Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फिल्म रिव्यूः 'ऊरीः द सर्जिकल स्ट्राइक'… भारतीय सैन्य के गौरवान्वित प्रकरण की बहेतरिन प्रस्त

भारत में जहां दर्शकों को हमेशा मनोरंजन की भूख रहती है वहां पर युद्ध पर आधारित फिल्म बनाना थोड़ा मुश्किल लगता है. कभी कभी कोई ‘बॉर्डर’ या ‘हकीकत’ जैसी फिल्में दर्शकों के अपेक्षा पर खरी उतरती है, लेकिन ज्यादातर वॉर फिल्में बॉक्सऑफिस पर असफल होती दिखाई देती है. ‘बॉर्डर’ के ही निर्देशक जे.पी.दत्ता की फिल्म ‘पलटन’ पिछले साल कब आई और कब गई किसी को पता भी नहीं चला. इस बार निर्देशक आदित्य धर ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ नाम की वॉर फिल्म लेकर आए हैं.

‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ फिल्म बनी है 2016 में भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के ऊपर. 138 मिनट की यह फिल्म पूरी तरह से अपने सब्जेक्ट को वफादार रहती है और बिल्कुल भी इधर-उधर नहीं भागती. यह फिल्म सही मायनों में निर्देशक की फिल्म है. खुद की लिखी पटकथा का आदित्य धरने सटीक निर्देशन किया है और कलाकारों को एकदम कंट्रोल में रखा है. उन्होंने फिल्म को बहुत ही बैलेंस रखा है. न तो बेकार के इमोशन दर्शाए गए हैं, और न ही देशभक्ति का ओवरडोज दिया गया है. डायलॉग भी बिल्कुल रियल लगते हैं और फालतू की हीरोगिरी भी नहीं दिखाई गई है. लेकिन इन सब के बावजूद डायरेक्टर एक मजबूत फिल्म देने में पूरी तरह से सफल रहे हैं.

फिल्म के पहले हाफ में नॉर्थ ईस्ट और दिल्ली में घटी आतंकी घटनाओं को दिखाया गया है और इंटरवल के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का प्लानिंग और एक्शन दिखाया गया है, जो कि काफी रोमांचक है. पहले ही दृश्य से फिल्म दर्शकों को बांध लेती है और फिर अंत तक जकड़ के रखती है. मानना पड़ेगा कि भारत के इतिहास की यह पहली फिल्म है जिसमें युद्ध के दृश्यों को इतनी बखूबी से, इतने डिटेल में दिखाया गया है. फिल्म का माहोल इतना वास्तविक है की लगता है जैसे दर्शक फिल्म के अंदर बैठकर खुद उन सारी घटनाओं का साक्षी बन रहा है.

फिल्म की टेक्निकल पासे इंटरनेशनल लेवल के है, फिर चाहे वो मितेश मिरचंदानी की सिनेमैटोग्राफी हो या फिर स्टीफन रिक्टर की एक्शन कोरियोग्राफी, या फिर शाश्वत सचदेव का संगीत. फिल्म देखते वक्त महसूस होता है कि जैसे कोई हॉलीवुड की ए-ग्रेड फिल्म देख रहे हैं. गोला-बारूद की आवाजें, गोलियों की बौछार और बम-धमाके जब कानों में पडते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते है. इस फिल्म का साउंड मिक्सिंग और साउंड एडिटिंग कमाल का है, इतना कमाल का की बेजिझक कहा जा सकता है की हिंदी फिल्मों में आज तक साउंड डिजाइन का इतना बारीक काम कभी नहीं हुआ, कभी भी नहीं.

जांबाज भारतीय कमांडो और पाकिस्तानी आतंकवादी के बीच में जो मुठभेड़ दिखाई गई है वह बहुत ही वास्तविक है. फिर वह चाहे गन शॉट हो या हाथोहाथ की मारामारी. अच्छी बात यह है कि बॉलीवुड में जिसका बहुत ही उपयोग किया जाता है उस स्लो मोशन टेक्निक का यहां बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया है. सारा एक्शन इसी वजह से ज्यादा अपीलिंग लगता है.

अभिनय की बात करें तो विकी कौशल सर से लेकर पांव तक सेना के जवान लगते हैं. वो बहुत ही फिट लगते हैं, आर्मी की वर्दी में बहुत ही हैंडसम लगते हैं. ‘संजू’ और ‘मनमर्जियां’ के बाद उन्होंने फिर से एक बहुत ही जबरदस्त परफॉर्मेंस दी है. बहुत ही नेचरल और मंजा हुआ अभिनय है उनका. फिल्म इंडस्ट्री को विकी कौशल के रूप में एक डार्क हॉर्स मिला है. यह लड़का बहुत आगे जानेवाला है, बहुत ही आगे. इस फिल्म से हिंदी फिल्मों में डेब्यू करनेवाले मोहित रैना का रोल छोटा है लेकिन वह अपनी छाप छोड़ जाते हैं. उसी प्रकार कीर्ति कुल्हारी भी महेमान भूमिका के बावजूद प्रभावित करती हैं. यामी गौतम ने भी अच्छा काम किया है. छोटे से रोल में दिखीं रुखसार रहमान भी अच्छी लगीं.

सर्जिकल स्ट्राइक को बीजेपी गवर्नमेंट के शासनकाल में अंजाम दिया गया था तो जाहिर है कि उस वक्त जो लोग सरकार में थें उनको परदे पर दिखाया जाए. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर अजीत डोभाल, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, मनोहर पारिकर, सुषमा स्वराज जैसे कई सारे एक्टर्स को फिल्म में दिखाया गया है और उनके गेट-अप तारीफ के काबिल है. हालांकि इन पात्रों को दिया गया महत्व सोचने पर मजबूर कर देता है कि कहीं यह फिल्म बीजेपी के फेवर में एक प्रोपगेंडा के तौर पर तो नहीं बनाई गई है?

यह फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है, लेकिन इस में जो कुछ दिखाया है वह सब उसी प्रकार से हकीकत में घटा था, ऐसा मान लेने की जरूरत नहीं है, और इस बात को फिल्म के डिस्क्लेमर में ही साफ तौर पर बता दिया गया है. टिपिकल बॉलीवुड मसाला मनोरंजन देनेवाला एक भी सीन न होने के बावजूद भारतीय सेना के उस गौरवान्वित प्रकरण को दर्शाती यह फिल्म आपको जरूर पसंद आयेगी. इस एक्शन एडवेंचर फिल्म को मेरी तरफ से पांच में से पूरे 4 स्टार्स.