रात के ११बजे - भाग - ८ Rajesh Maheshwari द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रात के ११बजे - भाग - ८

किया करता था। उसके पास समय का बहुत अभाव होता था। वह शाम को एक-दो घण्टों के लिये ही पल्लवी से मिल सकता था। पल्लवी से मिलकर आनन्द की दिनचर्या बदल गई थी। उसे लगने लगा था कि पल्लवी के आने से उसके जीवन का अभाव दूर हो गया है। वे प्रायः किसी होटल या रेस्टारेण्ट में मिला करते थे। आनन्द जब शाम को पल्लवी से मिलता था तो वह अपनी स्क्रीन लगी हुई कार का प्रयोग करता था। सामान्यतः वह नंगे सिर रहा करता था किन्तु जब वह पल्लवी के साथ होता था तो उसके सिर पर कैप लगा रहता था। वह कैप इस प्रकार होता था कि उसके चेहरे का आंखों तक का हिस्सा लगभग ढका रहता था। पल्लवी को समझाने के लिये वह इसे अपनी देवानन्द के प्रति दीवानगी का कारण बताता था। जबकि वास्तव में वह अपने परिचितों की नजर से बचने के लिये ऐसा करता था। यह और बात है कि इश्क, मुश्क और खांसी छुपाये नहीं छुपती। वह तो जग जाहिर हो ही जाती है।

सप्ताह में एक साप्ताहिक अवकाश का दिन ही हुआ करता था जब वे खुलकर लम्बे समय तक साथ रह पाते थे। उस दिन वह पल्लवी को प्रायः शहर से दूर कहीं एकान्त में ले जाया करता था। ऐसे ही एक दिन वह पल्लवी के साथ पास की नदी में नाव पर उसके साथ था। नाव चल रही थी और वह पल्लवी के साथ उसका हाथ अपने हाथ में लिये बैठा था।

महबूबा ! इतनी चुप क्यों हो ?

मैं कुछ सोच रही हूँ।

क्या सोच रही हो ?

यही कि जिन्दगी क्या चीज है ?

जिन्दगी इस नदी के समान है।

फिर यह नाव क्या है ?

नाव हमारा शरीर है।

फिर यह केवट क्या है ?

केवट है हमारी आत्मा। जैसे आत्मा हमारी काया को चलाती है वैसे ही यह केवट इस नाव को चला रहा है।

केवट के हाथ में पतवार क्या है ?

पतवार हैं हमारे कर्म। जैसे कर्म होंगे जीवन वैसा ही और उसी दिशा में चलता है। नदी का उद्गम है जैसे हमारा जन्म और इसका समुद्र में मिलना वैसा ही है जैसे हमारी मृत्यु।

फिर सुख, दुख और परेशानियां क्या हैं ?

जैसे जब यह नदी जंगलों और पहाड़ों से होकर बहती है तो इसकी चाल बदल जाती है। इसके चलने का तरीका बदल जाता है। वैसे ही सुख, दुख और परेशानियां जीवन की चाल को बदल देते हैं। जो आगे बढ़ता जाता है वह इस नदी के समान अपने जीवन के लक्ष्य को पाने में सफल होता है।

आप जीवन की इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। आपको मेरे जीवन के विषय में क्या पता है ?

मुझे तुम्हारे जीवन के विषय में कुछ भी जानने की जरुरत नहीं है। मैं तो केवल यह जानता हूँ कि तुम मेरे साथ हो और तुम्हारा साथ पाकर मेरे जीवन के सारे अभाव दूर हो गये हैं। सच बता रहा हूँ कि जब मैं तुम्हारे साथ होता हूँ तभी मुझे लगता है कि मैं एक इन्सान हूँ वरना तो मेरा जीवन किसी मशीन की तरह ही चलता है। मेरे परिवार में भी सभी अपने-अपने काम में लगे रहते हैं। ईश्वर ने अकूत सम्पत्ति दी है। कहना तो नहीं चाहिए पर तुम्हें बताता हूँ कि राकेश के पूरे परिवार के पास जितनी सम्पत्ति है उससे अधिक सम्पत्ति मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य के पास है। लेकिन सभी अपने-अपने में ऐसे डूबे रहते हैं कि मुझे लगता है जैसे परिवार में मेरा कोई नहीं है।

यही तो मैं भी कहती हूँ कि मेरा और आपका कोई साथ नहीं है। आप के पास अकूत सम्पदा है और मेरे पास कुछ भी नहीं है।

तुम चिन्ता क्यों करती हो ? जब मैं तुम्हारे साथ हूँ तो मेरा धन, मेरा मन और मेरा तन सभी कुछ तो तुम्हारा है। तुम मेरे साथ रहो तो मैं तुम्हें भी वह सभी कुछ दूंगा जिसकी तुम्हें जरुरत है। मुझे बताओ तुम क्या चाहती हो।

मैं चाहती हूँ कि आप मेरे पिछले जीवन के विषय में सब कुछ जाने ताकि अगर कोई और आपको मेरे विषय में कुछ कहे तो आपको बुरा न लगे।

मुझे तुम्हारे अतीत में कोई रूचि नहीं है। मैं तो वर्तमान देख रहा हूँ और अपने व तुम्हारे भविष्य को संवारना चाहता हूँ। तुम मानसी को ही देखो ! राकेश के साथ वह कितनी प्रसन्न है। मैं तुम्हारे चेहरे पर भी वैसी ही प्रसन्नता देखना चाहता हूँ।

वह तो तब होगा जब आप मेरे अतीत को भी जाने।

आनन्द चुप रहता है।

कुछ रूककर पल्लवी उसे बताती है। बचपन में जब वह बिलकुल नादान थी तब उसका एक पड़ौसी उसके साथ अजीब-अजीब हरकतें करता था। वह उसके पूरे शरीर को छूता था और उनसे खेलता था। उसे यह कभी-कभी बुरा लगता था। लेकिन जब वह वापिस जाने लगती थी तो वह उसे कभी पैसे देता था, कभी खाने-पीने का सामान देता था और कभी-कभी कुछ अन्य सामान देता था। उस समय वह और उसका परिवार बहुत गरीबी में था। उसे उन चीजों की बहुत जरुरत हुआ करती थी। इसलिये वह बुरा लगता तो भी दुबारा उसके पास पहुँच जाया करती थी। धीरे-धीरे उसे वह सब अच्छा भी लगने लगा।

कुछ समय बाद ही जब उसके शरीर का विकास होने लगा और यह विकास दिखलाई देने लगा तो और भी लोग उसकी ओर आकर्षित होने लगे। इनमें उम्र दराज अधेड़ और बूढ़े भी थे और आस-पड़ौस के हम उम्र लड़के भी। वे जो चाहते थे उसमें उसे कुछ भी नया नहीं लगता था। लेकिन उसे यह समझ में आने लगा था कि इस तरीके से वह सब कुछ सरलता से प्राप्त किया जा सकता है जो और तरीकों से कड़ी मेहनत करके भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। वह लोगों को वह सुख देने लगी जो वे चाहते थे और उसे इसके बदले वह सब मिलने लगा जो वह चाहती थी। जब यह बात उसकी मां को पता चली थी तो उसने उसे बहुत कुछ कहा-सुना था। लेकिन उस पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसके कारण बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी करवा दी गई। माँ ने बड़ी मुश्किल और मेहनत के बाद उसकी शादी करवाई थी। जहां उसकी शादी हुई थी वह परिवार भी गरीब परिवार ही था। परिणाम यह हुआ कि वहां भी उसके पुरूष मित्र बन गए। यह बात उसके पति को मंजूर नहीं थी। इसलिये वह आये दिन मारपीट करने लगा। घर में कलह बढ़ी तो एक दिन वह वहां से अपनी मां के घर आ गई। यहां उसका संबंध एक अन्य पुरूष से हो गया। वह एक सम्पन्न किस्म का व्यक्ति था। पल्लवी ने भी उसे अपने जीवन साथी के रुप में स्वीकार कर लिया और बाहरी पुरूषों से किनारा कर लिया। वह उसके साथ एक अच्छी पत्नी के रुप में रहने लगी।

एक दिन उसका पति अपने एक मित्र को घर लाया और उसने बताया कि वह कहीं बाहर से आया है और एक दिन अपने घर पर रहेगा। लेकिन उसके साथ ही उसने यह भी बतलाया कि वह स्वयं एक आवश्यक कार्य से बाहर जा रहा है और कल वापिस आ जाएगा। उसके मना करने पर भी वह उसे समझा कर चला गया। उस रात को वह आदमी उसके पास आ गया। उसने उससे संबंध बनाया और बदले में उसे एक अच्छी राशि देकर चला गया। उसने यह भी कहा कि वह यह बात किसी और को नहीं बताएगा। यद्यपि उसे उस रात की घटना का अफसोस तो था किन्तु कुछ खास बुरा भी नहीं लगा था क्योंकि यह उसके लिये कोई नई बात नहीं थी। फिर कुछ दिन बाद एक दूसरे आदमी के साथ फिर वही स्थिति हुई, तब भी उसे समझ में नहीं आया। लेकिन जब यह लगातार होने लगा तो उसकी समझ में आया कि उसका पति यह सब जानबूझ कर कर रहा है। वह उन लोगों से पैसे भी लिया करता था। कुछ दिन और यह क्रम चला तब उसकी समझ में आया कि उसका वह तथाकथित पति बड़ी चतुराई से उससे वेश्यावृत्ति करवा रहा था। तब वह उसे छोड़कर भाग आई। तब तक मेरा परिचय आपसे हो चुका था। आगे की कहानी तो आप जानते ही हैं।

आनन्द जो अब तक उसकी सारी बातें सुन रहा था बोला- जो बीत गया मैं उस पर बात नहीं करना चाहता। मुझे तो तुमसे मिलने के बाद ऐसा लगने लगा है जैसे मैं तुम्हारे बिना अकेला हूँ। कभी-कभी लगता है कि क्या सचमुच मैं अकेला हूँ। तुम नहीं रहती हो तब भी तुम्हारी याद मेरे साथ रहती है। तुम मेरे दिल में बस गई हो। मुझे हर पल अपने होने का अनुभव कराती हो। मैं चाहता हूँ कि तुम बीता हुआ सब कुछ भूल जाओ। अपने भविष्य की सोचो। मेरा साथ दो। मैं तुम्हारा जीवन संवार दूंगा।

जीवन में चिन्ताएं आती हैं। हमें उन पर विचार करना चाहिए। उससे हमें उनका कारण समझ में आता है। उससे उनसे मुक्त होने का रास्ता भी दिखलाई देता है। सही समय पर सही निर्णय लेकर आगे बढ़ने से चिन्ताएं समाप्त हो जाती हैं। यह क्रम जीवन भर चलता रहता है।

दो दिन बाद मैं तुम्हारी मां को और गौरव को लेकर चेन्नई जा रहा हूँ। माँ की आंख दिखाना है और आपरेशन भी करवाना है। वहीं गौरव की आंख की जांच भी करवाना है। मैंने मानसी और राकेश से भी चलने कहा था। राकेश कहीं और बिजी है वह नहीं जा सकता। वह नहीं जा रहा है इसलिये मानसी ने भी जाने से मना कर दिया है। मैं चाहता हूँ कि तुम भी मेरे साथ चेन्नई चलो।

आनन्द की बात सुनकर पल्लवी अपनी सहमति दे दी। नियत समय पर आनन्द, पल्लवी की माँ, पल्लवी और गौरव हवाई जहाज से चेन्नई के लिये प्रस्थान करते हैं।

- - -

चेन्नई हवाई अड्डे पर जब जहाज उतरता है और सब लोग उससे बाहर आते हैं तो पल्लवी और उसकी माँ वहां का दृश्य, साज-सज्जा एवं वातावरण देखकर अभीभूत हो जाते हैं। उन्हें ऐसा लगता है जैसे वे किसी और ही दुनियां में आ गए हों। इसके पूर्व तक उन दोनों ने रेल के वातानुकूलित श्रेणी में भी यात्रा नहीं की थी। अचानक इस वैभव पूर्ण वातावरण को देखकर उनकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। आनन्द का उन सब को हवाई जहाज में लाने का मकसद राकेश को नीचा दिखाना भी था। दूसरा वह अपने धन का प्रदर्शन करके पल्लवी और उसकी मां को प्रभावित भी करना चाहता था।

ट्रेवल ऐजेन्सी के द्वारा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दो टैक्सी उपलब्ध करा दी गई थीं। एक टैक्सी पर पल्लवी की मां और गौरव शंकर नेत्रालय के कैम्पस में उनके गेस्ट हाउस में चले जाते हैं, दूसरी टैक्सी में आनन्द और पल्लवी ताज होटल निकल जाते हैं।

गौरव, आनन्द, पल्लवी और उनकी माता जी के स्वभाव में भिन्नता थी। परन्तु उनमें एक सामन्जस्य था। एक-दूसरे को समझने की परिपक्वता थी। आनन्द ने सभी चिकित्सकों से तीन दिन बाद का समय लिया था। ये तीन दिन वह पल्लवी के साथ एकान्त में बिताकर उसके दिल में अपने लिये प्यार पैदा कर देना चाहता था। वह पल्लवी के साथ जीवन का मजा भी लेना चाहता था। वह यह भी जानना चाहता था कि पल्लवी का साथ उसके जीवन में कहां तक रहेगा। गौरव एक धार्मिक प्रवृत्ति का गम्भीर एवं प्रभु के प्रति आस्थावान व्यक्तित्व था। इसके विपरीत आनन्द धर्म और ईश्वर में कम आस्था रखता था। उसका विश्वास कर्म पर था। पल्लवी और उसकी माँ ने जीवन में इतने कष्ट भोगे थे और उनका जीवन इतनी यातनाओं से गुजरा था कि उन्होंने एक प्रकार से सोचना ही छोड़ दिया था। उनके लिये पैसा ही भगवान था।

वे चारों शाम के समय समुद्र के किनारे भ्रमण के लिये पहुँचते हैं और वहां का विहंगम दृश्य देखकर प्रफुल्लित हो जाते हैं। पल्लवी की मां और गौरव आगे-आगे चल रहे थे और आनन्द पल्लवी के साथ उनसे कुछ दूरी बनाकर चल रहा था। आनन्द पल्लवी का हाथ थामकर कहता है पल्लवी मैं और तुम समुद्र का यह किनारा लहरों में जैसे जीवन की कल्पना हो रही हो। हमारे मन में नये-नये विचार आ रहे हैं। प्रतिदिन क्षितिज में ऊगता हुआ सूर्य देखकर हम उसको नमस्कार करते हैं और कोलाहलपूर्ण जीवन की शुरूआत करते हैं।

जीवन का यह क्रम अनवरत चल रहा है और जब तक संसार है ऐसे ही चलता रहेगा। यह सुनकर पल्लवी उसके और भी निकट आ जाती है। फिर पूछती है तुम मुझसे क्या चाहते हो। आनन्द कहता है सागर की गहराई सी गम्भीरता तुम में हो आकाश के विस्तार के समान धैर्य और धरती से आसमान की ऊंचाई के समान हृदय में उदारता हो। ऐसे स्वभाव की अपेक्षा तुमसे है। जीवन में कठोर श्रम, लगन में हो सच्चाई, कर्म से हो सृजन तभी यह सुख समृद्धि मान-सम्मान का आधार बनता है। यह जितना मजबूत होगा उतना ही जीवन का यथार्थ सुदृढ़ होकर सफल होगा। जीवन का सत्य है कि आत्म निर्भरता की राह पर बढ़ते चलो और अपनी मदद स्वयं करो। अपनी कल्पनाओं को हकीकत में बदलकर सृजन से आत्मनिर्भर बनो। जीवन में सफलता पाकर समाज में अपना विशिष्ट स्थान बनाओ। एक ओर आनन्द बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था और दूसरी ओर उसके हाथ पल्लवी का कन्धा सहला रहे थे।

तुमने शहनाज हर्बल का ब्यूटीशियन का पूरा कोर्स किया है। तुम्हारे पास डिग्री भी है। तुमने इसके बाद यदि इस दिशा में काम किया होता तो आज तुम एक अच्छी ब्यूटीशियन के रुप में जानी जाती। आज कम से कम चालीस पचास हजार रूपया महिना तुम कमा रही होतीं। सरकार की स्वरोजगार योजना का लाभ लेकर आज तुम अपने पैरों पर खड़ी होतीं।

पल्लवी कहती है- यह सब वक्त-वक्त की बातें होती हैं यदि समय साथ देता है तभी जीवन में सब कुछ प्राप्त होता है अन्यथा पर उपदेश कुशल बहुतेरे तो बहुत होते हैं।

उनकी यह बात गौरव के कानों में भी पड़ जाती है। गौरव बीच में कहता है- वक्त हमारा मित्र है एवं जीवन में उमंग, तरंग व सृजन का जन्मदाता है। वक्त आशाओं का उद्गम है और कल्पनाओं को वास्तविकता में परिवर्तित करके सफलता की कहानी बनता है। सही समय पर हम दस्तक तो दें वक्त तो सभी को उपलब्ध है। वह अमीर और गरीब में भेदभाव भी नहीं करता, जिसने वक्त को पहचान लिया और सही समय पर अपना बना लिया उसी ने सुख शान्ति वैभव को पा लिया। वक्त सबसे बड़ा दाता है हम इसे समझकर इसके प्रति कृतज्ञ होकर हृदय से समर्पित हो अभिमान से दूर रहकर विनम्रता पूर्वक वक्त हो नमन करें यही जीवन का प्रारम्भ व अन्त है। पल्लवी की मां इन बातों को सुनकर कहती है जिन्दगी में किसी की भी सभी हसरतें पूरी नहीं होतीं। उसूलों पर चलने वाले हसरतों से नहीं डरते। हम नहीं समझ पाते हैं कि हसरतें हमारे जीवन का दर्पण एवं भविष्य का आधार हैं। हसरतों को पूरा करने के लिये कठिन परिश्रम धर्म ज्ञान और भाग्य के साथ कर्म का समन्वय भी अपनी भूमिका निभाता है। तभी सफलता का आधार हमें प्राप्त होता है। हमको अपने स्वभाव में धर्मवीर, कर्मवीर और दानवीर के गुणों का समावेश करना होगा तभी हमारी हसरतें पूरी करने की दिशा में हम आगे बढ़ सकेंगे।

पल्लवी तिरछी निगाहों से आनन्द की ओर देखकर कहती है- धनवान तो धन में भी धन को ही सोचता है और उसे सहेजता है। उसे धन के संचय में ही धन का सार नजर आता है। धन से धन कमाना उसे आता है। वह अपनी परछाईं में भी धन का मुख देखता है। वह शान्ति तृप्ति और संतुष्टि से दूर रहता है क्योंकि वह धन में ही जीता है और एक दिन सब कुछ यहीं छोड़कर विदा हो जाता है।

उसकी बात सुनकर आनन्द का अहम आहत होता है और वह बौखला जाता है वह पल्लवी से कहता है कि तुम मानवीय संवेदनाओं के विषय में कुछ नहीं जानतीं, यह एक गूढ़ और गम्भीर विषय है। परोपकार सदैव कृतार्थ करता है उसे आप माने या न माने यह आप पर निर्भर करता है। वह हमेशा दाता से अभिलाषा बढ़ाता है। वह अभिलाषा पूरी न हो तो अभिलाषी को निराशा होती है। वह सामने वाले की मजबूरी न समझ कर मदद नहीं करने के लिये बहाना बनाने वाली बात सोच लेता है। उसके मन में हमारे प्रति दुर्भावना आती है जो हमारी आत्मा को कष्ट देती है जीवन में सेवा से बड़ा धर्म और कर्म दूसरा नहीं है। यदि ऐसा संभव न हो तो कठोर वचन व घमण्ड पूर्ण वाणी का प्रयोग मत करो। यदि कुछ भी नहीं दे सकते तो प्रेम पूर्वक समझाओ और प्रेम की वाणी से सांत्वना अवश्य दो। यथा संभव उसकी पीड़ा में सहभागी बनकर मदद पहुंचाओ और उसके कष्ट को कम करने का प्रयास करो। इससे तुम्हें परम आनन्द की प्राप्ति होगी और परोपकार की राहों में चलने की शक्ति मिलेगी।

यह सब सुनने के बाद पल्लवी जीवन की राह के विषय में आनन्द एवं गौरव से पूछती है- आखिर हमारे जीवन की राह क्या, कैसी और क्यों होनी चाहिए। दोनों ही इस विषय पर अचकचा जाते हैं। वे पल्लवी से ही पूछते हैं तुम्हारा इस विषय में क्या विचार है।

पल्लवी कहती है- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम पवित्र हो सकता है किन्तु मोक्ष दायक नहीं होता। संगम में डुबकी से भावना बदल सकती है किन्तु क्रिया-कर्म एवं धर्म के बिना मोक्ष असम्भव है। हमारी सांस्कृतिक मान्यता है कि हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। हम सत्यमेव जयते, मनसा वाचा कर्मणा अपने जीवन में अपनाएंगे तो सुख, सम्पदा और स्नेह का होगा संगम। सूर्य जो हमें ऊर्जा देता है प्रकाश दिखलाता है रास्ता, सुहावनी सन्ध्या देती है शान्ति और निशा देती है विश्राम। चांदनी से मिलती है तृप्ति की अनुभूति और हम पर बरसेगी परमात्मा की असीम कृपा। हमारे जीवन में हो समर्पण कर्म में सेवा की भावना और धर्म में परोपकार के प्रति श्रृद्धा। धर्म पालन में हो ईमानदारी और सच्चाई, हृदय में हो आत्मीयता और वाणी में हो मधुरता ईश्वर हमारे साथ रहेगा और यह धरती स्वर्ग बन जाएगी।

पल्लवी की ये बातें सुनकर आनन्द व गौरव हत्प्रभ रह जाते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि वे क्या उत्तर दें। पल्लवी मुस्कराती है और कहती है कि मैंने अब अपने आप को तुम्हारे प्रति समर्पित कर दिया है। मेरे जीवन में पुराने एक दो मित्रों के अलावा अब कोई नहीं आएगा। परन्तु मुझे हमेशा एक चिन्ता सताती है कि अभी तो तुम मुझे प्रतिमाह खर्चे की जितनी रकम देते हो उससे मेरा खर्च चल जाता है किन्तु आज समाज में रहने के लिये अनेक वस्तुएं जैसे फ्रिज, टीवी आदि रोजमर्रा की आवश्यकता बन गए हैं। यदि ये सामान्य मानी जाने वाली वस्तुएं भी किसी परिवार में न हों तो उसे एक बहुत ही हीन स्थिति का माना जाता है। फिर आज तो तुम हो किन्तु कल यदि तुम मेरा हाथ छोड़ दोगे तो मैं और मेरा परिवार तो कहीं का नहीं रह जाएगा।