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खरपतवार

खरपतवार

मनीषा कुलश्रेष्ठ

उसकी यादों में कुछ दहशतें और कुछ वहशतें अब भी बाकी हैं. सप्ताह के बाकी दिन वह फाइलों, टेलीफोनों, लोगों से मुलाकातों के बीच वह खुद पर व्यस्तता के छिलके चढा लेता है. अवकाश के दिन ये छिलके उतर जाते हैं और वह अपनी आत्मा के आगे नंगा खडा होता है. स्थिति को बदल न पाने में जब वह खुद को नपुंसक महसूस करता है तो चल पडता है शहर से बाहर की ओरसमुद्र और क्षितिज की तरफशहर पीछे छोड क़र, हल्की ऊंचाई की तरफ बसे एक उपनगर की तरफ. जहां से कुछ किलोमीटर बाद जमीन खत्म हो जाती है और समुद्र शुरू. जमीन के आखिरी छोर से जरा पहले, एक चढाई पर नेवी बेस का ऑफिसर मैस बना है. जिसे एक सडक़ गले में बांहें - सी डाले घेरे रहती है. सडक़ पर एक तरफ गुलमोहर के पेड हैं, दूसरी तरफ रैलिंग है. जहां नीचे, बहुत नीचे समुद्र है. बहुत सी चट्टानों से घिरा और उन पर सर पटकता समुद्र. यह गुलमोहर वाली सडक़ एक जगह, हाथ की रेखाओं की तरह, अचानक कट कर बहुत कुछ बदल देती है. लगभगसनासाफ सुथरा परिदृश्य बदल कर मलिनता से बोझिल हो जाता है. सडक़ का यह कटा हिस्सा नीचे को उतर जाता है.

बारिश के पानी से भरे गङ्ढे रह कदम पर थे.वह उन्हें फलांगता रहा. उसकी स्मृतियों में, उसके साथ ये गङ्ढे फलांगने लगी एक लडक़ी. लडक़ी जो खुद को चट्टानें फोड क़र निकल आई घास से ज्यादा नहीं समझती थी, मगर उसका जीवित और लडक़ी होना उसकी तमाम निष्क्रियताओं पर से परतें उघाड ज़ाता था, उसे सांस लेनी ही होती थी. उसे हिलना - डुलना भी होता था. रंगबिरंगे कपड़ों क़े टुकडों को जोड क़र बनाए गए झोले को लटका कर अकेले घूमने वाली लडक़ी की याद के साथ, आस - पास का परिवेश, आवाजें, सन्नाटे और हवा में डोलती तेजाबी महक अपने आप आ - आकर उससे गले मिलने लगे थे. वह 'गारबेज डिस्पोजल प्लान्ट' के करीब पहुंच गया था.

एक निश्चित ढलान पर आकर सडक़ पूरी तरह गंदे पानी से भर गई थी और मैदान शुरू हो गया था. नाक ने, तेजाबी बदबू में अस्पताल की शामिल होतीखून, मवाद और मल की महक को महसूस किया. चेतना लगभग सुन्न थी. इस बार उसने पैन्ट के पांयचे भी नहीं उठाए. अस्पताल का पिछवाडा आ गया था. खून में लिथडी पट्टियां, सीरिंज, सैलाइन और ग्लूकोज क़ी प्लास्टिक की बोतलें, रबर के गन्दले दस्तानेक्या नहीं पानी में बह कर आ रहा था और पैरों से टकरा रहा था. मगर वह बढता रहा. वह मैदान के बीच आ गया, जहां सर्वेन्ट क्वार्टरनुमा छोटे - छोटे घर थे. घर क्या थे, जर्जर कंकालों की तरह खडे क़ाई लगे मकानों के ढांचे भर थे. कुछ में दरवाजे थे, कुछ में टीन का पतरा लगा कर सुरक्षा और निजता को किसी तरह बचा लेने का दिखावटी इंतजाम किया हुआ था. वह कोने के एक घर के पास घिसटता हुआ जा खडा हुआ. उसके पांयचों से पानी टपक रहा था. उसे हैरानी नहीं हुई कि उस घर का ताला टूटा हुआ था. पलंग, कुर्सी, छोटा काला - सफेद टीवी, रसोई का सब सामान नदारद था. फोन तारों से उखाड क़र चुरा लिया गया था. रसोई में एक टूटा फ्रायिंगपैन और कांच की प्लेट के टुकडे पडे थे. कुत्ते का एल्युमीनियम का कटोरा पिचका हुआ पडा था. कमरे में पुरानी फोटो जमीन पर पडी थीं, फ्रेम गायब थे. स्ट्रेप टूटी काली ब्रा बाथरूम की चौखट पर पडी थी और एक लाल सैण्डल, अधूरी छूटी हुईअकेली.

उसने सैण्डिल को उठा लिया औरअब वह अपने अतीत की शरण में था.

स्मृतियों से बाहर आकर नीचे नजर दौडाने पर एक पूरा लैण्डस्केप नजर आता है. जहां रेगिस्तान में बदलता समुद्र है. एक आकस्मिक मोड है. तारीखें दोहराने में उसे तकलीफ होती है, इसलिए वह लम्बे अन्तरालों बाद स्मृतियों को धुंधली छवियों की तरह देखता है.

वह मानसूनी दिन जब वह उस कॉलोनी में पहली बार अचानक ही जा पहुंचा था. नहीं पहुंचता तो जान ही नहीं पाता कि उसके शहर से पन्द्रह किलोमीटर आगे क्षितिज की तरफ बढें तो, ऐसी भी कोई कॉलोनी है या उसके शहर के मुहाने पर इतना बडा 'गारबेज डिस्पोज़ल प्लान्ट' है.उस दिन वह अपने क्लाइन्ट के स्पाइस गार्डन की तरफ जा रहा था.सीधे जाने की जगहपहले ही चौराहे पर गलत मोड मुड ग़या. गलत सडक़ पर चलते हुए जब वह इस ढलान पर उतरा था तो हैरान रह गया था. सीली हुई नमकीन हवा के साथ आकाश में समुद्री पक्षी उड रहे थे. समुद्र की आवाज भी आ रही थी मगर समुद्र कहीं दिखाई नहीं देता था. उसे जरा उम्मीद न थी कि वह कचरे के इस सौ फीट ऊंचे और लम्बे चौडे टापू के पीछे हहरा रहा था. गोल घूम कर नीचे को जाती सडक़ के एक तरफ कचरे का टापू था और दूसरी तरफ सैंकड़ों इमारतें. गंधाते हुए कचरे के ढेर के एक दम करीब, अजीब - सी बस्ती, सडक़ से लगी हुई चार-चार माले की मटमैली और काई जमी कई इमारतें. किसी ने बताया था पहले यहां झुग्गियां थीं. फिर यह कॉलोनी बनाई गई. बिना परदों वाली खिडक़ियों में से उन घरों में रहती निम्नमध्यमवर्गीय जिन्दगियों की ऊब और उदासी झांक जाती थी. उन घरों पर पड क़र धूप भी अनमनी लगती थी, पीली और मटमैली, जिससे वो इमारतें और भी दीन-हीन लगती थीं. कई घरों की खिडक़ियां उधड क़र हवा में झूल रही थीं.

उस दिन पानी भरे इसी ढलान में फंस कर उसकी कार खराब हो गयी थी. वह कार से बाहर निकला तो समुद्र के किनारे गंदगी का यह संपूर्ण साम्राज्य उसके लिए नरक के काल्पनिक दृश्य जैसा था. उसे आश्चर्य हुआ कि यहां लोग रहते भी हैं. यहां समुद्र भी है, कचरे के टापू के उस पार. वह गन्दे पानी में फंसी गाडी छोड क़र अस्पताल के पिछवाडे वाले मैदान की तरफ बढा, शायद कहीं कोई गैराज वाला मिल जाए. बहुत देर पैदल चलते - चलते उसे अंतहीन मटमैली इमारतों के गुंजल में कहीं कुछ नहीं मिला. सडक़ पर चलते उदासीन से इक्का - दुक्का लोगों ने अनभिज्ञता जाहिर कर दी. एक पूरा गोल चक्कर काट कर वह अस्पताल की इमारत के सामने पहुंचा. वहां मुख्य सडक़ के दूसरी तरफ एक गली में कुछ कच्ची - पक्की सी दुकानों की छोटी सी कतार थी. पहली दुकान एक देसी शराब की दुकान थी. दुकान क्या एक कोठरी थी, जिसमें दो बेंचें पडीं थीं. किसी शीतलपेय की कंपनी का मुफ्त में दिया गया फ्रिज था जिसमें से शीतल पेय की बोतलों के साथ - साथ कुछ बियर की बोतलें झांक रही थीं.

''क्या लेंगे साब?'' भीतर से एक तहमद वाला काला आदमी पलंग पर लेटे लेटे बोला था.

'' बस पानी दे दो.''

'' दुकान का पानी साफ नहीं है साबमिनरल वाटर चलेगा? बाकि सॉफ्ट ड्रिंक है, दारू है.बियर, फेनीलोकल वाइन'' वह आदमी तहमद संभाले उठ कर बाहर आ गया था.

'' दे दो यहां आस - पास कार का कोई गैराज होगा? वहां नीचे बारिश के पानी में फंस कर मेरी कार बन्द हो गयी है.''

'' शहर की तरफहोयेगा तो होयेगाइधर स्कूटर वाला मिस्त्री है.''

'' फोन?''

'' पहले अस्पताल के उधर एस टी डी बूथ था. अभी कुछ दिन से दुकान वाला भाग गया अब दो किलोमीटर आगे एक रेस्टोरेन्ट हैवहां''

अब तक वह दृश्य में आ गयी थी. एक बेंच पर कोने में सीपियों और घोंघों को टोकरी में से एक कागज़ क़ी पुडिया में कुछ छांट कर डालती हुई.हैरतअंगेज था उसका वहां होना. पहले वह झोला दृश्य में आया, फिर उसके भूरे बिखरे, बेतरतीब बाल, झुकी पीठ, फिर उसकी लम्बी घेरदार नीली स्कर्ट फिर लम्बे, बेहद पतले पैर और अधटूटी चप्पलें. चेहरा कहीं नहीं था. बालों के घने गुच्छे में से एक आवाज आई

'' मैं नेवी में गाडी ठीक करने वाले मैकेनिक का घर बता सकती हूं. मेरा बिल चुका दो तो तुम मेरा फोन भी इस्तेमाल कर सकते हो.'' वह अंग्रेजी बोल रही थी.उसका उच्चारण भी साफ था.

''एक बियर. एक फेनी का बोतल. दो लिम्का. और ये सीफूड का साब दस रूपया.आपका मामला तो फिक्स हो गया साब.'' दुकान वाला मोटा और काला आदमी अश्लीलता से बोला था.

'' चलो.'' वह जल्दी में था.

बालों में से एक चेहरा निकला, गोरी मगर पीली त्वचा से मढा, गाल की ऊंची हड्डियों वाला तिकोना चेहरा.

लम्बी घास के बीच ऊबड - ख़ाबड पगडण्डी पर वह उसके पीछे चल पडा था.उसने गौर किया लडक़ी की चाल अजीब है. पतले - पतले पैर चलते में धनुष से बन जाते हैं . वह उन्हें चौडे क़रके चलती है. बतख की तरह.थैला उसकी अजीब - सी शख्सियत को और अजीब कर देता है.

वह इस दुनिया से अपना तादात्म्य ही नहीं बिठा पा रहा था. वह नींद में है और अजीब सा सपना देख रहा है या जागा हुआ है? सरकारी अस्पताल के पीछे बने सर्वेन्ट क्वाटरों में से एक में वो घुसे. कमरा बहुत छोटा था. अंधेरा और सीलन भरा. बल्ब जलाने पर लुटा - पिटा उजाला हुआ. बाहर तेज रोशनी से अन्दर आकर अंधेरे से अभ्यस्त होने की कोशिश में वह बस यही देख पाया कि काई लगी दीवार पर टंगी यीशू की लकडी क़ी मूर्ति कील पर से खिसक कर टेढी हो गयी थी. वह न जाने कहां गुम हो गयी थी. उसे शक हुआ.

'' वहां बिस्तर के पास फोन है.'' अंधेरे में आवाज ग़ूंजी, किसी करीबी कोने से. बर्तनों की आवाज से पता चला कि वह रसोई में है. अब वह हल्का - हल्का देख पा रहा था. काला और उंगलियों से डायल करने वाला फोन वहां तिपाई पर रखा था. उसने जल्दी - जल्दी तीन फोन किए.

वह बियर ढाल लाई थी, चौडे मगों में. बियर गर्म थी इसलिए कसैली भी लग रही थी, पर उसे अच्छा लग रहा था पीना. बियर खत्म होने पर लिम्का और फेनी का कॉकटेल चला. दो मकडियों की तरह एक खामोशी के जाल में फंसे बैठे दोनों पीते रहे थे.

कुछ देर बाद लडक़ी उसे मिस्त्री के घर के बाहर तक पहुंचा आई. उसने मिस्त्री को गाडी तक पहुंचाया, चाभी पकडाई. वह बोनट खोल कर देखने लगा.

''कितनी देर लगेगी?''

''डेढ - दो घन्टा लगेगा. टो करके गैराज ले जाना पडेग़ा.''

मिस्त्री के साथ बने रहने की जगह, गाडी ठीक होते ही लडक़ी के घर लाने के लिए कह कर वह वहीं लौट आया. लडक़ी अपना वादा निभा चुकी थी. वह फिर क्यों लौट आया था?

शायद वह अजीब लडक़ी उसमें दिलचस्पी जगा चुकी थी. पता नहींक्यों? तब कुछ सोचा नहीं. सोचा भी हो तो याद नहीं रहा. लेकिन अब लगता है कहीं भीतर, कुछ दबा - कुचला उठ कर सांस लेना चाहता था.

वह खुद को रोक पाता उससे पहले वह दरवाजा धकिया चुका था.दरवाजा बन्द था मगर कुण्डी नहीं लगी थी सो हल्के धक्के में खुल गया. लडक़ी की आंखें झपक गयीं थीं, वह बिस्तर पर अधलेटी थी. उसका एक हाथ बच्चे की तरह दीवार से टिका था, जैसे नींद की वायवीय और अवास्तविक दुनिया में भी वह हाथ टिका कर ठोस दुनिया के होने के अहसास को न भूलना चाहती हो. उसने बिस्तर के बगल की दीवार पर लगे यीशू की मूर्ति को उंगली की हल्की छुअन से सीधा किया. बिस्तर के सिरहाने एक अखबार तहाया हुआ रखा था. उसमें क्रॉसवर्ड हल की हुई थी.उसे अजीब लगा. यह इस हाशिये की दुनिया और उस सभ्रान्त संसार के बीच की कोई खोई हुई कडी है क्या?

उसके जहन पर धुंध छा रही थी_ दिन भर का भटकाव, थकानगंदगी के साम्राज्य के बीचकचरे के टापू पर उसके भीतर बहुत से कीडे रेंग रहे थे. काले - भूरे. काली लिसलिसी धारी अपने पीछे छोडते वह उसके बिस्तर के किनारे बैठ गया. उसे गौर से देखने लगा. नजरें, पतली लेजिक़ किरणों की तरह त्वचा भेदने लगीं तो लडक़ी जाग गई. जागते ही चीखने को आतुर हुई कि उसने उसका मुंह बन्द कर दिया. अंधेरे में लडक़ी उसे आंखें फाड क़र पहचानने की कोशिश की. पहचानने में देर लगी. पहचानते ही उसका अप्रत्याशित आतंक कुछ कम हुआ. अब उसके हाथों की गिरफ्त में लडक़ी शांत थी. लडक़ी के चेहरे की त्वचा इतनी पतली थी कि गालों पर उंगलियों के निशान उभर आए थे.वह दोनों कुछ पल ऐसे ही रहे. लडक़ी निढाल थी मगर वह आक्रामक होना चाहता था.लडक़ी कोई विरोध नहीं कर रही थी. लडक़ी का चेहरा उसकी दाढी में धंसा था और उसके आभिजात्य, स्वास्थ्य, शक्ति और बुध्दिमत्ता की गंध लडक़ी के नथुनों में घुस रही थी. यह उस दूसरी दुनिया की महक थी जिसका हिस्सा होने की कोई सोयी हुई कामना उसके लहू में छिप कर बह रही थी. तभी एक भूरा कुत्ता घर में घुसा और उन दोनों को गुत्थम गुत्था देख जरा ठिठका. बचपन से ही कुत्ते उसमें भय जगाते हैं. वह ढीला पड ग़या.

'' यह ज़ोरो है. बूढा है बीमार भी.'' वह फुसफुसाई. कुत्ता रसोई में जाकर अपने कटोरे में रखी हड्डी चबाने लगा.

लडक़ी उठ कर कपडे पहनते हुए गाल पर लगी खरोंच सहलाती रही. वह अपने जूते पहन कर तेजी से दरवाजे से निकल गया. लडक़ी ने देखा वह टेबल पर रूपए छोड ग़या था.बहुत सारे. हाथ में लेकर वह उन्हें उदासीनता से देखती रही.

घर पहुंचने पर वह अपराधबोध में घिरने से पहले नींद की गोली खाकर सो जाना चाहता था मगर मेज पर उसे एक नोट मिला.

'' मैं लैला और पिन्टो की एनीवर्सरी पार्टी में जा रही हूं. तैयार होकर वहीं पहुंचो.'' बिस्तर पर हैलेना के उतारे ऑफिस के कपडे पडे थे. फर्श पर जूते. बिस्तर के पास वाली मेज पर कुछ फाइलें थीं. ड्रेसिंग टेबल अस्तव्यस्त थी. उसके ब्रश में बाल फंसे थे.

वह खीज गया. वह कहीं नहीं जाना चाहता था. वह इस मानसिक अवस्था में नहीं था कि किसी पार्टी के शोर को सह सके मगर वह जानता था उसका न जाना हैलेना को पसंद नहीं आऐगा. वह उसे सामाजिक तौर पर 'घरघुस्सू', 'सोशली डल' कहेगी. पिन्टो उसका दोस्त है और फैमिली डॉक्टर भी

घर लौटते ही वह नहाने चली गई थी. नाराज थी. बडबडा रही थी.

''तुम सनकी पिता और आत्मकेन्द्रित मां की संतान हो. मैं ने सोचा कि मैं तुम्हारे भीतर बाहर सब ठीक कर लूंगी. मैं ने तुम्हारे हर आराम का ख्याल रखा अपनी थका देने वाली नौकरी के बावजूद. मैं असफल रही. तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता.'' वह नींद की गोली के असर में भी कुछ कुछ सुन पा रहा था.

वह अजीब सी जगह, सिहरा कर जगा देने वाले सपने की तरह नींद के फलक पर पसर गयी थी जहां आज वह गलती से पहुंच गया था. वह जागता हुआ सा - सोया.

अगले दिन दोपहर में वह फिरवहां पहुंचा. शहर के बाहर हाशिये पर लटकी हुई बस्ती में, उसके घर. वहां ताला लगा था. मैदान के एक छोर पर उगी लम्बी घास के पीछे वह कार रोक कर इंतजार करता रहा. एक घन्टे बाद वह गुजरी वहां से. हांफती हुई पसीने में डूबी हाथ में थैला लिए बिखरे बाल, सूखे होंठ. बतख जैसी चाल. वह कार देख कर ठिठकी. उसने खिडक़ी में झांका वही था. उसने होंठ भींच लिए और हाथों तक लटक आया भारी थैला फिर झटके से कंधे पर टांग लिया और उसे उपेक्षित कर आगे बढ ग़यी. वह झटके से कार का दरवाज़ा खोल कर उतरा. उसके दुबले कंधे थाम कर बोला _

'' सुनो. कल मैं नशे में था.''

वह चुप रह कर होंठ चबाती रही. सूखी पपडियां दांतों से नोचती रही इतना कि उनसे हल्का खून छलकने को हो आया था.

'' मुझे जाने दो.'' लडक़ी ने कंधे झटकाए.उसने उसे अपने पास खींच लिया.

'' जाने दो. थेले में रखी बर्फ में रखी मछलियां खराब हो जाऐंगी.'' लडक़ी कर्कश आवाज में चीखी, लगभग विक्षिप्तों की तरह. उसने झपट कर उसका थैला छीन लिया और उसके घर की तरफ जल्दी - जल्दी बढने लगा. पीछे आती लडक़ी की हांफती सांसे उसे सुनाई दे रही थीं.

कमरे में आज यीशू की मूर्ति टेढी नहीं थी. इस बार कमरा साफ और तरतीबवार था. कुत्ता घर में ही था. थका हुआपस्त लेटा. उसने उसे मछली दी. रसोई में सामान रखा. बाथरूम की तरफ बढी, क़ुछ देर बाद फ्लश की आवाज आई. उसे खुद के यहां होने पर उतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना पहले हो रहा था, रास्ते में इधर आते हुए. खुद के सामने उसने कोई तर्क भी नहीं रखा.

वह टेबल तक गया और वहां एक कटोरे में रखे शोरबे वाले मीट बॉल्सउठा कर खाने लगा. लडक़ी बाथरूम से बाहर खडी हुई उसे हैरानी से देखने लगी.

'' भूखे हो ?''

''''

''इसके साथ नूडल्स उबाल देती हूं.''

वो दोनों चुपचाप मेज पर आमने - सामने बैठे खाते रहे. उसके गाल की पतली -पीली त्वचा पर लगी खरोंच पर गहरी भूरी पपडी ज़म गई थी. वह शर्मिन्दा था. उसने देखा खाते हुए भी वह हल्का - हल्का हांफ रही है. वह टेबल से उठ कर बिस्तर पर आ गिरी थी.

''क्या तुम बीमार हो?''

'' मुझे अस्थमा है.''

'' बताया नहीं थाकल'' ग्लानि में वह शब्द चबाने लगा.

'' ''

''मैं परेशान रहा बाद में. फेनी पहले कभी नहीं पी थी.तेज होती है.''

'' मैं नहीं जानती कि लोग वह क्यों करते हैंजो करते हैं फिर फेनी को ब्लेम करते हैं.''

टेढे और भिंचे होंठों के साथ वह कडवी मुस्कान मुस्कुराई. वह बिस्तर पर झुक गया. पहले उसे भूरे बिखरे बालों को चूमा. फिर होंठों को. उमस भरी गर्मी के बावजूद उसका चेहरा ठण्डा था. निस्पंद भी. वह सधी हुई लेटी रही. लडक़ी ने अपने दोनों हाथ पीठ के नीचे फंसा रखे थे. उसके कपड़ों में से मछली, पसीने और सस्ते लैवेन्डर पाउडर की खट्टी और अटपटी महक आ रही थी. उसने उसके हाथ पीठ के नीचे से निकाले और अपने हाथों से सहलाने लगा. उसके हाथों की खाल मेंढक के पेट जैसी चिकनी थी.

उसने महसूस किया,उसकी देह चरम पर आकर खिंचे तार की तरह टूटती है. उससे पहले और बाद वह निस्पंद रहती है. ऑर्गाज्म के बाद उसकी आंखों से निशब्द आंसुओं के रेले बहते हैं और होंठ हल्का - हल्का मुस्कुराते हैं. उसे अजीब लगा. उसकी नजर बिस्तर के पास पडी तिपाई पर गई. एक मांसल औरत की काली - सफेद तस्वीर थी वहां. उसके चेहरे से कोई खास साम्य नहीं था सिवा होंठों के.

'' कौन है ?''

'' मम्मी. अब नहीं हैं.''

'' ओह.''

'' फादर ?''

'' मैं ने उसे नहीं देखाइस अस्पताल का डॉक्टर था. मम्मी नर्स. कहता था, 'मैं नहीं चाहताकोई अवैध बच्चा, इसे गिरवा दो.' कह कर उसने गहरी सांस ली. बेहद ठण्डी.

'' क्या हुआ ?'' उसने उसका विद्रूपता से बिगड रहा चेहरा देख कर पूछा.''और और कोई नहीं है ?'' बात बदलना चाहा उसने.

'' कोई नहीं.''

''तुम काम क्या करती हो ?'' वह कपडे पहनते हुए पूछने लगा.उत्तर में वह च्यूईंगम चबाते हुए सस्ता - सा मुस्कुराई. उसे उलटी आने को हुई. वह जल्दी ही बाहर निकल आया. दोपहर तब ढली नहीं थी. वह माथे से पसीना पौंछता रहा. लडक़ी के कमरे में टेबल पर फिर कुछ रूपए फडफ़डा रहे थे.फिर वह कई दिन उधर रुख न कर सका.

मार्च का महीना यूं भी उसके लिए बहुत व्यस्तता भरा होता है. उसके क्लाइन्ट अपने - अपने अकाउण्ट्स को लेकर अचानक चिन्तित हो जाते हैं. आर्थिक जोड - घटावों का महीना उसे व्यस्त रखता है. इन दिनों वह दफ्तर में ही बैठता है. उन्हीं दिनों वह उसे शहर में दिखी थी. हैलेना के होटल में. उसे हैलेना को साथ लेते हुए घर लौटना था मगर हैलेना फ्रन्ट ऑफिस के कुछ जरूरी कागज़ों में उलझी थी और वह लॉबी में सोफे पर बैठा हुआ, ऊबते हुए अपने पैर हिला रहा था तभी उसने उसे होटल के एक भीतरी गलियारे में देखा _ वह लान्ड्री स्टोर से निकली, तौलिए और चादरें हाथ में लिए बतख की तरह चलती हुई. वह उसे नहीं देख सकी मगर उसने उसे देख लिया.

'' वह कौन है ?''

''कौन ?''

'' वह जो उधर फैमिली सुइट की तरफ जा रही है.''

'' हैएक फोर्थ ग्रेड वर्कर. हाऊसकीपिंग में लॉन्ड्री में काम करती है.क्यों ?''

'' लगता है, कहीं देखा है.''

'' देखा होगायहीं.''

''तुम जानती हो उसे ?''

'' कुछ खास नहीं सीजनल वर्कर है. टूरिस्ट सीजन में काम बढ ज़ाता है तो वह आती है, काम करती है.ऐसी कई हैं. पार्ट टाईम वर्कर्स.'' कह कर हैलेना अपने काम में लग गई.वह उस मुस्कान को लेकर उलझ गया जिसे वह सस्ती समझ रहा था.

अप्रेल के पहले सप्ताह वह एकदम खाली महसूस कर रहा था. हैलेना, होटल में एक अन्तराष्ट्रीय कॉनफ्रेन्स के लिए तैयारियां करवा रही थी. देर से घर आती. वह फोन करता, वह उठाती नहीं. वह चिढ जाता. देर रात तक शराब पीता. अचानक उसने एक दिन फिर, वहीं जाने का निर्णय ले लिया. उसे उसके रंग उडे क़पडे याद आ गये. उसने उसके लिए एक स्कर्ट और शर्ट खरीद ली. वह बेहद खुश थी. उसकी आंखें चमक रही थीं. मानो वह उसका इंतजार ही करती रही हो. उसने कपडे पहन कर शीशे में चारों तरफ घूम कर देखा.

''मुझे लगा अब तुम नहीं आओगे. आज उधर नहींमेरे साथ बाहर चलोगे ?'' उसने पलंग की तरफ इशारा करके कहा. खुशी उस चेहरे पर बेतुकी लगी.

वह अनमना सा उठ गया. सडक पर चाय के रंग के पानी भरे गङ्ढे थे, उन्हें वह उसका हाथ पकड क़र फलांगती रही. अचानक कूडे क़ी मोटी, ढलवां दीवार पर वह उसका हाथ खींचते हुए चढने लगी.

'' अरेयहां कहां. इस गंदगी के ढेर पर.''उसे जुगुप्सा हुई.

''आओ तो सही.''

'' कितनी बदबू है यहां बरदाश्त नहीं हो रही.''

'' थोडी देर में नाक को आदत हो जाऐगी. आओ तोनीचे बहुत सुन्दर बीच है.''

सच में कूडे क़ी दीवार नीचे चट्टानों पर आकर खत्म हो गई थी. चट्टानों के बीच - बीच बालू का विस्तार था. आगे समन्दर. वो बालू पर बैठ गए. चट्टानों पर समुद्री पंछी शोर मचा रहे थे. ऊपर आकाश में सफेद गर्दन वाले भूरे बाज क़लाबाजियां खाते उड रहे थे. उसने बाहर की रोशनी में देखा _ लडक़ी की त्वचा चाहे बहुत पीली है और आंखों के काले गङ्ढे काफी गहरे, मगर वह आकर्षक है. बेतरतीब बालों में ढका उसका चेहरा सुन्दर है.

'' तुम पहले कहां थी ?''

'' मैं तो यहीं थीहमेशा से.''

''.'' वह उसे ताकता हुआ मुस्कुराया था.

'' पता है जब मैं पांचवी क्लास में थी.उस दिन क्रिसमस था. मुझे बाजार में एक लाल फूलों वाली स्कर्ट एक शो केस में लगी दिखी थी. मैं बाज़ार घूम कर बार - बार वहीं पहुंच जाती. एक आदमी जो काउंटर पर कपडे समेट रहा था वो मुझे शो केस के आस - पास मंडराता हुआ देख रहा था. उसने पूछा _ '' चाहिये ?''

'' नहीं पैसे नहीं है.''

'' पहन कर देख लो. उसके पैसे नहीं लगते.''

''.''

'' आओ. ट्रायल रूम में.'' मैं हिचकिचाती हुई भीतर चली गई. ट्रायल रूम में वह घुसा चला आया. बोला ' पहन कर देखो. पसंद आए तो ले लो. बस मुझे वह सब करने दो जो मैं चाहता हूं. स्कर्ट तुम ले जाना मुफ्त में.' वह मुझे हर तरह से छूता रहा. मैं ने कुछ नहीं कहा.उसने वादा निभाया''

कह कर वह उदास हो गयी और धीरे से तट को सहला कर जाती लहरों को छूने लगी.

''.'' वह पथरीले भाव से उसे देखने लगा.

'' क्या हुआ ?'' उसने सहम कर पूछा.

'' कुछ नहीं. अब चलें.'' लडक़ी उसका चेहरा पढक़र उलझ गई.

अब वह हर शनिवार वहां जाने लगा था. इस दिन वह घर पर मिला करती थी. अकसर यह कहा करती कि ' मुझे अब यकीन होने लगा है कि मैं जिन्दा हूं.अभी तक मुझे किसी ने भी मेरे जिन्दा होने का सबूत नहीं दिया.'

वह बहुत कुछ महसूस करता मगर कुछ कह न पाता. कुछ चीजें क़िसी के भीतर का अनजिया, कुछ नया जगा देती हैं. प्यार शब्द बहुत नया नहीं था उसके लिए बल्कि पुराना था, वैसा ही जैसा कि एक गोल ठण्डी धातु का चमकीला छल्ला जो उसके दाएं हाथ की मध्यमा में फंसा हुआ था. इस अहसास का इस अटपटे शब्द से कोई रिश्ता नहीं जोड पा रहा था. मगर मोह जैसा कुछ तो था जो उसके मन के खाली हिस्सों को भर नहीं रहा था तो खोद कर कुछ बाहर जरूर निकाल फेंक रहा था.

एक रविवार जब वह पिन्टो से फोन पर बात कर रहा था. उसकी बेहद इच्छा हुई कि वह पिन्टो को बता दे.

''पिन्टो तुम पूछ रहे थे ना. हां मैं प्यार में हूं.'' फोन पर वह फुसफुसाया था.

अचानक हैलेना जल्दी - जल्दी अन्दर आई और सीधे बाथरूम में घुस गई.

''कुछ नहींमजाक था. बाद में बात करते हैं.'' उसने फोन रख दिया था.

हैलेना इतनी जल्दी में थी कि उसने बाथरूम का दरवाजा बन्द नहीं किया और सामने ही कमोड पर बैठे - बैठे उससे पूछने लगी.

'' किसे फोन कर रहे हो?''

'' किसी को भी नहीं.पिन्टो था''

'' कैसा चल रहा है तुम्हारा काम ?'' उसने स्कर्ट ठीक करते हुए पूछा.

'' बढिया.''

'' सच यायूं हीं! आजकल ऑफिस में तो रहते ही नहीं तुम.'' वह बाथरूम से बाहर थी.

'' तुम इतनी पूछताछ क्यों कर रही हो.''

'' डैन तुम बदल रहे हो.'' उसने संशय के साथ उसकी आंखों में झांका.

'' यह तो तुम हमेशा कहती आई हो.'' लापरवाही से वह कॉर्डलैस फोन के एंटेना को चबाने लगा.

''इस बारबात सीरियस है. तुम सोचते हो, जो कुछ तुम कर रहे हो वह मुझे पता नहीं चलेगा. या जो करोगे मुझे बिना बताए तुम्हारा काम चल जाऐगा? हैं ना ?''

'' ऐसा क्यामसलन ?''

''वही जो हर शनिवार तुम सुबह सात बजे, मेरे उठने से बहुत पहले उठ कर तैयार हो जाते हो. तुम्हारे कोलोन की तीखी महक मुझे जगा देती है. तुम आहिस्ता से बेडरूम का दरवाज़ा बन्द करते हो. मैं खिडक़ी में से देखती हूं तुम गुनगुनाते हुए कार स्टार्ट करते होफिर दिन भर गायब रह कर आधी रात से जरा पहले ही लौटते हो. क्या बता कर जाने की जरूरत ही महसूस नहीं करते ?''

'' मुझे ये बताओकितनी बार आज तक हम दोनों एक दूसरे को बता कर या पूछ कर कहीं गए हैं? तुमने कब कैफियतें दी हैं या मैं ने मांगी है जो ये अब''

'' न सही कैफियतकम से कम सूचना के तौर पर. लगातार तीन शनिवार डैनियलतीन.''

'' क्या तुम पूरा सण्डे खराब करना चाहती हो?''

उस दिन तो बात धमकी भरे सुर पर खत्म हो गयी थी और उसने एक लम्बे समय तक खुद को वहां जाने से रोके रखा मगर एक बार फिर स्पाइस गार्डन की तरफ जाते हुए वह खुद को गलत मोड पर मुडने से न रोक सका. जब वह पहुंचा तो वह बिस्तर पर पडी थी. निस्तेज और कमज़ोर.

'' तुम बीमार लग रही हो फिर से. क्या हुआ? ज्यादा काम मत किया करो. मुझसे पैसे ले लो.''

'' मैं तो ठीक हूं मगर लगता है .''

'' क्या!''

''.''

'' कितना वक्त हुआ ?''

'' पिछली बार शायद.''

'' तीन महीने से भी ज्यादा! तुम्हें तुरन्त ही बताना था न.''

'' कैसेबतातीतुम आए नहीं.''

'' फोन.''

'' नम्बर दिया था तुमने?''

''''

'' सॉरी.''

'' सॉरी! तुमकिसलिए ?''

'' मुझे ही ध्यान रखना था.''

''नहींगलती तोमैं भी मगर अब ''

''अब क्या खरपतवारजिसकी हमें जरूरत नहीं. वही जो मैं ने देखा है अनचाहे बच्चेकोखें जिन्हें उगल देती हैं जो अकसर अस्पताल के पिछवाडे अधबने फेंक दिए जाते हैं कुत्ते चाव से खाते हैं उन्हें.'' उसके होंठों से प्रलाप बुलबुलों की तरह फूट रहा था.वह सहम गया उसका चेहरा देख कर. वह सपाट था और उसकी देह कंपकंपा रही थी.

'' नहीं''

'' नहीं क्या ?'' वह चौंकी.

''अबॉर्शन नहीं. इतनी देर हो चुकी है तो अब हम इसे रखेंगे.यूं भी मुझे बच्चा चाहिए. अपना बच्चा.''

'' नहीं.मुझे नहीं चाहिये. नहीं पालूंगी मैं इसे अकेले.'' वह पेट पर हाथ मारते हुए किकियाने लगी.

''रुको सुनोहम साथ रहेंगे.''

वह उसके शब्दों पर यकीन करे कि न करे की हालत में मुंह खोल कर उसकी तरफ देखने लगी.

'' इतना बडा झूठमुझसे मत बोलो.''

'' सच मैं अपनी बीवी को आज ही सब बता दूंगा.वह नहीं मानेगी तो हम यहां से कहीं चले जाऐंगे.''

'' कहां ?''

''कहीं भी या फिर यहीं .''

''तुम रह लोगे यहां ?'' अविश्वास ने उसका चेहरा प्रश्नचिन्हों से ढक दिया था.

उस दिन वह बहुत ज्यादा देर से घर पहुंचा.

''यह कौनसा वक्त है घर आने का ?''

'' मुझे पता है, साढे ग्यारह बजे हैं.'' घुसते ही वह सोफे पर धंस गया और बचाव के लिए आंखें मूंद लीं.

''तुम थे कहांतुम ऑफिस में नहीं थे. न किसी क्लाइंट के घर. मैं ने कितने फोन घुमा डाले.''

'' तो तुमने मेरी हर चीज क़ा हिसाब रखना शुरू कर दिया है.मैं ने तो तुम्हारे साथ ऐसा कभी नहीं किया.''

'' मैं तुम्हारा कब से इंतजार कर रही हूं. तुम्हें आज तो वक्त से घर आ जाना था.'' वह बुरी तरह खीजी हुई दिख रही थी.

'' नाराज मत होओयहां बैठो.'' उसने उदास गंभीरता से अपनी बीवी को देखा. वह पिघल गई. हमेशा की तरह.

'' बताओ न, आज इतनी देर कहां हो गयी. क्या बहुत काम था ?''

''.''

''क्या तुम दोस्तों के साथ किसी बार में थे? ब्रिज या ऐसा कुछ खेलना शुरू कर दिया है कि वक्त का पता ही नहीं चलता?''

बिन जली सिगरेट को उंगली से घुमाता हुआ वह खामोश बना रहा. उसे चिढाने के अंदाज में वह उस पर झुक कर फुसफुसाई '' आखिर बात क्या है? कोई दूसरी औरत?''

वह सोफे से उठ खडा हुआ. उसका कन्धा थाम कर बोला _

'' बाद में बात करते हैं.बहुत थका हूं. तुम खाना लगाओ.''

टेबल लगी हुई थी.उसकी प्लेट में एक कार्ड पडा था. उसने खोल कर देखा.

'' क्या है यह ?''

''वही जो तुम आठ साल से चाहते आए हो. हमारा बच्चा.''

'' .''

'' इतना हैरानी से मुझे मत घूरोडैन. यह सच है.'' हेलेना ने अपनी कुर्सी से उठ कर डैनियल को ज़ोर से भींच लिया.

अगले दिन हैलेना ने घर में दावत रखी थी परिवार के लोगों और दोस्तों की. उसके ससुर ने उन दोनों को गले लगाते हुए कहा _ '' बेटाबिना बच्चों के घर वैसा ही है, जैसे बिना मीट के स्टयू .''

'' बधाई. आखिर तुमसे यह हो ही गया.'' पिन्टो ने उसे आंख मारते हुए कहा.

डॉक्टर की सलाह पर हैलेना ने छुट्टी ले ली थी.

फिर वह दो सप्ताह तक वहां जा ही नहीं सका. न फोन कर सका.

एक दिन वह सिगरेट पीने के लिए अपने ऑफिस की खिडक़ी के पास आया, तभी उसने देखा कि

पुर्तगाली कॉलोनी की तरफ जाने वाली गली से निकलते हुए, वह उसके ऑफिस की तरफ ही आ रही थी.उसकी चाल को वह मीलों दूर से पहचान सकता है.वह जल्दी से नीचे उतरा. लगभग दौड क़र गली के मुहाने पर ही उसे पकड लिया.

'' सॉरी, फोन नहीं कर सका.''

'' तुमने मन बदल लिया है न!''

'' नहीं यह सच नहीं है.''

'' तो फिर. तुम आए क्यों नहीं. वक्त बढता जा रहा है. मेरे पास वक्त नहीं है. जल्दी निर्णय लो.'' वह तेज क़िकियाती आवाज में, उत्तेजित होकर बोल रही थी.

'' वो बात यह है कि.''

'' कोई बात नहींसच ये है कि तुम बदल रहे हो. यू रेपिस्ट.'' वहीं भीड भरी सडक़ पर उसने उसका कॉलर पकड लिया. एक जान - पहचान का व्यक्ति उसे उसी हालत में अभिवादन करता हुआ पास से निकला.

'' हलो, मि डैनियल.''

'' हलो.'' वह खिसिया कर मुस्कुराया और धीरे से उससे कॉलर छुडवा लिया फिर उसे ठेल कर बोला.

''मैं जल्दी ही कुछ करूंगा. तुम अभी जाओ. शाम को मैं आता हूं.''

वह जल्दी से मुड ग़ई. कुछ दूर लडख़डा कर चली, फिर गिर पडी. वह भागा. उसे उठाया.

कुछ जाने पहचाने चेहरे एक साथ उन दोनों को देख रहे थे.

'' अचानक क्या हुआ था तुम्हें ?''

'' चक्कर आ गये थे.''

'' कुछ खाकर निकली थीं ?'' उसने ना में सर हिला दिया.

''चलो पहले पास के रेस्तरां में कुछ खा लें. फिर अस्पताल ही चलते हैं.''

रेस्तरां में भी वह धीमे स्वरों में उससे झगडती रही. रोती रही.

''तुमसे कहा किसने था, तुम यूं जबरन घुसते चले आओ मेरी जिन्दगी में. तुम्हें किसने बुलाया था ? तुम खुद आए. और बार बार आते रहे.''

''सुनो तो.''

'' कुछ नहीं अब चार महीने का है ये. अब कोई भी डॉक्टर मना करेगा. तुमने मुझे फंसा दिया है.''

'' हम इसे रख रहे हैं. कह तो चुका हूं मैं.''

''तब बात अलग थीअब मुझे पता है तुम्हारी बीवी भी.और तुम उसे छोड नहीं पा रहे.बोलो सच है ना यह.''

'' सच है, पर यह भी सच है कि हम इस बच्चे को भी पालेंगे.''

'' तुम पालोगे, मैं नहीं. मैं ने अकेले खुद को तेईस साल पाल लिया, क्या यही बहुत नहीं ? तुमने कहा था, हम जल्दी ही साथ रहेंगे.''

वह सर झुकाए बैठा रहा. दोनों ने ही कुछ खास नहीं खाया. वो डॉ पिन्टो के अस्पताल आ गये.

'' इनका हीमोग्लोबिन बहुत कम है. प्रेगनेन्सी के लिए तो खतरनाक ढंग से कम है. डैन, यह है कौन?''

''है, एक दूर की रिश्तेदार. गरीब है.'' वह पीछे ही खडी थी. अस्पताल की गंध से परेशान. नर्स कुछ और जांचों के लिए उसे भीतर ले गई. पिन्टो उसका कन्धा पकड क़र बोला _

'' झूठ तो तुम ठीक से कभी बोल नहीं पाते डैन . एक दिन तुमने मुझे फोन पर कहा था ' मैं प्यार में हूं पिन्टो.' यह वही है ना.''

'' हां.''

'' और हैलेना.''

'' उसे मेरी जरूरत नहीं है. वह कहती है, मैं मानसिक तौर पर बीमार और दब्बू हूं. मैं क्रूर हूं. जिस चीज क़ो छूता हूं बरबाद कर देता हूं.''

'' हम सभी थोडे क़्रूर होते हैं. मेरी पत्नी भी यही कहती है.''

'' यह लडक़ी मुझे प्यार करती है. मैं इसे. यह मेरे जैसी है, मेरे लिए बनी हुई. मासूम और सादादिल. इसे कोई गुमान नहीं. इसका कोई नहीं है.''

''सच पूछो तो और कडवा सच निगलने का माद्दा तुम्हारे भीतर हो तो सुनो इसका कोई नहीं हैनिरीह है. तुम पर निर्भर है. यही तुम्हें इससे जोडता है. तुम्हारे अन्दर का दब्बू आदमी खुदमुख्तार बीवी बरदाश्त नहीं कर पा रहा शायद.''

'' बकवास है यह.’’

सब.''

'' ठीक हैबकवास ही सही. प्यार करो, कौन रोक रहा है.ज़रूर करो पैसों रूपयों से मदद भी करो. मगर बच्चा ? इसके साथ भी ज्यादती है. तुमसे बहुत कम उम्र है इसकी. इसे अपने साथ मत बांधो. बाद में निश्चित तौर पर वह बच्चे के साथ अकेली छूट जाऐगी और तुम अपने और हैलेना के बच्चे को बडा करने व्यस्त हो जाओगे.''

'' अब चारा नहीं हैमैं इसे घर ले आऊंगा.हम शादी कर लेंगे.''

'' शादी! और हैलेना का क्याउसका बच्चा?''

'' वह चाहे तो साथ रहे या तलाक ले ले.वह आत्मनिर्भर है.घर उसी के नाम है. मैं और यह कहीं और''

''क्या पागलपन है डैन . श्श्श वह आ रही है, इस विषय पर हम बाद में बात करेंगे.''

उसने फल और दवाएं दिलवा कर उसे टैक्सी करवा दी.

'' इन सब को खाना याद से.और सुनोमैं जल्दी ही आऊंगा. बहुत जल्दी.''

उसने उत्तर में अविश्वास से मुड क़र उसे देखा और झोला टैक्सी में रख दिया. खुद भी घुस कर ढह गई टैक्सी की पिछली सीट पर. वह टैक्सी को ओझल होते हुए देखता रहा.

तीन दिन बाद ही जब वह वहां पहुंचा तो वह वहां नहीं थी. आस - पास के घरों में पूछता रहा. कोई कुछ नहीं बता सका. गैराज वाला रोजरबस इतना बता सका कि पास के एक कस्बे में मिशनरी अस्पताल में उसकी कजिन नर्स है. कभी - कभी वह उससे मिलने जाती है.

बार वाले ने बताया कि अस्पताल के पीछे वाले सर्वेन्ट क्र्वाटर जल्दी ही खाली करवाए जाऐंगे. वह परेशान थी शायद इसीलिए चली गई. कुत्ता लावारिस छोड ग़ई थी.

घर लौट कर वह रोज सुबह - शाम उसके घर फोन करता रहा. लगभग पन्द्रह दिन तक लगातार फोन करने के बाद एक रात उसने फोन उठाया.

'' हैलो. तुम हो क्या.'' उसकी आवाज पस्त थी. डैनियल ने बिना उत्तर दिए फोन धीरे से बन्द किया. हैलेना पास ही सो रही थी. वह चुपचाप उठा. बिना कपडे बदले तेज बारिश में कार चलाकर रात में ही वहां पहुंच गया. बेसब्री से उसने दरवाज़ा खटखटायाशायद बारिश की तेज आवाज में या नींद में उसने बहुत देर बाद सुना. दरवाजा खोलते ही, वह भीगा हुआ ही उससे लिपट गया. अपनी बडी ग़ोल आंखों से उसकी पीली त्वचा को करीब से पीता रहा. उसने लडक़ी के बालों में हाथ फेरा.

'' अरेबालों का क्या किया ?''

'' कटा दिये''

'' क्यों ?''

'' लीखें हो गई थीं.''

उसने अब उससे अलग हो चांदनी के मंद उजास में कमरे को देखा. दो बडे बैग बंधे पडे थे. रसोई खाली थी.

'' यह घर छोडना पडेग़ा ?''

'' हांघर छोडना पडेग़ा. फर्नीचर बेच रही हूं. बर्तन बेच दिए.''

'' मैं जल्द ही इंतजाम करता हूं.कुछ दिन तुम एक गेस्टहाउस में रहना मेरे क्लाइन्ट के.''

'' जरूरत नहीं.''

'' क्यों ?''

'' मैं जा रही हूं.''

'' कहां.''

''अपनी कजिन के पास.'' कह कर उसने पास की तिपाई पर पडी सिगरेट सुलगा ली.

'' सिगरेट तुम्हारे लिए ठीक नहीं है. तुम मां बनने वाली हो.''

'' मैं ने अबॉर्शन करा लिया है.''

'' क्यों ?'' वह चीखा.

'' क्योंकि मुझे नहीं चाहिए था वह, समझे. नहीं चाहिए, तुम भी नहीं.'' वह उसे धकिया कर बिस्तर से उठी और खडी हो गयी. चीखने लगी.

'' अब बाहर निकलो. मेरे घर से निकलो.'' दुगुने वेग से चीखी. वह उठा उसे शांत करने के लिए बांहों में लेने लगा तो उसने परदा खींच कर चौखट समेत नीचे गिरा दिया. चौखट उसके पैर पर गिरा. गुस्से भरी प्रतिक्रिया में उसने उसके चेहरे पर एक थप्पड मार दिया. लडक़ी पहले सन्न रह गयी फिर झपट कर उसने नाखूनों से उसका चेहरा खरोंच दिया. उसकी आंख के पास खून छलछला आया. वह सहलाता रहा उंगलियों से और फिर वह पस्त होकर बिस्तर पर पड ग़या. वह सहम कर करीब आई. वह शांत पडा रहा तो उसकी हिम्मत बढी.उसकी दाढी सहलाने लगी.

''कुछ पियोगे ?''

''तुम मत जाओ. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.'' वह एक फूले हुए, पेड से चिपटे भीगे मेंढक की तरह उससे लिपटा था.

''झूठ. तुम बखूबी रह लोगे.'' हंस कर उसने उसके गाल पर थपथपा दिया.

'' सच. नहीं रह पाऊंगा.''

''तुम्हें पता है, जाने से पहले मैं तुम्हारे उधर आई थी. तुम्हारे घर के बाहर खडी रही. नीले फूलों वाली बेल से ढंका है न तुम्हारा घर? मैं ने देखा, गेट के बाहर तुम अपनी बीवी को कार में बिठा रहे थे अस्पताल ले जाने के लिए. तुम बहुत खुश लग रहे थे. उसके पेट को चूम रहे थे.''

''.'' खुश! इस अंधेरी रात में इस टूटे - फूटे से छोटे घर में यह शब्द उसे बहुत अजनबी लगा था. एक शब्द जो अण्डे के टूटे खोल सा हो और जिसके अर्थ अण्डे के पीले योक की तरह बिखर गए हों.

वह रात वहीं रुक गया.उसे कोई अपराधबोध नहीं था. वह सोच रहा था, आज रात न जाने पर यह निर्णायक दिन साबित हो सकता है. एक विस्फोट होगा जो रास्ता खोल सकता है. दोनों लिपटे रहे. वह उसे सहलाता रहा अचानक लडक़ी आक्रामक होने लगी.

'' नहीं. नही इस हालत में नहीं.अभी तो''

'' क्यों तुम्हें मेरे खून से घिन आऐगी ?''

''नहीं. तुम्हें तकलीफ होगी.''

'' नहीं होगी.'' वह उसके भीगे नाईट सूट को उतार रही थी.

''मान जाओ.''

''कुछ नहीं होगा. मैं अपनी सहूलियत से.'' कह कर वह उसके ऊपर छा गयी.

देह के सुखकर तनाव का खिंचा हुआ एक पल तार - सा टूटा. उसका चेहरा आंसुओ से तर - ब - तर था. वह हांफती हुई हंस रही थी.

नींद में बीच रात उसने बिस्तर में गर्म और गाढा गीलापन महसूस किया. वहां एक रक्तकुण्ड था उन दोनों के नीचे.

''सुनो कपडे बदल लो.'' उसने लडक़ी को जगाया.उसने ही सब कुछ किया. खून से भीगी रूई और पट्टियां दो बार बदल डालीं. कपडे बदले और धोए.

'' मत करो इतनामेरे लिए.''

'' बस सब ठीक हो जाऐगा. तुम कुछ बताती नहीं. इतनी तकलीफ में भी''

''.''

'' दवाएं लीं थीं ?''

''.''

'' सूप पियोगी या दूध ?''

''.''

'' वहां क्या देख रही हो ?''

''वो.''

'' क्या है वहां ?'' वह उसकी बगल में लेट कर, उसी की निगाह की दिशा में छत के कोने को देखने लगा. वहां एक काला जाला था. उसमें एक मोटी, सफेद मकडी थी उसके गोल, सफेद शरीर के बीच में काल गोला था. लगता था, एक आंख तुम्हें लगातार घूर रही है जाले में से.

''अजीब मकडी है. है न ?''

हंसकर उसने उसकी तरफ देखा. वह अचेत होने लगी थी. उसने झपट कर फोन उठाया.

'' पिन्टो बस मत पूछो कुछ.आ जाओ यार. एम्बुलेन्स चाहिए. सारी लाइफ सेविंग मशीनों के साथ. नेवी मैस की तरफ एक गारबेज डिसपोजल प्लान्ट है. वहां सरकारी अस्पताल के पीछे एक बस्ती है. जापानीज ग़ार्डन के रास्ते की तरफ मुडते हुए एक सडक़ नीचे की तरफ उतरती हैउसके आगे एक मैदान हैबताऊंगा तुम आओ तो यारइसकी हालत नाजुक़ है. नहींसुबह तक इंतजार नहीं अभी.''

पिन्टो के आने से पहले ही उसकी अचेत देह में सांसों की हल्की हलचल भी शांत हो गई. वह उसका सीना मलता रहा अपने मुंह से उसके नन्हें से मुंह में सांस देता रहा. वह भर्राए गले से गुनगुनाने लगा. एक बेसुरी गुनगुन कमरे में गूंजने लगी.

'' व्हेन ए फ्लावर ग्रोज वाइल्ड इट कैन आलवेज सर्वाइव. वाइल्ड फ्लॉवर्स डोन्ट केयर व्हेयर दे ग्रो.''

मगर उसकी खुली आंखें एक शिकायत लिए - लिए स्थिर हो गयीं थीं. फिर भी पिन्टो ने चैकअप किया.

'' इसके युटरस ( गर्भाशय) में भीतर कहीं लगातार ब्लीडिंग हो रही थी. उसी ने जान ले ली.''

वह उसे अविश्वास से देखता रहा

'' अभी तो थी? अभी तो इसनेप्यार भी किया फिर ?'' वह उसे हिलाता रहा.

''डैन, घर चलो. वह चली गई.अब इस बॉडी में कुछ नहीं मिट्टी है यह. रात को कुछ नहीं हो सकता. सुबह फ्यूनरल वालों को लेकर आऐंगे.''

'' तुम जाओ. मैं यहीं हूं.'' वह जमीन पर ही बैठ गया, पलंग से सटा हुआ.पिन्टो ने जिद नहीं की.

सुबह पांच बजे ही पिन्टो एक काली वैन में अंतिम संस्कार वालाें के साथ आ गया. पिन्टो ने भीतर इशारा किया. भीतर वह उसे कपडे पहना रहा था_ सफेद नीले फूलों वाली स्कर्ट, गुलाबी टॉप, नए लाए हुए लाल सैण्डल.

पिन्टो ने उसे कन्धे से पकड क़र उठाया और दरवाजे क़े बाहर छोड आया.

''मर गई वह?''

''……….”

''मुझे समझे बगैर? वह मुझे समझे बगैर ही मर गई.''

आसमान साफ था. शुक्र ग्रह धरती के एक दम करीब दिख रहा था. बाकि तारे भी. चांद जाने को तैयार था, चारों तरफ सुनहरा चूर्ण बिखरा था, यह चांद का अपना तिलिस्म था कि कूडे क़ा बडा पहाड हल्के अंधेरे में खडे एक दार्शनिक योगी जैसा लग रहा था. जिन्दगी उस पार अपनी तमाम नियामतों के साथ सुख की नींद सो रही थी. और कोई यहांजिन्दगी से बुरी तरह छला हुआबिलाशिकवा चला जा रहा था. हमेशा के लिए पीछे से समुद्र एक रुदाली की तरह एक लय में हाहाकार कर रहा था. आंसू पौंछ कर उसने भीतर झांका.उसका मन हुआ आखिरी बार मेंढक के चिकने पेट की सी हथेलियां छूकर देख ले.वे उसे एक लम्बी पारदर्शी पॉलीथिन में लपेट रहे थे. एक सैण्डल वहीं गिर गई थी. वह निर्विकार रूप से पॉलीथिन में बन्द उसकी पीली देह देखता रहा. भीतर पिन्टो उनसे बात कर रहा था.

''.''

'' कोई पेड क़ी छांह वाला हिस्सा हो.''

''.''

स्टोन का रंगसफेद ही रखना.''

''.''

'' कॉफीन के लिएअं टीक वुड.''

''न नहीं. फ्यूनरल में हम नहीं आ रहे. आप ही देखें. मुझसे चैक आकर ले जाएं.''

वे सब बाहर आ गए तब वह भीतर जाकर उसका झोला ले आया.

'' इसे भी साथ ही दफना दें.''

'' स्टोन तो सर दस दिन में बन जाऐगा. लिखवाना क्या चाहेंगे.'' काली टी शर्ट वाले आदमी ने डैन की तरफ मुडक़र पूछा. पथराए दिल से टकरा कर शब्द बिखर गए.एक लम्बी खामोशी के बाद वह अपने विषाद का खोल तोड क़र बोला.

'' बस नाम. उसका नाम.''

'' क्या नाम सर?''

'' एन्जेला.''

नाम तो उसने कभी बताया ही नहीं था. हमेशा हंस कर कहती थी _ ''कुछ भी पुकार लो, तुम्हें जो नाम पसंद हो वही.हूं तो मैं वीड (खरपतवार) ही ना!''

***

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