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परिवार की वापसी

परिवार की वापसी

आर0 के0 लाल


मोहल्ले की किटी पार्टी मैं आज नीलम कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। पूछने पर शीला ने बताया कि अब वह पार्टी में नहीं आया करेगी, क्योंकि वह अपना घर छोड़कर किसी दूसरे मोहल्ले में रहने जा रही है। सभी लोग दुखी हो गए। रमा ने कहा कितनी प्यारी थी हमारी नीलम। उसके कारण ही किटी पार्टी में काफी रौनक रहती थी। ज्यादातर प्रोग्राम वह ही संचालित करती थी।

“नीलम तो अपने सास ससुर के साथ बड़े आराम से रह रही थी फिर दूसरी जगह क्यों जा रही है” सब ने पूंछा। शीला ने बताया नीलम उसके बगल में रहती है। आज सुबह उसके हस्बैंड मेरे हस्बैंड को बुलाने आए थे। कह रहे थे कि भाई साहब थोड़ी सी मदद चाहिए। आज हम लोगों की पैकिंग हो रही है, हम लोग बगल के मोहल्ले में रहने जा रहे हैं। नीलम की पति ने स्वयं ही बताया- “ भाई साहब! मेरे बड़े भाई तो अलग मकान लेकर के पहले से ही रह रहे हैं। मैं अपने माता पिता के साथ बहुत दिनों से रहता हूं। मेरी शादी हो गई है और एक बच्चा भी हो गया है। मुझे अपने परिवार के लिए सब कुछ करना है, बच्चे को स्वतंत्र ढंग से बड़ा जो करना है। आजकल न्यूक्लियर फैमिली का ही जमाना है। मैं अपने माता पिता पर बोझ नहीं बन सकता। इसलिए सोचा कि अलग रहा जाए। पापा को भी पेंशन मिलती है। इस प्रकार हम सब लोग अलग-अलग सुखी पूर्वक जीवन बिताएंगे।”

शीला ने बताया कि थोड़ी देर बाद वह भी अपने पति के साथ नीलम के घर गई थी। उसके सास - ससुर बड़ी दयनीय दृष्टि से निहार रहे थे। कहने लगे “बेटा मैं तो कह रहा था कि हम सब काम चला लेंगे मगर जैसा ए लोग चाहें वही ठीक है । ये लोग बगल के मोहल्ले में ही तो रहेंगे, जब चाहेंगे मिल लेंगे।”

किटी पार्टी की सभी महिलाएं चौंव-चोंव करने लगीं और तरह-तरह से अपना पक्ष रखने लगीं। स्नेहा ने बताया कि अलग न्यूक्लियर फैमिली की तरह रहते हुए परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है और जीवन उल्लास पूर्ण व्यतीत होता है। शादी के बाद स्वाभाविक रूप से बहु ने जो सपने देखे होतें हैं, परिस्थियाँ उसके अनुकूल नहीं मिलती। परिवार के सभी लोगों कुछ ना कुछ रोका टोकी करते रहते हैं और बहू कुढ़ती रहती है। रिश्ते उसे बंधन लगने लगते हैं । इसलिए अलग रहना अच्छा होता है।

रेखा ने भी बताया कि पहले वह भी संयुक्त परिवार में रहती थी और उनके पति सबसे ज्यादा कमाते थे। घर के अन्य सदस्य उसका फायदा उठाते थे। किसी को कोई मतलब नहीं होता था कि पैसे कहां से आते हैं। पहले तो सब कुछ मैनेज होता रहा परंतु बच्चे पैदा होने के बाद परिस्थितियां काफी बिगड़ने लगी थी। हमारे सास ससुर बच्चों को प्यार करके उन्हें बिगाड़ भी रहे थे। वह तो भगवान का शुक्र है कि इनको अक्ल आ गई और हम लोग अलग रहने लग गए। अब हम कुछ ना कुछ बच्चों के भविष्य के लिए बचा ही लेते हैं। अब तो हम लोगों ने एक बंगला भी खरीद लिया है। फिर उसने कहा कि वहां अक्सर कोई ना कोई मेहमान टपक पड़ता था और मुझे ही उनका खाना बनाना पड़ता था । अब मगर अब ऐसा नहीं है। अब कोई आता भी है तो हम होटल से खाना मंगा लेते हैं।”

पार्टी में कुछ महिलाएं ऐसी भी थी जो कुछ मजबूरीवश अपने परिवार से अलग नहीं हो सकी थी, उन्हें अपने भाग्य पर तरस आता है। उन्हें भी लगता कि संयुक्त परिवार में रहने से अच्छा है कि अलग होकर स्वच्छंदता पूर्वक जीवन बिताया जाए मगर शेखी मारते हुए कहा -”परिवार के लिए सब कुछ करना पड़ता है, बहन। हम उन्हें छोड़कर भाग तो नहीं सकते हैं। फिर उसने अपने मां बाप को ही कोसा “ पता नहीं कहां मेरी शादी करा दिया है । घर में पूरी पलटन है। पहले तो अच्छा लगता था पर अब सब काटने दौड़ते हैं। एक भाई दुसरे भाइयों की तरक्की देख कर जलते हैं |इन सबका एक ही इलाज होता है "अलग हो जाओ और अपना परिवार खुद चलाओ। मेरे हसबैंड तो पूरे बुद्धू हैं, कुछ करते ही नहीं।” उसने अपना रोना रोया।

इतने में कुछ महिलाओं ने उमा का उदाहरण दिया जो पहले तो अलग रहती थी मगर अब संयुक्त परिवार में वापस आ गई है । उमा वहीं बैठी थी। लोगों ने पूछा कि उसे कैसा अनुभव हो रहा है, साथ रहकर और किन परिस्थितियों में उसे फिर से उस उस घर में रहना पड़ रहा है जिसे कभी छोड़कर चली गई थी।

उमा ने बताया - “संयुक्त परिवार आज भी भारतीय सामाजिक व्यवस्था की नींव हुआ करती है मगर हमारी नासमझी के कारण, आज विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही है । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मनुष्य का एकमात्र ध्येय केवल व्यक्तिगत हितों की पूर्ति करना ही रह गया है। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए वह अपने परिवार के साथ को भी छोड़ने से पीछे नहीं रहता।अक्सर परिवार का साथ छोड़ने से कुछ समय बाद पछतावा ही होता है।” फिर उसने विधिवत बताया- “ हमारे यहां भी कुछ ऐसे ही हालात थे। मेरे पति चार भाई हैं और एक बहन जिसकी शादी हो चुकी थी। घर में बाबू जी, अम्मा जी( सास- ससुर) भी रहते थे । मैं सबसे बड़ी हूं। तीनों देवरों की भी शादी हो चुकी थी । सब लोग साथ तो रहते थे पर किसी में भी धैर्य नहीं था। सभी लोग एक दूसरे से किसी न किसी बात पर लड़ते झगड़ते रहते थे इसलिए सभी ने अलग अलग रहने का फैसला लिया। धीरे धीरे सभी इसी शहर में अलग अलग किराए के मकान में चले गए। पुराने घर में केवल रह गए। बाबू जी, अम्मा जी बहुत दुखी थे। उनके बच्चे अलग हो गए थे जो बचपन से साथ रहते थे। लोग बड़े शौक से यह सोचकर अपने बच्चों का पालन पोषण और उनकी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करते हैं कि वृद्धावस्था में उनके बच्चे उन्हें सहारा देंगे। लेकिन होता इसका एकदम उल्टा। आपसी मेलजोल की भावना भी कम होने लगती है।

उमा ने बात बढ़ाई कि इस अलगाव में मुझे ही सबसे बड़ा दोषी माना जाता था। मेरे मन में यह बात खटकती थी। मैंने सोचा कि जब मेरी कोई गलती नहीं है फिर मुझे क्यों लोग इस तरह के लांछन लगाते हैं। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि मैं एक दिन सभी को एक साथ करूंगी।

हम चारों तो अलग रहने लगे परंतु धीरे धीरे हम सभी की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी। हम आपस में तो कुछ नहीं कहते थे मगर बहुत परेशान थे । यही हाल सास ससुर का भी था । पहले जहां पारिवारिक सदस्य अपनी हर छोटी-मोटी जरूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते थे, वहीं अब लोग पूर्ण रूप से खुद पर ही आश्रित होने लगे थे, बढ़ती महंगाई और और समय की कमी के कारण अक्सर हमारा काम बिगड़ ही जाता था।

हमने अपने पति से बात की। सोचा कि कुछ करना चाहिए। वह भी तैयार हो गए। शुरूआत हमें ही करनी थी।

कैसे यह सब तुम कर पाई? सबने पूंछा। उमा ने बताया- “एक बार हमारे पति किसी गांव गए और वहां से एक बोरा गेहूं खरीद लाए। गेहूं काफी अच्छा और सस्ता मिला था जिसे इन्होंने सभी भाइयों में बांट दिया। तीनों पैसा दे रहे थे परंतु उन्होंने कहा कि बाद में ले लेंगे। इसी तरह दो तीन बार हम लोग कुछ सामान थोक में खरीद के लाए और उसे सभी भाइयों में दे दिया। इसका अच्छा असर पड़ा। बाद में तीनों भाइयों ने पैसे के बदले अन्य जरूरत के सामान थोक में खरीद कर सभी को दिया । होली के समय छोटा भाई तो कलकता गया था और वहां से सब के लिए थोक में कपड़े और साड़ियां खरीद लाया। कभी कभी हम ज्यादा खाना बना लेते थे और उसे चारों जगह पहुंचा देते थे। उस दिन उनके यहां खाना बनाने की जरूरत नहीं पड़ती। इस प्रकार हमने देखा कि हमारे बीच की दूरियां खत्म हो रही थी और हमारे पैसे भी बच रहे थे। त्योहारों में हमें बाजार की भागदौड़ भी कम करनी पड़ रही थी। अक्सर हम एक साथ सामान लाते और सभी से बराबर पैसे ले लेते। एक बार देवर के व्यापार में लगभग 6 महीने तक घाटा चलता रहा। वह पैसा नहीं दे पाता था इसलिए उसके हिस्से का पैसा बाबू जी ही दिया करते थे।

एक दिन हमने सभी लोगों को अपने घर खाने पर बुलाया। मेरे पति ने सोचा कि आज सभी से खुलकर बातें की जाए। जब यह बात हमारे ससुर को पता लगी तो वे हमसे बहुत खुश हुए। मैंने कहा कि आप सभी कहते हैं कि मेरे कारण सभी अलग-अलग हो गए परंतु ऐसी बात नहीं है। हम काफी दिन से प्रयास कर रहे हैं कि हम लोग आपस में मिल जुल कर रहें। आज सभी लोग खुलकर इस मुद्दे पर बात कर कर लें और यदि हो सके तो हम लोग फिर से पहले की तरह साथ रहने लगें।

मम्मी जी ने पहले बात उठाई और कहा कि मुझे पता है कि तुम लोग अपना घर चलाने में किस तरह से तंगी का सामना कर रहे हो। आज बड़ी महंगाई है और तुम सब लोग का पूरा पैसा खर्च हो जाता है। अगर तुम सब लोग मिलकर के एक साथ घर की व्यवस्था करो तो काफी बचत हो सकती है। तुम लोग अलग अलग मकान का किराया दे रहे हो जो बचाया जा सकता है। कई प्रकार से धन की बचत की जा सकती है .जैसे तीन के स्थान पर एक कार ,एक स्कूटर से कम चल सकता है ,तीन फ्रिज के स्थान पर एक बड़ा लिया जा सकता है। इसी प्रकार तीन मकानों का किराया बचा कर एक पूर्णतया सुसज्जित बड़ा सा बंगला लिया जा सकता है । बाबू जी ने भी कहा कि हममें से अगर कोई बीमार पड़ जाय तो पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है। किसी की अनुपस्थिति में दूसरा भाई कारोबार को देख सकता है। मैं भी आप लोगों की मदद कर सकता हूं। साथ रहने पर बिजली, पानी, अखबार, टीवी तथा मेहमानों का आवभगत करने का खर्च सब लोग मिलकर करेंगे तो चार पैसे बचेंगे ही और हम सब लोग को अच्छा भी लगेगा। मोहल्ले में किसी को उनसे पंगा लेने की हिम्मत भी नहीं होगी।
मेरे पति ने बताया कि साथ रहने से बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। उसे घर के बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है। विशेष तौर पर दादा ,दादी का प्यार भी मिलता है। उन्हें संस्कारवान, चरित्रवान एवं हिर्ष्ट पुष्ट बनाने में उनका सहयोग प्राप्त होता है।”

उमा ने भगवान को कोटिशः धन्यवाद देते हुए कहा- “हम लोगों को बात समझ में आ गई थी इसलिए हम लोगों ने निर्णय लिया कि अब हम लोग साथ रहेंगे। हम लोगों ने एक बड़ा मकान इसी मोहल्ले में ले लिया है और अब साथ रह रहे हैं । मेरा मानना है कि संयुक्त परिवार में रहने के लिए धैर्य की जरूरत होती है, प्रेम एवं संतुलन की जरूरत है।जब तक खुशी सबके साथ मिलकर ना मनाई जाए उसका कोई मतलब नहीं होता।”

सभी महिलाओं ने माना कि हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए।

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