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यस !

यस !

मनीषा कुलश्रेष्ठ

वह रन वे पर स्टार्टअप पॉइंट पर खड़ा था और मैं ए टी सी (एयर ट्रेफिक कंट्रोल टॉवर) में बैठी थी। आर टी ( रेडियो ट्रांसमीटर) पर उसकी खूबसूरत आवाज़ गूँजी।

' जूलियट वन ओ वन परमिशन टू स्टार्ट, ।' मेरे सामने उसका वज़ूद कौंध गया.

' 'क्लियर स्टार्ट अप जूलियट वन ओ वन'। " मैंहने सांकेतिक भाषा में उसे जहाज उड़ाने की इजाज़त के साथ, मौसम का हाल दिया। मौसम थोड़ा बादलों वाला था, जो कुछ ही देर में साफ होने वाले थे। यह पहला इत्तफ़ाक़ था कि वह नाईट फ्लाइंग पर था और मेरी उस रोज नाईट ड्यूटी थी। उस दिन हमारी सीनियर एयर ट्रेफिक कंट्रोलर भी लेडी ऑफिसर ही थीं। मैं रडार के एक स्कोप ( लगभग स्क्रीन जैसा ) पर थी।

"गर्ल्स, टुडे यू आर गोईंग टू पेंट एटीसी इन पिंक?" ( लड़कियों आज तो तुम एयर ट्रेफिक कंट्रोल टॉवर को गुलाबी रंग कर ही मानोगी?) वह अपने मिग-21 जहाज का टैक्सी रन करते हुए बोला.

“सर सॉर्टी पूरी करके आइए, वी विल सेलेब्रेट योर 1000 ऑवर्स ऑफ सोलो फ्लाइंग।“ ( सर अपनी उड़ान पूरी करके वापस आईए, हम आपकी एकल उड़ान के हज़ार घंटों का जश्न मनाएंगे।)। रचना मैम बोलीं।

“श्योर गर्ल्स, मुझे भी तुम सब को एक सरप्राईज़ देना है।” ! कह कर वह उड़ गया.

वह मुझसे आठ-नौ साल सीनियर अफसर था। बाहर से तो खासा संजीदा दिखता था, उसके क्लीन शेव्ड चमकते चेहरे पर हमेशा एक छिपी - सी मुस्कुराहट रहती। उसके शिष्ट व्यवहार और बातचीत से लगता कि हम सब की तुलना में जीवन को उसने बहुत गहरे उतर कर देखा है। उसके हैलमेट में बंद सिर और नारंगी ओवरऑल में कसे जिस्म में क्या चलता था, यह कोई जानता नहीं था। गोरे चेहरे और दुबले लंबे डीलडौल के चलते वह उम्र में उतना बड़ा नहीं लगता था जितना कि वह असल में था। डायनिंग हॉल में अकसर वह खाने की मेज़ पर मेरी बेवकूफ़ाना बातों पर हंस देता या मेरी अनुभवहीनता पर आश्चर्य करता। कभी - कभी बड़ों की तरह टोक देता, किसी वजह पर, कभी बेवजह ही – “ तुम बेमन से खाना क्यों खाती हो? कितना प्लेट में छोड़ देती हो. ग़लत है यह। “ मैं बस दो साल पहले आई, नई रंगरूट थी। मुझ पर रौब जमाने का सबका हक़ भी था.

वह पूरी दुनिया घूम चुका था। उसकी कत्थई आँखें किसी पुराने दर्द का हल्का - सा पता देती थीं। कहीं कोई खुरंट लगा कोई घाव था कि आधुनिक लड़कियों को लेकर एक तंज उसकी बातों में छुपा रहता। खासा दुनियादार होते हुए भी स्प्रिचुएलिटी को वह जिरहबख्तर की तरह ओढ़े रखता।

“लाईफ इज़ टू शॉर्ट......लव योरसेल्फ” यह उसका प्रिय जुमला था। उसने अब तक शादी नहीं की थी इसलिए मैस में ही रहता था. हमारे समाज में पैंतीस पार के अविवाहितों पर जो अटकलें लगा करती हैं वही उसे लेकर लगाया करते आस – पास के लोग. कुछ बताते थे कि स्कूल के दिनों की गर्लफ्रेंड थी, जिसने उसके दोस्त से शादी कर ली। कोई कहता अपनी बड़ी बहन की शादी न हो पाने के कारण वह भी बैठा है। कोई कहता फ्लर्ट है, काम चल रहा है तो शादी क्यों करे! कोई कोई तो हद पार कर देता शादी को लेकर उसकी नाक़बिलियत पर जुमला कस कर. मैं जानती थी अटकलों से परे किसी को यहां किसी की भीतरी खुशी और दुख से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। फर्क मुझे भी नहीं पड़ता था, पर जब वह सामने पड़ता तो मेरे मन का पानी हल्का - सा हिलता। इतना हल्का कि मुझे पता ही नहीं चलता। मैं मन ही मन बस उससे कुछ पूछना चाहती थी, हक़ीक़त। यह कितना फ़िज़ूल ख्याल है, मुझे पता था वह डाँटकर भगा देगा।

वह मुझसे बहुत सीनियर था, अपनी स्क्वाड्रन का फ्लाइट कमांडर। आठ-नौ साल हमारे प्रोफेशन में बहुत बड़ी औपचारिकता की दीवार खड़ी कर देते हैं। मुझे वह इंसान के तौर पर पसंद है, मगर उस तरह नहीं जिस तरह असीमा को। असीमा, मेरी रूममेट है और मुझसे चार साल सीनियर अफसर। वह पूरे खुलेपन के साथ कहती है, कि तमाम उसके सनकीपन के , तमाम उसके लिए फैली अफवाहों के साथ वह उसे चाहती है, मुमकिन है कि उसने उस पर यह चाहत जाहिर भी कर दी हो. क्योंकि अचानक उस बंदे ने हमारे कमरे में ताश खेलने आना बंद कर दिया था। पहले की तरह उसने हमारे गैंग के साथ पिक्चर और बाहर पिकनिकों पर जाना भी बंद कर दिया था।

"तुमने नाराज़ किया उसे? तुम्हीं बुला लो।“

" मैंने कोई नाराज़ नहीं किया. मैं नहीं बुलाने वाली. न आए मेरी बला से. देख नेहा, बात सिर्फ इतनी है कि मुझे दूसरी लड़कियों की तरह के नाज़ - नख़रे नहीं आते। मैं पलक झुका कर प्यारे शब्द बोलने की जगह उसकी आँख में आँख डाल कर कहना पसंद करूंगी कि ‘हाँ ! तुम मुझे पसंद हो, मैं तुम्हें पसंद होऊं तो बोलो – यस्स! अब मुझे यकीन हो चला है। ही इज़ हार्ड नट टू क्रेक ( उसका अपने खोल से निकलना मुश्किल है) वह अपने अलावा किसी से प्यार कर नहीं सकता। "

असीमा सुंदर, लंबी और आकर्षक है। उस बंदे के व्यक्तित्व के बरक्स कहीं से कम नहीं, बल्कि इक्कीस ही होगी. कोई भी उससे खुशी – खुशी जुड़ना चाहेगा. उस पर मेडिकल ऑफिसर है। कुछ साल बाद वह चली जाएगी, फौज से बाहर। डॉक्टर है, उसे क्या कमी?

“ तुमने परमानेंट कमीशन के लिए अप्लाय नहीं किया?” मैंने असीमा से पूछा था

“ ऊंह!, उसके अलावा फिर फौज में मेरे लिए क्या है? उसने अब तक कुछ कहा भी नहीं. बाहर जाकर मैं एक जगह टिक तो सकूंगी.“

“तुमने उससे पूछा था?”

“ सीधे – सीधे तो नहीं, जैसा तुम सोच रही हो। पर मैं जानती हूं वह जानता है कि मुझे उसके जवाब का इंतज़ार है।“

लेकिन उसने तो फिर हमारे कमरे की तरफ़ रुख़ तक नहीं किया। पहले वह हर शुक्रवार की शाम हमारे कमरे में आ जाया करता था। हम स्वीप खेला करते। ताश का यह खेल उसी ने मुझे सिखाया। असीमा अपलक उसे ताका करती, या उसके लिए बंगाली ढंग की फ़िश पकाती थी। मैं छुट्टी पर चली गई थी और पता नहीं मेरे पीछे से ऎसा क्या हुआ!

पिछ्ले सप्ताह ही की तो बात है, शनिवार – इतवार के साथ एक छुट्टी और जुड़ गई थी । राजस्थान के इस रेगिस्तानी शहर से पंद्रह किमी दूर इस एयर बेस के आस – पास कोई मॉल, पिक्चरहॉल नहीं है, जहां हम समय काट लें। वैसे तो हम सभी बेहद व्यस्त रहते लेकिन हम जब भी खाली होते पार्टी कर लेते थे। तेज संगीत, डांस, शराब, खाना और बातें। उस दिन भी हम पार्टी मूड में थे। असीमा सबसे आगे। पहले सब बार में इकट्ठे हुए। मेज बजा बजा कर गाने का मूड बन गया। कोई जाकर इसे भी स्क्वाश कोर्ट से बुला लाया। पसीने से गीले बाल, वह आकर मेरे और असीमा के पास बैठा गया। असीमा ने मुझे एस एम एस किया - " आह! यह ईथर की तरह महक रहा है, मैं मीठी बेहोशी में जा रही हूं।" मैं ने असीमा को हंस कर आँख दिखाई। तभी उसने अनाउंस किया कि ड्रिंक्स आज मेरी तरफ से। सारे बैचलर्स ने उसके नाम का हुर्रा किया।

सब कोरस में गा रहे थे। मस्ती भरे ताज़ा फिल्मों के गीत। कि अचानक वह ज़ोर से गाने लगा - "ये जो मोहब्बत है, उनका है काम...." हम सब सब चुपचाप उसकी सधी आवाज़ को सुनने लगे। असीमा ने मुंह बिचकाया।

" उदास गीतों को खुशी के अंदाज़ में गाना एक कला है, इनकी धुनें जिंदादिल होती हैं। ये जीने की ताकत देते हैं।"

“सर क्या गाते हैं आप।" सबने कहा था।

" मेरी मां बंगाली थीं, वे जितनी खूबसूरत थीं, उतना खूबसूरत गाती थीं। हिंदी गानों में उनकी जान बसती थी। कह कर उसने जेब से वॉलेट निकाल कर सबको अपनी मां की फोटो दिखाई, जो थोड़ी पुरानी होकर और सुंदर हो गई थी।

" आप इनसे हूबहू मिलते हैं। " असीमा ने उसकी आँखों में डूब कर बोला और उंगलियां चटकाने लगी।

अचानक कहीं से सिगरेट के धुंए के बीच एक बहस उठी, ‘ आजकल के प्यार पर, ट्रायल एंड एरर पर, लव मैरिज पर, अरेंज्ड मैरिज पर। अफसरों के आपस में सूटेबल मैच देख कर शादी कर लेने पर। सब बोल रहे थे। मैं भी, असीमा भी। बस वही चुप था। सिगरेटों ही से नहीं बहस में से धुंए निकल रहे थे। बार के धुएँ में सबके चेहरे खो गए थे।

"लड़कियां प्रेम नहीं करतीं, लड़के का कैरियर और भविष्य देख कर तय करती हैं, साथ रहना।“

“ हर पोस्टिंग पर मंगेतर बदलती हैं। कैरियर ग्राफ़ देख कर।“

" हे, आई ऑबजेक्ट! बकवास है यह। लड़के कौनसे प्रेम करते हैं? उनको भी दो तनख्वाहें चाहिएं होती हैं। मैं कुछ ऐसी शानदार कैरियर वाली लेडी ऑफ़िसर्स को जानती हूं जो केवल इश्क के कारण बाहर अपना लॉ या एम बी ए कर शानदार कैरियर छोड़ फौज में आईं, अपने बॉयफ्रेंड के कारण। यहां भी कोई बेकार की ब्रांच ले कर. " असीमा बोली।

“तुम लोग भी कम नहीं, लड़कियों को समझते क्या हो? प्यार सुंदर, बोल्ड लड़की से। शादी या तो नौकरी वाली से, या मोटे दहेज वाली से। आजकल इश्क़ विश्क़ कौन करता है? जो हम करें, तुम प्रेक्टीकल तो हम डबल प्रेक्टिकल. “

“ करने वाले इश्क़ भी करते हैं. मेरी एक बैचमेट ने सार्जेंट से शादी कर ली.”

प्यार, व्यवहारिक लड़के, बेवफा लड़कियां। शादी से भागते लड़के, प्रेम में सब छोड़ती लड़कियां। खूब शोर मचा, अंत में बात उस पर आ टिकी। अनजाने में या जानकर, पता नहीं।

“सर, आप कुछ बोलिए.... हमारी तरफ से “ एक नया नया आया फ्लाइंग ऑफिसर बोला।

" बॉयज़, ये डिसकस करने की बात नहीं, कर गुज़रने की बात है। माना इश्क़ करना और इश्क में चोट खाना भी एक शिवालरी है यारों। लेकिन एक हद बाद इंसान को कहीं सैल्फिश हो ही जाना चाहिए। " दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें। वैसे ग़ालिब च्चा तो नसीहत दे ही गए हैं।

“वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा

तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो”

वाह वाही का शोर उठा, वह शेर कह कर जाने लगा।

"इतनी जल्दी खाना सर? सर अभी तो महफ़िल जमी है। वीकेंड शुरु हो चुका है। सर यह तो पूरी ग़जल हो जाए। “

उसने बारमैन को सबके दो दो ड्रिंक लाईन अप करने को कहा। खुद सिगरेट सुलगा ली। ग़ज़ल के कुछ शेर और कहे गए। जो मेरे कुछ पल्ले पड़े, कुछ नहीं। असीमा दीवार पर लगे टीवी को घूरती रही मानो उसे ग़ालिब में और गज़ल कहने वाले में कतई रुचि न हो. मैं कनखियों से असीमा को देख रही थी. हर शब्द उसे चोट पहुंचा रहा था, वह होंठ भींचती जा रही थी.

“ किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो”

बार बंद होने का समय हो रहा था, उस पर शायरी से पक चुके बारमैन ने सबके दो दो ड्रिंक लाईनअप किए, और चला गया। मैंने तौबा की, शराब से नहीं जूस से। असीमा वोद्का ले लेती है। उसने अपना ग्लास उठाया और सिप करने लगी. लड़के जोश में आ गए। एक ने अहमद फ़राज की ग़ज़ल सुनाना शुरू की। समां बंध गया था।

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

मैं ने कहा – “असीमा को नेरुदा ज़बानी याद हैं, सुनाओ न यार।“ बहुत ज़िद के बाद अपनी मीठी आवाज़ और कमाल के उच्चारण के साथ असीमा ने कविता शुरु की।

I love you as certain dark things are to be loved,

in secret, between the shadow and the soul…

( मैं तुम्हें प्यार करती हूँ वैसे ही जैसे किन्हीं ख़ास स्याह चीजों को प्यार किया जाता हैसबसे छुपा कर, रूह और परछाईयों के बीच)

उसके चुप होने के बाद वह उससे मुखातिब हुआ। उसकी आँखों में सुरूर था। सिंगल मॉल्ट का या कि असीमा के शब्दों का।

" असीमा तुम भी तो कविताएं लिखती हो? अपना लिखा कुछ सुनाओ।

“ कुछ ख़ास नहीं सर, बस यूं ही कुछ फिलॉसफी!” मुझे लगा सुलह हो गई।

" फिलॉसफी की तो तुम लोगों की उम्र नहीं। तुम लोग तो बच्चे हो . इस उम्र में तो हमने किसी की गोरी पीठ पर कविता लिखी थी, घर जाकर उसने किसी तरह आईने में पढ़ी।" लड़कों का शोर गूंजा।

"क्या बात है सर! कौन थी वह लकी गर्ल?" उसे चढ़ गई है..... वह जान गया था। उसने आखिरी पैग छोड़ दिया आधा ही और उठ गया।

"डिनर सर?"

" आयम डन।" सॉरी मैंने तुम लोगों की शाम खराब की।“ कह कर उसने असीमा को ताका और मुड़ कर चला गया। असीमा ने उसके ताकने को जानबूझ कर इग्नोर किया। सच ही में अजीब है यह बंदा। इतनी सुंदर, ज़हीन, डॉक्टर लड़की तुमको भाव दे रही है, तुम हो के....ब्लो हॉट - ब्लो कोल्ड ( कभी नरम कभी गरम) मैं असीमा की जगह होती तो दो साल तक पीछे नहीं भागती। हह, मुझे क्या?"

ख़्यालों की पटरियों पर मैंने उस दिन की बातों की रेल ही चला डाली थी कि तभी रचना मैम के पास मैट ऑफिस से मैसेज आया, क्लाउडिंग डिफ्यूज़ (बादल बिखर ) नहीं हो रही है, बल्कि घनी हो सकती है, अगले चालीस मिनटों में आसमान में उड़ रहे दोनों जहाज़ों को सुरक्षित नीचे उतरने के संदेश दे दिए जाएं। मेरे साथी आर टी पर उससे संपर्क करते तभी अचानक आर टी पर उसकी ही आवाज़ गूंजी। वह कह रहा था – “ जूलियट वन ओ वन कॉलिंग गोल्डफिश।“ उसने रेडियो ट्रांसमीटर की सांकेतिक भाषा में संपर्क करना चाहा.

‘ जूलियट वन ओ वन गो अहेड “ " रॉजर... आयम एनकाउंटरिंग आई एम सी। एंटरिंग इन क्लाउड। हैंडिंग 090 क्लाईम्बिंग टू नाईन ज़ीरो। " (मेरा जहाज़ इंस्ट्रुमेंटल मैट कंडीशन में है, सामने बादल हैं, 090 डिग्री पर मैं दो हजार नौ सौ फीट पर ऊपर जा रहा हूँ. )

“ जूलियट वन ओ वन, गोल्डफिश....आय'म गेटिंग यू, करेक्ट योर हैडिंग। क्लाईम्ब एंड मैंटेन हैडिंग एट लेवल 350 एंड रिपोर्ट लेवलिंग आउट” ( हाँ आपको सुन पा रही हूँ, जहाज का रुख़ सही करें और तीन हज़ार पाँच सौ की ऊँचाई तक जाएं. उस स्तर पर जाकर रिपोर्ट करें. )

कुछ देर सन्नाटा रहा, मगर रडार पर जो दिख रहा था, वह ठीक नहीं था. रचना मैम मेरे ही पास थीं. " जूलियट वन ओ वन यू आर अपीयरिंग इनवर्टेड, गो टू इंस्ट्रुमेंट। गो टू इंस्ट्रुमेंट !” ( जूलियट एक शून्य एक आपने तो जहाज पलट दिया है, आप उपकरणों की मदद लें)

“ ओ ह नो! वो तो इनवर्टेड... अब तो इजेक्शन भी मुश्किल।“

मैं घबरा गई और मेरी चीख सी निकल गई। जब वह बोला .....” जूलियट वन ओ वन रिपोर्टिंग क्लियरिंग क्लाउड़्स आयम सीईंग स्टार्स ....” ( मैं बादलों से बाहर हूँ और सामने सितारे दिख रहे हैं.) मैं बर्फ में बदल गई। स्टार्स? और राडार पर उसके जहाज का कोई संकेत नहीं था। अफरातफरी की शुरुआत हो चुकी थी।

“रचना मैम!” हम दोनों मुंह बाए सफेद चेहरे लिए एक दूसरे को देख रहीं थीं। आर टी पर रचना मैम चीखीं, “ मिकी, गो इंस्ट्रुमेंटल। रिवर्ट कर लेफ्ट ले कर हैड टुवार्ड्स अप। " ( मिकी उपकरणों की सहायता लो. या सीधे होकर, बायीं तरफ़ घूम कर ऊपर जाओ.)

“मे डे – मेडे !* ओ..... फक इट. आयम फिनिश्ड! “

वह तेजी से नीचे आते हुए जहाज़ को गाली दे रहा था - उसके आखिरी शब्द जो मैंने सुने – “मम्मी खत्म सब. हे एमी, यस्स ! यस्स! “

उसके बाद आर टी कनेक्शन खो गया! ए टी सी में जितने लोग थे टावर में चले आए. मेरे साथ सभी के चेहरों के रंग फीके पड़ गए। हम सब जानते थे उसे स्पेसियल डिसऑरिएंटेशन ( जहाज उड़ाते हुए होने वाला दिशाभ्रम) हुआ है। वह आसमान में नहीं चढ़ रहा था, आकाश समझ कर उसने जिस दिशा में थ्रोटल दबाया वह तो जमीन थी। जिनको वह सितारे समझा वे ज़मीन की रोशनियाँ थीं। मेरे हाथों से पसीने छूट गए। मैंने अपनी मुट्ठियों को ऐसे भींचा कि मेरे ही नाखून उनमें गड़ गए। मेरा मन किया मैं सिर धुनुं , नहीं, मुझे हिस्टारिकल नहीं होना चाहिए। मैं राडार स्क्रीन पर से गायब बिंदू की खाली जगह में आँख गढ़ा कर चेतना - शून्य सी हो गई। नीचे रनवे से एंबुलेंसों के सायरनों की आवाजें आ रही थीं। मैं ने आकाश में देखा तारे स्तब्ध नीचे को ताक रहे थे।

देखने वालों ने देखा होगा जहाज एक पलटी दायीं तरफ़ लेकर तीर की तरह ज़मीन की तरफ बढ़ा कुछ ही पलों में वह ज़मीन में धंसा होगा और आग के बगूले में बदल गया होगा। अब उसकी आवाज अंतरिक्ष में बिखर गई होगी। राडार डाटा बता रहा है, वह आकाश में 2900 फीट तक चढा, कुछ देर की उड़ान के बाद वह बादलों में घिर गया. बादलों से निकल आना उसके बांए हाथ का खेल था मगर उसे दिशा भ्रम हुआ फिर बाँई की जगह दाई तरफ घुमाव लेकर वह बादलों से निकल कर धरती की दिशा में मुड़ गया। और अब सब खत्म! मैंने सर थामा और वहीं ज़मीन पर बैठ गई। दूसरा जहाज सुरक्षित उतर गया था। मेरा मस्तिष्क सुन्न होकर भी, क्या क्या सोच रहा था। उसकी मौत, असीमा, उसकी आखिरी चीख़ें, कोर्ट ऑफ इनक्वायरी में मुझे क्या कहना होगा? क्या पता वह इजेक्ट कर गया हो। काश...... वो रात बीती नहीं, बीती ही नहीं, मन में कालिख बन कर जम गई। जमी रहेगी।

अगले दिन पता चला, तेज़ स्पीड के कारण, वह इजेक्शन नहीं कर सका था, वह संभव भी नहीं था हमारे स्टेशन से तीस किलोमीटर की दूरी पर जहाज़ मरूस्थल की धरती में आधा गड़ कर जल गया था। उसका शव राख हो गया था।

तुरंत ही कोर्ट ऑफ इनक्वायरी हुई। अगले तीन दिन अजीब हाल में गुज़रे। मैं फूट फूट कर रोना चाहती थी, मगर दिन में मैं प्रिसाइडिंग अफसर और कोर्ट ऑफ इनक्वायरी के सदस्यों के सामने बैठी होती थी। रात को बुत बनी असीमा के सामने। हांलांकि मुझे कुछ अपने पक्ष में नहीं कहना था, सब कुछ रिकॉर्डेड था। रिपोर्ट्स आईं, न बादलों की ग़लती थी, न जहाज़ में ख़राबी थी। बादलों से निकल जहाज इनवर्ट करते हुए उसे स्पेसियल डिसऑरिएंटेशन हुआ था। आकाश में एक से दिखते दृश्य के कारण होने वाला दिशाभ्रम. वजह थी - वेस्टीब्यूलर इल्यूज़न.*

जिस दिन यह रिपॉर्ट पढ़ी जा रही थी, रिकॉर्डिंग्स सामने लाई जानी थीं मैंने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लिए आए एक बहुत सीनियर अफसर को हांफते हुए दूसरे से कहते सुना . “ हर पायलट एक न एक दिन दिशा भ्रम का शिकार होता है। गति और एक सा दृश्य मिलकर उसे भ्रम देते हैं कि हॉराईज़न उलट दिशा में है. जो इस में घुस कर इस से बच जाते हैं वो लकी बास्टर्ड्स होते हैं, जैसे कि मैं. “मुझे लेह में महसूस हुआ था, जब मैं यंग था... लिटरली मुझे लगा था कि मैं जेट के पंखों पर बैठा खुद को कॉकपिट में जहाज उड़ाता देख रहा हूं. मैं लगभग इसी की तरह डाईव की हालत में इनवर्ट हो गया था जबकि मैं फील कर रहा था कि मैं ऊपर चढ़ रहा हूँ. मैंने तुरंत इंस्ट्रुमेंट का सहारा लिया जहाज को बांयी तरफ़ घुमा कर लेवल में लाया और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर जब मैं सीधा हो गया तब रेडियो पर बोला ....मैं उसी पर चढ़ गया “ तुमने साफ़ संकेत नहीं दिये. आई थोट आई वाज़ टू द लेफ़्ट “ वो सर सर कहता रहा मैं लैंड भी कर गया. उसके बाद मैंने मैडिकल करवाया और ग्राउंड पर आ गया.”

अगले सेशन में ब्रीफिंग रूम में रिकॉर्डिंग्स सुनी गईं। असीमा मेरे पास ही बैठी थी, वैसे ही चुप, जैसी कि मेरी आशंका सही थी उसके आखिरी शब्दों की रिकॉर्डिंग्स भी...सब सन्न थे जब उसके आखिरी बोल गूँजे -

“ ओ हैल मेडे मेडे ..... फक इट...... आयम फिनिश्ड! एम्मी! यस्स ... गुडबाय मम्मी “

असीमा का बुत हिला, उसने मेरी हथेलियों को लगभग अपनी हथेलियों से पीस दिया। मुझमें ताब नहीं थी न उसकी तरफ देखने की, न उससे हाथ छुड़ाने की। बतौर प्रोफेशनल सबके सामने रोने की इजाज़त किसी को नहीं थी। क्रेशेज़ पार्ट ऑफ प्रोफेशन हैं।

उस रात हम दोनों रात को एक बजे एक – दूसरे से लिपटे जग रहे थे. अपने में डूबी थी असीमा. हम दोनों ने ही तीन दिन से न ठीक से कुछ खाया था, न ही पूरी नींद ली थी। टुकड़ों में नींद और टुकड़ों में खाना, टुकड़ों ही में एक दूसरे से छिप कर आंसू। मैं उठी और कॉफी बना लाई।

“मैंने सायरन सुने थे. मुझे लग तरहा था कुछ बड़ा घट रहा है. मैंने उस पल अपनी घड़ी देखी थी. मुझे ख्याल आया था कि मिकी सर को टेक ऑफ किये बीस मिनट बीते हैं. मैं सोचती ही रह गई कि मुझे वहाँ जाना चाहिए क्या? क्योंकि उस वक्त मेरी ड्यूटी खत्म होकर चुकी थी. मैं यहाँ कमरे में थी. नेहा, उस शाम उसका प्री फ्लाईट मैडिकल मैंने ही किया था। मुझसे कुछ छूटा या उसने कुछ छिपा लिया!? वेस्टीब्यूलर सेंसेज़.....! “

“ पता नहीं, मगर नाईट फ्लायिंग के लिए वो हमेशा उतावले रहते थे। उस दिन उसकी इसी बात पर मेरे सामने सीनियर मैट ऑफिसर से बहस हो गई थी। उन्होंने कहा था कि “ मिकी, इतनी भी ऊपर जाने की उतावली में मत रहो। मौसम की तो सुननी पड़ेगी। चालीस मिनट बाद क्लियरेंस दे दूंगा।“ यह बात मुझे अजीब लगी थी. वो पलट कर बोले

“आसमान मेरे लिए घर है सर। इससे बुरे मौसम में मिग्स उड़ाए हैं। मेरे नाईन हंडरेड नाईंटी नाईन आवर्स पूरे होचुके हैं, आज स्पेशल दिन है हज़ार होने दें। विज़िबिलिटी की कोई प्रॉब्लम तो है नहीं। जरा से बादल हैं.....छँट जाएंगे।“

“हां, वह कहता था मुझे बाज़ की तरह आसमान से प्रेम है, चाहे वह नीला हो, बादलों से भरा सलेटी हो कि गहरा काला, सितारों से भरा तो तो सबसे बढ़िया। मगर अब? अब जब भी मैं किसी बाज़ को नाक की सीध में उतरता देखूंगी वह याद आएगा।“

वह कॉफी के मग को घूरते हुए बोली।

“तूने मुझे बताया क्यों नहीं कि वह आखिरी पलों में वह यह सब बोला था. “

“ असीमा, उन पलों में क्या गुज़र रहा था, क्या कहूं? हाँ मैंने ही उसके आखिरी शब्द सुने, मगर सुन कर भी नहीं सुना कुछ... “

“ उसने यस्स कहा था। एम्मी यस्स!”

“ हाँ, आयम्म फिनिश्ड यस्स ..... यही तो?”

“ नेहा! वह एम्मी यस्स बोला।“ असीमा की आँखें डबडबा रही थीं।

“ एम्मी मैं हूं। मैंने कितना इंतजार किया था इस यस्स का। लेकिन नेहा, यह यस्स.... नहीं ही कहता तो बेहतर था। अब मैं आगे किस बात का इंतजार करूंगी? “ कह कर पहली बार असीमा फूट पड़ी हिचकियों में, जैसे कोई बरसाती नदी पत्थरों से फूट कर बह निकले।

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* वेस्टीब्यूलर इल्यूज़न – गति और दिशा को कान के भीतरी हिस्से ऑटोलिथ से महसूस करना. यह कई बार पायलट को गलत निर्देश दे देता है. इनर्शिया की वजह से भीतरी कान का यह हिस्सा एल्टीट्यूड में महीन और एकसार गति के कारण हो तरहे बदलाव को महूस नहीं कर पाता, बल्कि भ्रामक अनुभव होने लगते हैं. और दिशाभ्रम का शिकार हो जाता है पायलट.

* मे डे ! मे डे ! –आपात स्थिति में पुकारा जाने वाला, वैश्विक तौर पर मान्य संकेत है. इसे 1923 में लंदन एयरपोर्ट पर एक एयर ट्रैफिक कंट्रोलर और रेडियो ऑफिसर ने ही इजाद किया था क्योंकि यह एक फ्रांसीसी शब्द ‘ मेदेयर’ जैसा है जिसक अर्थ है – हैल्प मी’

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