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खामोश मोहब्बत

सादत खान एक देहाती इंसान थे। अपने उसूलों के पक्के, जो बात उनकी जबान से निकल जाती वो पत्थर की लकीर हो जाती। 3 साल पहले गांव में अपनी जमीन जायदाद बेचकर यहां शहर में आ बसे लेकिन रोब आज भी वैसा ही बरकरार था बिल्कुल जमीदारों जैसा। सब उनसे बहुत डरते थे यहां तक कि उनकी बीवी और दोनों बच्चे भी।

रेशमा बहुत हंसमुख और चंचल थी मां-बाप की लाडली और भैया की दुलारी। सादत खान बेटी से बहुत प्यार करते थे लेकिन रेशमा उनके रोब और उसूल को देखकर डर जाया करती थी। इंटर के बाद उसने बड़ी मुश्किलों से बी कॉम में एडमिशन लिया था। सादत खान को लड़की जात का इतना पढ़ना पसंद नहीं था लेकिन रोहिल की कोशिशों से रेशमा एडमिशन लेने में कामयाब रही।

रेशमा ने 2 साल बड़ी मुश्किलों से गुजारे क्योंकि मैथ उसके सिर से गुजर जाया करती थी। रोहिल ने उसकी यह कोशिश भी आसान कर दी और अपने दोस्त सोहम को रेशमा को ट्यूशन देने के लिए बुला लिया। 

"शुक्रिया भाई जान.... वरना ये मैथ तो मेरी जान ही ले लेती" रेशमा ने अपने भाई रोहिल के गले लगते हुए कहा।

सोहम रेशमा को पाबंदी से ट्यूशन दे रहा था। वो रेशमा को हर एक सवाल बखूबी समझाता था और हर चीज रेशमा के दिमाग में फिट हो जाती। ये सोहम के समझाने का असर तो था ही कुछ रेशमा का भी दिल ज्यादा ही लग गया था। उसे सोहम अच्छा लगने लगा था वो ट्यूशन पढ़ते वक्त बस सोहम को ही देखा करती। सोहम उसे अपनी तरफ देखता पाकर कहता "पढ़ाई में ध्यान लगाओ" और रेशमा गड़बड़ा कर अपना सिर किताब में झुका देती।

 रेशमा अपने बेड पर लेटी सोहम के बारे में सोच रही थी। "हाँँ सोहम मैं तुम्हें पसंद करती हूं..... बहुत प्यार करती हूं तुमसे... जैसा मैं सोचती हूं तुम्हारे बारे में क्या.... वैसा ही तुम भी सोचते हो मेरे बारे में" रेशमा नेे ख्यालों में सोहम से बात करते हुए कहा "लेकिन तुम तो मेरी तरफ देखते भी नहीं हो.. क्या तुम्हें मेरी आंखों में अपने लिए प्यार दिखाई नहीं देता... क्या मेरे दिल कि आँँच तुम्हारे दिल तक नहीं पहुंचती... बोलो सोहम" रेशमा ऐसे ही ख्यालों में सोहम से बात करती।

"मैं देख रहा हूं कि पढ़ाई की तरफ तुम्हारा ध्यान बिल्कुल नहीं है" 

आज रेशमा का पढ़ने का मन बिल्कुल नहीं था। वो बस सोहम को ही देखे जा रही थी। वो सोहम से बात करना चाहती थी लेकिन पता नहीं सोहम किस मिट्टी का बना हुआ था। वो उससे बात करना तो दूर वो तो पढ़ाई के अलावा किसी और मामले में उससे बात ही नहीं करता था।

"आप पर ही तो है मेरा ध्यान" रेशमा ने बहुत धीरे से कहा।

"क्या कहा तुमने" 

"य...हीं.. पर.. तो.. है मेरा ध्यान" रेशमा ने हड़बड़ा कर कहा। 

"तुम्हारे पेपर में 2 महीने रह गए हैं जब तक ये स्लैब्स पूरा करना है" सोहम ने सारी बुक को एक जगह इकट्ठे करते हुए कहा। 

"जी अच्छा"

"मैं भी तुम्हें पसंद करता हूं रेशमा... बहुत प्यार करता हूं तुमसे... लेकिन मैं तुमसे यह बात कभी कह नहीं सकता.... मैं तुम्हें पाने के ख्वाब तो देख सकता हूं लेकिन.... मैं तुम्हें पा नहीं सकता" सोहम चारपाई पर लेटा आसमान की तरफ देखता रेशमा के बारे में सोच रहा था "तुम आसमान का सितारा हो और मैं जमीन की धूल.... मैं बहुत गरीब हूं रेशमा और गरीब को प्यार करने का हक नहीं होता" सोहम एकदम उठ बैठा "मेरे करीब मत आओ रेशमा"

 रेशमा और सोहम दोनों ही एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। सोहम रेशमा के दिल की हालत को जानता था लेकिन रेशमा सोहम की फीलिंग्स को नहीं जानती थी क्योंकि वो रेशमा के सामने बहुत रिजर्व रहता था। रेशमा के पेपर खत्म हो गए तो सोहम का आना भी बहुत कम हो गया। वो बस कभी-कभी रोहिल से मिलने आ जाता था और रेशमा की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो जाती थी। वो खिड़की से झांक कर सोहम को देखा करती। 

रेशमा का रिजल्ट आ चुका था। सादत खान ने रेशम की शादी तय कर दी। रेशमा ने अपनी दुआओं में      सोहम को मांगा था लेकिन वो कहते हैं ना हर दुआ कबूल नहीं होती। रेशमा अपनी तकदीर पर आंसू बहाती रही और शादी का दिन भी आ पहुंचा। 

सोहम रोहिल के साथ पूरा दिन शादी के कामों में लगा रहा। निकाह के बाद जब रेशमा को स्टेज पर लाया गया तो सोहम रेशमा को दूर से ही देखता रहा। दुल्हन के जोड़े में रेशमा बहुत खूबसूरत लग रही थी। सोहम एक फीकी सी हंसी के साथ दोबारा से अपने काम में लग गया।

रेशमा को प्यास लगी तो रोहिल के कहने पर सोहम जल्दी से पानी ले आया। रेशमा को पानी देते वक्त दोनों की नजरें एक दूसरे से टकराई और उस एक  पल में रेशमा पर सोहम के दिल का हाल बयां हो गया था। सोहम की सूजी हुई आंखों में रेशमा ने अपने  लिए प्यार देखा था। सोहम कब का जा चुका था और रेशमा अपनी और सोहम की खामोश मोहब्बत पर रो दी थी।

समाप्त 

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