Khel pyar ka - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

खेल प्यार का...भाग - 4

भाग 4

प्रस्तावना.....
 कहानी वसिम और कायनात की प्रेम कहानी है ! मैं इस कहानी को आपके समक्ष पहली बार रजू करने जा रही हूं!  लिखना आता है या नहीं वह तो आप पर निर्भर करता है मुझे जज आप करोगे..! देखते हैं मेरी संवेदनाएं इस कहानी में कैसे रंग लाती है..!
मुझे यकीन है कि आप लोगों को जरूर पसंद आएगी..!)

जेसे के अपने भाग...3 में पढा की वसीम ने कायनात को अपने बाहों में ले लिया था.....?

                       4

वसीम ने कायनात को बाहों में ले लिया! और कायनात उसकी बाहों मैं शर्माती हुई बोली..
"वसीम ये क्या कर रहे हो..? छोड़ो ना..? वसीम  शरारती अंदाज से बोला..!
"में अपनी जान को अपने करीब से महसूस करना चाहता हूं'.....?"
कायनात झटपटाते हुए बोली!
" वसीम ये सब सही नहीं। है मुझे जाने दो..!"
लेकिन वसीम ऐसा मौका नहीं गवाना चाहता था..! सो उसने कुछ भी सुने बगैर कायनात को इतना बेकरार कर दिया कि अब वो भी उसकी बातो से उत्तेजित होने लगी..! और धीरे धीरे खुद को वसीम को सौंप दिया....!
वसीम की  बातो से कायनात पहले से ही आकर्षित हो चुकी थी..! अब ये सिर्फ वसीम की नहीं कायनात की भी मर्ज़ी बान गई..! दोनों ही एक दूसरे में खोते गए..! इतने की उनको ये भी होश नहीं था कि कायनात अभी नाबालिक है...!
अब ये दोनों अपनी सारी हदें पार कर चुके थे..! काफी देर बाद कायनात ने घड़ी की ओर देखा तो शाम के 7:30 बजे थे..! उसने वसीम को खुद से दूर करते हुए कहां..!
" मुझे घर जाना है..! ये कह कर रो पड़ी..! वसीम ने उसे पूछा.!
" क्या हुआ कायनात..? रोने क्यू लगी..?" तभी उसने कहा..!
"टाइम देखो...! पीछलेे 2 घंटे से तुम्हरे पास हूं ..! में घर पे क्या जवाब दुं..! अम्मी पूछेगी कहाँ थी..? क्या कर रही थी....?"
वसीम ने उसे चुप करते हुए कहा..!
" रोना बंद करो प्लीज़..! हम कुछ सोचते  है..!"
तभी कायनात अपना बैग लेकर खडी हो गई..!
और बोली!
" में जा रही हूं..! अब जो होगा देखती हूं! बस दुआ करना..! बाबा घर ना आए हो काम से..!
इतना बोलते हुए कायनात रूम से बाहर निकल आई..!
जैसे जैसे घर के पास बढ रही थी..! वैसे वैस उसका डर बड़ रहा था..!
अब में क्या बोलुंगी घरमे....! लेकिन प्यार में पागल लोग झूठ बोलना बहुत अच्छे से सीख जाते है ....!
कायनात जेसे ही घर में दाखिल हुई उसकी अम्मी ने थोड़ा गुस्सा करते हुआ कहा! "कहा थी..? कब से रास्ता देख रही थी में..? टाइम देखा है..? बिना बोले कहीं भी जाओगी क्या..?
वो तो नूरी ने आकर बोल दिया, कि तुम  सहेली के घर जा रही हो..,नहीं तो में कहा ढूंढती ..? अाजके बाद बिना मुझे बोले कहीं नहीं जाओगी समझी..!
इतना सुन के कायनात की जान में जान आई....!
और मुस्कुराते हुए बोली..!
" जी अम्मी बिना बोले आज के बाद कहीं नहीं जाउंगी..!
इतना बोलते हुए वो अपने रूम में चली गई..! और रोने लगी कि आज मैने ये सब क्या किया..? अम्मी बाबा को पता चला तो मुझे मार ही डालेंगे..! यही सब सोचते हुए वो खुद को दोष देने लगी..! मुझे वसीम के रूम में जाना ही नहीं चाहिए था....!
कायनात पूरी रात सो नहीं पाई...!उसे वसीम का अपने करीब होने का अहसास वसीम की ओर खींच रहा था..! सारी रात करवट बदलती रही! बार बार वसीम का करीब आना कायनात की नींद उड़ा रहा था! वो पहली बार का मिलन कायनात को पागल कर रहा था..! वैसे ही वसीम का हाल भी कुछ ऐसा ही था....!


*******सायर खान********

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