तिरोहित Vinita Shukla द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तिरोहित

स्वरा एकटक उस विशालकाय बोर्ड को देख रही थी, जिस पर लिखा था, “रोहिणी देवी मेमोरियल हॉस्पिटल”. नये पेंट की तहें, अभी सूखी ना थीं. मन में कुछ भरभराकर टूट गया. औचक ही यादों के कपाट खुल पड़े. वहां- जहाँ गड्डमड्ड होती, अतीत की तहें... आसन्न मृत्यु का आतंक और छटपटाती हुई रोहिणी! आसपास काफी हलचल, काफी चहल पहल थी; लेकिन स्वरा को होश कहाँ! वह तो अपने में गुम थी. रोहिणी देवी- उसकी रौबीली सासू माँ, कोई सामान्य स्त्री नहीं थी. घर के हर सदस्य पर, दबदबा था उनका. आज वह स्वयम इतिहास बनकर रह गयी थीं. आँखों की कोर पोंछते हुए, स्वरा ने सामान्य होने का यत्न किया. “चलिए मैडम...उद्घाटन का समय हो गया. मंत्रीजी भी पधारने वाले हैं. और आप...यहाँ खड़ी हैं?! साबजी बहुत गरम हो रहे हैं...” सेवकराम के उलाहने ने उसे चौंका दिया; लेकिन वह सहमी नहीं बल्कि उसने तमककर जवाब दिया, “चलो चल रही हूँ ना... कौन सी ऐसी आफत हो गयी!”

उसके तेवर देख, सेवकराम सकपका गया. स्वरा मैम का यह दूसरा ही रूप था!! साक्षात् रोहिणी देवी, बोल रही थीं, उनके मुख से! कार्यक्रम व्यस्तता भरा था. मंत्रीजी का माल्यार्पण, उनके द्वारा दीप- प्रज्ज्वलन, उद्घाटन की औपचारिकताएं...लम्बे लम्बे उबाऊ भाषण...निर्धनों की निःशुल्क चिकित्सा जैसे गिरगिटी संकल्प! इन सबके बीच ज्योतिका दिखाई पड़ी. शलभ के पीछे डोल रही थी- ‘सर’ ‘सर’ कहते हुए. स्वरा का माथा ठनकने लगा. बेहद आउटस्पोकन, बेहद स्वच्छन्द थी ये लड़की. अपनी लटों को बार बार झटकती, बात बेबात हंसती... आँखें मटकाती, लहराता हुआ आंचल संभालती...पेशेंट उसकी हर अदा पर लट्टू थे. आम बीमारी को, दिल की बीमारी बना देने वाले जलवे!

स्वरा तिक्तता से मुस्करा उठी. विगत और वर्तमान, हठात ही, आपस में जुड़ गये. अपना निजी ‘सेटअप’ तो अब जाकर हुआ था. पहले तो उसके पति शलभ, कॉपरेटिव अस्पताल का हिस्सा थे; जहाँ के स्टाफ में यह बड़बोली, चिपकू नर्स भी थी. कहीं टकरा जाती तो दिमाग खा लेती. सहकर्मी डॉक्टर के फंक्शन में, ज्योतिका का होना, स्वाभाविक ही था. वह सोच में थी, जब शलभ ने उसे टोका, “कम ऑन सुब्बू, इट्स योर टर्न” वह हड़बड़ाई, परन्तु फिर खुद को सहेज, माइक के आगे, जा खड़ी हुई. रोहिणी देवी पुनः उसकी जिह्वा पर बैठ गयी थीं. उन्हीं की ओजपूर्ण कविता, भावोद्गारों में, मुखरित हो उठी. फिर तो हर ओर, तालियों की गड़गड़ाहट थी.. “वाह भाभी”...इस एक स्वर ने रंग में भंग कर दिया. मन को बांच पाने का सुख, फुर्र हो चला! साथ ही ज्योतिका की बकबक चालू हो गयी. इतने में मंत्रीजी को ‘निपटाकर’ शलभ भी वहां आ पंहुचे. गर्म लोहे पर, हथौड़े की अंतिम चोट पड़ी, “सुब्बू, मैं जुहू को यहीं अपॉइंट कर रहा हूँ- एज़ हेड नर्स...व्हाट डू यू से? है ना अच्छी खबर!”

‘ओह नो!’...’स्वरा के पेट-नेम ‘सुब्बू’ के साथ, मुई ज्योतिका का पेट- नेम जोड़ दिया!!’ ...’इस मुसीबत को अपॉइंट करने की क्या जरूरत थी- वह भी हेड नर्स की पोस्ट पर???!’... ‘ये औरत कितनी बेगैरत है’ ...’ शलभ की मक्खन- पॉलिश की और जुगाड़ फिट कर लिया’ ख्यालों की दुनियां में, कोई बवंडर उमड़ चला. सासू मां की बात याद आई, “ये लड़की ओवरस्मार्ट है... कुछ ज्यादा ही ‘पर्सनल’ होने की कोशिश करती है, इससे दामन बचाकर रखना” शलभ भी तो उसी माँ के बेटे हैं. क्यों ना फिर बचा सके दामन?! उसे याद आया जब मम्मीजी ने, गरीबों के लिए फ्री मेडिकल कैंप लगवाया था. उस समय शलभ के संग, यह भी चली आयी थी नत्थी होकर! पूरे दिन बकर, बकर!!

कैंप के बाद, खुदबखुद उस बला से पीछा छूट गया था. लेकिन अब फिर... भूतिया साये के मानिंद, वह मंडरा रही थी ज़िन्दगी पर! अस्पताल का मैनेजमेंट स्वरा को देखना था, जैसी कि स्वर्गीय मांजी की इच्छा थी. अब तो रोज रोज ‘जुहू’ का मनहूस चेहरा सामने होगा...वह भी सुबह- सबेरे! आशंका बेवजह ना थी. हाजिरी- रजिस्टर में साइन के बाद, ज्योतिका को चेंजिंग- रूम की तरफ ठेलना होता. ‘छम्मकछल्लो’ वाले लुक को, पति की आँखों से दूर रखना ही भला! जाने क्यों शलभ इतने मेहरबान हैं, इस ‘सो कॉल्ड’ जुहू पर!! कहते हैं, “शी इज़ सो एफ़ीशिएन्ट. ड्रिप लगानी हो या इंजेक्शन देना हो, जुहू से ज्यादा परफेक्ट कोई नहीं...हर पेशेंट की रूटीन अच्छे से फॉलो करती है. और पेशेंट्स का ट्रीटमेंट तो जैसे...”“आधा रोग तो उसके मादक रूप और चंचल अदाओं से दूर हो जाता है!” स्वरा चिढ़कर कहती. “कम ऑन सुब्बू...डोंट बी सो मीन” शलभ जोरों से हंस देते किन्तु प्रतिरोध नहीं कर पाते.

वे भी जानते होंगे कि पत्नी की बात झूठी नहीं. हद तो तब हुई जब ‘देवीजी’ डीप- नेक वाला ऑउटफिट पहनकर, धड़धड़ाते हुए, डॉक्टर्स- केबिन में घुस गयीं. स्वरा पीछे से आवाज़ देती रही, लेकिन कोई फायदा नहीं! पीछे पीछे उसे भी जाना पड़ा. शलभ पूछ रहे थे, “ये वही ड्रेस है, जो रायपुर वाली बुआ ने दी थी?” “जी सर” चहकता हुआ जवाब मिला. “आई मस्ट से, उनका ड्रेसिंग- सेंस बेहतरीन है” “थैंक यू सर, आई विल कन्वे दिस तो हर”. उस पर नजर पड़ते ही वे झेंपे, “ओके अब जाओ...देखो सुब्बू गुस्सा हो रही है. तुम्हें चेंजिंग रूम जाना था पहले” स्वरा कटकर रह गयी. उसके रूल्स और रेगुलेशंस कौन मानता है!

शलभ से कहा भी तो वे बात आयी गयी कर देंगे. उनके मुताबिक़, सबओर्डीनेट्स से काम निकलवाने के लिए, थोड़ा- बहुत क्लोज होना ही पड़ता है. स्वरा के दिमाग में कीड़ा रेंगने लगा. उसने झट कंप्यूटर खोला. ‘माइक्रोसॉफ्ट पेंट’ पर, ज्योतिका की नेक वाली डिजाईन कॉपी की और अपनी बुटीक वाली दोस्त, सुमिता को फॉरवर्ड कर दिया. संयोग से सुमिता के पास, वैसे ही ‘गले’ वाली नाईटी थी. शाम होते होते, पार्सल स्वरा के पास पंहुच गया. रात आयी. अप्सरा सा श्रंगार कर, वह शयनकक्ष की शोभा बढ़ा रही थी. कैंडल- लाइट सरीखा धुंधला नाईट बल्ब और देह पर वही नाईटी. शलभ कहे बिना रह ना सके, “आज तो गजब ढा रही हो डिअर...कोई ख़ास बात!” बदले में उसने अर्थपूर्ण मुस्कान पति की तरफ उछाल दी. माहौल में नशा छा गया. निस्तब्ध, ठहरा हुआ समय, किसी लरजती, बलखाती हुई नदी सा बह निकला. साधारण सी दिखने वाली रात, मधुयामिनी बन गयी! सुबह हुई. विजय की संतुष्टि, स्वरा के चेहरे पर थी. जुहू को लेकर आशंका, अब कचोट नहीं रही थी.

सहसा शलभ ने कहा, “ये ड्रेस देखी हुई लग रही है” यह सुनकर वह आतंकित हो गयी और झट स्नानघर का रास्ता पकड़ा. शावर लेते समय, जंगली झरने सी कोई हंसी, कानों में गूँज उठी. भूली हुई याद सा एक चेहरा...अप्रतिम, नैसर्गिक सौन्दर्य! वह सुन्दरता जिसे बनावट या मेकअप की दरकार ना थी. शलभ की बात को दोहराते हुए उसने कहा, “ये ड्रेस देखी हुई लग रही है”. फिर व्यंग्य का पुट भी जोड़ दिया, “स्वरा, यू आर जस्ट अ कॉपी कैट...कभी तो कुछ ओरिजिनैलिटी रखो; सोच में, लाइफ स्टाइल में!” स्वरा ने कान बंद कर लिए. वनश्री मर अवश्य गयी किन्तु मिटी नहीं.

वह परछाईं बन, अब भी पीछा करती है उसका. डर है कि छोटी छोटी अनमोल खुशियाँ, लील ना जाए ये परछाईं! पति की स्टडी में, वनश्री का, पोट्रेट रहता था. पेंटिंग पर रोज फूलमालाएं बदली जातीं, अगरबत्ती जलाई जाती. मेडिकल- कॉलेज में शलभ की सहपाठिनी... प्यार का नाम विन्नू! शायरी करने का शौक़ीन, प्रेमी युगल, अपनी ही दुनियाँ में रहता. विवाह की तारीख भी पक्की हो गयी पर तभी वह दुर्घटना! प्रेम परवान चढ़ने के पहले ही, काल का ग्रास बन गया!!

“कम ऑन सुब्बू...वी आर गेटिंग लेट! व्हाट हैपेंड टु यू टुडे?! ब्रेकफास्ट रेडी है. हरी अप” सुनकर वह हड़बड़ाई. शलभ दूसरे बाथरूम से, फ्रेश होकर निकल आये थे. वह फुर्ती से तैयार हुई और नाश्ते की मेज तक पहुंची. वे हँसे- उसकी मशीनी तत्परता को देखकर. स्वरा फिर उसी उबाऊ दिनचर्या में खपने को तैयार थी. फिनाइल की गंध...मरीजों की हाय- तौबा, स्टोर में दवाइयों व सिरिंजों का लेखा- जोखा, पेशेंट के बिल और रिकार्ड्स, कर्मचारियों की पगार वगैरा वगैरा! कभी लगता है कि छोड़ दे यह सब! इन सब कामों के लिए तो गाँव से उसके चचेरे देवर मानिक को बुलाया जा सकता था. शलभ भी कई बार यह, अप्रत्यक्ष रूप से, इंगित कर चुके थे.

वह महसूस करती है कि इन झमेलों के बोझ तले, दब गया है आत्मा का संगीत!! कभी राग भैरव का बड़ा खयाल, यादों में गूंजता है- ‘बालमुआ...मोरे सैंयाँ’ तो कभी राग यमन की तानों के साथ, वे चुलबुले बोल- “कौन करत तोरी बिनती पियरवा...मानों न मानों हमरी बात” मन कहता है कि सब छोड़छाड़कर, लौट चले सुरों की दुनियां में; किन्तु फिर, सुधियों की धुंधली तस्वीर, उसे विक्षिप्त बना देती है... वह तस्वीर- जिसमें उसके जीवन के दो आधार- स्तम्भ, उसके दोनों गुरु, अपनी गुरुता को लज्जित कर रहे हैं! पुष्पांजलि (गुरु- चरणों में समर्पित पहली गुरुदक्षिणा, जिसमें पान का पत्ता, सुपारी, कमलदल, रूपये- पैसे इत्यादि होते हैं) सड़ांध मारने लगती है!!

तब उसे अपनी सास रोहिणी देवी याद आती हैं. उनका कहना था, “पति को बांधे रखना है तो उसके कार्यक्षेत्र में दखल रखना भी जरूरी है”. उन्होंने उसको जिम्मा दिया था, बेटे के जीवन से, ‘विन्नू’ को बुहार फेंकने का! इतना ही नहीं, उसे समझाया था कि शलभ का चुम्बकीय व्यक्तित्व, स्त्रियों को सहज ही आकर्षित करता है; इसी से उसका सजग रहना आवश्यक है. लेकिन वह थक चुकी है इस सबसे. विन्नू की पेंटिंग को, सबसे पहले, उसने तहखाने के हवाले किया. फिर उसकी दूसरी चीजों को भी, वहीँ दफन कर दिया. उनमें सबसे अहम थी वह डायरी, जिसमें वे रोज वनश्री को संबोधित करते हुए, एक पत्र लिखते थे, वहीं उस दिन की घटनाएँ दर्ज होती थीं. साथ ही अंतस के, सुख- दुःख भी सिमट आते थे. विन्नू का टैब भी उधर था. उसकी कई वीडियो- क्लिपिंग्स भी. खिलंदड़ा सा मुख...उस पर वह झरने जैसी हंसी... स्वरा को चुनौती देती हुई!

सुब्बू ने उसांस ली. दुल्हन के वह कपड़े, वह मंगलसूत्र जो शलभ ने विन्नू के लिए पसंद किये थे, टैब में देखे जा सकते थे. वे कितना कसमसाए थे, विन्नू की निशानियों के गुम होने से...जो भी हो, यह जरूरी भी था- उनके गृहस्थधर्म के लिए. वनश्री को उनके दिल से उखाड़ फेंकने की जेद्दोजेह्द, उसे खुद अपने से दूर कर रही है. उसका दुःख कोई नहीं समझता. मीना भी नहीं, जो उसकी मौसेरी बहन होने के साथ, सबसे अच्छी सहेली भी है. वह तो बस उपदेश देती रहती है, “विन्नू के पीछे भागना बंद करो दी. अपनी पहचान के पीछे भागो. खोये हुए सपनों का पीछा करो. उन्हें फिर जकड़ लो मुट्ठी में” लेकिन कैसे! असुरक्षा की भावना उसे खाए जाती है. क्लब की पार्टी में श्यामली की बदनउघाडू पोशाक, बरबस सबका ध्यान खींच रही थी. उसने पति को भी, चोर निगाहों से, उधर ताकते हुए पाया. सो व्हाट?! वह उस चैलेंज के लिए तैयार थी. आखिर सुमिता किस मर्ज की दवा थी! वैसी ही मैक्सी सिलवा ली और शलभ के जन्मदिन पर, उसे पहन कर खड़ी हो गयी- स्वयम उसका शरीर ही, बर्थडे- गिफ्ट बन गया था! वनश्री शायद, ठीक ही कहती है..ऑर्केस्ट्रा- आर्टिस्ट मोना की उत्तेजक फ्रॉक पर, जब शलभ की नजर फिसली, तो उसे कॉपी करने से भी चूकी नहीं वह; जस्ट एज़ अ कॉपी कैट! स्वरा पुनः मेनका बन गयी थी और काया के इंद्रजाल में शलभ, विश्वामित्र से जकड़ गये!!

देह -चक्र से आजाद होना, क्या सहज है?! मीना को ही लो. मीडिया का जाना माना चेहरा है. पर क्या क्या जहालत नहीं झेली उसने! अपने पहले डांस- ऑडिशन के लिए, ब्यूटीशियन से वैक्सिंग कराने गयी थी. उसकी निरावृत्त टांगों पर गर्म चाशनी मलकर, खुरदुरे कपड़े की पट्टी लपेट दी गयी. झटके के साथ, ब्यूटी- एक्सपर्ट ने जब उस पट्टी को खींचा, तो सारे बाल खिंचे चले आये. चौदह वर्षीय मीना, पीड़ा से कराह उठी थी. अगले दिन ऑडिशन में, मिनी- स्कर्ट पहने, वह लज्जा से गड़ी जा रही थी. रिहर्सल के दौरान, खुद स्वरा ने देखा कि डांस- कोऑर्डिनेटर, सिखाने के बहाने, मीना को गलत ढंग से छू रहा था. यहीं नहीं, उसके सीने के खुले भाग पर, मेकअप मैन, अपने हाथों से पाउडर मलता नजर आया. औरत कितनी भी काबिल हो, पुरुष को रिझाना ही, अंततः उसकी नियति है. अस्पताल से घर आते समय, जब कभी देर होती तो एक कॉल- गर्ल, फुटपाथ पर दिखाई पड़ती थी. गहरा आबनूसी रंग, सफेद पाउडर की परतों से दबा... बरौनियों पर धनुष जैसा मस्कारा और खूनी लिपस्टिक! भद्दे चेहरे को संवारने की मजबूरी, उस पर अभद्र इशारे!!

माँ इसी में तो चूक गयीं. उनकी शैक्षिक योग्यता पिताजी से कहीं अधिक थी. वे कन्या महाविद्यालय की, प्रतिष्ठित प्रवक्ता थीं. लेकिन वह सादगीपसंद थीं. साज- संवार, मेकअप और तड़कभड़क से परे. यही कमी, उसके पिता वेदशंकर को, उनसे दूर ले गयी. वे दूरदर्शन के नामीगिरामी शास्त्रीय गायक एवं प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर थे. शास्त्रीय गायन की प्रारम्भिक शिक्षा, स्वरा को उन्हीं से मिली. जब उसका चयन, पुणे के संगीत- संस्थान में हुआ तो पिताजी ने, वहीँ नियुक्त अपनी एक छात्रा, रमोला को ढूँढ निकाला. रमोला गायकी में उसकी दूसरी गुरु थीं. वे उसे प्राइवेट ट्यूशन देने लगीं. इस ‘ऑब्लिगेशन’ के बदले, वेदशंकर कभीकभार, दूरदर्शन में उनका प्रोग्राम करवा देते.

सब कुछ ठीक चल रहा था. फैशनेबुल रमोला किसी ‘एंगल’ से, गुरु जैसी नहीं लगती थीं. परन्तु उन्हें गीत-संगीत का गहरा ज्ञान था. उनकी छत्रछाया में स्वरा की प्रतिभा भी, फलफूल रही थी. पिताजी भी बीच बीच में आकर रमोला से मिलते और उसकी प्रगति का जायजा लेते. संस्थान के दीक्षांत समारोह में उसे सम्मानित भी किया गया. मुख्य अतिथि थीं समाजसेविका रोहिणी देवी. उनका डॉक्टर बेटा शलभ भी संग आया था. शलभ उससे ख़ासा प्रभावित हुए. बेटे के रुझान को देख, रोहिणी देवी ने स्वरा के साथ, उसे बाँधने में देर ना की.

“हाल कैसा है जनाब का?” मीना की आवाज़ से, विचार- तंद्रा भंग हुई. “मीना तू...इस समय?!” जवाब में मीना चिहुंक पड़ी, “ओह दी याद नहीं, आज जीजू के साथ अपॉइंटमेंट है- मायग्रेन को लेकर” “इतना काम करेगी तो मायग्रेन होगा ही” स्वरा खीज उठी थी. “मेरी छोड़ो, अपनी देखो दी; क्या हाल बना रखा है...कुछ लेती क्यों नहीं?!” इस शरारती अंदाज पर, दोनों ठठाकर हंस पड़ी थीं.

“क्या बात है सालीजी, कुछ ज्यादा हंसी आ रही है! हमारे पीछे हमारे खिलाफ, कांस्पीरेसी तो नहीं चल रही??” सहसा शलभ प्रकट हुए. “वाह जीजू, क्या एंट्री मारी है! बिलकुल जेम्स बांड के जैसी” “हम जेम्स बांड हैं तो आप भी अगाथा क्रिस्टी से कम नहीं, सालीजी! आप तो उसका मॉडर्न वर्शन हैं... क्या फूल वाला गाउन पहना है! बाय गॉड...यू लुक सो स्टनिंग!!” “मैं भी ऐसा ही एक गाउन लूंगी” स्वरा यंत्रवत बोल उठी. इस पर शलभ ने भेदती हुई दृष्टि से उसे देखा और भीतर चले गये. हवाओं में भारीपन छा गया. स्थिति की गम्भीरता को भांपकर, मीना चुपचाप, वहां से उठी और अपॉइंटमेंट के लिए, डॉक्टर्स- केबिन जा पंहुची.

शाम को शलभ, सदा की तरह, स्टडी में नहीं मिले. वह पूरे घर में ढूंढ आई. अगरबत्ती गमकने लगी, तब जाकर, उनका पता लगा. वे तहखाने तक जा पंहुचे थे. विन्नू की तस्वीर पर, फूलमाला चढ़ चुकी थी. डायरी के जरिये, संवाद चल रहा था. जाने क्या दर्ज हो रहा था, इबारतों में! वे निकले तो स्वरा दबे पाँव वहां आई और डायरी खोलकर पढ़ने लगी. पन्नों में दिल उड़ेलकर रख दिया था शलभ ने.

“प्यारी विन्नू,

सोचा था, स्वरा के प्यार में, तुम्हारा दर्द भुला दूंगा. आखिर वह भी तुम्हारी तरह कलाकार है और तुम जैसी भावुक भी. लेकिन उसका दिल, उसकी संवेदना, मरती जा रही है. वह बस मुझे लुभाने; देह के जरिये, मुझसे जुड़ने की कोशिश करती है. उसकी आत्मा के तार, मुझसे जुड़ नहीं पाते. जुहू और मीना की ड्रेस की तारीफ़ क्या कर दी, उसे चुनौती लगने लगी! कल उसने तुम्हारे टैब से, तुम्हारा शादी वाला लंहगा भी स्कैन कर लिया और सुमिता को उसकी फोटो भेज दी. ऐसा कब तक चलेगा.?! क्या करूं...बताओ!

स्वरा की आँखों से, गर्म पानी बहने लगा था. स्त्री अपने शरीर को, सबसे बड़ा हथियार बना सकती है और सबसे बड़ी कमजोरी भी... शलभ उसे मन की रानी बनाना चाहते थे; पर वह, तन के समीकरणों में उलझकर रह गयी! स्वरा ने आईने के आगे, आंसू पोंछने का जतन किया तो आईना धुंधला गया. कुछ पलों बाद ही दिखना शुरू हुआ. लेकिन यह क्या! उसे अपना चेहरा नहीं, मीना का चेहरा दिखाई दे रहा था. डांस- कोऑर्डिनेटर के स्पर्श से विकृत चेहरा. फिर वह चेहरा, रमोला के चेहरे में तब्दील हो गया... उसके पिता के साथ, काम- क्रीड़ा में लिप्त रमोला! इसके बाद, वह कलूटी कॉल- गर्ल, आईने पर छा गयी. स्वरा भय से चीख उठी. नहीं...अब और नहीं!! जिस्म के दायरे से बाहर निकल, वह सोयी हुई रूह के राग को जिलाएगी... आज ही तानपुरे के तार छेड़ेगी; आज से ही रियाज़ शुरू करेगी!!!