छूटी गलियाँ - 22 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छूटी गलियाँ - 22

  • छूटी गलियाँ
  • कविता वर्मा
  • (22)

    इसी बीच एक अच्छी खबर आई सनी को बैंगलोर की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में सी एस की तैयारी के लिए एडमिशन मिल गया। पंद्रह दिनों बाद उसकी क्लासेज शुरू होने वाली थीं। बहुत दिनों पहले आया वह लिफाफा मैंने फिर खोल कर पढ़ा। बैंगलोर की उस कंपनी से मेरे लिये भी कई कॉल आ चुके थे। मैं सनी को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए अब तक कोई जवाब नहीं दिया था अब तो सनी का भी बैंगलोर जाना तय है लेकिन अब नेहा और राहुल से एक बार बात किये बिना मैं कोई जवाब नहीं देना चाहता था एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी छोड़ कर नहीं जाना चाहता था। हाँ अब राहुल मेरी जिम्मेदारी है। अब जबकि वह जानता है कि मैं उसका पापा नहीं हूँ क्या वह मुझे पापा जैसा मान देगा ? यह बहुत बड़ा प्रश्न था मेरे सामने और यही मुझे लगातार बैचेन किये हुए था क्योंकि राहुल अब मेरा बेटा था मेरे जीवन का वह हिस्सा जिसे मैं कहीं छोड़ आया था। मेरे बेटे का वह बचपन जिसे मैं फिर जीना चाहता था।

    अब जबकि सारे राज खुल गये जिंदगी में ऐसा ठहराव आ गया कि समय काटना मुश्किल लगने लगा। राहुल अभी भी बेहद उदास है अपने में ही खोया रहता है इतने बड़े और कड़वे सच को पचाना इतना आसान भी तो नहीं है। स्कूल बंद हो गये थे जीवन को जिससे लय और गति मिलती थी वह थम गई थी। उठने के बाद भी वह देर तक बिस्तर में पड़ा रहता। उसके दोस्त खेलने बुलाते पर वह नहीं जाता सारा दिन टी वी देखता लेकिन क्या देख रहा है उसे खुद ही नहीं पता होता। वह बहुत दुखी था विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि उसके पापा ने हम लोगों को यूँ अकेला छोड़ दिया है। मिस्टर सहाय से बातें करते वह अपने पापा से नज़दीकियाँ महसूस करने लगा था उसके बाद अचानक से ये दूरी असह्यनीय थी। क्या पता अगर मिस्टर सहाय से बातें होना शुरू नहीं होती तो इस सदमे को सहना आसान होता? और क्या पता उनसे बात करते उसके दिल दिमाग में अपने पिता को लेकर जो छवि बनी है वही सारी जिंदगी के लिये उसके पास एक याद बन कर रह जाये कड़वी या मीठी कौन जाने?राहुल ने मिस्टर सहाय को कितना स्वीकार किया है और विजय को कितना ख़ारिज यह भी अभी समझ नहीं आ रहा है। क्या राहुल ने स्वीकार कर लिया है कि अब उसके जीवन में पिता की भूमिका सदा के लिए ख़त्म हो गई है ? क्या पिता के प्यार के लिए तरसते राहुल ने एक पूर्ण परिवार के बिना जीवन बिताने के लिए खुद को तैयार कर लिया है ? अगर ऐसा है तो मिस्टर सहाय का क्या ? क्या वे भी खुद को राहुल के साथ इस दूरी को सहज ही ले पाएँगे ? उनके मन में राहुल के लिए अथाह प्यार है उससे बात किये बिना वे रह नहीं पाते। शायद सनी के साथ वे राहुल की कमी महसूस न करें। न जाने क्यों मन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।

    कुछ दिन बाद एक शाम राहुल बहुत उलझन में था ऐसा लगा कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है। मैंने एक दो बार पूछा भी क्या बात है लेकिन कुछ नहीं कह कर टाल गया। लगभग दो घंटे की जद्दोजहद के बाद राहुल ने कहा, "मम्मी क्या वो पार्क वाले अंकल अब कभी फोन नहीं करेंगे? अब तो मुझे सब पता है ना।"

    "नहीं बेटा ऐसा नहीं है। उनका तो उसी दिन फोन आया था लेकिन हम दोनों का ही मन ठीक नहीं था इसलिए बात नहीं की।"

    "आपके पास उनका नंबर है, मैं उनसे बात करूँ?" इस बात ने न जाने क्यों मुझे प्रफुल्लित कर दिया।

    मैंने फोन लगाया और बिना किसी भूमिका के कहा, "हैलो मिस्टर सहाय राहुल आपसे बात करना चाहता है"और फोन राहुल को पकड़ा दिया।

    "हैलो अंकल" उसके स्वर में हिचकिचाहट सी थी शायद संबोधन बदल देने की झिझक।

    "कैसे हो राहुल बेटा, कितने दिन हो गये तुम्हे मेरी याद नहीं आई?"

    "मैं ठीक हूँ अंकल, आप कैसे हैं ? आपसे एक बात पूछनी थी, क्या मैं आपको पापा कह सकता हूँ?" बिना किसी विराम के एक सांस में उसने अपनी बात कह दी जैसे बड़ी हिम्मत जुटा कर वह कह रहा है मानों रुक गया तो फिर नहीं कह पायेगा।

    "हाँ हाँ बेटा क्यों नहीं।" मेरा दिल जोर से धड़कने लगा मुझे मानों दुनिया की सारी खुशियाँ एक साथ मिल गईं। उत्तेजना से मेरा स्वर काँप गया आँखें डबडबा गईं। जिस जिम्मेदारी को मैं अब तक अपनी तरफ से निभा रहा था आज राहुल मुझे उस जिम्मेदारी को निभाने का हक़ देना चाहता था। एक अनहक रिश्ता बदलने जा रहा था और अपने में बहुत कुछ समेटने जा रहा था।

    "क्या मैं आपसे फिर से मिल सकता हूँ? आपके घर आ सकता हूँ?"

    "हाँ हाँ जरूर मम्मी के साथ आ जाओ मेरा घर पास ही है" मैंने मुश्किल से खुद पर काबू करते हुए कहा।

    दरवाजे की घंटी बजी नेहा की ओट में राहुल कुछ सकुचाया कुछ कौतुहल से मुझे देखता खड़ा था। मैं तो नेहा के नमस्ते का जवाब देना ही भूल गया बस राहुल को देखता रह गया। मैंने दोनों बाँहें राहुल की तरफ फैला दीं और वह भी बिना देर किये उसमे समा गया। जाने कितनी देर वह मेरे सीने से लगा रहा जाने कितनी देर मैं उसका सिर और पीठ सहलाता रहा उसकी बाँहों की पकड़ अपनी पीठ पर महसूस करता रहा। बंद आँखों से गिरे मेरे आँसू उसके सिर को भिगोते रहे। नेहा ने खंखार कर हमें चेतन किया मैंने आँखें खोली तो नेहा के गालों पर आँसुओं की लकीरें चमक रही थीं। राहुल को लेकर मैं अंदर मुड़ा सनी भी भीगी आँखों से हमें ही देख रहा था। मैंने ध्यान से उसे देखा कहीं उसकी आँखों में कोई ईर्ष्या तो नहीं है ? उसकी आँखों की नमी देख दिल को तसल्ली सी मिली यह उसकी स्वीकार्यता की निशानी थी। मैंने सनी की तरफ बाँहें फैला कर उसे भी अपने आगोश में समेट लिया।

    सनी का बड़े भाई के रूप में परिचय ने राहुल को खुश कर दिया। सनी के साथ राहुल का मन लग गया। सनी बहुत स्वाभाविक रूप से नेहा से मिला। बहुत दिनों बाद घर में बातों की, हँसी की आवाज़ गूँजी। चाहते हुए भी मैं बैंगलोर जाने की बात उन्हें नहीं बता सका। कैसे छीन लेता उस ख़ुशी को नेहा राहुल सनी और खुद से। इस बीच सनी ने कई बार मेरी तरफ देखा शायद वह भी इसी असमंजस में था कि यह बात अभी बताई जाये या नहीं। अभी तो पंद्रह दिन हैं इसलिए इसे स्थगित किया जाना ही ठीक है। सनी उन दोनों को घर तक छोड़ने गया। मैं गीता की तस्वीर के सामने खड़ा था न जाने कैसी भावना थी वह बस आँसू बहते रहे।

    राहुल की छुट्टियाँ थीं सनी भी अभी फ्री था दोनों लगभग दिन भर ही साथ रहते। सनी राहुल को कंप्यूटर सिखाता तो राहुल सनी को बड़े भाई का गौरव प्रदान कर रहा था। सनी के अंदर का गिल्ट राहुल के प्यार में तेज़ी से घुलता जा रहा था और यह अब उसकी आँखों बातों और चालढाल में भी नज़र आने लगा था। सनी ने राहुल के साथ जाकर शॉपिंग की जिसने राहुल को उत्साहित भी किया और आशंकित भी।

    उस दिन जब मैंने अपने और सनी के बैंगलोर जाने की बात बताई तो एक बार फिर मायूसी छा गई। राहुल दौड़ कर मुझसे आकर लिपट गया फिर सनी के गले लग फूट फूट कर रो पड़ा। नेहा भी एकदम मायूस हो गई। अलग अलग रहते हुए भी एक पूर्ण परिवार का एहसास होने लगा था। यह परिवार अब फिर बिखरने वाला था। क्या इसे बिखरने से रोका जा सकता है ? नहीं नहीं ऐसा कोई रास्ता नहीं है बैंगलोर जाना तो तय है। सनी के भविष्य का सवाल है उसकी आँखों ने बहुत बड़े अंतराल के बाद खुद के लिए सपने देखना शुरू किया है अब उन सपनों को पूरा करने में मुझे उसका पूरा सहयोग करना है। राहुल को छोड़ कर जाने का दुःख तो है लेकिन राहुल को कभी छोड़ूँगा नहीं इसका दृढ़ निश्चय भी है। वह मेरा बेटा है और मेरी उसके प्रति भी उतनी जिम्मेदारी है और मैं उसे निभाऊँगा कैसे नहीं सोचा अभी नहीं जानता लेकिन अब विश्वास है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकल जायेगा।

    आज दिन में नेहा और राहुल के साथ मार्केट जाकर कम्प्यूटर खरीदा। सनी और राहुल ने मिल कर उसे ऑन किया। राहुल ने सनी से बहुत कुछ सीख लिया था और अब सनी ने उसे वीडियो चैट करना भी सिखा दिया था। बैंगलोर जाने के दिन करीब आ रहे थे दिल में एक बैचेनी सी थी। पहली बार जब बाहर गया था तब भी एक बार घबरा गया था लेकिन दिल में उत्साह था। अब घबराहट तो नहीं है लेकिन दिल में एक उदासी जरूर है।

    आज रात हम सब साथ में डिनर पर बाहर आये हैं। सनी के एडमिशन, बारहवीं में अच्छे रिजल्ट और मेरी नौकरी का जश्न मनाने। राहुल थोड़ा उदास है पर सनी उसे अपने साथ प्ले जोन में ले गया है। मैं और नेहा उसे खेलते खिलखिलाते देख रहे हैं।

    "आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ ?" नेहा ने कहा तो मैं चौंक गया।

    "यह क्या कह रही हैं आप ? इस लिहाज से तो मुझे आपको बड़ा वाला शुक्रिया अदा करना चाहिए। छोड़िये नेहा जी अब इन औपचारिकताओं को। यह समय था जो हमें साथ लाया और हमारे बच्चों के लिए खुशियों के रास्ते खोले। बस एक वादा करिये कि राहुल के लिए मुझे कभी मना नहीं करेंगी कभी भी किसी भी तरह की कोई बात हो मुझे जरूर बतायेंगी। हमारी दोस्ती का इतना हक़ तो बनता है।" नेहा ने ख़ामोशी से सिर हिला दिया।

    तीन दिन बाद हमें बैंगलोर जाना है लेकिन राहुल और नेहा छुट्टियाँ हमारे साथ बितायेंगे सनी ने ये वादा लिया है।

    अब राहुल अपने पापा और सनी भैया से जब चाहे बात कर सकता है उसके पास दोनों के नंबर हैं।

    मैं भी उससे घंटों बात करता हूँ सनी को दोबारा बड़े होते देखना अच्छा लग रहा है।

    कविता वर्मा

    ***