रात के ११बजे - भाग - ९ Rajesh Maheshwari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रात के ११बजे - भाग - ९

यह बात सुनकर आनन्द कहता है, आशा से भरा जीवन सुख है निराशा के निवारण का प्रयास ही जीवन संघर्ष है। जो इसमें सफल है वही सुखी और सम्पन्न है। असफलता है दुख और निराशा में है जीवन का अन्त। यही है जीवन का नियम यही है जीवन का क्रम। मेरी महबूबा ! तुम चिन्तित मत हो। मैं तुम्हारे लिये सब कुछ व्यवस्था कर दूंगा। मेरे न रहने पर भी तुम्हारा जीवन सुखी व समृद्ध रहेगा।

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आनन्द एक बहुत होशियार और समझदार व्यक्तित्व का धनी था। वह नगर छोड़ने के पहले पल्लवी की सहपाठी एवं उसके साथ रहने वाली कुछ लड़कियों से मित्रता कर चुका था। उनके माध्यम से वह पल्लवी की एक-एक गतिविधि की जानकारी प्राप्त करता रहता था। उसे पता चल गया था कि पल्लवी कुछ दूसरे लोगों से भी मिलती है किन्तु यह बात वह हमेशा उससे छुपाती है। आनन्द इस बात को अभी उतनी गम्भीरता से नहीं लेता था किन्तु इतनी मदद करने के बाद एवं इतने आश्वासन देने के पश्चात उसने पल्लवी से इस विषय पर बात करने का मन ही मन निश्चय किया। उसने पल्लवी से पूछा- यह क्या माजरा है ? वे कौन हैं ? तुम्हारा और उनका क्या संबंध है ? पल्लवी ने बिना किसी घबराहट के कहा कि आगे आने वाले समय में ये सब बातें तुम्हें स्वयं पता लग जाएंगी। आनन्द को पल्लवी के इस उत्तर से संतोष नहीं होता।

वहां से वे लोग होटल वापिस आ जाते हैं। होटल में कमरे में व्हिस्की का दौर चालू हो जाता है। गौरव के लिये बियर बुलवाई जाती है। इसी बीच बातचीत में आनन्द, पल्लवी को आश्वासन देता है कि वह उसके लिये एक मकान खरीद देगा। वह उससे कहता है कि मकान की तलाश प्रारम्भ कर दो। वह उसे यह भी आश्वासन देता है कि उसके नाम से वह बीस लाख की एफ डी करा देगा। जिसका ब्याज उसे नियमित रुप से मिला करेगा। इसके अलावा फ्रिज, टीवी, स्कूटी आदि जो तुम्हें चाहिए वह भी मैं दिलवा दूंगा। यह सुनकर पल्लवी मन ही मन बहुत प्रसन्न हो जाती है। वह आनन्द का हाथ जोर से पकड़ लेती है। आनन्द कहता है इसे पकड़ा है तो छोड़ना मत। पल्लवी कहती है मैं जिसे पकड़ती हूँ उसे छोड़ती नहीं हूँ। उसकी बात सुनकर आनन्द के चेहरे पर एक भेद भरी मुस्कराहट आ जाती है। वह गहरी नजरों से पल्लवी की ओर देखता है। पल्लवी भी उसकी ओर देखते हुए मुस्कराने लगती है।

बियर पीने के बाद गौरव डिस्को जाने की इच्छा व्यक्त करता है। वहां से वे सभी लोग डिस्को के लिये निकलते हैं। पल्लवी की माँ डिस्को जाने से मना कर देती है, वे उसे रास्ते में उसके होटल में उतार देते हैं। तीनों डिस्को पहुँचते हैं तो वहां फिर ड्रिंक्स मंगवा लिये जाते हैं। यहां गौरव एक बियर और पीता है। बियर पीने के बाद गौरव फ्लोर पर डांस करने चला जाता है। बियर के नशे में वह डांस करते हुए बार-बार डांस करती हुई लड़कियों से टकराता है। एक बार तो गजब ही हो जाता है गौरव अचानक लड़खड़ाता है और संभलने के लिये सामने की एक लड़की को पकड़ने का प्रयास करता है। लड़की तो पकड़ में नहीं आती उसके कपड़े उसके हाथ आते हैं। गौरव गिर पड़ता है और उसके साथ ही उस लड़की के कपड़े फटकर उसके हाथ में रह जाते हैं। लड़की के ऊपर के कपड़े अलग हो जाते हैं। वह अपने सीने को हाथ से छुपाते हुए चीखती है। लोगों का ध्यान उस ओर चला जाता है। गौरव को नीचे पड़ा हुआ और लड़की को अपने आप को छुपाते देख कर हंगामा मच जाता है। यह देखकर आनन्द और पल्लवी गौरव के पास पहुँचकर उसे उठाते हैं। आनन्द अपना कोट उतार कर लड़की को ढांक देता है। फिर उससे क्षमा मांगता है। लड़खड़ाते हुए गौरव को लेकर वे डिस्को के बाहर आ जाते हैं।

दूसरे दिन सुबह गौरव पल्लवी की मां को साथ लेकर ताज होटल पहुँचता है। वहां की साज-सज्जा एवं पांच सितारा होटल की भव्यता देखकर मानसी की माँ भौंचक्की रह जाती है। गौरव उनको बताता है कि यह तो कुछ भी नहीं है वह दुनियां की बड़ी से बड़ी होटल में अपने बेटों के साथ रूका है। यह तो उन होटलों के आगे एक साधारण होटल है। वो साथ में यह कहना नहीं भूलता कि उसके बेटों ने उसे विदेशो में भ्रमण कराने में लाखों रूपये खर्च किये। मेरी धन की सम्पन्नता देखकर तो राकेश भी मुझसे मन ही मन जलता है। यह और बात है कि वह कुछ कहता नहीं है। वह उसे यह भी बतलाता है कि तुम्हारी लड़की के तो भाग्य खुल गये हैं जो उसे आनन्द जैसा धनवान, जिन्दादिल और परोपकारी इन्सान पसन्द करता है। मैंने ही राकेश से कहकर पल्लवी को आनन्द से मिलवाया था। इनकी दोस्ती करवाने के लिये मुझे कितना प्रयास करना पड़ा यह मैं ही जानता हूँ।

राकेश तो जानबूझकर यहां नहीं आया क्योंकि यहां आता तो उसकी हीनता सामने आ जाती। लेकिन तुम्हारी बेटी मानसी बेवकूफ है जो इस यात्रा में नहीं आयी। उसे तो आनन्द से अपने संबंध अच्छे रखना चाहिए थे। पल्लवी की मां ने इन सब बातों का कोई उत्तर नहीं दिया किन्तु मन ही मन वह पल्लवी और आनन्द की मित्रता से बहुत प्रसन्न थी। बात करते-करते ही आनन्द का कमरा आ गया। उन्होंने कालबैल बजाई। आनन्द तैयार बैठा था। उसने माता जी को नमस्कार किया उन्हें अपना रुम दिखाया और बताया कि इसका किराया बीस हजार रूपया प्रतिदिन है। पल्लवी अभी नहा रही है, हम लोग नाश्ते के लिये चलते हैं, वह वहां आ जाएगी। वे तीनों नाश्ते के लिये डाइनिंग हाल में आ गये।

पल्लवी जब वहां आयी तो उसकी साड़ी देखकर उसकी मां ने उससे पूछा कि इतनी सुन्दर साड़ी उसे कहां से मिली ? पल्लवी ने बताया कि आनन्द ने इसी होटल से यह साड़ी पच्चीस हजार रूपयों में खरीदकर दी है। इन्होंने तुम्हारे लिये भी एक साड़ी पसन्द की है।

नाश्ते के दौरान वे दिन भर का कार्यक्रम बनाते रहे। जिसमें मुख्य रुप से शापिंग माल, रेस्टारेण्ट और दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने की ही योजना थी। शाम को वे महाबलीपुरम जाने का प्रोग्राम बनाते हैं। रात के डिनर के लिये वे वहां के ताज होटल में टेबल बुक करा देते हैं। नाश्ते के बाद वे चेन्नई भ्रमण के लिये निकलते हैं। पल्लवी के लिये उस दिन आनन्द लगभग डेढ़ लाख की शापिंग कराता है। पल्लवी की मां और गौरव के लिये भी आनन्द काफी मंहगे सामान खरीदता है। गौरव दिन भर आनन्द की प्रशंसा के पुल बांधता रहता है। आनन्द अपने आप को बहुत गौरवान्वित अनुभव करता है। वह पल्लवी और उसकी मां से यह भी कहता है कि यदि मानसी भी होती तो और भी अच्छा रहता। आनन्द मानसी के लिये भी एक साड़ी खरीदता है। यह सब देखकर गौरव व माता जी ऐसी अनुभव कर रहे थे जैसे वे स्वप्न लोक में आ गए हों। इसी प्रकार रात्रि भोजन के बाद वे अपने-अपने होटल आ गयें।

तीसरे दिन सुबह सबसे पहले माता जी को शंकर नेत्रालय में डाक्टर चेकअप करते हैं और उनके मोतियाबिन्द का आपरेशन करने के लिये उन्हें भरती कर लेते हैं। आनन्द अच्छे से अच्छा कान्टेक्ट लेन्स लगाने का आर्डर दे देता है। इसके बाद गौरव का चेकअप होता है। गौरव अपनी आदत के अनुसार डाक्टर से कहता है- आई एम ए इन्टरनेशनल आर्टिस्ट। आई विल मेक ए पेन्टिंग फार यु एण्ड विल प्रेजेन्ट यू। आई हैव मेड सेवेरल पेन्टिंग्स फार सेवेरल मिनिस्टरस। आई हैव गाट सो मैनी एवार्डस। फारेनर्स नो द वैल्यू आफ माइ पेन्टिंग्स। डाक्टर उसे नम्रता पूर्वक चुप रहने का निर्देश देता है। वह पूरी तरह निरीक्षण करने के बाद आनन्द को अपने केबिन में बुलाता है। उसे बताता है कि इस व्यक्ति ने अपनी लापरवाही से अपनी एक आंख गंवा दी है। अब दुनियां में इसका कोई इलाज नहीं है। इसकी यह स्थिति आने में छः से सात साल का समय लगता है। अब आप इनकी दूसरी आंख की चिन्ता कीजिए ताकि उसका समय पर आपरेशन हो जाए। इसके बाद पल्लवी को दूसरी अस्पताल में चैकअप के लिये ले जाता है। वहां डाक्टर उसे चौबीस घण्टे के चेकअप के लिये भरती कर लेता है। वहां की स्त्री रोग विभाग की चिकित्सक आनन्द को केबिन में ले जाकर कहती है कि मुझे शक है कि इसे कोई न कोई गम्भीर बीमारी हो गई है। मैं शाम तक आपको इसकी खबर दूंगी।

शाम को जब आनन्द पल्लवी की रिपोर्ट पता करने पहुँचता है तो यह जानकर कि उसे सिफलिस है उसके हाथों के तोते उड़ जाते हैं। वह वास्तव में भीतर ही भीतर घबरा जाता है। वह पल्लवी का उपचार तो तत्काल करवाता ही है एक दूसरे अस्पताल में जाकर अपना भी चेकअप करवाता है। उसे बड़ी राहत मिलती है जब उसे पता लगता है कि उसे कोई मर्ज नहीं है।

आनन्द आकर गौरव को उसकी वास्तविक स्थिति बतला देता है कि उसकी एक आंख हमेशा के लिये अपनी रोशनी खो चुकी है और उसका कोई उपचार नहीं है। आनन्द वहां से फोन पर उसके लड़कों को भी बतला देता है। वे यही कहते हैं कि सब पापा की कंजूसी का परिणाम है। ये हमेशा चाहते हैं कि इन्हें सब कुछ प्राप्त हो पर इनका एक पैसा भी खर्च न हो किन्तु आज के समय में ऐसा संभव ही कहां है। ये केवल मुफ्त के जुगाड़ में रहते हैं जिसका यह परिणाम हम सब के सामने है। बतलाइये हम लोग क्या कर सकते हैं। यदि हम हिन्दुस्तान आ भी जाएं तो अब क्या हो सकता है। इनके इलाज में जो भी खर्च हुआ हो आप हमें बतला दीजिये हम यहां से वह आपको भेज देंगे।

यह सुनकर आनन्द उन्हें मना कर देता है। वह कहता है कि गौरव मेरा सबसे अभिन्न मित्र है। मुझे तो अफसोस इस बात का है कि अगर मुझे पहले पता लग जाता तो मैं पहले ही इसका इलाज करवा देता। यह पिछले दस साल से तो मेरे बहुत ही करीब है पर इसने कभी भी अपनी इस परेशानी के विषय में नहीं बताया।

दो दिन बाद ही पल्लवी की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। गौरव के रूकने का भी कोई औचित्य नहीं रह गया था। अभी पल्लवी को एक सप्ताह तक अस्पताल में ही रहना था। इसलिये आनन्द गौरव और पल्लवी की मां को वहां से वापिस घर भेज देता है। वह स्वयं वहीं रूक जाता है ताकि पल्लवी का उपचार पूरा हो जाए। आनन्द प्रतिदिन रात में ग्यारह बजे पल्लवी के पास आकर उसे चूम कर गाड ब्लैस यू कहकर गुड नाइट करके जाता है।

एक सप्ताह में पल्लवी ठीक हो जाती है। आनन्द डाक्टर से बात करता है डाक्टर उसे बतलाता है कि अब वह पूरी तरह से सामान्य है। डाक्टर समझता था कि आनन्द पल्लवी का पति है इसलिये वह यह भी बतलाता है कि अब वह कामक्रीड़ा सुरक्षित रुप से कर सकती है। किन्तु अभी कुछ समय तक कण्डोम का प्रयोग करना हितकर रहेगा। वह उसे लेकर होटल आ जाता है। इतने लम्बे समय में साथ-साथ रहने और पास-पास रहने के कारण आनन्द उससे मिलन के लिये बहुत व्याकुल था। वह उसे बतलाता है कि अभी दो दिन और चेन्नई में ही रहना पड़ेगा और डाक्टर को प्रतिदिन रिपोर्ट देना पड़ेगी।

उस समय रात के ग्यारह बजे थे जब आनन्द पल्लवी के पास उसके बिस्तर पर आ गया। उसने पल्लवी को बांहों में भरकर चूम लिया। धीरे-धीरे बात आगे बढ़ती गई। वह रात भर उसके बिस्तर पर उसके साथ ही रहा। सुबह पांच बजे जैसे ही उसकी नींद खुली वह भालू के समान पल्लवी के जिस्म को मसलने लगा। पल्लवी घबराकर उठ बैठी। वह उस पर झुंझलाई फिर बाथरुम चली गई। उनका यह हनीमून दो दिन तक चला। उसके बाद वे वापिस अपने गृहनगर आ गए।

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घर आने के लगभग एक माह बाद राकेश को मानसी का फोन आया कि पल्लवी और आनन्द आपसे मिलना चाहते हैं। किन्हीं गम्भीर विषयों पर आपसे सलाह लेना चाहते हैं। राकेश ने उन्हें तत्काल ही अपने पास बुला लिया। सामान्य औपचारिकताओं के बाद उसने आने का प्रयोजन पूछा। पल्लवी ने कहा- आप और दीदी ने मुझे इनसे मिलवाया था। मैं इनकी आदतों और इनकी हरकतों से बहुत परेशान हूँ। ये मेरे खिलाफ जासूसी करवाते हैं। होस्टल की सभी लड़कियों में मिठाई-फल वगैरह बांटकर उनसे मेरे विषय में पूछताछ करते रहते हैं। इन्होंने मेरी रुम पार्टनर को बाजार ले जाकर उसे कपड़े, परफ्यूम और अन्य सामान सिर्फ इसलिये दिलवाया ताकि वह मुझ पर नजर रखे और इन्हें जानकारी देती रहे। ऐसा ये क्यों कर रहे हैं। इससे मेरी इज्जत पर धब्बा लगता है। आनन्द कहता है मैं ऐसा कर रहा हूँ तो क्या गलत कर रहा हूँ। जब मैं तुम्हारे ऊपर प्रतिमाह ढेर सा रूपया खर्च कर रहा हूँ तो तुम्हारे विषय में सब कुछ जानने का अधिकार भी मुझे है।

पल्लवी बताती है कि ये प्रतिदिन रात में ग्यारह बजे फोन लगाकर मुझे फोन पर किस करते हैं। यह बात मेरी होस्टल की सभी लड़कियों को पता हो गई है। वे रात को ग्यारह बजे से पहले ही मेरे कमरे में आ जाती हैं। फिर मेरे मोबाइल का स्पीकर आन कर देती हैं। वे मुझसे कहती हैं कि बुढ़उ का फोन आने वाला है। इनका मजाक उड़ाती हैं और कहती हैं हम में कोई दम नहीं पर हम किसी से कम नहीं। आप ही बतलाइये ऐसी स्थिति में मैं उन्हें क्या उत्तर दूं।

पल्लवी इसके आगे कहती है कि इनके जैसा शक्की और पल-पल में रंग बदलने वाला मैंने पहले कभी नहीं देखा। इन्होंने मानसी पर आरोप लगाया है कि जो गहने इन्होंने मुझे दिये थे वे मानसी ले गई है। जबकि वे सारे गहने ये मेरे पास ही हैं। देख लीजिये। कोई कम तो नहीं है ? वह आगे कहती है कि इन्होंने जितने भी वादे मुझसे किये थे, एक भी पूरे नहीं किये। इन्होंने मकान दिलवाने का वादा किया था वह नहीं दिलवाया। इन्होंने बीस लाख की एफडी कराने का वादा किया था वह भी नहीं करवाई। गहने भी ये अपने लाकर में रखते हैं सिर्फ मुझे पहनने के लिये देते हैं और फिर वापिस ले लेते हैं। आनन्द बोला- मैं बीस लाख की एफडी इसके और गौरव के ज्वाइन्ट नाम पर खुलवाने को तैयार हूँ। उसका ब्याज प्रतिमाह इन्हें मिलता रहेगा। गौरव के मृत्यु के बाद वह अपने आप इसके नाम पर हो जाएगी।

इतना सुनते ही गौरव जो वहां बैठा था। वह बिचक गया। वह बोला- मैं इन लड़कियों के चक्कर में नहीं पड़ता। बीस लाख के चक्कर में किसी दिन मेरी जान ही चली जाएगी। तुम तो मुझे मरवाने का इन्तजाम कर रहे हो। इतना कहकर वह उन लोगों के बीच से उठकर चल देता है। वह किसी के रोकने पर भी नहीं रूकता।

आनन्द मानसी से उस पर लगाये झूठे आरोप के लिये माफी मांगता है। वह आगे कहता है जैसी तुम राकेश के लिये समर्पित हो वैसी पल्लवी मेरे लिये समर्पित नहीं है। यह मुझे प्यार भी नहीं करती और सहयोग भी नहीं देती। इस पर पल्लवी कहती है मैं और कैसे प्यार करुं और क्या सहयोग करुं। पता नहीं इनकी क्या अपेक्षाएं हैं। ये दिन में पच्चीस-तीस बार मुझे फोन लगाते हैं और चाहते हैं कि हर बार फोन मैं ही उठाऊं। मैं क्या दिन भर एक ही जगह बैठी रहूंगी। क्या कहीं आउंगी-जाउंगी नहीं। मैंने मकान भी देख लिया था अब ये कहते हैं कि मकान दो मंजिल का लो। एक मंजिल का पैसा मैं दे दूंगा और दूसरी मंजिल का पैसा राकेश दे देगा। इससे एक मंजिल पर तुम रहोगी और दूसरी मंजिल पर मानसी रहने लगेगी।

इस पर मानसी बोल पड़ी- वाह! वह! क्या बात है। ऐसी कोई बात हमारे बीच नहीं है। राकेश कोई मकान नहीं खरीदेगा। उसका स्वयं का फ्लैट है। वह दूसरा मकान क्यों खरीदेगा। तुम्हें जरुरत है तो तुम अपनी व्यवस्था स्वयं करो। जहां तक फिक्स डिपाजिट और बाकी चीजों की बात है, अगर आनन्द विश्वास नहीं करता है तो पल्लवी तुम्हें उसका विश्वास जीतना होगा। जहां तक ज्वाइन्ट एकाउण्ट की बात है तो वह पोंगा नम्बर दो तो भाग ही गया।

आनन्द बार-बार राकेश से कहता है कि देखो मैं इसे कितनी चीजें दे रहा हूँ फिर भी यह संतुष्ट नहीं है। इस मामले में तुम भाग्यवान हो जो तुम्हें मानसी जैसी मिली है। पल्लवी दूसरों के साथ भी घूमती है। क्या यह उचित है।

आपने तीस हजार रूपये महिना देने का वादा किया था लेकिन आप सिर्फ पन्द्रह हजार ही दे रहे हो। इस पर आनन्द भड़क जाता है और कहता है- मेरी महबूबा! मेरा विश्वास तो जीत फिर देख मैं तेरे लिये क्या-क्या नहीं करता हूँ।

आनन्द ने मुझे आश्वस्त किया था कि ये कोई अच्छा वकील करवा देंगे जिससे मेरा डायवर्स का केस जल्दी साल्व हो जाएगा। लेकिन आज तक इन्होंने इस दिशा में कुछ नहीं किया।

आनन्द कहता है कि हाँ! यह बात मैंने नहीं की। मेरी समझ में नहीं आता कि डायवर्स की तुम्हें क्या जल्दी है। कौन सी कमी है या कौन सा काम है जो डायवर्स के बिना अटका हुआ है। मैंने किसी वकील से इसलिये भी बात नहीं की क्योंकि मैं डरता हूँ, कहीं तुम उड़न परी बनकर उड़ न जाओ।

पल्लवी इस पर भड़क जाती है और अपनी बहिन से कहती है कि दीदी जरा इनकी बातें तो सुनो! ऐसे में किसको इनसे प्यार होगा। तुम्हीं समझाओ। उनकी तकरार बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे चलती रहती है। इसी बीच राकेश बोदका की बाटल निकाल लाता है। सबके लिये एक-एक पैग बनाता है और कहता है कि आपसी झगड़ा खतम करो और बोदका इन्ज्वाय करो।

बोदका के असर से पल्लवी के चेहरे पर सुरुर आ जाता है। राकेश आनन्द को कुछ इशारा करता है। आनन्द पल्लवी को लेकर अंदर चला जाता है। थोड़ी देर बाद राकेश जब कमरे का दरवाजा खोलता है तो दोनों कपड़े पहन रहे होते हैं। उसके बाद सभी एक-एक पैग और लगाते हैं। फिर पल्लवी और आनन्द वहां से चले जाते हैं। उनके जाने के बाद मानसी राकेश पर भड़क उठती है कि आपने उन दोनों को अपना कमरा उपयोग के लिये क्यों दिया। वह बताती है कि तुम्हारी अनुपस्थिति में आनन्द तुम्हारे खिलाफ क्या-क्या कहता है। वह यह भी बताती है कि आनन्द के घर वालों ने गौरव का उसके घर आना-जाना बन्द कर दिया है। बात समाप्त हो जाती है और राकेश भी अपने घर निकल जाता है।

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दूसरे दिन राकेश मानसी और गौरव को एक रेस्टारेण्ट में बुलाता है। राकेश पूछता है- कल अपनी जो चर्चा हुई उस पर तुम लोगों का क्या सोचना है?

मैं तो इसलिये उठकर चला गया था कि मैं आनन्द के इन चक्करों में नहीं फंसना चाहता, गौरव ने कहा। इनकी पत्नी और बच्चों ने मुझसे साफ-साफ कहा था कि मैं इनके घर न आऊं। ये मेरे कारण ही बिगड़े हैं। उन्होंने तो मेरे ऊपर यह आरोप भी लगा दिया कि मैं इनके लिये लड़कियों का बन्दोबस्त करता हूँ। इसीलिये मैं आनन्द के किसी भी काम में शामिल नहीं होना चाहता। आनन्द मेरे और पल्लवी के ज्वाइन्ट एकाउण्ट में पैसा रखना चाहता है। वह पैसा मेरे मरने के बाद ही पल्लवी को मिलेगा। पैसों को पाने के लिये पल्लवी