बेचकर मिले हुए पैसो से हमने खूब मौज—मस्ती की, परन्तु...! इतनी कहानी बताकर अभय ने एक लम्बी साँस ली और कुछ क्षण के लिए रुककर पुनः बताना आरम्भ किया—
परन्तु जैसे—जैसे समय बीतता जा रहा था, वैसे—वैसे हमारे पास पैसे की कमी होती जा रही थी और मेरे ऊपर प्रिया का दबाव बढ़ता जा रहा था कि हम अदालत मे जाकर शादी कर ले। मै उसके विवाह करने के दबाव से तग आ गया था, इसलिए उससे पीछा छुड़ाने की योजना बनाने लगा। एक दिन जब हमारा सोना—चाँदी और नकद पैसा, सब कुछ खत्म हो गया, मैने नशे की गोली उसकी चाय मे डाली और चाय पीने के तुरन्त बाद ही उसको बाहर घुमाने के लिए ले गया। उस समय पार्क सुनसान पड़ा था। कोई आ—जा नही रहा था। मैने अवसर का लाभ उठाकर प्रिया के हाथ की नस काट दी और वहाँ से फरार हो गया। वहाँ से जाने के बाद मै अपने गाँव चला गया था। मैने सोचा भी नही था कि पुलिस मुझ पर शक करके गाँव तक पहुँचेगी !
अभय द्वारा बतायी गयी आरम्भ से अन्त तक की कहानी सुनकर प्रिया का परिवार उसके प्रेम के परिणाम पर अत्यधिक सदमे मे था और बार—बार बस एक ही बात कहकर आँसू बहा रहा था— काश ! हमारी बेटी ने हमारी बात मान ली होती, तो आज वह हम सबके साथ होती ! एक दरिदे का शिकार होकर उसे अपनी जान नही गँवानी पड़ती !
प्रिया का परिवार उसकी मौत का शोक मना रहा था और उसी समय समाज की पुरानी पीढ़ी के लोग प्रिया और उसके परिवार पर अनेक प्रकार की टिप्पणी कर रहे थे। कुछ लोग प्रिया के पिता पर टिप्पणी करते हुए कह रहे थे कि यदि इन्होने बेटी को इतनी आजादी नही दी होती, तो यह दिन देखना नही पड़ता ! कुछ लोग कह रहे थे कि टेलीविजन नयी पीढ़ी के बच्चो को पथभ्रष्ट कर रहा है। नयी पीढ़ी के लोग कह रहे थे कि पढ़ने—लिखने और टेलीविजन देखने से जागरुकता बढ़ती है और रूढ़ियो से मुक्ति मिलती है, ऐसी स्थिति मे प्रिया जिस दुर्घटना का शिकार हुई है, उसकी जिम्मेदार वह स्वय है।
अनेक प्रकार की टिप्पणियो को सुनकर गरिमा ने इतना अवश्य समझा था कि एक लड़की को सुरक्षित रहने के लिए परिवार नाम के कवच के साथ—साथ स्वविवेक की बहुत आवश्यकता होती है। लेकिन, क्या परिवार वास्तव मे सुरक्षा कवच का काम सदैव करता है ? यदि वास्तव मे इसका उत्तर हाँ है, तो चिकी की सुरक्षा क्यो नही हुई ? वह तो अपने ही परिवार मे अपने पिता की दरिदगी का शिकार है ! वह जीवित रहते हुए भी जीवित नही है ! और चिकी की बड़ी बहिन ऊषा ? उसकी दशा भी तो चिकी जैसी ही रही होगी ! और पुष्पा ? अपनी जिस छोटी—सी आयु मे वह बेचारी हवशी किशोर की दरिगी का शिकार हुई थी, उस आयु मे स्वविवेक की अपेक्षा की जा सकती है ?
अपने परिवेश मे एक के बाद एक घटने वाली ऐसी दुर्घटनाओ को देखकर गरिमा के मनःमस्तिष्क मे भय मिश्रित असन्तोष व्याप्त हो गया था। इन दुर्घटनाओ मे पुष्पा के साथ दुष्कर्म की घटना, ऊषा और चिकी का अपने ही परिवार मे निरन्तर शारीरिक शोषण होते रहने की घटना और अब उसकी अपनी बहन की उसी के प्रेमी द्वारा हत्या करने की घटना ने गरिमा को अत्यधिक बेचैन कर दिया था। यद्यपि पुष्पा और चिकी से सम्बन्धित घटनाओ के घटित होने के समय गरिमा उनका अर्थ नही समझती थी, परन्तु उस समय भी वह इतना अवश्य समझती थी कि वे दो अबोध लड़कियाँ किसी दुर्घटना का शिकार हुई है, जिसके जिम्मेदार कुछ अपराधी प्रकृति के असामाजिक अयोग्य पुरुष है। और अब...! अब तो वह बहुत—सी बातो को भली—भाँति समझने लगी थी और प्रत्येक घटना पर घटो विचार—विश्लेषण करती थी। उस घटना का कारण ढूँढने का प्रयास करती रहती थी और उन कारणो को दूर करने के सम्भावित उपायो पर घटो तक स्वय ही अकेली बैठकर चिन्तन—मनन करती रहती थी।
अपने चिन्तन—मनन के फलस्वरुप गरिमा स्वय को सुरक्षित रखने के लिए सदैव चिन्तित और सचेत रहती थी। वह अपने परिवार के विषय मे, विशेषकर अपने पिता के विषय मे सोचकर स्वय को बहुत सौभाग्यशाली अनुभव करती थी कि ईश्वर ने उसको ऐसे परिवार मे उत्पन्न किया है, जहाँ उसके पिता समाज की रूढियो को तोड़कर समय के अनुरूप नये विचारो के वाहक होते हुए भी प्रासगिक परपराओ के प्रबल समर्थक है। जब वह समाज के बारे मे सोचती थी, तो उसका मन समाज के प्रति असन्तोष विद्रोह कर उठता था और वह व्याकुल हो जाती थी। किन्तु, अपनी सामर्थ्य—सीमा के कारण वह उस समय केवल अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिक चिन्तित थी, जिसके लिए वह स्वविवेक को सर्वाधिक उपयुक्त मानती थी।
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