Raat ke 11baje - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

रात के ११बजे - भाग - ५

रह गया है। जब वे सामान लेकर होटल पहुँचते हैं तो देखते हैं कि राकेश अभी भी हाथ में व्हिस्की का गिलास लिये बैठा है। उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी।

दूसरे दिन सुबह सभी देर से उठे थे। बादल घिरे हुए थे। रात को कुछ पानी भी गिर गया था। बरसात का प्रभाव होटल के बाहर हर ओर दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी पचमढ़ी को धोया गया हो। ठण्डक भी बढ़ी हुई थी। मानसी राकेश और गौरव के कमरे में आ गई थी। वहीं बैठकर वे चाय पी रहे थे। गौरव ने राकेश से पूछा- आज का क्या प्रोग्राम है ? राकेश कह उठा तुम्हारी क्या मन्शा है।

मेरे पैर में तो कुछ दर्द हो रहा है और कमरे में ही आराम करने का मन हो रहा है।

मैं भी थकी हुई हूँ और मेरा मन भी कहीं जाने का नहीं हो रहा है। राकेश पचमढ़ी का नैसर्गिक सौन्दर्य देखते हुए बोल पड़ा-

मेघाच्छादित आकाश

उमड़-घुमड़ कर बरस रहे बादल

गरज रही बिजली

वायु का एक तीब्र प्रवाह

छिन्न-भिन्न कर देती है बादलों को

शेष रह जाता है

विस्तृत नीला आकाश।

कौन है ऐसा

जिसके जीवन रुपी आकाश में

घिरे न हों

परेशानी के बादल

गरजी न हों मुसीबत की बिजलियाँ

वह जो सकारात्मक सृजनशीलता और

धर्म-निष्ठा के साथ

जूझता है

परेशानियों और मुसीबतों से

उसके संघर्ष की वायु का प्रवाह

निर्मल कर देता है

उसके जीवन के आकाश को।

लेकिन

जहाँ होती है नकारात्मकता

जहाँ होता है अधर्म

वहाँ होता है पलायन

वहाँ होती है पराजय

वहाँ होती है कुण्ठा और

वहाँ होता है अवसाद

वहाँ छाये रहते हैं बादल

और वहाँ कड़कती रहती हैं बिजलियाँ।

प्रत्येक का जीवन होता है

नीला निर्मल आकाश।

व्यक्ति की सोच

सच्चाई और सक्रियता

भर देती है उसे

बादल पानी और बिजली से

अथवा कर देती है उसे

नीला, निर्मल और प्रकाशवान

यही है जीवन का यथार्थ।

मानसी इसे सुनकर काफी प्रभावित हुई थी। उसने राकेश से कहा- मुझे नहीं पता था कि आप कविता भी रचते हैं। मैं आपकी और भी कविताएं सुनना चाहूँगी।

इसी बीच राकेश ने मानसी से कहा- मेरे प्रति तुम्हारे विचारों से मैं अभीभूत हूँ। इससे मुझे जीवन में हमेशा प्रेरणा मिलेगी और ये जीवन की राहों में मार्गदर्शन देंगी। एक अच्छा मित्र मिलना सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि होती है और मैं सोचता हूँ कि यह तुम्हारे रुप में मुझे प्राप्त हो रही है। प्रेम, एक पूजा या भक्ति के समान है। प्रेम दिल की अभिव्यक्ति व मन से निकली भावना को परिवर्तित करके अनुभूति बनती है। यह दिल की चाहत व उसके मन्थन से उत्पन्न विचारों की अन्तिम परिणिति है। मुझे इसका बहुत गम्भीर अनुभव हो चुका है। प्रेम का कोई स्वरुप नहीं होता, न ही इसका कोई विकल्प है। यह एक दिव्य ज्योति है जिसके प्रकाश का आभास हमारे दिल में होता है। यह एक कल्पना है जो वास्तविकता में परिवर्तित होकर जीवन का आधार बनती है। एक तपस्या है एवं भावनाओं का समर्पण है एक ऐसी भक्ति है जिसका न तो प्रारम्भ है और न ही कहीं अन्त है। प्रेम से सुख और शान्ति मिलती है और यह जीने की कला सिखाती है। जीवन में सच्चा प्रेम तन और मन को बल एवं आत्मा में चेतना जागृत करता है। जीवन में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आ जाएं। प्रेम कभी समर्पण नहीं अर्पण ही करता है एवं संघर्ष की क्षमता प्रदान करता है। तुम्हारे अन्तरमन में मेरे प्रति जो प्रेममय भावना है उसका पता मुझे आज चला। मैं निश्चित रुप से बहुत भाग्यवान हूँ। मुझे आशा है कि तुम कठिन परिस्थितियों में सही मार्ग दिखाकर कृतार्थ करती रहोगी। जीवन में याद रखना विश्वसनीयता विश्वास की जननी है। इसके बिना जिन्दगी अधूरी रहती है यदि विश्वसनीयता संदिग्ध है तो विश्वास का अन्त हो जाता है इसकी पहचान हमारे स्वविवेक, आत्म मन्थन और अन्तरमन की भावनाओं से होता है। विश्वसनीयता और विश्वास के महत्व को हम तब समझ पाते हैं जब हमारे साथ विश्वासघात होता है। तब हम सोचते हैं कि हमने विश्वसनीयता को परखे बिना किसी पर विश्वास क्यों किया। मुझे आशा है कि तुम्हारे और मेरे बीच ऐसी परिस्थितियां कभी नहीं आएंगी और हमारे बीच विश्वास की यह पतली डोर हमेशा बंधी रहेगी।

उसने मानसी से पूछा- तुम मुझे सच-सच और स्पष्ट अभी बता दो कि तुम मुझसे क्या अपेक्षा रखती हो। मानसी ने भी बिना किसी औपचारिकता के तीन मांगे विनम्रता पूर्वक राकेश के सामने रखीं। पहली उसके दोनों बच्चे आरती और भारती को अच्छी शिक्षा दिलवा कर उन्हें आत्म निर्भर बना देवें ताकि उनका जीवन संवर सके। दूसरा आपको मेरी पारिवारिक परिस्थितियों के विषय में पूरा ज्ञान हो चुका है। मेरी कोई बहुत बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं है। मुझे कोई ऐसा व्यापार करवा देवें जिससे मेरा परिवार जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। मैं जानती हूँ कि आवश्यकताओं का कभी अन्त नहीं होता। किन्तु मैं सीमित साधनों में ही सुखी जीवन की कल्पना कर रही हूँ और तीसरी व अन्तिम अपेक्षा आपसे है कि मेरी बड़ी बेटी आरती जो चौदह साल की है वह हीनता बोध का शिकार हो रही है। उसे फिल्मों में न जाने कैसे हीरोइन बनने का भूत सवार हो गया है। आपके मुम्बई में फिल्म इन्डस्ट्रीज में काफी पहचान है या तो आप उसका भूत उतार दीजिये या उसे फिल्म इन्डस्ट्रीज में कोई स्थान दिला दीजिये। इतना कहकर मानसी ने राकेश की ओर आशा और याचना भरी निगाहों से देखा। गौरव भी राकेश की ओर नजर गड़ाये था। राकेश ने अपना मोबाइल उठाया और आनन्द को फोन करके कहा- आरती और भारती का एडमीशन वह उसके स्कूल में कराना चाहता है। उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह फीस में किसी प्रकार का डिस्काउण्ट नहीं चाहता और इस पर होने वाला समस्त व्यय वह स्वयं करेगा। आनन्द ने भी इसे स्वीकार करते हुए बतलाया कि उसका एडमीशन हो जाएगा। अब राकेश ने अपने एक मित्र को फोन लगाकर दो टैक्सियां उठवा दीं जिनकी मार्जिन मनी राकेश ने अपने एकाउण्टेण्ट को कहकर भुगतान करवा दिया और बाकी की रकम फाइनेन्स कम्पनी से उपलब्ध हो गई। राकेश ने मानसी को कहा कि तुम्हारे दोनों काम मैंने करा दिये हैं, अब तुम मेहनत करो। श्रम व परिश्रम से धन कमाओ। अपनी किस्तों का भुगतान करो और सुखी जीवन का आनन्द उठाओ। रही तुम्हारी तीसरी बात तो यह तो मैं आरती से मिलकर ही उसका निर्णय कर सकूंगा। मानसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि राकेश इतनी शीघ्रता से उसकी सारी कठिनाइयों को दूर कर देगा। आज का सूरज उसके जीवन में एक नया प्रकाश लेकर आया था। वह समझ नहीं पा रही थी कि किन शब्दों में राकेश के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करे। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे मानों ये आंसू ही उसके प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति कर रहे थे।

गौरव यह सब देख सुनकर बहुत सुन्दर किया, बहुत सुन्दर काम किया कह रहा था। यू आर ए ग्रेट मेन, देट इज व्हाई यू आर ए सक्सेसफुल परसन इन योर लाइफ। राकेश ने मानसी से कहा- मैं आज पचमढ़ी की हसीन वादियों में चिन्तन कर रहा था कि जीवन कैसा हो? मैं सोचता हूँ विसंगतियों एवं कुरीतियों का विध्वंस होकर व्यभिचार व अनीतियों की समाप्ति होना चाहिए हम अपने स्वविवेक एवं स्व चिन्तन से प्रतिदिन नूतन सृजन करें और सभी के प्रति स्नेह रखते हुए उनसे अपने प्रति प्यार की कामना रखें। जीवन में कड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। यह सोच हमारे दिल और आत्मा में होना चाहिए। तुम प्रभु के प्रति विश्वास और समर्पण रखना तभी सदाचार, सद्भावना और सद्बुद्धि, चिन्तन और मनन से जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर सकोगी और सुख समृद्धि वैभव व मान-सम्मान तुम्हें प्राप्त होगा। परपीड़ा को दूर करने के लिये हमेशा दोनों हाथ खुले रखना ऐसी भावना अपने मन में रखोगी तभी खुशियों के नये संसार का आगमन होगा। विपरीत परिस्थितियों का निर्गमन होकर कुरीतियां पराजित होंगी। एक नये सूर्य का उदय होगा और तुम्हारी सभी अभिलाषाएं पूरी होंगी। समय कितना भी विपरीत हो कभी मत डरना। साहस और भाग्य पर विश्वास रखना धैर्य एवं साहस से सफलता की प्रतीक्षा करना। यही तुम्हारी सफलता का आधार बनेगा। कठोर श्रम दूर दृष्टि और पक्का इरादा कठिनाइयों को समाप्त करेगा यही जीवन का क्रम होता है और यही जीवन का आधार।

गौरव ने राकेश से पूछा कि तुम्हें मानसी ने नागपुर यात्रा के विषय में बताया या नहीं।

राकेश कुछ चौका और कह उठा- नहीं तो। यह नागपुर का क्या मामला है?

मानसी भी चौकी थी। उसने भी कहा- यह नागपुर यात्रा का क्या किस्सा है?

गौरव ने राकेश को संबोधित करते हुए कहा- मैं तो समझ रहा था कि पल्लवी ने मानसी को नागपुर यात्रा के विषय में बतलाया होगा और मानसी ने तुम्हें बतला दिया होगा।

मानसी ने कहा कि पल्लवी ने जब मुझे कुछ बताया ही नहीं तो फिर मैं इन्हें कैसे कुछ बता सकती हूँ। मुझे तो बस इतना ही पता है कि पल्लवी और आनन्द पिछले सप्ताह नागपुर गये थे।

यह सुनकर गौरव ने बताना प्रारम्भ किया- पिछले सप्ताह आनन्द एक ठेकेदार और मुझे अपने साथ नागपुर ले गया था। उसके साथ पल्लवी भी थी। हम लोग होटल तूली में ठहरे थे। शाम को जब शराब का दौर चल रहा था। आनन्द, ठेकेदार और पल्लवी दो-दो पैग चढ़ा चुके थे। तीनों को सुरुर चढ़ने लगा था। वह ठेकेदार जिसका नाम शायद उमेश था वह पल्लवी की ओर घूरता हुआ बोला- जीवन में वासना प्रेम बन सकती है प्रेम कभी वासना नहीं बन सकता। प्रेम आत्मा का लगाव व स्नेह है इसकी संतुष्टि केवल पत्नी से ही मिल सकती है। क्योंकि उसके साथ आत्मा और मन का मिलन होता है। वासना कुछ क्षण के लिये संतुष्टि देती है। यह भौतिक सुख बढ़ाती है और कामुकता के कारण सेक्स की प्यास और बढ़ा देती है। वह आनन्द से पूछता है कि तुम्हारा क्या खयाल है?

आनन्द कहता है- काम वासना नहीं है। कामुकता वासना हो सकती है। काम से ही दुनियां में जो कुछ दिख रहा है वह होता है। हमारा अस्तित्व भी तो इसी के कारण ही है। इसलिये काम के प्रति समर्पित रहो। इसी में जीवन का सुख है और यही जीवन का सत्य है। इतना कहते-कहते उमेश की नजर बचाकर आनन्द ने आंखों ही आंखों में पल्लवी को कुछ इशारा किया।

पल्लवी ने भी वार्तालाप में भाग लेते हुए कहा- काम और वासना के अतिरिक्त भी जीवन में बहुत कुछ है जो महत्वपूर्ण है। मेरी नजर में तो सृजन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सृजन ही जीवन है, जीवन है तभी सृजन है। अपनी भावनाओं और कल्पनाओं को वास्तविकता में परिवर्तित करने की कला का नाम ही सृजन है। सकारात्मक सोच हो तो सृजन वैचारिक क्रान्ति को जन्म देता है। आदमी तो एक दिन चला जाता है, उसका जीवन समाप्त हो जाता है, किन्तु उसका सृजन यहीं रहता है और उसकी कर्मठता की गाथा सुनाता है।

इतना कहकर वह कुछ ठहरी। उसकी बात सुनकर दोनों ही चुप हो गए थे। उसने फिर कहा- सुहाना मौसम है, महफिल सजी है, शमा आपके साथ है और आप लोग जाने कैसी बातें कर रहे हो। आप लोगों की बातों से मैं स्वयं को तन्हा सा महसूस कर रही हूँ। उस पर भी व्हिस्की का सुरुर तारी हो रहा था। वह बोली- जिसके सामने शराब और शबाब दोनों हों वह ऐसी बहकी-बहकी बातें करे यह मैंने पहली बार देखा है। ये शरीर भी भगवान ने बनाया है और इसमें हर अंग अपना महत्व रखता है।

आनन्द बोल उठता है कहीं तुम्हारा इशारा मेरी ओर तो नहीं है? वह बोली- आपको तो मैं अच्छी तरह जानती हूँ मैं तो इन जनाब की बात कर रही थी। उमेश को यह बात चुनौती सी लगी। वह बोला मैडम आपने अभी मुझे देखा ही कहाँ है?

समय मिला तो देख लूंगी। मैं आनन्द के साथ वालों को जानती हूँ। उसने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा- एक ये महाशय हैं जो केवल हार्न बजाते हैं। इन्हें गाड़ी स्टार्ट करना भी नहीं आता। मुझे बुरा तो लगा था लेकिन मैं चुप ही रहा।

उसी समय आनन्द ने उठकर पल्लवी से कहा - तुम उमेश का खयाल रखना। मुझे नींद आ रही है और वह अपने कमरे में चला गया। पल्लवी आनन्द का इशारा समझ चुकी थी। आनन्द अपने धन्धे के लिये उमेश को सिद्ध करने की नीयत से आया था। वह चाहता था कि उमेश से उसका व्यापारिक हित सधता रहे। इसीलिये आनन्द, पल्लवी को उमेश के साथ छोड़कर वहां से चला गया था।

मुझे अधिक नशा नहीं हुआ था फिर भी मैं आनन्द के साथ ही अपने कमरे में चला गया था। लेकिन मैं गया नहीं था। मैं तो पल्लवी की सारी हरकतें देखना चाहता था इसलिये बाहर दरवाजे की आड़ से सब कुछ देखता रहा। हम लोगों के जाने के बाद पल्लवी ने एक-एक पैग और भरा। पैग भरते-भरते उसने अपना पल्लू नीचे ढलका दिया था। उमेश की नजरें उसके छलकते यौवन को देखकर देखती ही रह गईं थीं। उमेश ने अपना गिलास उठाया और अपने मुंह की ओर ले जाने लगा तो पल्लवी ने उसका हाथ पकड़ लिया। फिर बोली- साकी के हाथों से भी तो पीकर देखो उसका मजा और नशा ही कुछ और होता है।

उमेश ने अपने दूसरे हाथ से पल्लवी का वह हाथ थाम लिया जिसमें उसका गिलास था और उसे बढ़ाकर अपने होठों से लगा लिया। पल्लवी ने भी उमेश का गिलास वाला हाथ अपने होठों की ओर बढ़ा लिया। वह पैग दोनों ने एक दूसरे के हाथ से ही पिया। पल्लवी ने एक चिप्स का टुकड़ा उठाया और उसका किनारा अपने होठों में दबाकर उमेश की ओर अपना चेहरा बढ़ाया। उमेश ने अपने होंठ बढ़ाकर उस चिप्स को पकड़ने का प्रयास करते-करते अपने दोनों हाथ पल्लवी की पीठ पर रख दिये। चिप्स टूट गया। आधा पल्लवी के मुंह में और आधा उमेष के मुंह में था लेकिन उमेश ने उसे अपनी ओर खींच लिया था। पल्लवी ने भी अपनी बांहों में उमेश को भर लिया था। होंठों से होंठ चिपके थे और दोनों एक दूसरे की बांहों में थे। कुछ देर एक दूसरे की बांहों में रहने के बाद ही दोनों उमेश के कमरे में चले गये और दरवाजा भीतर से बंद करके उनने लाइट आफ कर ली थी।

दूसरे दिन सुबह आनन्द ने होटल चैकआउट के लिये बिल मंगवा लिया था। बयालीस हजार का बिल बना था। आनन्द ने उमेश से कहा कि वह आधा बिल और पल्लवी का मेहनताना भी अदा करे। उमेश इस बात से नाराज हो गया। वह बोला- तुम मुझे इन्टरटेन करने के लिये यहां लाए थे और तुमने ही पल्लवी को मेरे पास भेजा था फिर भला मैं कोई भी पेमेन्ट क्यों करुंगा। यह तो तुम्हें ही करना है। दोनों में कुछ देर तक तकरार चलती रही। उसी समय कुछ पुलिस वाले वहां आये। मुझे लगा कि कहीं किसी ने इन लोगों की शिकायत तो नहीं करा दी है। इनने होटल के सारे रुम हमेशा की तरह मेरे ही नाम और मेरे ही आइडेण्टिटी पर बुक कराये थे। इसलिये मैंने इनसे कहा कि अपनी यह झंझट जल्दी खतम करो और यहां से चलो। आनन्द ने भी जब पुलिस को देखा तो उसे लगा कि कहीं उलटे बांस बरेली को न लद जाएं। उसने पूरा बिल अदा करने में ही अपनी भलाई समझी और बिल अदा कर दिया। वह तो मुझे बाद में पता चला कि पुलिस अपने किसी अफसर की सेवा के लिये आई थी।

वहां से निकलकर जब हम लोग एयरपोर्ट की ओर जा रहे थे तो उमेश ने आनन्द को बहुत बुरा-भला कहा। वह उससे बोला था कि तुम बहुत खूसट और चीमड़ किस्म के आदमी हो। तुम मुझे स्वयं इन्टरटेन करने के लिये लाये थे और फिर मुझी से पैसे मांगने लगे। ऐसा करते हुए तुम्हें शर्म भी नहीं आती। तुम औरों को बेवकूफ समझते हो। मैं क्या चीजों की कीमत भी नहीं जानता। अब तुम मुझसे किसी काम की उम्मीद मत करना। मैं आगे से तुमसे मिलना भी नहीं चाहता। वह एयरपोर्ट तक इसी प्रकार लताड़ता रहा और आनन्द चुपचाप सुनता रहा। एयरपोर्ट पर उन लोगों ने उमेश को छोड़ा। उसे किसी काम से बम्बई जाना था। वह चला गया तो इनकी टैक्सी इनके गृहनगर की ओर बढ़ गई।

काफी देर तक टैक्सी में सन्नाटा रहा। उमेश की लताड़ के बाद गौरव चुप था। आनन्द अपने अपमान से तिलमिला रहा था। तभी पल्लवी ने इस शान्ति को अपनी तीखी आवाज से भंग किया। वह आनन्द पर बरस पड़ी थी। उसने आनन्द से कहा कि वह आनन्द के कहने से आनन्द की खुशी के लिये उस दो कौड़ी के ठेकेदार के पास गई थी। वरना इस प्रकार के लोगों को वह घास भी नहीं डालती। आपके सामने वह मुझे अपमानित कर रहा था और आप चुपचाप सुनते रहे। मेरी इच्छा उस कमीने को उतार कर चप्पल मारने की हो रही थी लेकिन आपका लिहाज करके मैं चुप रही। मुझे लग रहा था कि आप जरुर कोई माकूल जवाब उसे देंगे। आप दोनों पोंगे हो। आप पोंगा नम्बर एक हैं और यह पोंगा नम्बर दो।

तब मैंने उससे कहा- मैं क्या कर सकता था। तुम जैसे आई हो वैसे ही मैं भी आया था। जब इन्होने कोई जवाब नहीं दिया तो मैं कैसे बोल सकता था। तुम्हें भी ये ही लाये थे और उसे भी इन्होंने ही बुलवाया था। यह तो तुम लोगों के बीच की बात थी इससे मेरा क्या लेना देना और मुझे तुमसे भी क्या लेना देना। तुम्हारा जो भी लेन-देन है वह तो इन्हीं लोगों से है फिर मुझे बीच में क्यों घसीट रही हो।

मेरी बात सुनकर पल्लवी एक मिनिट तो मौन रही परन्तु फिर बोली- मैं राकेश और मानसी को भी यह बात बतलाऊंगी। उन्हें भी समझ में आना चाहिए कि तुम लोगों का असली चेहरा क्या है।

उसकी बात सुनकर आनन्द के हाथ पैर फूल गए। वह कहने लगा- जो हो चुका उसे भूल जाओ। बात आगे बढ़ेगी तो मेरे साथ-साथ तुम लोगों की भी बदनामी होगी। बेहतर होगा कि इस बात को यहीं दफन कर दो। सबसे अधिक घाटा तो मेरा हुआ है। जिस काम के लिये आया था वह काम भी नहीं हुआ। तुम्हारा मजा भी मुझे नहीं मिला वह भी उमेश को मिला। मेरे तो पचास हजार भी डूब गये। ऊपर से पहले उसने जूते मारे अब तुम चप्पलें चटका रही हो। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि कहीं मुझे हार्ट अटैक न हो जाए।

सुनकर पल्लवी कुछ सोच में पड़ गई थी। कुछ पल रूककर उसने कहा- तुम उद्योगपति के साथ-साथ नेता भी हो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। तुम अभी नहीं मरने वाले। शायद तुमने नेता और यमराज का किस्सा नहीं सुना।

वक्त कभी स्थायी नहीं होता। यह बहुत चंचल होता है। एक दिन वक्त विधान सभा के आसपास घूम रहा था। तभी उसकी मुलाकात वहां यमदूत से हो गई। वक्त ने यमदूत से पूछा- आप यहां कैसे? यमदूत बोला- नेता जी का समय पूरा हो गया है और वह उन्हें यमलोक ले जाने के लिये आया है। अभी विधानसभा में नोकान्फिडेन्स मोशन पर बहस चल रही है। इसके समाप्त होते ही नेता जी को लेकर मुझे यमराज के पास जाना है। इसी बीच विधानसभा परिसर से आवाजें आने लगीं। यह देखने के लिये कि माजरा क्या है? वक्त दर्शक दीर्घा में चला गया। वह वहां का माहौल देखकर आश्चर्य चकित रह गया। उसने देखा कि सारे जन प्रतिनिधि एक दूसरे को गालियां दे रहे और एक दूसरे के कपड़े फाड़ रहे है। यमदूत ऐसी अनुशासनहीनता एवं खादी के कपड़ो का अपमान देखकर नेता जी को बिना लिये ही यमलोक वापिस हो गया। यमलोक में यमराज को उस दूत ने पूरी घटना सुनाई और कहा कि हे यमराज यदि इस प्रकार की आत्माएं यहां आ जाएंगी तो हमारी सभ्यता, संस्कृति और

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