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ख़्वाहिश

चलती ट्रेन पकड़ने के चक्कर में वो अपने बैग के साथ बड़ी जोर से गिरी थी। बैठते हुए लायबा ने अपनी कोहनी को सहलाया था। उसने बोगी में इधर उधर  देखा तो वहां बैठे लोग उसे ही देख रहे थे। लाइबा ने उन लोगों को हल्की सी स्माइल दी और बैग लेकर अपनी सीट पर आ बैठी। बैठने के बाद लायबा ने उन तीनों पैसेंजर की तरफ देखा तो उनमें से एक लड़का उसे बड़े घूर घूर कर देख रहा था। लाइबा को लगा उसने उस लड़के को कहीं देखा है। ज़हन पर थोड़ा जोर डालने के बाद उसे याद आ गया और लायबा धम से उस लड़के के पास जाकर बैठ गई थी।


"तुम अनवर होना"


"जी सही पहचाना आपने लायबा जी" अनवर ने मुस्कुराते हुए कहा।


"तुमने मुझे पहचान लिया था लेकिन चुप चाप बैठे मुझे यूं ही घूरते रहे अनवर के बच्चे" लायबा ने अनवर की पीठ पर मुक्का मारते हुए कहा वो ऐसी ही थी हंसमुख और चंचल।


"इतने वक्त बाद तुम्हें देखा है... मैं तुमसे बात करता और तुम मुझे ना पहचानती तो तुम तो शोर मचा देती कि ये लड़का मुझे छेड़ रहा है.... फिर ये लोग जो मेरी दुर्गत बनाते...... बस उसी से बचने के लिए मैं चुप रहा" अनवर ने साथ बैठे पैसेंजर्स को देखते हुए कहा।


"तुम और किसी लड़की को छेड़ो" लायबा जोर से हंसी थी "मुझे याद है तुम हमारे डिपार्टमेंट में सबसे शर्मीले लड़के थे" लाइबा की बात पर अनवर धीरे से मुस्कुराया। 


अनवर और लायबा एक ही कॉलेज में एक ही डिपार्टमेंट में थे। अनवर शर्मिला सा लड़का था जबकि लायबा हंसमुख चंचल हर बात पर दिल खोलकर हंसने वाली लड़की थी। अनवर लायबा से मोहब्बत करने लगा था लेकिन उससे कभी कह नहीं पाया। लायबा अमीर घराने से थी जबकि अनवर बहुत गरीब था। लायबा भी अनवर के दिल का हाल जानती थी। वो भी अनवर को पसंद करने लगी थी। पर लायबा चाहती थी कि शुरुआत अनवर करें। लायबा कितनी भी खुले मिज़ाज की लड़की सही पर थी तो वो एक लड़की। अनवर कभी अमीर गरीब की दीवार से बाहर ना आ सका और लायबा इंतजार ही करती रह गई। कॉलेज खत्म होने पर दोनों अलग अलग हो गए और आज 2 साल बाद ट्रेन के सफर में दोनों आमने सामने टकरा गए थे।


"शादी वादी कर ली या नहीं" लायबा ने जान बूझकर ये सवाल पूछा।


"नहीं अभी नहीं और तुमने" अनवर ने लायबा को देखते हुए कहा।


"कहां यार... जब भी कोई लड़का देखने आता है तो ये कहकर रिजेक्ट कर देता है कि लड़की बहुत बोलती है" अपनी बात कह कर लायबा खुद ही हंस दी। 


बातें करते करते दोनों का स्टेशन आ गया तो दोनों एक दूसरे का कांटेक्ट नंबर और एड्रेस लेकर अपने अपने सफ़र की तरफ रवाना हो गए।


"अनवर तुम" लायबा ने बैल की आवाज पर दरवाजा खोलते हुए अनवर को देखते हुए कहा।


"क्या मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकता" 


"नहीं ऐसी बात नहीं है.....अभी 2 दिन पहले ही तो हम ट्रेन में मिले थे.... अच्छा यह बताओ क्या पियोगे चाय कॉफी।


"नहीं कुछ नहीं.... बस तुमसे कुछ कहना है जो आज तक नहीं कह पाया.... लायबा कॉलेज के जमाने से ही मैं तुमसे बहुत मोहब्बत करता हूं लेकिन मैं ये बात तुमसे कभी कह ना सका क्योंकि तुम बहुत अमीर थी और मैं बहुत गरीब.... मैं तुमसे अपने दिल की बात सारी जिंदगी कभी ना कह पाता लेकिन आज हमारे बीच में अमीर गरीब की दीवार हमेशा के लिए खत्म हो चुकी है इसीलिए मैं तुमसे ये बात कहने चला आया" अनवर ने लायबा की आंखों में देखते हुए कहा।


"ये बात कहने में इतनी देर लगा दी स्टूूूपिड.....पर   शुक्र है कहीं तो सही..... मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं" लायबा ने भी अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा फिर दोनों मुस्कुरा दिए थे। 


लायबा 2 दिन से अनवर को फोन कर रही थी लेकिन उसका फोन बंद जा रहा था। अनवर जब से अपने प्यार का इजहार कर के गया था। उसके बाद लायबा  की अनवर से कोई बात नहीं हो पाई थी। तो लायबा अनवर से मिलने उसके घर की तरफ चल पड़ी।


लोगों से पता पूछते हुए वो कब्रिस्तान पहुंच गई थी।    कब्रिस्तान के कोने पर बाहर की तरफ एक मिट्टी का छोटा सा झोपड़ा बना हुआ था। लायबा ने कुंडी खटखटाई तो एक बुजुर्ग आदमी बाहर निकला। 


"कौन हो बेटी... क्या चाहिए"


"जी वो अनवर का घर ये हीं है" 


"हां ये ही है" 


"जरा अनवर को बुला दे उससे बात करनी है.... 2 दिन पहले अनवर मुझसे मिलने आया था... उसके बाद उससे मेरी कोई बात नहीं हो पाई" लायबा ने रुक रुक कर कहा।


बुजुर्ग हक्का-बक्का लाएगा को देख रहा था। 


"बाबा बुलाए ना अनवर को" 


"क्या कहा तुमने..... अनवर तुमसे मिलने आया था वो भी 2 दिन पहले"


"जी... परसों सुबह आया था" 


"मैं अनवर का दादा हूं.... तुम्हें अनवर से मिलना है आओ मेरे साथ"  बुजुर्ग ने लायबा को अपने पीछे आने का इशारा किया। 


लायबा को बड़ा डर लग रहा था क्योंकि अनवर के दादा उसे कब्रिस्तान के अंदर ले जा रहे थे। थोड़ी दूर चल कर वो एक कब्र के पास रुक गए। लाइबा ने देखा वो कब्र ताजा थी और उसके ऊपर फूल भी पड़े हुए थे। 


"ये रहा अनवर.... जो इस कब्र में सो रहा है" ये कहते हुए अनवर के दादा कब्र के पास बैठकर फूट-फूट कर रोने लगे और लायबा हक्का-बक्का खड़ी कभी उस कब्र को और कभी अनवर के दादा को रोते हुए देख रही थी।


"बेटा तुम कह रही हो कि अनवर तुमसे दो दिन पहले मिलने आया था। जबकि वो तो 5 दिन पहले ही मर चुका है..... मेरा बच्चा कानपुर से आ रहा था लेकिन  रेलवे स्टेशन के बाहर ही उसे एक कार ने रौंद दिया और मेरा अनवर.... या अल्लाह ये तो मेरे जाने के दिन थे फिर तूने मेरे बच्चे को क्यों उठा लिया" अनवर के दादा रो रो कर लायबा को सब बता रहे थे और लाइबा वही कब्र के पास बैठती चली गई थी। 


तो क्या मुझसे जो मिलने आया था वो अनवर की रुहं थी। वो अपने प्यार का इजहार करने के लिए मेरे पास आया था। वो प्यार जिसे इतने बरसों से उसने अपने सीने में दबा कर रखा हुआ था। मैंने आज तक सिर्फ किस्से कहानियों में ही सुना था कि जीते जी इंसान की जब कोई ख्वाहिश पूरी नहीं होती तो वो मरने के बाद अपनी ख्वाहिश को पूरी करता है। ये सोच कर लायबा अनवर की कब्र से लिपटकर फूट-फूटकर रो दी थी। 

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